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'''50. चट्टल शक्तिपीठ'''<br>
 
'''50. चट्टल शक्तिपीठ'''<br>
बंग्लादेश के चटगांव में स्थित है चट्टल का भवानी शक्तिपीठ, जहां माता का दाहिना बाहु यानी भुजा गिरा था। यहां की शक्ति भवानी माता तथा भैरव चन्द्रशेखर हैं।
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चट्टल में माता सती का दक्षिण बाहु (दाहिनी भुजा) गिरी थी। यहाँ माता सती को "भवानी" तथा भगवन शिव को "चंद्रशेखर" कहा जाता है। बंग्लादेश में चटगाँव से 38 किमी दूर सीताकुंड स्टेशन के पास चंद्रशेखर पर्वत पर भवानी मंदिर है। यही भवानी मंदिर शक्तिपीठ है।
  
 
'''51. यशोरेश्वरी शक्तिपीठ'''<br>
 
'''51. यशोरेश्वरी शक्तिपीठ'''<br>
बांग्लादेश के जैसोर खुलना में स्थित है माता का प्रसिद्ध यशोरेश्वरी शक्तिपीठ, जहां माता का बायीं हथेली गिरा था। यहां शक्ति यशोरेश्वरी तथा भैरव चन्द्र हैं।
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यहाँ माता सती की "बायीं हथेली" गिरी थी। यहाँ माता सती को "यशोरेश्वरी" तथा भगवन शिव को "चन्द्र" कहा जाता है। यह शक्तिपीठ बांग्लादेश के खुलना जिले के जैशोर शहर में है।
 
 
  
  

18:07, 12 सितम्बर 2011 का अवतरण

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परिचय

हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। ये अत्यंय पावन तीर्थ कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठो का वर्णन है।

हालांकि देवी भागवत में जहां 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों को जिक्र मिलता है वहीं तन्त्रचूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। देवी पुराण में जरूर 51 शक्तिपीठों की ही चर्चा की गई है। इन 51 शक्तिपीठों में से कुछ विदेश में भी हैं और पूजा-अर्चना द्वारा प्रतिष्ठित हैं।

ज्ञातव्य है की इन 51 शक्तिपीठो में भारत - विभाजन के बाद 5 और भी कम हो गए और आज के भारत में 42 शक्ति पीठ रह गए है 1 शक्तिपीठ पाकिस्तान में चला गया और 4 बांग्लादेश में। शेष 4 पीठो में 1 श्रीलंका में, 1 तिब्बत में तथा 2 नेपाल में है।

शक्तिपीठों के सन्दर्भ में कथा

देश-विदेश में स्थित इन 51 शक्तिपीठों के सन्दर्भ में जो कथा है वह यह है कि राजा प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में माता जगदम्बिका ने सती के रूप में जन्म लिया थी और भगवान शिव से विवाह किया। एक बार मुनियों का एक समूह यज्ञ करवा रहा था। यज्ञ में सभी देवताओं को बुलाया गया था। जब राजा दक्ष आए तो सभी लोग खड़े हो गए लेकिन भगवान शिव खड़े नहीं हुए। भगवान शिव दक्ष के दामाद थे। यह देख कर राजा दक्ष बेहद क्रोधित हुए। दक्ष अपने दामाद शिव को हमेशा निरादर भाव से देखते थे। सती के पिता राजा प्रजापति दक्ष ने कनखल (हरिद्वार) में 'बृहस्पति सर्व / ब्रिहासनी' नामक यज्ञ का आयोजन किया था। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता और सती के पति भगवान शिव को इस यज्ञ में शामिल होने के लिए निमन्त्रण नहीं भेजा था। जिससे भगवान शिव इस यज्ञ में शामिल नहीं हुए। नारद जी से सती को पता चला कि उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है। इसे जानकर वे क्रोधित हो उठीं। नारद ने उन्हें सलाह दिया कि पिता के यहां जाने के लिए बुलावे की ज़रूरत नही होती है। जब सती अपने पिता के घर जाने लगीं तब भगवान शिव ने मना कर दिया। लेकिन सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शंकरजी के रोकने पर भी जिद्द कर यज्ञ में शामिल होने चली गई। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष ने भगवान शंकर के विषय में सती के सामने ही अपमान जनक बातें करने लगे। इस अपमान से पीड़ित हुई सती को यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ-अग्नि कुंड में कूद कर अपने प्राणाहुति दे दी। भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। सर्वत्र प्रलय सा हाहाकार मच गया। भगवान शंकर के आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को शिव निंदा सुनने की भी सजा दी। और उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता और ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गये। तब भगवान शिव ने सती के वियोग में यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी हुए सम्पूर्ण भूमण्डल पर भ्रमण करने लगे। भगवती सती ने अन्तरिक्ष में शिव को दर्शन दिया और उनसे कहा कि जिस-जिस स्थान पर उनके शरीर के खण्ड विभक्त होकर गिरेंगे, वहा महाशक्तिपीठ का उदय होगा। सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर विचरण करते हुए तांडव नृत्य भी करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देख कर और देवो के अनुनय - विनय पर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर धरती पर गिराते गए। जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते। "तंत्र-चूड़ामणि" के अनुसार इस प्रकार जहां जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। इस तरह कुल 51 स्थानों में माता की शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म में सती ने हिमवान राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिए घोर तपस्या कर शिवजी को पुन: पति रूप में प्राप्त किया।

