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भारतीय रसोई के लिए कहा जाता है कि यह हर रोग के लिए अचूक दवाखाना है। उसी तरह लगभग हर घर में खाया जाने वाले लहसुन भी ऐसी ही एक गुणकारी दवा है। 'लशति छिंनति रोगान लशुनम्' अर्थात् जो रोग का ध्वंस करे उसे लहसुन कहते हैं। इसे रगोन् भी कहते हैं। लहसुन गुणों से भरपूर भारतीय सब्जियों का स्वाद बढ़ाने वाला ऐसा पदार्थ है जो प्रायः हर घर में इस्तेमाल किया जाता है। ज्यादातर लोग इसे सिर्फ मसाले के साथ भोजन में ही इस्तेमाल करते हैं। परंतु यह औषधि के रूप में भी उतना ही फायदेमंद है। लहसुन से होने वाले लाभ और इसके चिकित्सीय गुण सदियों पुराने हैं। शोध और अध्ययन बताते हैं कि आज से 5000 वर्ष पहले भी भारत में लहसुन का इस्तेमाल उपचार के लिए किया जाता था। भारत ने लहसुन को जन-जन तक पहुँचाने में काबिले तारीफ योगदान दिया। भारत के ही आयुर्वेदाचार्य की बदौलत लहसुन के गुणों को वैज्ञानिकों ने कसौटी पर कसा तथा यूनान, मिस्र आदि देश के लोगों को इसके दिव्य गुणों से परिचित करवाया। वहीं से यह कंद अपने अमृतोपम गुणों के कारण दुनियाभर में लोकप्रिय हो गया। भोजन में लहसुन का प्रयोग मनुष्य प्राचीन समय से ही करता आ रहा है। इसकी गंध बहुत ही तेज और स्वाद तीखा होता है। कहा जाता है कि प्राचीन रोम के लोग अपने सिपाहियों को इसलिए लहसुन खिलाते थे क्योंकि उनका विश्वास था कि इसे खाने से शक्ति में वृद्धि होती है। मध्ययुग में प्लेग जैसे भयानक रोग के आक्रमण से बचने के लिए भी लहसुन का इस्तेमाल किया जाता था।  
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भारतीय रसोई के लिए कहा जाता है कि यह हर रोग के लिए अचूक दवाखाना है। उसी तरह लगभग हर घर में खाया जाने वाले लहसुन भी ऐसी ही एक गुणकारी दवा है। 'लशति छिंनति रोगान लशुनम्' अर्थात् जो रोग का ध्वंस करे उसे लहसुन (Garlic) कहते हैं। इसे रगोन् भी कहते हैं। लहसुन गुणों से भरपूर भारतीय [[शाक-सब्ज़ी|सब्जियों]] का स्वाद बढ़ाने वाला ऐसा [[पदार्थ]] है जो प्रायः हर घर में इस्तेमाल किया जाता है। ज़्यादातर लोग इसे सिर्फ मसाले के साथ भोजन में ही इस्तेमाल करते हैं। परंतु यह औषधि के रूप में भी उतना ही फ़ायदेमंद है। लहसुन से होने वाले लाभ और इसके चिकित्सीय गुण सदियों पुराने हैं। शोध और अध्ययन बताते हैं कि आज से 5000 वर्ष पहले भी भारत में लहसुन का इस्तेमाल उपचार के लिए किया जाता था। भारत ने लहसुन को जन-जन तक पहुँचाने में काबिले तारीफ योगदान दिया। भारत के ही आयुर्वेदाचार्य की बदौलत लहसुन के गुणों को वैज्ञानिकों ने कसौटी पर कसा तथा [[यूनान]], [[मिस्र]] आदि देश के लोगों को इसके दिव्य गुणों से परिचित करवाया। वहीं से यह कंद अपने अमृतोपम गुणों के कारण दुनियाभर में लोकप्रिय हो गया। भोजन में लहसुन का प्रयोग मनुष्य प्राचीन समय से ही करता आ रहा है। इसकी गंध बहुत ही तेज और स्वाद तीखा होता है। कहा जाता है कि प्राचीन [[रोम]] के लोग अपने सिपाहियों को इसलिए लहसुन खिलाते थे क्योंकि उनका विश्वास था कि इसे खाने से शक्ति में वृद्धि होती है। मध्ययुग में प्लेग जैसे भयानक रोग के आक्रमण से बचने के लिए भी लहसुन का इस्तेमाल किया जाता था।  
[[चित्र:garlic44.jpg|लहसुन|thumb|200px]]
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मसाले के तौर पर तो यह हरा और सूखा काम में लिया जाता है, पर इसके चिकित्सकीय गुणों से आज भी आम अवाम अनजान है। म्यूनिख रिसर्च इंस्टीट्यूट के डॉ. स्ट्रीफोर्ड ने अपने गहन शोध निष्कर्ष में इसे खुदा की खास नियामत ठहराते हुए दिल, दिमाग और पूरे शरीर के लिए एक शक्तिशाली टॉनिक बताया है। आयुर्वेद में लहसुन को 'चमत्कारी दवा' माना जाता है। आयुर्वेद ग्रंथ 'भावप्रकाश' के मुताबिक - 'लहसुन वृष्य स्निग्ध, ऊष्णवीर्य, पाचक, सारक, रस विपाक में कटु तथा मधुर रस युक्त, तीक्ष्ण भग्नसंधानक (टूटी हड्डी जोड़ने वाला), पित्त एवं रक्तवर्धक, शरीर में बल, मेधाशक्ति तथा आँखों के लिए हितकर रसायन है। यह हृदय रोग, जीर्ण रोग (ज्वरादि), कटिशूल, मल एवं वातादिक की विबंधता, अरुचि, काम, क्रोध, अर्श, कुष्ठ, वायु, श्वांस तथा कफ नष्ट करने वाला सदाबहार कंद है।' इसे तेल, अवलेह, भस्म, खोया बनाकर, लहसुन कल्प कर, खीर बनाकर, छोंक लगाकर, हरी या सूखी अवस्था में चटनी, अचार बनाकर काम में लिया जाता है। लहसुन को पकाने से इसके बैक्टीरिया विरोधी तत्व नष्ट हो जाते हैं, लेकिन हृदय-रक्तवाहिका (कार्डियोवसक्यूलर) संबधी गुण बना रहता है। लहसुन हृदय रोगों और कैंसर के प्रति शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है। लहसुन की गंध से मच्छर भी दूर भागते हैं। लहसुन उत्तेजक और चर्मदाहक होता है।  
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मसाले के तौर पर तो यह हरा और सूखा काम में लिया जाता है, पर इसके चिकित्सकीय गुणों से आज भी आम अवाम अनजान है। म्यूनिख रिसर्च इंस्टीट्यूट के डॉ. स्ट्रीफोर्ड ने अपने गहन शोध निष्कर्ष में इसे खुदा की ख़ास नियामत ठहराते हुए दिल, दिमाग और पूरे शरीर के लिए एक शक्तिशाली टॉनिक बताया है। आयुर्वेद में लहसुन को 'चमत्कारी दवा' माना जाता है। आयुर्वेद ग्रंथ 'भावप्रकाश' के मुताबिक़ - 'लहसुन वृष्य स्निग्ध, ऊष्णवीर्य, पाचक, सारक, रस विपाक में कटु तथा मधुर रस युक्त, तीक्ष्ण भग्नसंधानक (टूटी हड्डी जोड़ने वाला), पित्त एवं रक्तवर्धक, शरीर में बल, मेधाशक्ति तथा आँखों के लिए हितकर रसायन है। यह हृदय रोग, जीर्ण रोग (ज्वरादि), कटिशूल, मल एवं वातादिक की विबंधता, अरुचि, काम, क्रोध, अर्श, कुष्ठ, वायु, श्वांस तथा कफ नष्ट करने वाला सदाबहार कंद है।' इसे तेल, अवलेह, भस्म, खोया बनाकर, लहसुन कल्प कर, खीर बनाकर, छोंक लगाकर, हरी या सूखी अवस्था में [[चटनी]], अचार बनाकर काम में लिया जाता है। लहसुन को पकाने से इसके [[बैक्टीरिया]] विरोधी [[तत्व]] नष्ट हो जाते हैं, लेकिन हृदय-रक्तवाहिका (कार्डियोवसक्यूलर) संबधी गुण बना रहता है। लहसुन हृदय रोगों और कैंसर के प्रति शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है। लहसुन की गंध से मच्छर भी दूर भागते हैं। लहसुन उत्तेजक और चर्मदाहक होता है।  
  
