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विशु

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भारत के दक्षिणी प्रदेश केरल में 15 अप्रॅल के दिन को नये वर्ष के उत्सव के रूप में मनाया जाता है, और केरल में नव वर्ष को विशु कहा जाता है। केरल में विशु उत्सव के दिन धान की बुआई का काम शुरु होता है। इस दिन को यहाँ "मलयाली न्यू ईयर विशु" के नाम से पुकारा जाता है।

पूजा

मलयालम समाज में इस दिन मंदिरो में विशुक्कणी के दर्शन कर समाज के लिये नव वर्ष का स्वागत किया जाता है। केरल में विशु उत्सव पर पारंपरिक नृ्त्य गान के साथ आतिशबाजी का आनन्द लिया जाता है। इस दिन विशेषकर अय्यापा मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की जाती है। विशु यानी भगवान "श्री कृ्ष्ण" और कनी यानी "टोकरी"

विशु पर्व पर भगवान श्री कृ्ष्ण को टोकरी में रखकर उसमें कटहल, कद्दू, पीले फूल, कांच, नारियल और अन्य चीजों से सजाया जाता है। इस दिन सबसे पहले घर का मुखिया आँखें बंद कर विशुक्कणी के दर्शन करता है। कई जगहों पर घर के मुखिया से पहले बच्चों को देव विशुक्कणी के दर्शन कराये जाते है। नव वर्ष के दिन सबसे पहले देव के दर्शन करने का उद्देश्य अपने पूरे वर्ष को शुभ करने से जुड़ा हुआ है।

कनी

विशुकानी अथवा शुभ दृश्य के अवलोकन की प्रथा नव वर्ष उत्सव का महत्वपूर्ण भाग होता है। समृद्धि के सूचक जैसे अक्षत, नया परिधान, स्वर्ण, खीरा, ताम्बूल पत्र, सुपारी, दर्पण, अमलतास, शास्त्र और मुद्रा, कांस्य धातु के बर्तन ‘उरुली’ में रखे जाते हैं जिसे ‘कनी’ कहते हैं। कनी की व्यवस्था परिवार के सबसे बड़े सदस्य द्वारा विशु की पूर्व रात्रि में की जाती है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि विशु के दिन जो व्यक्ति सबसे पहले सवेरे इसे देखता है, उसके लिए नव वर्ष सौभाग्यशाली सिद्ध हो सकता है।

विशुकैनीतम

विशु उत्सव पर लोग ‘कोडी वस्त्रम’ या नया वस्त्र धारण करते हैं। परिवार के वयोवृद्ध सदस्य इस दिन उन्हें मुद्रा और मिष्ठान बाँटते हैं जो इनसे आशीर्वाद माँगने आते हैं। इसे ‘विशुकैनीतम्’ कहते हैं। बच्चे इस परम्परा को पसन्द करते हैं और पैसे एकत्र करने के लिए बड़ों के पास जाते हैं। इसे वे ‘विशुवेला’ के मेले में खाने-पीने और आनन्द मनाने में खर्च करते हैं।

ख़रीददारी

केरल में मनाए जाने वाले विशु उत्सव में आतिशबाज़ी, नए कपड़ों और 'विशुकनी' की ख़रीददारी प्रमुख होती है। विशुकनी फूल, फल, अनाज, कपड़ा, सोना और रूपयों से बनी एक सजावट होती है। मलयाली लोगों का विश्वास है कि सुबह आँख खुलते ही सबसे पहले इसे देखने से साल भर परिवार में संपन्नता बनी रहती है। दिया, नारियल, सिक्के और पीले फूल भी शुभ वस्तुओं में गिने जाते हैं। कुछलोग प्रात:काल ईश्वर के दर्शन करना पसन्द करते हैं और कुछ शीशे में अपना प्रतिबिंब देखना जो आत्मविश्वास का प्रतीक माना जाता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