शक्तिपीठों का विवरण

1. किरीट कात्यायनी
यहाँ माता सती का "किरीट" नमक शिरोभूषण या मुकुट गिरा था। यहाँ की शक्ति "विमला" या "भुवनेशी" नाम से जानी जाती है और यहाँ भैरव (शिव) "संवर्त" नाम से विख्यात हैं। यह शक्ति पीठ पश्चिम बंगाल के हाबड़ा-बहरहवा लाइन पर हाबड़ा से ढाई किमी दूर "लालबाग कोर्ट" स्टेशन से लगभग 5 किमी पर बतन नगर के पास गंगा तट पर स्थित है।

2. कात्यायनी कात्यायनी
यहाँ माता सती के "केश" गिरे थे। यहाँ माता सती "उमा" तथा भगवन शंकर "भूतेश" के नाम से जाने जाते है। मथुरा-वृन्दावन के बीच "भुतेशवर" नामक रेलवे स्टेशन के समीप "भुतेशवर - मंदिर" के प्रांगण में यह शक्ति पीठ स्थित है।

3. करवीर शक्तिपीठ
यहाँ माता सती के "त्रिनेत्र" गिरे थे। यहाँ माता सती को "महिषामर्दिनी" और भगवान शिव "क्रोधीश" कहे जाते है। महाराष्ट्र के कोल्हापुर स्थित महालक्ष्मी अथवा अम्बाईका मंदिर ही यह शक्तिपीठ है।

4. श्री पर्वत शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का "तल्प" (कनपटी) गिरा था। यहाँ सती "श्री सुन्दरी" तथा शिव "सुंदरानन्द" कहलाते है। इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतान्तर है कुछ विद्वानों का मानना है कि यह स्थान लद्दाख (कश्मीर) में है। कुछ लोग असम में सिलहट से 4 किमी दूर जैनपुर नामक स्थान पर "श्रीपर्वत" को शक्ति पीठ मानते है।

5. विशालाक्षी शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का "कर्णमणि" (कान की मणि) गिरी थी। यहाँ माता सती को "विशालाक्षी" तथा भगवान शिव को "काल भैरव" कहते है। उत्तर प्रदेश, वाराणसी में विश्वेश्वर के निकट मीरघाट पर विशालाक्षी का मंदिर ही शक्ति पीठ है।

6. गोदावरी तट शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का काममण्डा (बायाँ गाल) गिरा था। यहाँ माता सती को "विशवेशी" (रुक्मणी विश्वमातृका) तथा भगवान शिव को "दण्डपाणि" (वत्सनाम) कहा जाता है। आंध्रप्रदेश में कब्बूर में गोदावरी स्टेशन के पास कोटि तीर्थ है। यह शक्ति पीठ यहाँ स्थित है।