*बेशक लहसुन कुदरती खूबियों से लबरेज है। लेकिन इसे उचित अनुपात में ही लेना चाहिए। इस्तेमाल के वक्त कुछ अन्य सावधानियाँ भी ध्यान रखें। गौरतलब रहे कि लहसुन की तासीर काफी गर्म और खुश्क रहती है। कई लोगों के मिजाज को यह सध नहीं पाता है। खासकर गर्मी के मौसम में पित्त प्रधान प्रकृति वाले इसका इस्तेमाल संतुलित रूप में ही करें। अगर लहसुन का कुछ दुष्प्रभाव महसूस हो तो मरीज को गोंद कतीरा, धनिया, बादाम-रोगन, नींबू, पुदीना देते रहने से उसका दुष्प्रभाव शमित हो जाएगा। घी में भून लेने से भी यह कुप्रभावी नहीं रहता। बीमारी की हालत में किसी जानकार के बताए अनुपात में ही लें एवं परहेज बताए तो वह भी रखें। जब तक हरा पत्तीदार उपलब्ध हो, ताजा ही काम में लें। बाद में सूखा लहसुन छिलके छीलकर ही इस्तेमाल करें। सदियों से भारतीय जनजीवन में लहसुन का विभिन्न रोगों में औषधिमूलक प्रयोग होता आ रहा है।  
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*बेशक लहसुन कुदरती खूबियों से लबरेज है। लेकिन इसे उचित अनुपात में ही लेना चाहिए। इस्तेमाल के वक्त कुछ अन्य सावधानियाँ भी ध्यान रखें। गौरतलब रहे कि लहसुन की तासीर काफ़ी गर्म और खुश्क रहती है। कई लोगों के मिज़ाज को यह सध नहीं पाता है। ख़ासकर गर्मी के मौसम में पित्त प्रधान प्रकृति वाले इसका इस्तेमाल संतुलित रूप में ही करें। अगर लहसुन का कुछ दुष्प्रभाव महसूस हो तो मरीज़ को गोंद कतीरा, [[धनिया]], बादाम-रोगन, [[नीबू]], [[पुदीना]] देते रहने से उसका दुष्प्रभाव शमित हो जाएगा। घी में भून लेने से भी यह कुप्रभावी नहीं रहता। बीमारी की हालत में किसी जानकार के बताए अनुपात में ही लें एवं परहेज बताए तो वह भी रखें। जब तक हरा पत्तीदार उपलब्ध हो, ताजा ही काम में लें। बाद में सूखा लहसुन छिलके छीलकर ही इस्तेमाल करें। सदियों से भारतीय जनजीवन में लहसुन का विभिन्न रोगों में औषधिमूलक प्रयोग होता आ रहा है।  
 
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[[चित्र:SMG garlic.jpg|thumb|left|लहसुन]]
*लहसुन का पौधा यूरोप और एशिया का मूल पौधा है। यह इटली तथा दक्षिण फ्रांस के जंगलों में बहुत अधिक संख्या में पैदा होता है। अब इसे संसार के सभी देशों में पैदा किया जाता है। यह लिली परिवार में आता है। यह जमीन के अंदर पैदा होता है। यह कुछ-कुछ प्याज से मिलता-जुलता पौधा है, जिसके पौधे कोमल-कोमल काण्ड युक्त 30 से 60 सेण्टीमीटर लम्बे होते हैं। पत्तियाँ चपटी, पतली होती हैं व इनको मसलने पर एक प्रकार की उग्र गंध आती है। पुष्प दण्ड काण्ड के बीच से निकलता है, जिसके शीर्ष पर गुच्छेदार सफेद फूल लगते हैं। कन्द श्वेत या हल्के गुलाबी रंग के आवरण से ढँका होता है, जिसमें 5 से 12 छोटे-छाटे जौ के आकार के कन्द होते हैं। इन्हें कुचलने से तीव्र अप्रिय गंध आती है। सुर्ख शीतल स्थानों पर जहाँ हवा का समुचित प्रवेश होता हो इन्हें 6 मास तक सुरक्षित रखकर प्रयोग में लाया जा सकता है। आजकल बाजार में लहसुन के कैप्सूल भी मिलते हैं।
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===लहसुन का पौधा===
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लहसुन का पौधा [[यूरोप]] और [[एशिया]] का मूल पौधा है। यह [[इटली]] तथा दक्षिण फ्रांस के जंगलों में बहुत अधिक संख्या में पैदा होता है। अब इसे संसार के सभी देशों में पैदा किया जाता है। यह लिली परिवार में आता है। यह ज़मीन के अंदर पैदा होता है। यह कुछ-कुछ प्याज से मिलता-जुलता पौधा है, जिसके पौधे कोमल-कोमल काण्ड युक्त 30 से 60 सेण्टीमीटर लम्बे होते हैं। पत्तियाँ चपटी, पतली होती हैं व इनको मसलने पर एक प्रकार की उग्र गंध आती है। पुष्प दण्ड काण्ड के बीच से निकलता है, जिसके शीर्ष पर गुच्छेदार सफेद फूल लगते हैं। कन्द श्वेत या हल्के गुलाबी रंग के आवरण से ढँका होता है, जिसमें 5 से 12 छोटे-छाटे जौ के आकार के कन्द होते हैं। इन्हें कुचलने से तीव्र अप्रिय गंध आती है। सुर्ख शीतल स्थानों पर जहाँ हवा का समुचित प्रवेश होता हो इन्हें 6 मास तक सुरक्षित रखकर प्रयोग में लाया जा सकता है। आजकल बाज़ार में लहसुन के कैप्सूल भी मिलते हैं।
  
 
===लहसुन के रासायनिक तत्व===
 
===लहसुन के रासायनिक तत्व===
लहसुन में रासायनिक तत्वों का भंडार है। इसकी एक-एक तुरी अनेक खाद्य तत्वों से भरपूर है। लहसुन में कई रसायनिक तत्व जैसे- वाष्पशील तेल 0.6 प्रतिशत, प्रोटीन 6.03 प्रतिशत, वसा 1.00 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट्स 29.00 प्रतिशत, खनिज पदार्थ 1.00 प्रतिशत, चूना 0.3 प्रतिशत तथा लोहा 1.3 मिलीग्राम, प्रति 100 ग्राम पाये जाते हैं।  
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लहसुन में रासायनिक तत्वों का भंडार है। इसकी एक-एक तुरी अनेक खाद्य तत्वों से भरपूर है। लहसुन में कई रसायनिक तत्व जैसे- वाष्पशील तेल 0.6 प्रतिशत, [[प्रोटीन]] 6.03 प्रतिशत, [[वसा]] 1.00 प्रतिशत, [[कार्बोहाइड्रेट]] 29.00 प्रतिशत, खनिज पदार्थ 1.00 प्रतिशत, चूना 0.3 प्रतिशत तथा [[लोहा]] 1.3 मिलीग्राम, प्रति 100 ग्राम पाये जाते हैं।  
*लहसुन में एलियम / एल्लीसिन नामक एंटीबायोटिक होता है जो बहुत से रोगों के बचाव में लाभप्रद है तथा जो उन किटाणुओं को नष्ट करता है जो पेनीसिलीन से नष्ट नहीं होते। रासायनिक दृष्टि से इसका उत्पत तेल संघटक-ऐलिन प्रोपाइल डाइसल्फाइड व दो अन्य गंधक युक्त यौगिक मुख्य भूमिका निभाते हैं। मेडीसिनल प्लाण्ट्स ऑफ इण्डिया के अनुसार लहसुन में पाया जाने वाला एलीन नामक जैव सक्रिय पदार्थ एक प्रचण्ड जीवाणुनाशी है। औषधि के 20 से 25 प्रतिशत घोल की जीवाणुनाशी क्षमता कार्बोलिक अम्ल से दो गुनी है। इसके बावजूद यह स्वस्थ ऊतकों को कोई हानि नहीं पहुँचाती। व्रणों पर इसे बिना किसी हानि के प्रयुक्त किया जा सकता है। लहसुन का जल निष्कर्ष (जियोवायोस-7.01, 1980) स्ट्रेप्टोकोकस फीकेलिस एवं इन कोलाय के विरुद्ध सामर्थ्य रखता है। कवकों की वृद्धि भी यह रोकता है।  
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*लहसुन में एलियम / एल्लीसिन नामक एंटीबायोटिक होता है जो बहुत से रोगों के बचाव में लाभप्रद है तथा जो उन किटाणुओं को नष्ट करता है जो पेनीसिलीन से नष्ट नहीं होते। रासायनिक दृष्टि से इसका उत्पत तेल संघटक-ऐलिन प्रोपाइल डाइसल्फाइड व दो अन्य गंधक युक्त यौगिक मुख्य भूमिका निभाते हैं। मेडीसिनल प्लाण्ट्स ऑफ इण्डिया के अनुसार लहसुन में पाया जाने वाला एलीन नामक जैव सक्रिय पदार्थ एक प्रचण्ड जीवाणुनाशी है। औषधि के 20 से 25 प्रतिशत घोल की जीवाणुनाशी क्षमता कार्बोलिक अम्ल से दो गुनी है। इसके बावजूद यह स्वस्थ ऊतकों को कोई हानि नहीं पहुँचाती। व्रणों पर इसे बिना किसी हानि के प्रयुक्त किया जा सकता है। लहसुन का जल निष्कर्ष (जियोवायोस-7.01, 1980) स्ट्रेप्टोकोकस फीकेलिस एवं इन कोलाय के विरुद्ध सामर्थ्य रखता है। कवकों की वृद्धि भी यह रोकता है। लहसुन का तेल लिनिमेण्ट व पुल्टिस सभी लाभप्रद होते हैं। बाह्य प्रयोगों में यह कड़ी गाँठ को गला देता है। वात रोगों में व लकवे में इसका बाह्य लाभ करता है। इसका लेप दमा, गठिया, सियाटिका चर्म रोगों तथा कुष्ठ में करते हैं।
  
