वल्लतोल नारायण मेनन

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वल्लतोल (जन्म- 16 अक्टूबर, 1878, केरल; मृत्यु- 13 मार्च, 1958) मलयालम भाषा के प्रसिद्ध कवि और साहित्यकार थे। इन्हें पद्म भूषण से साम्मानित किया गया था।

परिचय

मलयालम भाषा के प्रसिद्ध कवि, साहित्यकार और कला मर्मज्ञ वल्लतोल नारायण मेनन का जन्म 16 अक्टूबर 1878 ई. को उत्तरी केरल के एक धनी और प्राचीन विचारों वाले नायर परिवार में हुआ था। परिवार वालों की इच्छा इन्हें वैद्य बनाने की थी। इसलिए इन्हें संस्कृत, आयुर्वेद, तर्कशास्त्र आदि की शिक्षा दिलवायी। वल्लतोल की रुचि काव्य की ओर थी। 32 वर्ष की उम्र में ही इन्हें सुनना बंद हो जाने के कारण ये दूसरों की बात को अपनी हथेली पर दूसरे व्यक्ति के द्वारा लिखा कर ही समझ सकते थे। फिर भी इनकी सक्रियता में कोई रुकावट नहीं आयी। [1]

लेखन कार्य

वल्लतोल की रुचि काव्य की ओर थी। उन्होंने कालिदास, भास आदि के ग्रंथों का बड़े मनोयोग से अध्ययन किया। फिर वे संस्कृत में और मुख्यतः मलयालम में कविताएं करने लगे। उन्होंने पुराणों का मलयालम भाषा में अनुवाद किया, 'चित्रयोगम्‌' नामक काव्य की रचना की और विविध विषयों में अनेक काव्य ग्रंथ लिखे। वल्लतोल आरंभ में शास्त्रीय ढंग की रचनाएं करते थे। फिर रोमांटिक काव्य का दौर आया और बाद में उनके काव्य में यथार्थवाद के दर्शन अधिक हुए। उनके काव्य की एक प्रमुख विशेषता मलयालम और संस्कृत शब्दों का सुंदर प्रयोग है। उनके ग्रंथों का रूसी, अंग्रेजी और हिंदी आदि अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। वल्लतोल ने कुल 79 मौलिक साहित्यिक रचनाएं की जिनमें 'ग्रंथ बिहार' नामक आलोचनात्मक गद्य ग्रंथ भी सम्मिलित है। उन्हें राष्ट्रपति की ओर से पद्म भूषण से साम्मानित किया गया था।

देश भक्ति

उनकी सच्ची देशभक्ति की रचनाओं ने केरल के युवकों को प्रोत्साहित किया। नाजीवाद और साम्राज्यवाद के विरुद्ध भी उन्होंने अपनी लेखनी उठाई।

मृत्यु

मलयालम भाषा के प्रसिद्ध कवि और कला मर्मज्ञ वल्लतोल नारायण मेनन का 13 मार्च 1958 ईस्वी को निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 775 |

बाहरी कड़ियाँ

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