7. शुचीन्द्रम शक्तिपीठ
यहाँ माता सती के "ऊर्ध्र्वदन्त" (ऊपर के दांत) गिरे थे। यहाँ माता सती को "नारायणी" और भगवान शंकर को "संहार" या "संकूर" कहते है। तमिलनाडू में तीन महासागर के संगम स्थल कन्याकुमारी से 13 किमी दूर "शुचीन्द्रम" में स्याणु शिव का मंदिर है। उसी मंदिर में ये शक्ति पीठ है।

8. पंच सागर शक्तिपीठ
यहाँ माता सती के "अधोदन्त" (नीचे के दांत) गिरे थे। यहाँ सती "वाराही" तथा शिव "महारूद्र" के नाम से जाने जाते है। इस पीठ के स्थान का निश्चित पता नहीं है।

9. ज्वालामुखी शक्तिपीठ
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जनपद के अंतर्गत ज्वालामुखी का मंदिर ही शक्ति पीठ है। जो ज्वालामुखी रोड रेलवे स्टेशन से लगभग 21 किमी दूर बस मार्ग पर स्थित है। यहाँ माता सती की "जिव्हा" गिरी थी। यहाँ माता सती "सिद्धिदा" अम्बिका तथा भगवान शिव "उन्मत्त" रूप में विराजित है। मंदिर में आग के रूप में हर समय ज्वाला धधकती रहती है।

10. भैरव पर्वत शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का "ऊर्ध्र्व ओष्ठ" (ऊपरी होठ) गिरा था। यहाँ माता सती को "अवन्ती" तथा भगवान शिव को "अम्बकर्ण" कहलाते है। इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतदभेद है। कुछ मध्यप्रदेश में उज्जैन के निकट शिप्रा नदी के तट पर भैरव पर्वत है। गुजरात में गिरनार के निकट भी एक भैरव पर्वत है। दोनों ही स्थलों को शक्तिपीठ मान कर श्रद्धापूर्वक यात्रा करनी चाहिए।

11. अट्टहास शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का "अधरोष्ठ" (नीचे का होठ) गिरा था। यहाँ माता सती "फुल्लरादेवी" और भगवान शिव "विश्वेश" कहलाते है। यह शक्ति पीठ पश्चिम बंगाल के लाबपुर / वर्धमान (बर्दवान) से 93 किमी दूर कटवा - अहमदपुर लाइन पर लाबपुर स्टेशन के निकट है।

12. जनस्थान शक्तिपीठ
यहाँ माता सती की "ठुड्डी" गिरी थी। यहाँ सती "भ्रामरी" और शिव "विक्रताक्ष" कहलाते है। महाराष्ट्र नासिक के पास पंचवटी में माँ भद्रकाली का मंदिर ही यह शक्ति पीठ है।

13. कश्मीर शक्तिपीठ
कश्मीर में अमरनाथ गुफा के भीतर "हिम" शक्तिपीठ है। यहाँ माता सती का "कंठ" गिरा था। यहाँ सती "महामाया" तथा शिव "त्रिसंध्येश्वर" कहलाते है। श्रावण पूर्णिमा को अमरनाथ के दर्शन के साथ यह शक्ति पीठ भी दिखता है।

14. नन्दीपुर शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का "कण्ठहार" गिरा था। यहाँ सती "नन्दिनी" और शिव "नन्दिकेश्वर" कहलाते है। पश्चिम बंगाल के बोलपुर (शांति निकेतन) से 33 किमी दूर सैन्थिया रेलवे जंक्शन से अग्निकोण में, थोड़ी दूर रेलवे लाइन के निकट ही एक वटवृक्ष के नीचे यह शक्ति पीठ है।

15. श्री शैल शक्तिपीठ
आंध्र प्रदेश में के कुर्नूल के पास श्रीशेलम (मल्लिकार्जुन) द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक मंदिर है। मंदिर के विशाल प्रांगण में श्री "भ्रमराम्बा" देवी का मंदिर ही यह शक्तिपीठ है। यहाँ माता सती की "ग्रीवा" गिरी थी। यहाँ सती को "महा लक्ष्मी" तथा शिव को "संवरानंद" या "ईश्वरानंद" कहा जाता है।