 
===लहसुन के औषधिये गुण===
 
===लहसुन के औषधिये गुण===
*लहसुन की तीक्ष्णता और रोगाणुनाशक विशेषता के कारण यह चिकित्सा जगत में उपयोगी कंद है। मेहनतकश किसान-मजदूर तो लहसुन की चटनी, रोटी खाकर स्वस्थ और कर्मठ बने रहते हैं। षडरस भोजन के 6 रसों में से पाँच रस लहसुन में सदैव विद्यमान रहते हैं। सिर्फ 'अम्ल रस' नहीं रहता। आज षडरस आहार दुर्लभ हो चला है। लहसुन उसकी आपूर्ति के लिए हर कहीं सस्ता, सुलभ है। लहसुन को गरीबों का 'मकरध्वज' कहा जाता है। वह इसलिए कि इसका लगातार प्रयोग मानव जीवन को स्वास्थ्य संवर्धक स्थितियों में रखता है। हेल्थ एक्सपर्ट हर रोज सुबह-उठकर खाली पेट लहसुन की दो-तीन कलियां गुनगुने पानी से लेने की बात कहते हैं।  
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[[चित्र:Grow garlic.jpg|thumb|लहसुन]]
*तेज गंध वाली लहसुन एक संजीवनी है जो कैंसर, एड्स और हृदय रोग के विरुद्ध सुरक्षा कवच बन सकती है। त्वचा को दाग-धब्बे रहित बनाने, मुंहासों से बचने और पेट को साफ करने में भी लहसुन बढिय़ा है। इसे बादी कम करने वाला माना जाता है, इसीलिए बैंगन या उड़द की दाल जैसी बादी करने वाली चीजों में इसे डालने की सलाह दी जाती है। यह खून को साफ कर शरीर के अंदरूनी सिस्टम की सफाई करता है। अगर आपका वजन अधिक है और इसे कम करना चाहते हैं तो सुबह-शाम लहसुन की दो-दो कलियां खाएं। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने, कैंसर, अल्सर और हैमरॉयड से लडऩे में लहसुन को फायदेमंद बताया गया है। इसमें मौजूद सल्फर से एलर्जी महसूस करने वाले इसे न ही खाएं और न ही त्वचा पर लगाएं।
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*लहसुन की तीक्ष्णता और रोगाणुनाशक विशेषता के कारण यह चिकित्सा जगत में उपयोगी कंद है। मेहनतकश किसान-मज़दूर तो लहसुन की चटनी, रोटी खाकर स्वस्थ और कर्मठ बने रहते हैं। षडरस भोजन के 6 रसों में से पाँच रस लहसुन में सदैव विद्यमान रहते हैं। सिर्फ 'अम्ल रस' नहीं रहता। आज षडरस आहार दुर्लभ हो चला है। लहसुन उसकी आपूर्ति के लिए हर कहीं सस्ता, सुलभ है। लहसुन को ग़रीबों का 'मकरध्वज' कहा जाता है। वह इसलिए कि इसका लगातार प्रयोग मानव जीवन को स्वास्थ्य संवर्धक स्थितियों में रखता है। हेल्थ एक्सपर्ट हर रोज सुबह-उठकर ख़ाली पेट लहसुन की दो-तीन कलियां गुनगुने पानी से लेने की बात कहते हैं।  
*आखिर क्या है, लहसुन की इन छोटी-छोटी कलियों में जिन्हें हम खासतौर पर सर्दियों में दाल-सब्जी में तड़का लगाने के लिए इस्तेमाल करते हैं ? आपकी रसोई की ये कलियां बड़े काम की चीज हैं। आइए जानते हैं, इनके कुछ औषधीय गुणों के बारे में - दादी मां का खजाना हो या नानी मां की नसीहत, हर जगह लहसुन को चमत्कारी फ्लू जैसी छोटी-सी बीमारी से लेकर कैंसर जैसी बड़ी बीमारी के उपचार में भी सहायक होता है।  
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*तेज गंध वाली लहसुन एक संजीवनी है जो कैंसर, एड्स और हृदय रोग के विरुद्ध सुरक्षा कवच बन सकती है। त्वचा को दाग़-धब्बे रहित बनाने, मुंहासों से बचने और पेट को साफ़ करने में भी लहसुन बढिय़ा है। इसे बादी कम करने वाला माना जाता है, इसीलिए बैंगन या उड़द की दाल जैसी बादी करने वाली चीजों में इसे डालने की सलाह दी जाती है। यह ख़ून को साफ़ कर शरीर के अंदरूनी सिस्टम की सफाई करता है। अगर आपका वजन अधिक है और इसे कम करना चाहते हैं तो सुबह-शाम लहसुन की दो-दो कलियां खाएं। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मज़बूत करने, कैंसर, अल्सर और हैमरॉयड से लडऩे में लहसुन को फ़ायदेमंद बताया गया है। इसमें मौजूद सल्फर से एलर्जी महसूस करने वाले इसे न ही खाएं और न ही [[त्वचा]] पर लगाएं।
 
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*सड़े-गले व्रणों पर लगाने में लहसुन प्रति संक्रामक का कार्य करती है तथा घाव भरने में मदद करती है। लहसुन बाह्यतः लेपन और विलयन है। इसे पीसकर, एण्टीबायोटिक क्रीम की तरह लगाते हैं व अधपकी फुन्सियों को पकाने के लिए भी प्रयुक्त करते हैं। व्यावहारिक प्रयोग में संधिवात गुधसी, शोथ वेदना प्रधान रोगों में लहसुन के तेल से मालिश करते हैं। पार्श्वशूल में इसके कल्क का लेप व स्वरस की मालिश करते हैं। खुजली, दाद, विशेषकर, रिंगवर्म जैसे फंगल संक्रमणों में लहसुन के तेल का लेप आराम देता है। पक्षाघात में इसके अभिमर्दन से माँसपेशियों के पुनः सक्रिय होने की संभावनाएँ बढ़ती है।
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*आखिर क्या है, लहसुन की इन छोटी-छोटी कलियों में जिन्हें हम ख़ासतौर पर सर्दियों में दाल-सब्जी में तड़का लगाने के लिए इस्तेमाल करते हैं ? आपकी रसोई की ये कलियां बड़े काम की चीज़ हैं। आइए जानते हैं, इनके कुछ औषधीय गुणों के बारे में - दादी माँ का ख़ज़ाना हो या नानी माँ की नसीहत, हर जगह लहसुन को चमत्कारी फ्लू जैसी छोटी-सी बीमारी से लेकर कैंसर जैसी बड़ी बीमारी के उपचार में भी सहायक होता है।  
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[[चित्र:garlic44.jpg|thumb|left|लहसुन]]
 
;हृदय रोग  
 
;हृदय रोग  
यह हृदय रोगियों के लिए एक महत्वपूर्ण औषधि है। उच्च रक्तचाप के उपचार में लहसुन को उपयोगी माना गया है। लहसुन में पाया जाने वाला सल्फाइड्स रक्तचाप को कम करने में मदद करता है। वे सल्फाइड्स लहसुन को पकाने के दौरान भी नष्ट नहीं होते हैं। यानी सब्जी, दाल में जब आप लहसुन का छौंक लगाती हैं, तब भी उसका ये गुण नष्ट नहीं होता। लहसुन के सेवन से रक्त में थक्का बनने की प्रवृत्ति बेहद कम हो जाती है, जिससे हृदयाघात का खतरा टलता है। यह बिंबागुओं (Platelates) को चिपकने से रोकता है। थक्कों को गलाता है। धमनियों को फैलाकर रक्तचाप घटाता है। हाई ब्लड प्रेशर वालों के लिए यह अमृत के समान है। नियमित लहसुन को दूध में उबालकर लेते रहने से ब्लडप्रेशर कम या ज्यादा होने की बीमारी नहीं होती।  
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यह हृदय रोगियों के लिए एक महत्त्वपूर्ण औषधि है। उच्च [[रक्तचाप]] के उपचार में लहसुन को उपयोगी माना गया है। लहसुन में पाया जाने वाला सल्फाइड्स रक्तचाप को कम करने में मदद करता है। वे सल्फाइड्स लहसुन को पकाने के दौरान भी नष्ट नहीं होते हैं। यानी सब्जी, [[दाल]] में जब आप लहसुन का छौंक लगाती हैं, तब भी उसका ये गुण नष्ट नहीं होता। लहसुन के सेवन से [[रक्त]] में थक्का बनने की प्रवृत्ति बेहद कम हो जाती है, जिससे हृदयाघात का ख़तरा टलता है। यह बिंबागुओं (Platelates) को चिपकने से रोकता है। थक्कों को गलाता है। धमनियों को फैलाकर रक्तचाप घटाता है। हाई ब्लड प्रेशर वालों के लिए यह अमृत के समान है। नियमित लहसुन को [[दूध]] में उबालकर लेते रहने से ब्लडप्रेशर कम या ज़्यादा होने की बीमारी नहीं होती।  
  
