वज्रनाभ राक्षस

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वज्रनाभ नामक असुर ने तपस्या से ब्रह्मा को प्रसन्न करके यह वर प्राप्त किया था कि वह अवध्य होगा तथा वज्रपुर में प्रवेश कर पाएगा अन्यथा वज्रपुर में वायु का भी स्वच्छंद प्रवेश नहीं होगा। वर प्राप्ति के मद से मस्त वज्रनाभ इन्द्र के पास गया और त्रिलोकी का राज्य प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। इन्द्र ने कहा कि देवताओं के पिता कश्यप यज्ञ का अनुष्ठान कर चुके हैं, अत: यज्ञ समाप्ति के उपरान्त वे कोई निर्णय ले पायेंगे। वज्रनाभ ने अपने पिता कश्यप से सब कह सुनाया।

कृष्ण की चतुराई

वसुदेव भी अश्वमेध यज्ञ में व्यस्त थे। उस अवसर पर इन्द्र और कृष्ण ने प्रस्तुत उलझन के विषय में विचार-विमर्श किया तथा उनकी प्रेरणा पर सुन्दर नृत्य करने के उपरान्त भद्रनामा नामक नट ने मुनियों से वर माँगा कि वह त्रिलोकी में कहीं पर भी पाये, किसी का भी रूप धारण करने में समर्थ हो, रोग इत्यादि से सुरक्षित रहे तथा सबके लिए अवध्य हो। तदुपरान्त इन्द्र ने देवलोक के हंसों से कहा, "तुम सर्वत्र जा सकते हो, अत: वज्रनाभ की कन्या प्रभावती को प्रद्युम्न की ओर आकृष्ट कर दो। उन दोनों को परस्पर प्रेम संदेश मिलता रहे, ताकि प्रभावती स्वयंवर में उसी का वरण करे।"

प्रभावती तथा प्रद्युम्न की भेंट

शुचिमुखी नाम वाली हंसी ने प्रभावती को तरह-तरह की कथाएँ सुनाकर प्रद्युम्न की ओर आकृष्ट किया तथा वज्रनाभ को भद्रनामा नट के कौशल के विषय में बताया। वज्रनाभ उस नट का कौशल देखने के लिए आतुर हो उठा। उसके आमंत्रित करने पर कृष्ण ने अनेक राजकुमारों सहित प्रद्युम्न को नटों की भूमिका निर्वाह करने के लिए वज्रपुर भेजा। वे चिरकाल तक वहाँ रहे। हंसी ने प्रभावती से प्रद्युम्न की भेंट करवा दी। पहली रात वह भ्रमर के रूप में रनिवास में पहुँचा। दोनों ने अग्नि को साक्षी मानकर गंधर्व विवाह कर लिया। दोनों प्रति रात्रि केलिक्रीड़ा में मग्न रहते। वज्रनाभ को इस सब का कुछ भी पता नहीं चला।

युद्ध का प्रारम्भ

कश्यप का यज्ञ चल रहा था, अत: देवासुर संग्राम भी प्रारम्भ नहीं हुआ। कश्यप ने यज्ञ समाप्ति के उपरान्त वज्रनाभ को युद्ध करने की सलाह दी। इंद्र तथा कृष्ण ने उसे युद्ध के लिए ललकारा। वज्रपुर में रहने वाले यादवों ने कहलवाया कि वज्रनाभ तथा उसके भाई की तीनों कन्याएँ गर्भवती हो चुकी हैं, यादवों की भार्याएँ हैं तथा प्रसव काल शीघ्र ही आने वाला है। कृष्ण और इन्द्र ने उन्हें निश्चिंत रहने को कहा और कहा कि भावी पुत्र उत्पन्न होते ही सर्वज्ञाता, योद्धा युवक हो जायेंगे। प्रभावती, चंद्रावती ने पुत्रों को जन्म दिया। वज्रनाभ ने जन्म लेते ही युवकों के समान बालकों को देखा तो उन्हें अपने कुल का कलंक मानकर उन्हें मारने के लिए अपनी सेना सहित दौड़ा। इसी निमित्त युद्ध हुआ।

वज्रनाभ की मृत्यु

प्रद्युम्न मायावी युद्ध में निपुण था। वह हज़ारों रूप धारण करके आकाश और विभिन्न दिशाओं में प्रकट हुआ। अंततोगत्वा प्रद्युम्न ने वज्रनाभ का वध कर दिया। देवगुरु बृहस्पति की सलाह से उसकी नगरी चार भागों में विभक्त की गई तथा जयंत, प्रद्युम्न, सांब और गद के पुत्रों में बराबर-बराबर बांट दी गई।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

विद्यावाचस्पति, डॉक्टर उषा पुरी भारतीय मिथक कोश (हिन्दी)। भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली, 274।

  1. हरिवंश पुराण., विष्णुपर्व, 91-97

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