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परिचय

लौंग (Clove, Lawang, Devkusum) का प्रयोग मसाले के तौर पर प्राचीन काल से होता चला आ रहा है। अलग-अलग स्थानों एवं भाषाओं में लौंग को भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। लौंग का रंग काला होता है। यह एक खुशबूदार मसाला है। जिसे भोजन में स्वाद के लिए डाला जाता है। ऐतिहासिक रूप से लौंग का पेड़ मोलुक्का द्वीपों का देशी वृक्ष है, जहाँ चीन ने ईसा से लगभग तीन शताब्दी पूर्व इसे खोजा और अलेक्सैन्ड्रिया में इसका आयात तक होने लगा। आज जाजीबार लौंग का सबसे अधिक उत्पादन करने वाला देश है। लौंग का अधिक मात्रा में उत्पादन जंजीबार और मलाक्का द्वीप में होता है। इसका उपयोग भारत और चीन में 2000 वर्षों से भी अधिक समय से हो रहा है।

लौंग का पेड़

लौंग मध्यम आकार का सदाबहार वृक्ष से पाया जाने वाला, सूखा, अनखुला एक ऐसा पुष्प अंकुर होता है जिसके वृक्ष का तना सीधा और पेड़ भी 10-12 मीटर की ऊँचाई तक वाला होता है। इसके पेड़ को लगाने के आठ या नौ वर्ष के बाद ही फल देते है।

लौंग के प्रकार

लौंग उष्ण प्रकृति का मसाला है। लौंग दो प्रकार के होते हैं। एक काले रंग की एवं दूसरी नीले रंग की। आमतौर पर घरों में मसाले के तौर पर इस्तेमाल होने वाला लौंग काले रंग का होता है। नीले रंग का लौंग अधिक तैलीय होता है अत: इनसे मशीन द्वारा तेल निकाला जाता है जिनका उपयोग चिकित्सा में किया जाता है। इसके पत्ते भी मसाले के तौर पर इस्तेमाल किये जाते हैं। लवंग एक खुशबूदार मसाला होता है।

लौंग की पहचान

अच्छे लवंग की पहचान है उसकी खुशबू एवं तैलीयपन। लौंग खरीदते समय उसे दातों में दबाकर देखना चाहिए इससे लवंग की गुणवत्ता पता चल जाती है। जो लौंग सुगन्ध में तेज, स्वाद में तीखी हो और दबाने में तेल का आभास हो उसी लौंग को अच्छा मानना चाहिए। व्यापारी लौंग में तेल निकाला हुआ लौंग मिला देते है। अगर लौंग में झुर्रिया पड़ी हो तो समझे कि यह तेल निकाली हुई लौंग है।

लौंग के तत्व

लौंग में मौजूद तत्वों का विश्लेषण किया जाए तो इसमें कार्बोहाइड्रेट, नमी, प्रोटीन, वाष्पशील तेल, गैर-वाष्पशील ईथर निचोड़ (वसा) और रेशों से बना होता है। इसके अलावा खनिज पदार्थ, हाइड्रोक्लोरिक एसिड में न घुलने वाली राख, कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, सोडियम, पोटेशियम, थायामाइन, राइबोफ्लेविन, नियासिन, विटामिन 'सी' और 'ए' भी लौंग में पाए जाते हैं। इसका ऊष्मीय मान 43 डिग्री है और इससे कई तरह के औषधीय व भौतिक तत्व लिए जा सकते हैं।

लौंग का तेल

भारतीय औषधीय प्रणाली में लौंग का उपयोग कई स्थितियों में किया जाता है। लौंग को या तो चूर्ण के रूप में लिया जाता है या फिर उसका काढ़ा बनाया जाता है। लौंग के तेल को औषधि के रूप में भी उपयोग में लाया जाता है। लौंग के तेल में भी ऐसे अंश होते हैं जो रक्त परिसंचरण को स्थिर करते हैं और शरीर के तापमान को नियंत्रित रखते हैं। लौंग के तेल को बाहरी त्वचा पर लगाने से त्वचा पर उत्तेजक प्रभाव दिखाई देते हैं। त्वचा लाल हो जाती है और उष्मा उत्पन्न होती है। इसके अलावा लौंग एंजाइम के बहाव को बढ़ावा देती है और पाचन क्रिया को भी तेज करती है। लौंग का तेल पानी की तुलना में भारी होता है। इसका रंग लाल होता है। सिगरेट की तम्बाकू को सुगन्धित बनाने के लिए लौंग के तेल का उपयोग होता है। इसके तेल को त्वचा पर लगाने से त्वचा के कीड़े नष्ट होते हैं।

लौंग का खानपान में इस्तेमाल

लवंग का उपयोग मसाले के तौर पर कई चीजों में होता है। मसाले के तौर पर लौंग का इस्तेमाल गरम मसाला में होता है। लवंग को पीसकर रसदार सब्जियों में इस्तेमाल किया जाता है। पुलाव एवं मिट, मछली पकाते समय भी मसाले के तौर लौंग का इस्तेमाल कर सकते हैं। आजकल बहुत सी मिठाईयों को सजाने के लिए भी लौंग का प्रयोग किया जाने लगा है। कोको, चाकलेट, आइसक्रीम आदि खाद्य-पदार्थों में पाया जाने वाला बनावटी वेनीला एसेन्स लौंग से ही तैयार किया जाता है। लौंग का आसव बनाकर उसमें से सुगन्धित पदार्थ तैयार किये जाते हैं।