कॉलेस्ट्रोल की समस्या से पीड़ित लोगों के लिए लहसुन का नियमित सेवन अमृत साबित हो सकता है। वैज्ञानिकों ने भी इस तथ्य की पुष्टि की है कि लगातार चार हफ्ते तक लहसुन खाने से कॉलेस्ट्रोल का स्तर 12 प्रतिशत तक या उससे भी कम हो सकता है। जिगर के अंदर मेटाबोलिज्म में सुधार लाकर कोलेस्ट्रॉल कम करता है और एरिथमिया को नियमित करता है। 'जर्नल ऑफ न्यूट्रीशन' के एक अध्ययन के मुताबिक लहसुन के सेवन से कोलेस्ट्रॉल में 10 फीसदी गिरावट आती है। यदि रोज नियमित रूप से लहसुन की पाँच कलियाँ खाई जाएँ तो हृदय संबंधी रोग होने की संभावना में कमी आती है।  
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कॉलेस्ट्रोल की समस्या से पीड़ित लोगों के लिए लहसुन का नियमित सेवन अमृत साबित हो सकता है। वैज्ञानिकों ने भी इस तथ्य की पुष्टि की है कि लगातार चार हफ्ते तक लहसुन खाने से कॉलेस्ट्रोल का स्तर 12 प्रतिशत तक या उससे भी कम हो सकता है। जिगर के अंदर मेटाबोलिज्म में सुधार लाकर कोलेस्ट्रॉल कम करता है और एरिथमिया को नियमित करता है। 'जर्नल ऑफ न्यूट्रीशन' के एक अध्ययन के मुताबिक़ लहसुन के सेवन से कोलेस्ट्रॉल में 10 फीसदी गिरावट आती है। यदि रोज नियमित रूप से लहसुन की पाँच कलियाँ खाई जाएँ तो [[हृदय]] संबंधी रोग होने की संभावना में कमी आती है।  
  
गर्भवती महिलाओं को लहसुन का सेवन नियमित तौर पर करना चाहिए। गर्भवती महिला को अगर उच्च रक्तचाप की शिकायत हो तो, उसे पूरी गर्भावस्था के दौरान किसी न किसी रूप में लहसुन का सेवन करना चाहिए। यह रक्तचाप को नियंत्रित रख कर शिशु को नुकसान से बचाता है। उससे भावी शिशु का वजन भी बढ़ता है और समय पूर्व प्रसव का खतरा भी कम होता है।
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गर्भवती महिलाओं को लहसुन का सेवन नियमित तौर पर करना चाहिए। गर्भवती महिला को अगर उच्च रक्तचाप की शिकायत हो तो, उसे पूरी गर्भावस्था के दौरान किसी न किसी रूप में लहसुन का सेवन करना चाहिए। यह रक्तचाप को नियंत्रित रख कर शिशु को नुकसान से बचाता है। उससे भावी शिशु का वजन भी बढ़ता है और समय पूर्व प्रसव का ख़तरा भी कम होता है।
  
 
;मधुमेह  
 
;मधुमेह  
यह मधुमेह रोग में इन्सुलिन स्राव बढ़ाकर, रक्त शर्करा स्तर घटा देता है। मधुमेह के रोगियों को प्रातः निराहार ही त्रिफला और लहसुन का रस 25 ग्राम की मात्रा में कुछ दिन लगातार लेना चाहिए।  
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{{main|मधुमेह}}
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यह [[मधुमेह]] रोग में [[इन्सुलिन]] स्राव बढ़ाकर, रक्त शर्करा स्तर घटा देता है। मधुमेह के रोगियों को प्रातः निराहार ही त्रिफला और लहसुन का रस 25 ग्राम की मात्रा में कुछ दिन लगातार लेना चाहिए।  
  
 
;दमा, सर्दी, जुकाम और कफ  
 
;दमा, सर्दी, जुकाम और कफ  
ठंड के मौसम में होने वाले सर्दी, जुकाम और कफ बनने की समस्या से राहत पाने के लिए नियमित रूप से लहसुन का सेवन करना जरूरी है। यह फेफड़ों की जकड़न को ठीक करने में मदद करता है, श्वसन मार्ग में श्लेष्मा (म्यूकस) को ढीला करता है तथा सर्दी जुकाम को रोकने में सहायक है। अदरक, नींबू, नमक, जीरा, सौंफ, अनारदाना, लहसुन की चटनी पीसकर खाँसी, दमा, कफजन्य रोगों से ग्रस्त को चटाना चाहिए। इससे बलगम निकल जाता है। लहसुन का तेल सवेरे निराहार पानी के साथ लेने से पुरानी से पुरानी खाँसी में भी फायदा होता है। यदि काली खाँसी की शिकायत हो, तो लहसुन के रस की पाँच-पाँच बूंदें सुबह-शाम लेनी चाहिए। जुकाम और सर्दी में तो यह रामबाण की तरह काम करता है। पाँच साल तक के बच्चों में होने वाले प्रॉयमरी कॉम्प्लेक्स में यह बहुत फायदा करता है। लहसुन को दूध में उबालकर पिलाने से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। लहसुन की कलियों को आग में भून कर खिलाने से बच्चों की साँस चलने की तकलीफ पर काफी काबू पाया जा सकता है। जिन बच्चों को सर्दी ज्यादा होती है उन्हें लहसुन की कली की माला बनाकर पहनाना चाहिए।  
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[[चित्र:Garlic.jpg|thumb|250px|लहसुन]]
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ठंड के मौसम में होने वाले सर्दी, जुकाम और कफ बनने की समस्या से राहत पाने के लिए नियमित रूप से लहसुन का सेवन करना ज़रूरी है। यह फेफड़ों की जकड़न को ठीक करने में मदद करता है, [[श्वसन]] मार्ग में श्लेष्मा (म्यूकस) को ढीला करता है तथा सर्दी जुकाम को रोकने में सहायक है। [[अदरक]], नींबू, [[नमक]], जीरा, सौंफ, अनारदाना, लहसुन की चटनी पीसकर खाँसी, दमा, कफजन्य रोगों से ग्रस्त को चटाना चाहिए। इससे बलगम निकल जाता है। लहसुन का तेल सवेरे निराहार पानी के साथ लेने से पुरानी से पुरानी खाँसी में भी फ़ायदा होता है। यदि काली खाँसी की शिकायत हो, तो लहसुन के रस की पाँच-पाँच बूंदें सुबह-शाम लेनी चाहिए। जुकाम और सर्दी में तो यह रामबाण की तरह काम करता है। पाँच साल तक के बच्चों में होने वाले प्रॉयमरी कॉम्प्लेक्स में यह बहुत फ़ायदा करता है। लहसुन को दूध में उबालकर पिलाने से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। लहसुन की कलियों को आग में भून कर खिलाने से बच्चों की साँस चलने की तकलीफ पर काफ़ी काबू पाया जा सकता है। जिन बच्चों को सर्दी ज़्यादा होती है उन्हें लहसुन की कली की माला बनाकर पहनाना चाहिए।  
  
 
;पेशी विश्राम  
 
;पेशी विश्राम  
वायरस और बैक्टीरिया से बचने के लिए ताजा लहसुन खाना ही फायदेमंद होता है। ताजे लहसुन में एंटीबैक्टिरियल गुण होते हैं, इसके एंटीबैक्टीरियल गुण इन्फेक्शन से लड़ने में मदद करते हैं। यह एंटीबॉयटिक, एंटी फंगल और रोगाणुनाशक है। यह ग्राम पॉजिटिव और ग्राम नेगेटिव बैक्टीरिया को नियंत्रित करता है। इसके प्रयोग से मांसपेशियों को आराम मिलता है, दांत, आंत और श्वसन मार्ग के संदूषणों पर नियत्रण रखता है।
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वायरस और बैक्टीरिया से बचने के लिए ताजा लहसुन खाना ही फ़ायदेमंद होता है। ताजे लहसुन में एंटीबैक्टिरियल गुण होते हैं, इसके एंटीबैक्टीरियल गुण इन्फेक्शन से लड़ने में मदद करते हैं। यह एंटीबॉयटिक, एंटी फंगल और रोगाणुनाशक है। यह ग्राम पॉजिटिव और ग्राम नेगेटिव बैक्टीरिया को नियंत्रित करता है। इसके प्रयोग से [[माँसपेशियाँ|माँसपेशियों]] को आराम मिलता है, दांत, [[आंत]] और श्वसन मार्ग के संदूषणों पर नियत्रण रखता है।
  
 
;जोड़ों का दर्द  
 
;जोड़ों का दर्द  
लहसुन गठिया और अन्य जोड़ों के रोग में भी लहसुन का सेवन बहुत ही लाभदायक है। लहसुन का इस्तेमाल जोड़ों के दर्द या गठिया में होता है तथा यह सूजन का भी नाश करती है। यह जोड़ों के दर्द के उद्दीपन को घटाता है।
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लहसुन गठिया और अन्य जोड़ों के रोग में भी लहसुन का सेवन बहुत ही लाभदायक है। लहसुन का इस्तेमाल जोड़ों के दर्द या गठिया में होता है तथा यह सूजन का भी नाश करती है। यह जोड़ों के दर्द के उद्दीपन को घटाता है। लहसुन की पुल्टिस को किसी भी सूजे भाग पर बाँधने या ताजा स्वरस रगड़ने से सूजन मिटती है। स्वरस में नमक मिलाकर नीलों (ब्रूस) व मोच (स्प्रेन) में सूजन उतारने हेतु प्रयुक्त करते हैं।
  
