लॉर्ड वेलेज़ली

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लॉर्ड वेलेज़ली 1798-1805 ई. तक भारत के गवर्नर-जनरल रहे। 1798 ई. में सर जॉन शोर के अस्तक्षेपवादी युग के बाद लॉर्ड वेलेज़ली भारत के गर्वनर जनरल बने, जो अपनी ‘सहायक सन्धि’ प्रणाली के कारण प्रसिद्ध हुए। इन्होंने भारत में अंग्रेज़ साम्राज्य के विस्तार को अपना लक्ष्य बनाया। हालांकि 'सहायक सन्धि' का प्रयोग भारत में वेलेज़ली से पूर्व डूप्ले द्वारा किया गया था। लॉर्ड वेलेज़ली फ़्राँसीसियों को बिल्कुल भी पसन्द नहीं करते थे। इन्हीं के समय में चतुर्थ मैसूर युद्ध लड़ा गया था, जिसमें टीपू सुल्तान की पराजय तथा मृत्यु हो गई थी।

सहायक सन्धि

लॉर्ड वेलेज़ली भारत में 'सहायक सन्धि' प्रणाली के कारण भी प्रसिद्ध रहे हैं। सहायक सन्धि निम्न शर्तों पर आधारित होती थी-

  1. भारतीय राजाओं को अपना विदेशी सम्बन्ध ईस्ट इण्डिया कम्पनी के नियंत्रण में स्थापित करना होता था, और जो भी बात दूसरे राज्यों से करनी थी, कम्पनी के माध्यम से ही संभव हो सकती थी।
  2. सहायक सन्धि करने वाले बड़े राज्यों के लिए यह आवश्यक था कि, वे किसी अंग्रेज़ सैन्य अधिकारी द्वारा नियंत्रित एक सैन्य टुकड़ी को अपने राज्य में रखें, तथा बदले में ‘पूर्ण प्रभुसत्ता वाले क्षेत्र’ कम्पनी को दें। छोटे स्तर के बदले में नक़द धन दिया करते थे।
  3. सहायक सन्धि करने वाले प्रत्येक राज्य को अपनी राजधानी में एक अंग्रेज़ रेजीडेन्ट को रखना पड़ता था, तथा कम्पनी की पूर्व आज्ञा के बिना राजा किसी भी यूरोपीय को अपनी सेवा में नहीं ले सकता था।
  4. कम्पनी सहायक सन्धि स्वीकार करने वाले राज्यों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करते हुए राज्य की उसके हर प्रकार के शत्रुओं से रक्षा करेगी।

सहायक सन्धि से कम्पनी को लाभ ही लाभ था- जैसे - राज्यों को आपस में लड़ाना, उन्हे सहायक सन्धि के जाल में फंसाना, अपने सैन्य व्यय में कटौती कराना, फ्रांसीसी शक्ति को कमजोर करना। सहायक सन्धि देशी राज्यों को हानि ही हानि थी जैसे- सेना में भारतीय सैनिकों की बेकारी, विदेशी सम्बन्ध कम्पनी के नियन्त्रण में हो जाना, राजा का बिल्कुल निष्क्रय हो जाना एवं सहायक सन्धि से जुड़े राज्यों का दिवालिया हो जाना आदि।

वेलेज़ली के समय में फ्रांसीसियों का भय भारत में पूरी तरह फैला हुआ था। वेलेज़ली ने फ्रांसीसियों को हराने का एकमात्र उपाय यह निकाला कि भारत के सभी राज्य उसके अधीनस्थ हों। नेपालियन के सहयोग से अंग्रेजों को भारत से बाहर करने की योजना बनाने वाले टीपू सुल्तान को चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध 1799 ई. में पराजित कर मार डाला गया। 1799 ई. में मेहदी अली खां नामक एक दूत को अंग्रेजों ने ईरान के शाह के दरबार में भेजा। इसी प्रकार 1800 ई. में एक अन्य दूत जान मैल्कम बहुत से बहुमूल्य उपहार लेकर तेहरान पहुंचा। इनके फलस्वरूप शाह से एक सन्धि हुईं जिसमें शाह ने फ्रंासीसियों को अपने देश में आने की अनुमति न देने का वचन दिया। टीपू का सम्पर्क नेपालियन से हो चुका था और वह उसके सहयोग से अंग्रेजों को भारत से भगाना चाह रहा था।

लॉर्ड वेलेज़ली ने कलकत्ता में नागरिक सेवा में भर्ती किये गये युवको को प्रशिक्षित करने के लिए ‘फोर्ट विलियम कालेज’ की स्थापना की। उसने ईस्ट इंडिया कम्पनी को व्यापारिक कम्पनी के स्थान पर शक्तिशाली राजनैतिक शक्ति के रूप में स्थापित किया। लॉर्ड वेलेज़ली “बंगाल का शेर” के उपनाम से प्रसिद्ध था। इसके समय में ही 1801 ई. में मद्रास प्रेसीडेन्सी का सृजन किया गया। नेपालियन के विस्तार को रोकने के लिए वेलेज़ली ने भारत से जनरल वेयर्ड के नेतृत्व में एक सैनिक दस्ता मिस्र भेजा। इसी के काय्रकाल में द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध (1803-1804) हुआ। लॉर्ड कार्नवालिस (1805 ई.) - दूसरा कार्यकाल, परन्तु शीघ्र ही उसकी मृत्यु हो गई। सर जार्ज बार्लो (1805-1807 ई.) - इसके समय में वेल्लोर विद्रोह (1806) हुआ जिसमें अंग्रेज सैनिक मारे गये।


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