लघुभागवतामृत

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यह रूपगोस्वामी के अनुसार सनातन के वृहद्भागवतामृत का संक्षिप्त सार है। पर वास्तव में यह एक स्वतन्त्र ग्रन्थ है। इसके दो भाग हैं- #श्रीकृष्णामृत और

  1. भक्तामृत।
  • श्रीकृष्णामृत में श्रीरूप ने बहुविध शास्त्र प्रमाणों से सिद्ध किया है कि कृष्ण स्वयं भगवान हैं और अन्य सभी भगवाद्स्वरूप श्रीकृष्ण के आंशिक अवतार हैं। वे श्रीकृष्ण के पुरुषावतार के प्रकाश मात्र हैं। कृष्णामृत में श्रीरूप ने नाना विधि शास्त्र-वाक्यों से यह भी सिद्ध किया है कि श्रीकृष्ण की लीला नित्य है, मथुरा मंडल में अब भी उनकी लीला हो रही है और कोई-कोई भाग्यवान जीव उसके दर्शन कर धन्य होते हैं।
  • भक्तामृत में रूपगोस्वामी ने शास्त्र-प्रमाण के आधार पर भक्तों का श्रेणी-विभाग किया है। उन्होंने दिखाया है कि मार्कडडेयादि भक्तों से प्रह्लाद, प्रह्लाद से पाण्डवगण, पाण्डवगण से यादवगण, यादवगणों में उद्धव, उद्धव से ब्रजगोपियाँ और ब्रजगोपियों में राधा सबसे श्रेष्ठ हैं। इसमें उन्होंने महाभारत, पुराण, भागवत, तन्त्र, गीता, वेदान्त-सूत्र आदि के उद्धरणों को कौशलपूर्वक सन्निवेश कर अपने भक्ति-सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। इसे विद्वानों ने 'भक्ति-सिद्धान्त-शास्त्र का द्वारस्वरूप' कहा है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सप्त गोस्वामी: पृ. 195

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