 
;पाचनप्रणाली  
 
;पाचनप्रणाली  
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;पेचिश
 
;पेचिश
 
पेचिश में 10 ग्राम लहसुन का रस मट्ठे में मिलाकर सुबह, दोपहर, शाम कुछ दिनों तक लें। रस हर बार ताजा निकालें। आशातीत लाभ होने पर बंद कर दें।  
 
पेचिश में 10 ग्राम लहसुन का रस मट्ठे में मिलाकर सुबह, दोपहर, शाम कुछ दिनों तक लें। रस हर बार ताजा निकालें। आशातीत लाभ होने पर बंद कर दें।  
 
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[[चित्र:garlic-plant-anatomy.jpg|left|thumb|लहसुन]]
 
;डाइयूरेटिक  
 
;डाइयूरेटिक  
 
इसकी प्रकृति मूत्रवर्धक है। पेशाब रुकने पर पेट के निचले भाग में लहसुन की पुल्टिस बाँधने से मूत्राशय की निषक्रियता दूर होती है।  
 
इसकी प्रकृति मूत्रवर्धक है। पेशाब रुकने पर पेट के निचले भाग में लहसुन की पुल्टिस बाँधने से मूत्राशय की निषक्रियता दूर होती है।  
  
 
;कैंसर  
 
;कैंसर  
कैंसर के उपचार में लहसुन की महत्वपूर्ण भूमिका है। कई चिकित्सीय शोध बताते हैं कि लहसुन का नियमित सेवन करने वाले लोगों को कैंसर होने की आशंका बेहद कम होती है। लहसुन में कैंसर से लड़ने की विलक्षण क्षमता है। यह निरोधक प्रणाली को प्रेरित करता है, कैंसर भड़काने वाले तत्वों का निर्विषीकरण करता है और नाइट्रेट के निर्माण में बाधा बनकर यह पाचन मार्ग, स्तन तथा प्रोस्टेट के कैंसरों के इलाज में बहुत प्रभावकारी है। 'एनल्स ऑफ इंटरनल मेडिसिन' की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रति सप्ताह पांच दाना लहसुन खाने से कैंसर का खतरा 30 से 40 फीसदी कम हो जाता है। लहसुन में कैंसर निरोधी तत्व होते हैं। यह शरीर में कैंसर बढ़ने से रोकता है। लहसुन के सेवन से ट्यूमर को 50 से 70 फीसदी तक कम किया जा सकता है।
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कैंसर के उपचार में लहसुन की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। कई चिकित्सीय शोध बताते हैं कि लहसुन का नियमित सेवन करने वाले लोगों को कैंसर होने की आशंका बेहद कम होती है। लहसुन में कैंसर से लड़ने की विलक्षण क्षमता है। यह निरोधक प्रणाली को प्रेरित करता है, कैंसर भड़काने वाले [[तत्व|तत्वों]] का निर्विषीकरण करता है और नाइट्रेट के निर्माण में बाधा बनकर यह पाचन मार्ग, स्तन तथा प्रोस्टेट के कैंसरों के इलाज में बहुत प्रभावकारी है। 'एनल्स ऑफ इंटरनल मेडिसिन' की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ प्रति सप्ताह पांच दाना लहसुन खाने से कैंसर का ख़तरा 30 से 40 फीसदी कम हो जाता है। लहसुन में कैंसर निरोधी तत्व होते हैं। यह शरीर में कैंसर बढ़ने से रोकता है। लहसुन के सेवन से ट्यूमर को 50 से 70 फीसदी तक कम किया जा सकता है।
  
 
;शक्तिवर्धक  
 
;शक्तिवर्धक  
इसमें कई पोषक तत्व भी पाये जाते हैं। प्रतिदिन लहसुन की एक कली के सेवन से शरीर को विटामिन ए, बी और सी के साथ आयोडीन, आयरन, पोटेशियम, कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे कई पोषक तत्व एक साथ मिल जाते हैं। इसमें लौह तत्व होते हैं, इसलिए यह रक्त निर्माण में सहायक है। इसमें विटामिन 'सी' होने से यह स्कर्वी रोग से बचाने में मदद करता है।
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इसमें कई पोषक तत्व भी पाये जाते हैं। प्रतिदिन लहसुन की एक कली के सेवन से शरीर को [[विटामिन ए]], बी और सी के साथ आयोडीन, [[आयरन]], [[पोटेशियम]], [[कैल्शियम]] और [[मैग्नीशियम]] जैसे कई पोषक तत्व एक साथ मिल जाते हैं। इसमें लौह तत्व होते हैं, इसलिए यह रक्त निर्माण में सहायक है। इसमें विटामिन 'सी' होने से यह स्कर्वी रोग से बचाने में मदद करता है।
  
 
;थायरॉयड  
 
;थायरॉयड  
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;विषैले कीड़ों के काटने में  
 
;विषैले कीड़ों के काटने में  
बिच्छू के काटे स्थान पर डंक साफकर लहसुन और अमचूर पीसकर लगाने से जहर उतर जाता है। डंक ग्रस्त भाग पर पिसी चटनी भी लगाएँ। इसको पीसकर त्वचा पर लेप करने से विषैले कीड़ों के काटने या डंक मारने से होने वाली जलन कम हो जाती है।  
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[[साँप]] तथा बिच्छू के काटे पर लहसुन की ताजी कलियाँ पीसकर लगाएँ। जहाँ तक ज़हर चढ़ गया हो, वहाँ तक इस लेप को लगाकर पट्टी बाँध देने से ज़हर उतर जाता है। बिच्छू के काटे स्थान पर डंक साफकर लहसुन और अमचूर पीसकर लगाने से ज़हर उतर जाता है। डंक ग्रस्त भाग पर पिसी चटनी भी लगाएँ। इसको पीसकर त्वचा पर लेप करने से विषैले कीड़ों के काटने या डंक मारने से होने वाली जलन कम हो जाती है।  
 
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[[चित्र:Garlic-1.jpg|thumb|250px|लहसुन]]
*जी मचलने पर लहसुन की कलियाँ चबा लें या लहसुनादि वटी चूसें, हरे पत्तों की चटनी भी लाभकारी रहती है। * गला बैठ रहा हो तो कुनकुने पानी में लहसुन का रस मिलाकर गरारे करें। * कर्णशूल में लहसुन और अदरक बराबर की मात्रा में लेकर अच्छी तरह कूटकर इसे कपड़े से छान लें। इसे कुनकुना करके कान की पीड़ा में कान में डाल लें। * मलेरिया के रोगी को भोजन से पहले तिल के तेल में भुना लहसुन खिलाना चाहिए। * इन्फ्लूएंजा में लहसुन का रस पानी में मिलाकर चार-चार घंटे बाद दें। मूँग की दाल के पानी, अदरक के रस, शहद के साथ भी दिया जा सकता है। हल्दी और लहसुन का पिसा पेस्ट गरम करके सहने योग्य कर छाती पर थोड़ी देर बाँधें।  
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*जी मचलने पर लहसुन की कलियाँ चबा लें या लहसुनादि वटी चूसें, हरे पत्तों की चटनी भी लाभकारी रहती है।  
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* गला बैठ रहा हो तो कुनकुने पानी में लहसुन का रस मिलाकर गरारे करें।  
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* कर्णशूल में लहसुन और अदरक बराबर की मात्रा में लेकर अच्छी तरह कूटकर इसे कपड़े से छान लें। इसे कुनकुना करके कान की पीड़ा में कान में डाल लें।  
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* मलेरिया के रोगी को भोजन से पहले तिल के तेल में भुना लहसुन खिलाना चाहिए।  
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* इन्फ्लूएंजा में लहसुन का रस पानी में मिलाकर चार-चार घंटे बाद दें। मूँग की दाल के पानी, अदरक के रस, शहद के साथ भी दिया जा सकता है। हल्दी और लहसुन का पिसा पेस्ट गरम करके सहने योग्य कर छाती पर थोड़ी देर बाँधें।  
  
 
;अन्य
 
;अन्य
लहसुन के निरन्तर प्रयोग से असमय ही बुढ़ापे के शिकार से बचा जा सकता है, यानि झुर्रियाँ न होना। लहसुन में सेलेनियम है जो स्वतंत्र कोशिकाओं के तटस्थ और वृद्ध होने की प्रक्रिया धीमी कर देता है। यह एंटीऑक्सीडेंट और प्रतिरोध प्रेरक है। आंखों की रोशनी के लिए भी लहसुन लाभदायक माना जाता है। सर्दियों में लहसुन का रेगुलर इस्तेमाल करने से कई बीमारियों से बचा जा सकता है। यह शरीर के लिए एंटीसेप्टिक का काम करता है। लहसुन में एंटीबायोटिक दवाओं से अधिक गुण हैं, जिसकी वजह से वह रोगाणुओं का नाश करती है। यही कारण है कि घाव धोने के लिए लहसुन के एक भाग रस में तीन भाग पानी मिलाकर काम में लिया जाता है।
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लहसुन के निरन्तर प्रयोग से असमय ही बुढ़ापे के शिकार से बचा जा सकता है, यानि झुर्रियाँ न होना। लहसुन में सेलेनियम है जो स्वतंत्र कोशिकाओं के तटस्थ और वृद्ध होने की प्रक्रिया धीमी कर देता है। यह एंटीऑक्सीडेंट और प्रतिरोध प्रेरक है। [[आँख|आँखों]] की रोशनी के लिए भी लहसुन लाभदायक माना जाता है। सर्दियों में लहसुन का रेगुलर इस्तेमाल करने से कई बीमारियों से बचा जा सकता है। यह शरीर के लिए एंटीसेप्टिक का काम करता है। लहसुन में एंटीबायोटिक दवाओं से अधिक गुण हैं, जिसकी वजह से वह रोगाणुओं का नाश करती है। यही कारण है कि घाव धोने के लिए लहसुन के एक भाग रस में तीन भाग पानी मिलाकर काम में लिया जाता है।
  