16. नलहरी शक्तिपीठ
नलहटी में माता सती की "उदरनाली" गिरी थी। यहाँ शक्ति "कालिका" तथा शिव "योगीश" कहे जाते है। जहां माता का उदरनली गिरी थी। यहाँ शक्ति पीठ पश्चिम बंगाल के बोलपुर (शांति निकेतन) से 75 किमी तथा सैन्थिया जंक्शन से मात्र 42 किमी दूर नलहटी जंक्शन से 3 किमी दूर एक टीले पर स्थित है। नंदी पुर शक्तिपीठ आने वाले भक्तगण सुविधापूर्वक एक शक्तिपीठ का दर्शन कर सकते है।

17. मिथिला शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का "वाम स्कन्ध" गिरा था। यहाँ सती "उमा" या "महा देवी" तथा शिव "महोदर" कहलाते हैं। इस शक्तिपीठ का निश्चित स्थान बताना कुछ कठिन है। स्थान को लेकर मन्तारतर है तीन स्थानों पर मिथिला शक्तिपीठ को माना जाता है। एक जनकपुर (नेपाल) से 51 किमी दूर पूर्व दिशा में "उच्चैठ" नामक स्थान पर "वन दुर्गा" का मंदिर है। दूसरा बिहार के समस्तीपुर और सहरसा स्टेशन के पास "उग्रतारा" का मंदिर है। तीसरा समस्तीपुर से पूर्व 61 किमी दूर सलौना रेलवे स्टेशन से 9 किमी दूर "जयमंगला" देवी का मंदिर है। उक्त तीनो मंदिर को विद्वजन शक्तिपीठ मानते है।

18. रत्नावली शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का "दायाँ कन्धा" गिरा था। इसका निश्चित स्थान अज्ञात है, यह शक्तिपीठ बंगाल-पंजिका के अनुसार कदाचित तमिलनाडु के चेन्नई/मद्रास में है। यहाँ माता सती को "कुमारी" तथा भगवान् शिव को "शिव" कहा जाता है।

19. अम्बाजी शक्तिपीठ, प्रभास पीठ
यहाँ माता सती का "उदार" गिरा था। गुजरात गूना गढ़ के गिरनार पर्वत के प्रथत शिखर पर माँ अम्बा जी का मंदिर ही शक्ति पीठ है। यहाँ माता सती को "चंद्रभागा" और भगवान् शिव को "वक्रतुण्ड" के नाम से जाना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि गिरिनार पर्वत के निकट ही सती का उध्र्वोष्ठ गिरा था, जहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण है।

20. त्रिपुरमालिनी शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का "बायां स्तन" गिरा था। यहाँ सती को "त्रिपुरमालिनी" और शिव को "भीषण" के रूप में जाना जाता है। यह शक्ति पीठ पंजाब के जालंध्र में स्थित है।

21. रामागिरी शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का "दायाँ स्तन" गिरा था। यहाँ सती को "शिवानी" और शिव को "चण्ड" कहा जाता है। इस शक्ति पीठ की स्थिति को लेकर भी विद्वानों में मतान्तर है। कुछ उत्तर प्रदेश के चित्राकूट शारदा मंदिर तो कुछ मध्य प्रदेश के मैहर के शारदा मंदिर को मानते हैं।

22. वैद्यनाथ का हार्द शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का "ह्रदय" गिरा था। यहाँ सती को "जयदुर्गा" और शिव को "वैधनाथ" कहा जाता है। बिहार में वैधनाथ में वैधनाथ-मंदिर के प्रांगन में मुख्य मंदिर के सम्मुख यह शक्ति पीठ है। कुछ लोगो की मान्यता है की शिव ने सती का यहीं दाह-संस्कार किया था। अतः इस चिता भूमि की अपनी एक महत्ता है।

23. वक्त्रोश्वर शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का मन गिरा था। यहाँ सती को "महिष-मर्दिनी" और शिव को "वक्त्रनाथ" कहा जाता है। नन्दीपुर तथा नलहटी शक्ती पीठ का उल्लेख हो चुका है। उसी क्रम में पश्चिम बंगाल के सैन्थिया जंक्शन से किमी दूर श्मशान भूमि में यह शक्ति पीठ है।

