लाहौर

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लाहौर पुराने पंजाब की राजधानी है जो रावी नदी के दाहिने तट पर बसा हुआ है। लाहौर बहुत प्राचीन नगर है। लाहौर को संभवतः ईसवी सन् की प्रारम्भिक शताब्दियों में बसाया गया था और सातवीं शताब्दी ई॰ में यह इतना महत्वपूर्ण था कि उसका उल्लेख चीनी यात्री ह्यु एन-त्यांग ने किया है। शत्रुंजय के एक अभिलेख में लवपुर या लाहौर को लामपुर कहा गया है।

स्थापना

हिन्दू अनुश्रुतियों के अनुसार लाहौर नगर का प्राचीन नाम लवपुर या लवपुरी था, और इसे श्रीरामचन्द्र के पुत्र लव ने बसाया था। कहा जाता है, कि लाहौर के पास स्थित कुसूर नामक नगर को लव के बड़े भाई कुश ने बसाया था। वैसे वाल्मीकि रामायण से इस लोकश्रुति की पुष्टि स्पष्ट रूप से नहीं होती, क्योंकि इस महाकाव्य में श्रीराम के द्वारा लव को उत्तर और कुश को दक्षिण कोसल का राज्य दिए जाने का उल्लेख है--

"कोसलेषुकुशं वीरमुत्तरेषु तथालवम्" (उत्तर काण्ड)।

दक्षिण-कोसल में कुश ने कुशावती नामक नगरी बसाई थी। लव के द्वारा किसी नगरी के बसाए जाने का उल्लेख रामायण में नहीं है।

इतिहास

लाहौर का मुसलमानों के पूर्व का इतिहास प्रायः अन्धकारमय और अज्ञात है। केवल इतना अवश्य पता है, कि 11वीं शती के पहले यहाँ एक राजपूत वंश की राजधानी थी।

लाहौर पर पहले गजनी और फिर ग़ोर के शासकों ने और फिर दिल्ली के सुल्तानों ने अधिकार कर किया। मुग़ल काल में लाहौर महत्वपूर्ण नगर हो गया और शाही निवास स्थान बन गया। 1022 ई. में महमूद ग़ज़नवी की सेनाओं ने लाहौर पर आक्रमण करके इसे लूटा। सम्भवतः इसी काल के इतिहासकारों ने लाहौर का पहली बार उल्लेख् किया है।

ग़ुलामवंश तथा परवर्ती राजवंशों के शासनकाल में भी कभी-कभी लाहौर का नाम सुनाई पड़ जाता है। 1206 ई. में मुहम्मद ग़ोरी की मृत्यु के पश्चात लाहौर पर अधिकार करने के लिए कई सरदारों में संघर्ष हुआ, जिसमें अन्ततः क़ुतुबुद्दीन ऐबक़ सफल हुआ। तैमूर ने 14वीं शती में लाहौर के बाज़ारों को लूटा और 1524 ई. में बाबर ने इस नगर को लूटकर जला दिया। किन्तु उसके बाद शीघ्र ही पुराने नगर के स्थान पर नया नगर बस गया।

महत्व

वास्तव में, लाहौर को अकबर के समय से ही महत्व मिलना शुरू हुआ। 1584 ई. के पश्चात अक़बर कई वर्षों तक लाहौर में रहा और जहाँगीर ने तो लाहौर को अपनी राजधानी बनाकर अपने शासनकाल का अधिकांश समय वहीं पर बिताया। मुग़लों के समय में उत्तरी-पश्चिमी सीमान्त पर होने वाले युद्धों के सुचारू संचालन के लिए भी लाहौर में शासन का केन्द्र बनाना आवश्यक हो गया। इसके साथ ही जहाँग़ीर को कश्मीर घाटी के आकर्षक सौंदर्य ने भी आगरा छोड़कर लाहौर में रहने को प्रेरित किया, क्योंकि यहाँ से कश्मीर अपेक्षाकृत नज़दीक़ था। शाहजहाँ को भी लाहौर का काफ़ी आकर्षण था, किन्तु औरंगज़ेब के समय में लाहौर के मुग़लकालीन वैभव विलास का क्षय प्रारम्भ हो गया।

अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ, सभी को लाहौर नगर में रहना अच्छा लगता था, इससे यह सुन्दर नगर बन गया था, जहाँ किला व अनेक ख़ूबसूरत बाग थे। इसका शाहदरा बाग जहाँगीर ने और शालीमार बाग शाहजहाँ ने लगवाया।