 
*अकसर लहसुन के इतने सारे लाभ की जानकारी होने के बाद भी लोग लहसुन के गंध के कारण इसे खाने से परहेज करते हैं। लेकिन प्रकृति के इस अद्भुत उपहार को अच्छी सेहत और रोगों से लड़ने की प्रतिरोधी क्षमता के लिए भोजन में शामिल करना, कड़वी दवाइयों से बेहतर ही होगा। हमारी रसोई में ऐसे ही चमत्कारिक गुणों वाली कई औषधियों का रोजाना इस्तेमाल होता है। जानकारी के अभाव में उनके स्वाद और सुगंध को महत्व देने की जगह गुणों को पखरिए। कई बीमारी और परेशानियां पल में दूर हो जाएंगी और आप व आपका परिवार स्वस्थ भी रहेगा।
 
*अकसर लहसुन के इतने सारे लाभ की जानकारी होने के बाद भी लोग लहसुन के गंध के कारण इसे खाने से परहेज करते हैं। लेकिन प्रकृति के इस अद्भुत उपहार को अच्छी सेहत और रोगों से लड़ने की प्रतिरोधी क्षमता के लिए भोजन में शामिल करना, कड़वी दवाइयों से बेहतर ही होगा। हमारी रसोई में ऐसे ही चमत्कारिक गुणों वाली कई औषधियों का रोजाना इस्तेमाल होता है। जानकारी के अभाव में उनके स्वाद और सुगंध को महत्व देने की जगह गुणों को पखरिए। कई बीमारी और परेशानियां पल में दूर हो जाएंगी और आप व आपका परिवार स्वस्थ भी रहेगा।
  
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==संबंधित लेख==
 
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[[Category:खान_पान]]
 
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10:04, 11 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

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लहसुन का पौधा

भारतीय रसोई के लिए कहा जाता है कि यह हर रोग के लिए अचूक दवाखाना है। उसी तरह लगभग हर घर में खाया जाने वाले लहसुन भी ऐसी ही एक गुणकारी दवा है। 'लशति छिंनति रोगान लशुनम्' अर्थात् जो रोग का ध्वंस करे उसे लहसुन (Garlic) कहते हैं। इसे रगोन् भी कहते हैं। लहसुन गुणों से भरपूर भारतीय सब्जियों का स्वाद बढ़ाने वाला ऐसा पदार्थ है जो प्रायः हर घर में इस्तेमाल किया जाता है। ज़्यादातर लोग इसे सिर्फ मसाले के साथ भोजन में ही इस्तेमाल करते हैं। परंतु यह औषधि के रूप में भी उतना ही फ़ायदेमंद है। लहसुन से होने वाले लाभ और इसके चिकित्सीय गुण सदियों पुराने हैं। शोध और अध्ययन बताते हैं कि आज से 5000 वर्ष पहले भी भारत में लहसुन का इस्तेमाल उपचार के लिए किया जाता था। भारत ने लहसुन को जन-जन तक पहुँचाने में काबिले तारीफ योगदान दिया। भारत के ही आयुर्वेदाचार्य की बदौलत लहसुन के गुणों को वैज्ञानिकों ने कसौटी पर कसा तथा यूनान, मिस्र आदि देश के लोगों को इसके दिव्य गुणों से परिचित करवाया। वहीं से यह कंद अपने अमृतोपम गुणों के कारण दुनियाभर में लोकप्रिय हो गया। भोजन में लहसुन का प्रयोग मनुष्य प्राचीन समय से ही करता आ रहा है। इसकी गंध बहुत ही तेज और स्वाद तीखा होता है। कहा जाता है कि प्राचीन रोम के लोग अपने सिपाहियों को इसलिए लहसुन खिलाते थे क्योंकि उनका विश्वास था कि इसे खाने से शक्ति में वृद्धि होती है। मध्ययुग में प्लेग जैसे भयानक रोग के आक्रमण से बचने के लिए भी लहसुन का इस्तेमाल किया जाता था।

मसाले के तौर पर तो यह हरा और सूखा काम में लिया जाता है, पर इसके चिकित्सकीय गुणों से आज भी आम अवाम अनजान है। म्यूनिख रिसर्च इंस्टीट्यूट के डॉ. स्ट्रीफोर्ड ने अपने गहन शोध निष्कर्ष में इसे खुदा की ख़ास नियामत ठहराते हुए दिल, दिमाग और पूरे शरीर के लिए एक शक्तिशाली टॉनिक बताया है। आयुर्वेद में लहसुन को 'चमत्कारी दवा' माना जाता है। आयुर्वेद ग्रंथ 'भावप्रकाश' के मुताबिक़ - 'लहसुन वृष्य स्निग्ध, ऊष्णवीर्य, पाचक, सारक, रस विपाक में कटु तथा मधुर रस युक्त, तीक्ष्ण भग्नसंधानक (टूटी हड्डी जोड़ने वाला), पित्त एवं रक्तवर्धक, शरीर में बल, मेधाशक्ति तथा आँखों के लिए हितकर रसायन है। यह हृदय रोग, जीर्ण रोग (ज्वरादि), कटिशूल, मल एवं वातादिक की विबंधता, अरुचि, काम, क्रोध, अर्श, कुष्ठ, वायु, श्वांस तथा कफ नष्ट करने वाला सदाबहार कंद है।' इसे तेल, अवलेह, भस्म, खोया बनाकर, लहसुन कल्प कर, खीर बनाकर, छोंक लगाकर, हरी या सूखी अवस्था में चटनी, अचार बनाकर काम में लिया जाता है। लहसुन को पकाने से इसके बैक्टीरिया विरोधी तत्व नष्ट हो जाते हैं, लेकिन हृदय-रक्तवाहिका (कार्डियोवसक्यूलर) संबधी गुण बना रहता है। लहसुन हृदय रोगों और कैंसर के प्रति शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है। लहसुन की गंध से मच्छर भी दूर भागते हैं। लहसुन उत्तेजक और चर्मदाहक होता है।

  • बेशक लहसुन कुदरती खूबियों से लबरेज है। लेकिन इसे उचित अनुपात में ही लेना चाहिए। इस्तेमाल के वक्त कुछ अन्य सावधानियाँ भी ध्यान रखें। गौरतलब रहे कि लहसुन की तासीर काफ़ी गर्म और खुश्क रहती है। कई लोगों के मिज़ाज को यह सध नहीं पाता है। ख़ासकर गर्मी के मौसम में पित्त प्रधान प्रकृति वाले इसका इस्तेमाल संतुलित रूप में ही करें। अगर लहसुन का कुछ दुष्प्रभाव महसूस हो तो मरीज़ को गोंद कतीरा, धनिया, बादाम-रोगन, नीबू, पुदीना देते रहने से उसका दुष्प्रभाव शमित हो जाएगा। घी में भून लेने से भी यह कुप्रभावी नहीं रहता। बीमारी की हालत में किसी जानकार के बताए अनुपात में ही लें एवं परहेज बताए तो वह भी रखें। जब तक हरा पत्तीदार उपलब्ध हो, ताजा ही काम में लें। बाद में सूखा लहसुन छिलके छीलकर ही इस्तेमाल करें। सदियों से भारतीय जनजीवन में लहसुन का विभिन्न रोगों में औषधिमूलक प्रयोग होता आ रहा है।
लहसुन

लहसुन का पौधा

लहसुन का पौधा यूरोप और एशिया का मूल पौधा है। यह इटली तथा दक्षिण फ्रांस के जंगलों में बहुत अधिक संख्या में पैदा होता है। अब इसे संसार के सभी देशों में पैदा किया जाता है। यह लिली परिवार में आता है। यह ज़मीन के अंदर पैदा होता है। यह कुछ-कुछ प्याज से मिलता-जुलता पौधा है, जिसके पौधे कोमल-कोमल काण्ड युक्त 30 से 60 सेण्टीमीटर लम्बे होते हैं। पत्तियाँ चपटी, पतली होती हैं व इनको मसलने पर एक प्रकार की उग्र गंध आती है। पुष्प दण्ड काण्ड के बीच से निकलता है, जिसके शीर्ष पर गुच्छेदार सफेद फूल लगते हैं। कन्द श्वेत या हल्के गुलाबी रंग के आवरण से ढँका होता है, जिसमें 5 से 12 छोटे-छाटे जौ के आकार के कन्द होते हैं। इन्हें कुचलने से तीव्र अप्रिय गंध आती है। सुर्ख शीतल स्थानों पर जहाँ हवा का समुचित प्रवेश होता हो इन्हें 6 मास तक सुरक्षित रखकर प्रयोग में लाया जा सकता है। आजकल बाज़ार में लहसुन के कैप्सूल भी मिलते हैं।

