वैशम्पायन

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वैशम्पायन (अंग्रेज़ी: Vaishampayan) पौराणिक महाकाव्य महाभारत तथा हिन्दू मान्यताओं के अनुसार व्यास जी के प्रधान शिष्य और एक प्रसिद्ध ऋषि थे। वे 'कृष्ण यजुर्वेद' के प्रवर्त्तक कहे जाते हैं। उन्होंने व्यास के महाभारत का अध्ययन कर राजा जनमेजय को सुनाया था।

  • प्रारम्भावस्था में वेद केवल एक ही था; एक ही वेद में अनेकों ऋचाएँ थीं, जो “वेद-सूत्र” कहलाते थे; वेद में यज्ञ-विधि का वर्णन है; सम (गाने योग्य) पदावलियाँ है तथा लोकोपकारी अनेक ही छन्द हैं। इन समस्त विषयों से सम्पन्न एक ही वेद सत्युग और त्रेतायुग तक रहा; द्वापरयुग में महर्षि कृष्णद्वैपायन ने वेद को चार भागों में विभक्त किया। इस कारण महर्षि कृष्णद्वैपायन “वेदव्यास” कहलाने लगे। संस्कृत में विभाग को “व्यास“ कहते हैं, अतः वेदों का व्यास करने के कारण कृष्णद्वैपायन “वेदव्यास” कहलाने लगे।
  • महर्षि व्यास के पैल, वैशम्पायन, जैमिनी और सुमन्तु- यह चार शिष्य थे। महर्षि व्यास ने पैल को ऋग्वेद, वैशम्यापन को यजुर्वेद, जैमिनी को सामवेद और सुमन्तु को अथर्ववेद की शिक्षा दी।[1]
  • माना जाता है कि 'हरिवंश' का प्रचार भी वैशम्पायन ने ही किया था।[2][3]
  • सम्पूर्ण नागों की समाप्ति हेतु राजा जनमेजय ने जो 'सर्पयज्ञ' करवाया था, वैशम्पायन उस यज्ञ में भी सदस्य थे।
  • 'कृष्ण यजुर्वेद' के प्रवर्तक भी ऋषि वैशम्पायन ही थे, जिन्हें उनके गुरु कृष्ण द्वैपायन ने यह कार्य सौंपा था।
  • वैशम्पायन के शिष्य याज्ञवल्क्य ऋषि थे, जिनसे वाद-विवाद होने के कारण याज्ञवल्क्य ने 'शुक्ल यजुर्वेद' को प्रसारित किया।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गीता अमृत -जोशी गुलाबनारायण (हिन्दी) hi.krishnakosh.org। अभिगमन तिथि: 04 नवम्बर, 2017।
  2. तैत्तिरीयसंहिता याज्ञवल्क्य स्मृति
  3. पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 480 |

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