24. कण्यकाश्रम कन्याकुमारी
यहाँ माता सती की "पीठ" गिरी थी। माता सती को यहाँ "शर्वाणी या नारायणी" तथा भगवान् शिव को "निमिष या स्थाणु" कहा जाता है। तमिलनाडु में तीन सागरों हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी के संगम स्थल पर कन्याकुमारी का मंदिर है। उस मंदिर में ही भद्रकाली का मंदिर शक्तिपीठ है।

25. बहुला शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का बायाँ हाथ गिरा था। यहाँ माता सती को "बहुलस" तथा भगवान शिव को "भीरुक" कहा जाता है। यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के हावड़ा से 144 किमी दूर कटाव जंक्शन से पश्चिम हेतु ब्रम्हाप्राम / निकट केतुग्राम में है।

26. उज्जयिनी शक्तिपीठ
यहाँ माता सती की "कुहनी" गिरी थी। यहाँ माता सती को "माडल्यचंडिका" और भगवान शिव को "मांगल्य कपिलाम्बर" कहा जाता है। मध्य प्रदेश के उज्जैन के पावन क्षिप्रा के दोनों तटों पर / रुद्रसागर के निकट हरसिद्धि मंदिर ही यह शक्तिपीठ है। यहाँ माता सती के कुहनी की पूजा होती है।

27. मणिवेदिका शक्तिपीठ
यहाँ माता सती की दोनों "कलाइयाँ" गिरी थी। राजस्थान में पुष्कर के पास गायत्री मंदिर ही यह शक्तिपीठ है। यहाँ पर शक्ति "गायत्री" एवं भगवान शिव "सर्वानन्द" कहलाते है।

28. प्रयाग शक्तिपीठ
तीर्थराज प्रयाग में माता सती के हाथ की ऊँगली गिरी थी। यहाँ तीनों शक्तिपीठ की माता सती "ललिता देवी" एवं भगवान शिव को "भव" कहा जाता है। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित है। लेकिन, स्थानों को लेकर मतभेद इसे यहां अक्षयवट, मीरापुर और अलोपी स्थानों में गिरा माना जाता है। ललिता देवी के मंदिर को विद्वान शक्तिपीठ मानते है। शहर में एक और (अलोपी माता) ललिता देवी का मंदिर है। इसे भी शक्तिपीठ माना जाता है। निश्चित निष्कर्ष पर पहुचना कठिन है।

29. विरजाक्षेत्रा, उत्कल
उत्कल (उड़ीसा) में माता सती की "नाभि" गिरी थी। यहाँ माता सती को "विमला" तथा भगवान शिव को "जगत" के नाम से जाना जाता है। उत्कल शक्तिपीठ उड़ीसा के पुरी और याजपुर में माना जाता है। पुरी में जगन्नाथ जी के मंदिर के प्रांगण में ही विमला देवी का मंदिर है। यही मंदिर शक्तिपीठ है।

30. कांची शक्तिपीठ
तमिलनाडु के कांचीवरम् में स्थित है माता का कांची शक्तिपीठ, जहां माता का कंकाल गिरा था। यहां की शक्ति देवगर्भा तथा भैरव रुरु हैं।

31. कालमाध्व शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का वाम "नितम्ब" गिरा था। यहाँ माता सती को "काली" तथा भगवान शिव को "असिताग" कहा जाता है। इस शक्तिपीठ के विषय में विशेष रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता की यह कहा पर स्थित है।

32. शोण शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का "दायाँ नितम्ब" गिरा था। यहाँ माता सती "नर्मदा" या शोणाक्षी और भगवान शिव "भद्रसेन" कहलाते है। मध्य प्रदेश के अमरकंटक के नर्मदा मन्दिर शोण शक्तिपीठ है। एक दूसरी मान्यता यह है कि बिहार के सासाराम का ताराचण्डी मन्दिर ही शोण तटस्था शक्तिपीठ है। यदपि शोण अब कुछ दूर अलग चला गया है। यहां सती का दायां नेत्रा गिरा था ऐसा माना जाता है।