लहसुन के रासायनिक तत्व

लहसुन में रासायनिक तत्वों का भंडार है। इसकी एक-एक तुरी अनेक खाद्य तत्वों से भरपूर है। लहसुन में कई रसायनिक तत्व जैसे- वाष्पशील तेल 0.6 प्रतिशत, प्रोटीन 6.03 प्रतिशत, वसा 1.00 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 29.00 प्रतिशत, खनिज पदार्थ 1.00 प्रतिशत, चूना 0.3 प्रतिशत तथा लोहा 1.3 मिलीग्राम, प्रति 100 ग्राम पाये जाते हैं।

  • लहसुन में एलियम / एल्लीसिन नामक एंटीबायोटिक होता है जो बहुत से रोगों के बचाव में लाभप्रद है तथा जो उन किटाणुओं को नष्ट करता है जो पेनीसिलीन से नष्ट नहीं होते। रासायनिक दृष्टि से इसका उत्पत तेल संघटक-ऐलिन प्रोपाइल डाइसल्फाइड व दो अन्य गंधक युक्त यौगिक मुख्य भूमिका निभाते हैं। मेडीसिनल प्लाण्ट्स ऑफ इण्डिया के अनुसार लहसुन में पाया जाने वाला एलीन नामक जैव सक्रिय पदार्थ एक प्रचण्ड जीवाणुनाशी है। औषधि के 20 से 25 प्रतिशत घोल की जीवाणुनाशी क्षमता कार्बोलिक अम्ल से दो गुनी है। इसके बावजूद यह स्वस्थ ऊतकों को कोई हानि नहीं पहुँचाती। व्रणों पर इसे बिना किसी हानि के प्रयुक्त किया जा सकता है। लहसुन का जल निष्कर्ष (जियोवायोस-7.01, 1980) स्ट्रेप्टोकोकस फीकेलिस एवं इन कोलाय के विरुद्ध सामर्थ्य रखता है। कवकों की वृद्धि भी यह रोकता है। लहसुन का तेल लिनिमेण्ट व पुल्टिस सभी लाभप्रद होते हैं। बाह्य प्रयोगों में यह कड़ी गाँठ को गला देता है। वात रोगों में व लकवे में इसका बाह्य लाभ करता है। इसका लेप दमा, गठिया, सियाटिका चर्म रोगों तथा कुष्ठ में करते हैं।

लहसुन के औषधिये गुण

लहसुन
  • लहसुन की तीक्ष्णता और रोगाणुनाशक विशेषता के कारण यह चिकित्सा जगत में उपयोगी कंद है। मेहनतकश किसान-मज़दूर तो लहसुन की चटनी, रोटी खाकर स्वस्थ और कर्मठ बने रहते हैं। षडरस भोजन के 6 रसों में से पाँच रस लहसुन में सदैव विद्यमान रहते हैं। सिर्फ 'अम्ल रस' नहीं रहता। आज षडरस आहार दुर्लभ हो चला है। लहसुन उसकी आपूर्ति के लिए हर कहीं सस्ता, सुलभ है। लहसुन को ग़रीबों का 'मकरध्वज' कहा जाता है। वह इसलिए कि इसका लगातार प्रयोग मानव जीवन को स्वास्थ्य संवर्धक स्थितियों में रखता है। हेल्थ एक्सपर्ट हर रोज सुबह-उठकर ख़ाली पेट लहसुन की दो-तीन कलियां गुनगुने पानी से लेने की बात कहते हैं।
  • तेज गंध वाली लहसुन एक संजीवनी है जो कैंसर, एड्स और हृदय रोग के विरुद्ध सुरक्षा कवच बन सकती है। त्वचा को दाग़-धब्बे रहित बनाने, मुंहासों से बचने और पेट को साफ़ करने में भी लहसुन बढिय़ा है। इसे बादी कम करने वाला माना जाता है, इसीलिए बैंगन या उड़द की दाल जैसी बादी करने वाली चीजों में इसे डालने की सलाह दी जाती है। यह ख़ून को साफ़ कर शरीर के अंदरूनी सिस्टम की सफाई करता है। अगर आपका वजन अधिक है और इसे कम करना चाहते हैं तो सुबह-शाम लहसुन की दो-दो कलियां खाएं। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मज़बूत करने, कैंसर, अल्सर और हैमरॉयड से लडऩे में लहसुन को फ़ायदेमंद बताया गया है। इसमें मौजूद सल्फर से एलर्जी महसूस करने वाले इसे न ही खाएं और न ही त्वचा पर लगाएं।
  • सड़े-गले व्रणों पर लगाने में लहसुन प्रति संक्रामक का कार्य करती है तथा घाव भरने में मदद करती है। लहसुन बाह्यतः लेपन और विलयन है। इसे पीसकर, एण्टीबायोटिक क्रीम की तरह लगाते हैं व अधपकी फुन्सियों को पकाने के लिए भी प्रयुक्त करते हैं। व्यावहारिक प्रयोग में संधिवात गुधसी, शोथ वेदना प्रधान रोगों में लहसुन के तेल से मालिश करते हैं। पार्श्वशूल में इसके कल्क का लेप व स्वरस की मालिश करते हैं। खुजली, दाद, विशेषकर, रिंगवर्म जैसे फंगल संक्रमणों में लहसुन के तेल का लेप आराम देता है। पक्षाघात में इसके अभिमर्दन से माँसपेशियों के पुनः सक्रिय होने की संभावनाएँ बढ़ती है।
  • आखिर क्या है, लहसुन की इन छोटी-छोटी कलियों में जिन्हें हम ख़ासतौर पर सर्दियों में दाल-सब्जी में तड़का लगाने के लिए इस्तेमाल करते हैं ? आपकी रसोई की ये कलियां बड़े काम की चीज़ हैं। आइए जानते हैं, इनके कुछ औषधीय गुणों के बारे में - दादी माँ का ख़ज़ाना हो या नानी माँ की नसीहत, हर जगह लहसुन को चमत्कारी फ्लू जैसी छोटी-सी बीमारी से लेकर कैंसर जैसी बड़ी बीमारी के उपचार में भी सहायक होता है।
लहसुन
हृदय रोग

यह हृदय रोगियों के लिए एक महत्त्वपूर्ण औषधि है। उच्च रक्तचाप के उपचार में लहसुन को उपयोगी माना गया है। लहसुन में पाया जाने वाला सल्फाइड्स रक्तचाप को कम करने में मदद करता है। वे सल्फाइड्स लहसुन को पकाने के दौरान भी नष्ट नहीं होते हैं। यानी सब्जी, दाल में जब आप लहसुन का छौंक लगाती हैं, तब भी उसका ये गुण नष्ट नहीं होता। लहसुन के सेवन से रक्त में थक्का बनने की प्रवृत्ति बेहद कम हो जाती है, जिससे हृदयाघात का ख़तरा टलता है। यह बिंबागुओं (Platelates) को चिपकने से रोकता है। थक्कों को गलाता है। धमनियों को फैलाकर रक्तचाप घटाता है। हाई ब्लड प्रेशर वालों के लिए यह अमृत के समान है। नियमित लहसुन को दूध में उबालकर लेते रहने से ब्लडप्रेशर कम या ज़्यादा होने की बीमारी नहीं होती।

कॉलेस्ट्रोल की समस्या से पीड़ित लोगों के लिए लहसुन का नियमित सेवन अमृत साबित हो सकता है। वैज्ञानिकों ने भी इस तथ्य की पुष्टि की है कि लगातार चार हफ्ते तक लहसुन खाने से कॉलेस्ट्रोल का स्तर 12 प्रतिशत तक या उससे भी कम हो सकता है। जिगर के अंदर मेटाबोलिज्म में सुधार लाकर कोलेस्ट्रॉल कम करता है और एरिथमिया को नियमित करता है। 'जर्नल ऑफ न्यूट्रीशन' के एक अध्ययन के मुताबिक़ लहसुन के सेवन से कोलेस्ट्रॉल में 10 फीसदी गिरावट आती है। यदि रोज नियमित रूप से लहसुन की पाँच कलियाँ खाई जाएँ तो हृदय संबंधी रोग होने की संभावना में कमी आती है।

गर्भवती महिलाओं को लहसुन का सेवन नियमित तौर पर करना चाहिए। गर्भवती महिला को अगर उच्च रक्तचाप की शिकायत हो तो, उसे पूरी गर्भावस्था के दौरान किसी न किसी रूप में लहसुन का सेवन करना चाहिए। यह रक्तचाप को नियंत्रित रख कर शिशु को नुकसान से बचाता है। उससे भावी शिशु का वजन भी बढ़ता है और समय पूर्व प्रसव का ख़तरा भी कम होता है।

मधुमेह

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यह मधुमेह रोग में इन्सुलिन स्राव बढ़ाकर, रक्त शर्करा स्तर घटा देता है। मधुमेह के रोगियों को प्रातः निराहार ही त्रिफला और लहसुन का रस 25 ग्राम की मात्रा में कुछ दिन लगातार लेना चाहिए।