आयुर्वेदिक गुण

लौंग में अनेक औषधीय गुण होते हैं। आयुर्वेदिक मतानुसार लौंग तीखा, लघु, आंखों के लिए लाभकारी, शीतल, पाचनशक्तिवर्द्धक, पाचक और रुचिकारक होता है। यह प्यास, हिचकी, खांसी, रक्तविकार, टी.बी आदि रोगों को दूर करती है। लौंग का उपयोग मुंह से लार का अधिक आना, दर्द और विभिन्न रोगों में किया जाता है। यह दांतों के दर्द में भी लाभकारी है। ये उत्तेजना देते हैं और ऐंठनयुक्त अव्यवस्थाओं, तथा पेट फूलने की स्थिति को कम करते हैं। धीमे परिसंचरण को तेज करती है और हाजमा तथा चयापचय को बढ़ावा देती है। यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार : लौंग खुश्क, उत्तेजक और गर्म है। इसको खाने से सिर दर्द होता है। यह पाचनशक्ति को बढ़ाता है। दांतों के मसूढ़ों को मजबूत बनाता है। इसको पीसकर मालिश करने से जहर दूर होता है।

लौंग का चिकित्सा में इस्तेमाल

भारत के प्राचीन चिकित्सा विज्ञान में लौंग का उपयोग चिकित्सा के लिए किये जाने का जिक्र हुआ है। दांत दर्द होने पर लौंग की एक कली दांत के नीचे रखने से दर्द से तुरंत आराम मिलता है। चोट लगने पर लौंग की कुछ कलियों को सरसों तेल / कपूर के तेल में पकाकर मालिश करने से लाभ मिलता है। सूजन होने पर लौंग के तेल से मालिश करनी चाहिए। खांसी होने पर लौंग को चूसने से फायदा होता है। जल्दी-जल्दी प्यास लगने पर मिसरी एवं लौंग को पीसकर खाने से जल्दी प्यास नहीं लगती है। लवंग की कुछ कलियों को पानी में उबालकर गरारा करने से गले में होने वाला दर्द कम होता है। ऐसा करने से पायरिया में भी लाभ मिलता है। दाँत के दर्द में भी लौंग उपयोग होती है और इसके एन्टिसेप्टिक गुण दाँतों के संक्रमण को कम करता है। लौंग एक ऐसा मसाला है जो दंत क्षय को रोकता है और मुँह की दुर्गंध को दूर भगाता है। नमक के साथ लौंग चबाने से कफोत्सारण (थूकने) में आसानी होती है, गले का दर्द कम हो जाता है और ग्रसनी की जलन भी बंद हो जाती है। ग्रसनी शोथ के कारण होने वाली खाँसी को दूर करने के लिए जले हुए लौंग को चबाना अच्छा होता है। क्षय रोग, दमा और श्रवसनी शोथ से होने वाली दर्दभरी खाँसियों को कम करने के लिए लहसुन की एक कली को शहद के साथ मिलाएँ और उसमें तीन से पाँच लौंग के तेल की बूँदें डालें। सोने से पहले इसे एक बार लेने से काफी आराम मिलेगा। गर्भवती स्त्रियों को उल्टी होने पर लौंग को गर्म पानी में भिगोकर उसका पानी पिलाने से लाभ होता है। यदि भुने हुए लौंग के चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर ले लिया जाए तो उल्टियों पर काबू पाया जा सकता है क्योंकि लौंग के संज्ञाहारी प्रभाव से पेट और हलक सुन्न हो जाते हैं और उल्टियाँ रुक जाती हैं। हैजे के उपचार में भी लौंग बहुत उपयोगी सिद्ध होती है। इसके लिए चार ग्राम लौंग को तीन लीटर पानी में तब तक उबाला जाता है जब तक कि आधा पानी भाप बनकर गायब न हो जाए। इस पानी को पीने से रोग के तीव्र लक्षण तुरंत काबू में आ जाते हैं। यह पेट के दर्द को मिटाने वाला माना जाता है। इसके अलावा ईरान और चीन में तो ऐसा भी माना जाता था कि लौंग में कामोत्तेजक गुण होते हैं। लौंग से दमे का बहुत प्रभावी इलाज होता है। छः लौंग की कलियों को 30 मि.ली. पानी के साथ उबालकर काढ़ा बनाकर इसे शहद के साथ दिन में तीन बार लेना चाहिए, इससे कफोत्सारण में आसानी होती है। पेशियों की ऐंठन में लौंग के तेल की पुलटिस प्रभावित क्षेत्र पर लगाने से यह ठीक हो जाती है। नमक के क्रिस्टल और लौंग को दूध में मिलाकर तैयार विलेप लगाने से सिरदर्द ठीक हो जाता है। बरौनी के आसपास की जलन को ठीक करने के लिए भी लौंग प्रभावी होती है। पानी में लौंग को घिसकर प्रभावित जगह पर लगाने से सुकून मिलता है।

हानिकारक

लौंग अत्यंत गर्म होता है अत: अधिक मात्रा में इसका सेवन करना नुकसानदेय हो सकता है अत: लौंग जरूरत से अधिक नही खाना चाहिए। ज्यादा लौंग खाने से गुर्दे और आंतों को नुकसान पहुंच सकता है। बबूल का गोंद, लौंग में व्याप्त दोषों को दूर करता है। मात्रा :- 1 ग्राम से 3 ग्राम तक।

विभिन्न भाषाओं में लौंग के नाम
भाषा नाम
हिन्दी लौंग।
अंग्रेज़ी क्लाब्ज (CLOVES)।
संस्कृत लवंग, देवकुसुम।
मराठी लवंग।
गुजराती लविंग।
बंगाली लवंग।
तैलगी लबंगाल।
फारसी दरख्ते मेहक।
अरबी मिखकर्कन, फूल।
लैटिन कारेयाफाइलसएरों मटिकस्।


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