33. कामरूप कामाख्या शक्तिपीठ कामगिरि
यहाँ माता सती की "योनी" गिरी थी। असम के कामरूप जनपद में असम के प्रमुख नगर गुवाहाटी (गौहाटी) के पश्चिम भाग में नीलांचल पर्वत/कामगिरि पर्वत पर यह शक्तिपीठ "कामाख्या" के नाम से सुविख्यात है। यहाँ माता सती को "कामाख्या" और भगवान शिव को "उमानंद" कहते है। जिनका मंदिर ब्रम्हपुत्र नदी के मध्य उमानंद द्वीप पर स्थित है।

34. जयन्ती शक्तिपीठ
सम्पूर्ण मेघालय पर्वतो का प्रान्त है। गारो, खासी और जयन्तिया ये तीन प्रमुख पर्वत प्रान्त है। जयन्तिया पर्वत पर माता सती की "वामजंघा" गिरी थी। यहाँ माता सती "जयन्ती" तथा भगवन शिव "कमदीश्वरी" कहे जाते है। शिलांग से 53 किमी दूर जयन्तिया पर्वत पर बाउरभाग ग्राम में यह शक्तिपीठ है।

35. मगध् शक्तिपीठ
यहाँ माता सती की "दक्षिण जंघा" गिरी थी। यहाँ माता सती को "सर्वानन्दकरी" तथा भगवन शिव को "व्योमकेश" कहा जाता है। बिहार की राजधानी पटना में बड़ी पटनेश्वरी देवी का मंदिर ही शक्तिपीठ है।

36. त्रिस्तोता शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का "वाम पद" गिरा था। यहाँ माता सती का नाम "भ्रमरी" तथा भगवन शिव का नाम "ईश्वर" है। पश्चिम बंगाल के जलपाईगुडी जनपद के बोदा इलाके के "शालबाड़ी" ग्राम में तिस्ता नदी के तट पर यह शक्तिपीठ है।

37. त्रिपुरी सुन्दरी शक्तित्रिपुरी पीठ
त्रिपुरा में माता सती का "दक्षिण पद" गिरा था। यहाँ माता सती "त्रिपुरासुन्दरी" तथा भगवन शिव "त्रिपुरेश" कहे जाते है। त्रिपुरा राज्य के राधा किशोरपुर ग्राम से 2 किमी दूर दक्षिण-पूर्व के कोण पर, पर्वत के ऊपर यह शक्तिपीठ स्थित है।

38. विभाष शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का "बायाँ टखना" (एड़ी के ऊपर की हड्डी की गांठ) गिरा था। यहाँ माता सती "कपालिनी" अर्थात "भीमरूपा" और भगवन शिव "सर्वानन्द" कपाली है। पश्चिम बंगाल के पासकुडा स्टेशन से 24 किमी दूर मिदनापुर में तमलूक स्टेशन है। वहां का काली मंदिर ही यह शक्तिपीठ है।

39. देवीकूप पीठ कुरुक्षेत्र (शक्तिपीठ)
यहाँ माता सती का "दाहिना टखना" गिरा था। यहाँ माता सती को "सावित्री" तथा भगवन शिव को "स्याणु" महादेव कहा जाता है। हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र नगर में द्वैपायन सरोवर के पास कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ स्थित है। जिसे श्रीदेवीकूप (भद्रकाली पीठ) के नाम से मान्य है।

40. युगाद्या शक्तिपीठ (क्षीरग्राम शक्तिपीठ)
यहाँ माता सती के "दायें पैर का अंगूठा" गिरा था। यहाँ माता सती को "भूतधात्री" तथा भगवन शिव को "क्षीरकंटक" अर्थात "युगाध" कहा जाता है। यह शक्तिपीठ बंगाल के वर्धमान रेलवे स्टेशन से 32 किमी दूर उत्तर दिशा में क्षीरग्राम में स्थित है।

41. विराट का अम्बिका शक्तिपीठ
यहाँ माता सती के दायें पैर की उँगलियाँ (दक्षिण पादांगुलियां) गिरी थी। यहाँ माता सती को "अम्बिका" तथा भगवन शिव को "अमृत" कहा जाता है। यह शक्तिपीठ राजस्थान की राजधानी गुलाबी नगरी जयपुर से उत्तर की ओर 64 किमी दूर वैराट ग्राम में स्थित है।