दमा, सर्दी, जुकाम और कफ
लहसुन

ठंड के मौसम में होने वाले सर्दी, जुकाम और कफ बनने की समस्या से राहत पाने के लिए नियमित रूप से लहसुन का सेवन करना ज़रूरी है। यह फेफड़ों की जकड़न को ठीक करने में मदद करता है, श्वसन मार्ग में श्लेष्मा (म्यूकस) को ढीला करता है तथा सर्दी जुकाम को रोकने में सहायक है। अदरक, नींबू, नमक, जीरा, सौंफ, अनारदाना, लहसुन की चटनी पीसकर खाँसी, दमा, कफजन्य रोगों से ग्रस्त को चटाना चाहिए। इससे बलगम निकल जाता है। लहसुन का तेल सवेरे निराहार पानी के साथ लेने से पुरानी से पुरानी खाँसी में भी फ़ायदा होता है। यदि काली खाँसी की शिकायत हो, तो लहसुन के रस की पाँच-पाँच बूंदें सुबह-शाम लेनी चाहिए। जुकाम और सर्दी में तो यह रामबाण की तरह काम करता है। पाँच साल तक के बच्चों में होने वाले प्रॉयमरी कॉम्प्लेक्स में यह बहुत फ़ायदा करता है। लहसुन को दूध में उबालकर पिलाने से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। लहसुन की कलियों को आग में भून कर खिलाने से बच्चों की साँस चलने की तकलीफ पर काफ़ी काबू पाया जा सकता है। जिन बच्चों को सर्दी ज़्यादा होती है उन्हें लहसुन की कली की माला बनाकर पहनाना चाहिए।

पेशी विश्राम

वायरस और बैक्टीरिया से बचने के लिए ताजा लहसुन खाना ही फ़ायदेमंद होता है। ताजे लहसुन में एंटीबैक्टिरियल गुण होते हैं, इसके एंटीबैक्टीरियल गुण इन्फेक्शन से लड़ने में मदद करते हैं। यह एंटीबॉयटिक, एंटी फंगल और रोगाणुनाशक है। यह ग्राम पॉजिटिव और ग्राम नेगेटिव बैक्टीरिया को नियंत्रित करता है। इसके प्रयोग से माँसपेशियों को आराम मिलता है, दांत, आंत और श्वसन मार्ग के संदूषणों पर नियत्रण रखता है।

जोड़ों का दर्द

लहसुन गठिया और अन्य जोड़ों के रोग में भी लहसुन का सेवन बहुत ही लाभदायक है। लहसुन का इस्तेमाल जोड़ों के दर्द या गठिया में होता है तथा यह सूजन का भी नाश करती है। यह जोड़ों के दर्द के उद्दीपन को घटाता है। लहसुन की पुल्टिस को किसी भी सूजे भाग पर बाँधने या ताजा स्वरस रगड़ने से सूजन मिटती है। स्वरस में नमक मिलाकर नीलों (ब्रूस) व मोच (स्प्रेन) में सूजन उतारने हेतु प्रयुक्त करते हैं।

पाचनप्रणाली

पाचन-क्रिया को लहसुन से बड़ा बल मिलता है। लहसुन एक बढ़िया वातसारी एवं गैस्ट्रिक प्रेरक है और भोजन को पचाने तथा जज्ब करने में मदद करता है। गैस्टिक ट्रबल और एसिडिटी की शिकायत में इसका प्रयोग बहुत ही लाभदायक होता है। यह आँतों के छिपे मल को भी बाहर निकाल देती है और कब्ज से मुक्ति दिलाती है।

पेचिश

पेचिश में 10 ग्राम लहसुन का रस मट्ठे में मिलाकर सुबह, दोपहर, शाम कुछ दिनों तक लें। रस हर बार ताजा निकालें। आशातीत लाभ होने पर बंद कर दें।

लहसुन
डाइयूरेटिक

इसकी प्रकृति मूत्रवर्धक है। पेशाब रुकने पर पेट के निचले भाग में लहसुन की पुल्टिस बाँधने से मूत्राशय की निषक्रियता दूर होती है।

कैंसर

कैंसर के उपचार में लहसुन की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। कई चिकित्सीय शोध बताते हैं कि लहसुन का नियमित सेवन करने वाले लोगों को कैंसर होने की आशंका बेहद कम होती है। लहसुन में कैंसर से लड़ने की विलक्षण क्षमता है। यह निरोधक प्रणाली को प्रेरित करता है, कैंसर भड़काने वाले तत्वों का निर्विषीकरण करता है और नाइट्रेट के निर्माण में बाधा बनकर यह पाचन मार्ग, स्तन तथा प्रोस्टेट के कैंसरों के इलाज में बहुत प्रभावकारी है। 'एनल्स ऑफ इंटरनल मेडिसिन' की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ प्रति सप्ताह पांच दाना लहसुन खाने से कैंसर का ख़तरा 30 से 40 फीसदी कम हो जाता है। लहसुन में कैंसर निरोधी तत्व होते हैं। यह शरीर में कैंसर बढ़ने से रोकता है। लहसुन के सेवन से ट्यूमर को 50 से 70 फीसदी तक कम किया जा सकता है।

शक्तिवर्धक

इसमें कई पोषक तत्व भी पाये जाते हैं। प्रतिदिन लहसुन की एक कली के सेवन से शरीर को विटामिन ए, बी और सी के साथ आयोडीन, आयरन, पोटेशियम, कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे कई पोषक तत्व एक साथ मिल जाते हैं। इसमें लौह तत्व होते हैं, इसलिए यह रक्त निर्माण में सहायक है। इसमें विटामिन 'सी' होने से यह स्कर्वी रोग से बचाने में मदद करता है।

थायरॉयड

इसमें निहित आयोडीन से गोइटर और हाइपोथायरॉयटिज्म बाधित व नियंत्रित होता है।

विषैले कीड़ों के काटने में

साँप तथा बिच्छू के काटे पर लहसुन की ताजी कलियाँ पीसकर लगाएँ। जहाँ तक ज़हर चढ़ गया हो, वहाँ तक इस लेप को लगाकर पट्टी बाँध देने से ज़हर उतर जाता है। बिच्छू के काटे स्थान पर डंक साफकर लहसुन और अमचूर पीसकर लगाने से ज़हर उतर जाता है। डंक ग्रस्त भाग पर पिसी चटनी भी लगाएँ। इसको पीसकर त्वचा पर लेप करने से विषैले कीड़ों के काटने या डंक मारने से होने वाली जलन कम हो जाती है।

लहसुन
  • जी मचलने पर लहसुन की कलियाँ चबा लें या लहसुनादि वटी चूसें, हरे पत्तों की चटनी भी लाभकारी रहती है।
  • गला बैठ रहा हो तो कुनकुने पानी में लहसुन का रस मिलाकर गरारे करें।
  • कर्णशूल में लहसुन और अदरक बराबर की मात्रा में लेकर अच्छी तरह कूटकर इसे कपड़े से छान लें। इसे कुनकुना करके कान की पीड़ा में कान में डाल लें।
  • मलेरिया के रोगी को भोजन से पहले तिल के तेल में भुना लहसुन खिलाना चाहिए।
  • इन्फ्लूएंजा में लहसुन का रस पानी में मिलाकर चार-चार घंटे बाद दें। मूँग की दाल के पानी, अदरक के रस, शहद के साथ भी दिया जा सकता है। हल्दी और लहसुन का पिसा पेस्ट गरम करके सहने योग्य कर छाती पर थोड़ी देर बाँधें।
अन्य

लहसुन के निरन्तर प्रयोग से असमय ही बुढ़ापे के शिकार से बचा जा सकता है, यानि झुर्रियाँ न होना। लहसुन में सेलेनियम है जो स्वतंत्र कोशिकाओं के तटस्थ और वृद्ध होने की प्रक्रिया धीमी कर देता है। यह एंटीऑक्सीडेंट और प्रतिरोध प्रेरक है। आँखों की रोशनी के लिए भी लहसुन लाभदायक माना जाता है। सर्दियों में लहसुन का रेगुलर इस्तेमाल करने से कई बीमारियों से बचा जा सकता है। यह शरीर के लिए एंटीसेप्टिक का काम करता है। लहसुन में एंटीबायोटिक दवाओं से अधिक गुण हैं, जिसकी वजह से वह रोगाणुओं का नाश करती है। यही कारण है कि घाव धोने के लिए लहसुन के एक भाग रस में तीन भाग पानी मिलाकर काम में लिया जाता है।

  • अकसर लहसुन के इतने सारे लाभ की जानकारी होने के बाद भी लोग लहसुन के गंध के कारण इसे खाने से परहेज करते हैं। लेकिन प्रकृति के इस अद्भुत उपहार को अच्छी सेहत और रोगों से लड़ने की प्रतिरोधी क्षमता के लिए भोजन में शामिल करना, कड़वी दवाइयों से बेहतर ही होगा। हमारी रसोई में ऐसे ही चमत्कारिक गुणों वाली कई औषधियों का रोजाना इस्तेमाल होता है। जानकारी के अभाव में उनके स्वाद और सुगंध को महत्व देने की जगह गुणों को पखरिए। कई बीमारी और परेशानियां पल में दूर हो जाएंगी और आप व आपका परिवार स्वस्थ भी रहेगा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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