हमले

1707 से 1799 ई॰ के बीच लाहौर नगर में बार- बार हमले हुए। पहले नादिर शाह (दे॰) और फिर अहमद शाह अब्दाली (दे॰) ने हमला कर इस पर दखल कर लिया। 1738 ई. में नादिरशाह ने लाहौर पर आक्रमण किया, किन्तु अपार धन-राशि लेकर उसने यहाँ पर लूटमार मचाने का इरादा छोड़ दिया। 1768 ई॰ में सिक्खों का अधिकार हो गया और 1799 ई॰ में यह रणजीत सिंह के अधिकार में आ गया। रणजीत सिंह ने अपनी राजधानी बनाया। 1799 ई. में पंजाब केसरी रणजीत सिंह के समय में लाहौर को फिर एक बार पंजाब की राजधानी बनने का गौरव मिला। 1849 ई॰ में दूसरे सिक्ख युद्ध (दे॰) की समाप्ति पर लाहौर ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य में मिला लिया गया और 1947 ई॰ तक पंजाब की राजधानी रहा। देश का विभाजन होने पर लाहौर पश्चिमी पाकिस्तान की राजधानी बना। अब पाकिस्तान की राजधानी रावलपिण्डी है। 1849 ई. में पंजाब को ब्रिटिश भारत में मिला लिया गया और लाहौर का सूबे का मुख्य शासन केन्द्र बनाया गया।

प्राचीन स्मारक

लाहौर के प्राचीन स्मारक हैं—क़िला, जहाँग़ीर का मक़बरा, शालीमार बाग़ और रणजीत सिंह की समाधि। लाहौर का क़िला तथा इसके अंतर्गत भवनादि मुख्य रूप में अक़बर, जहाँग़ीर, शाहजहाँ और औरंग़ज़ेव के बनवाए हुए हैं। हाथीपाँव द्वार के अन्दर प्रवेश करने पर पहले लव के प्राचीन मन्दिर के दर्शन होते हैं। यहीं औरग़ज़ेब का बनवाया हुआ नौलख़ा भवन है, जो संगमरमर का बना है। इसके आगे मुसम्मन बुर्ज़ है, जहाँ से महाराजा रणजीत सिंह रावी नदी का दृश्य देखा करते थे। पास ही शाहजहाँ के समय में बना शीशमहल है। यहाँ रणजीत सिंह के उत्तराधिकारी ने सर जान लारेंस को कोहनूर हीरा भेंट में दिया था।

क़िले के अन्दर अन्य उल्लेखनीय इमारतें हैं—बड़ी ख़्वाबग़ाह, दीवानेआम, माती मस्ज़िद, हज़ूरी बाग़ और बारादरी। हज़ूरी बाग़ से बादशाही मस्ज़िद को, जिसे 1674 ई. में औरग़ज़ेब ने बनवाया था, रास्ता जाता है। शाहदरा, जहाँ जहाँग़ीर का मक़बरा अवस्थित है, रावी के दूसरे तट पर लाहौर से 3 मील दूर है। मक़बरे के निकट ही नूरजहाँ के बनवाए हुए दिलकुशा उद्यान के खण्डहर हैं। मक़बरा लाल पत्थर का बना हुआ है। जिस पर सफ़ेद संगमरमर का काम है। इसमें गुम्बद नहीं है। इसकी मीनारें अठकोण हैं। जहाँग़ीर के समाधि के चारों ओर संगमरमर की नक़्क़ाशी जाली के पर है। छत पर भी बहुत ही सुन्दर शिल्पकारी है। इस मक़बरे को जहाँग़ीर की प्रिय बेग़म नूरजहाँ ने बनवाया था। नूरजहाँ की समाधि जहाँग़ीर के मक़बरे के निकट ही है। इस पर कोई भी मक़बरा नहीं है, और बेग़म तथा उसकी एकमात्र सन्तान लाड़ली बेग़म की क़ब्रें अनलंकृत और सादे रूप में सब ओर से खुले हुए मण्डप के अन्दर बनी हैं। ये शाहजहाँ के ज़माने में बनी थीं। शाहजहाँ का बनवाया हुआ शालीमार बाग़ कश्मीर के इसी नाम के बाग़ की अनुकृति है। यह लाहौर से 6 मील दूर है। रणजीत सिंह की तथा उनकी आठ रानियों की समाधियाँ क़िले के निकट ही एक छतरी के नीचे बनी हुई हैं। ये रानियाँ रणजीत सिंह की मृत्यु के पश्चात सती हो गई थीं।