42. काली शक्तिपीठ
यहाँ माता सती की "शेष उँगलियाँ" (दाएं पांव की अंगूठा छोड़ 4 अन्य अंगुलियां) गिरी थी। यहाँ माता सती को "कलिका" तथा भगवन शिव को "नकुलेश" कहा जाता है। पश्चिम बंगाल, कलकत्ता के कालीघाट में काली माता का सुविख्यात मंदिर ही यह शक्तिपीठ है।

43. मानस शक्तिपीठ
यहाँ माता सती की "दाहिनी हथेली" गिरी थी। यहाँ माता सती को "दाक्षायणी" तथा भगवन शिव को "अमर" कहा जाता है। यह शक्तिपीठ तिब्बत में मानसरोवर के तट पर स्थित है।

44. लंका शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का "नुपूर" गिरा था। यहाँ माता सती को "इन्द्राक्षी" तथा भगवन शिव "राक्षसेश्वर" कहा जाता है। यह शक्तिपीठ श्रीलंका में है। लेकिन, उस स्थान ज्ञात नहीं है कि श्रीलंका के किस स्थान पर गिरे थे।

45. गण्डकी शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का "दक्षिण गण्ड" (दाहिना गाल/कपोल) गिरा था। यहाँ माता सती को "गण्डकी" तथा भगवन शिव को "चक्रमणि" कहा जाता है। यह शक्तिपीठ नेपाल में गण्डकी नदी के उद्गम पर स्थित है।

46. गुह्येश्वरी शक्तिपीठ
यहाँ माता सती के दोनों जानु (घुटने) गिरे थे। यहाँ माता सती को "महामाया" तथा भगवन शिव को "कपाल" कहा जाता है। यहाँ शक्तिपीठ नेपाल के काठमाण्डू में है। सुप्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर के पास ही बागमती नदी के तट पर गुहेश्वरी देवी का मंदिर है। यह "गुहेश्वरी" मंदिर ही शक्तिपीठ है।

47. हिंगलाज शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का "ब्रम्हरंध्र" गिरा था। यहाँ माता सती को "भैरवी/कोटटरी" तथा भगवन शिव को "भीमलोचन" कहा जाता है। यहाँ शक्तिपीठ पकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त के हिंगलाज में है। हिंगलाज करांची से 144 किमी दूर उत्तर-पश्चिम दिशा में हिंगोस नदी के तट पर है। यही एक गुफा के भीतर जाने पर माँ आदिशक्ति के ज्योति रूप के दर्शन होते है।

48. सुगंध शक्तिपीठ
यहं माता सती की "नासिका" (नाक) गिरी थी। यहाँ माता सती "सुनंदा" तथा भगवन शिव "त्रयम्बक" कहलाते है। यह शक्तिपीठ बांग्लादेश में है। बारीसाल से 21 किमी दूर उत्तर की ओर शिकारपुर गाँव में सुनंदा नदी के तट पर सुनंदा देवी (उग्रतारा) का मंदिर है। यह मंदिर ही शक्तिपीठ है।

49. करतोयाघाट शक्तिपीठ
यहाँ माता सती का "वाम तल्प" गिरा था। यहाँ माता "अपर्णा" तथा भगवन शिव "वामन" रूप में स्थापित है। यह स्थल बांग्लादेश में है। बोगडा स्टेशन से 32 किमी दूर दक्षिण-पश्चिम कोण में भवानीपुर ग्राम के बेगड़ा में करतोया नदी के तट पर यह शक्तिपीठ स्थित है।

50. चट्टल शक्तिपीठ
चट्टल में माता सती का दक्षिण बाहु (दाहिनी भुजा) गिरी थी। यहाँ माता सती को "भवानी" तथा भगवन शिव को "चंद्रशेखर" कहा जाता है। बंग्लादेश में चटगाँव से 38 किमी दूर सीताकुंड स्टेशन के पास चंद्रशेखर पर्वत पर भवानी मंदिर है। यही भवानी मंदिर शक्तिपीठ है।

51. यशोरेश्वरी शक्तिपीठ
यहाँ माता सती की "बायीं हथेली" गिरी थी। यहाँ माता सती को "यशोरेश्वरी" तथा भगवन शिव को "चन्द्र" कहा जाता है। यह शक्तिपीठ बांग्लादेश के खुलना जिले के जैशोर शहर में है।



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