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*परीक्षामुख के प्रथम सूत्र पर इन्होंने 'प्रमेयकण्ठिका' नाम की वृत्ति लिखी है।  
 
*परीक्षामुख के प्रथम सूत्र पर इन्होंने 'प्रमेयकण्ठिका' नाम की वृत्ति लिखी है।  
 
*यह एक न्याय-विद्या की लघु रचना है और प्रमाण पर इसमें संक्षेप में प्रकाश डाला गया है।  
 
*यह एक न्याय-विद्या की लघु रचना है और प्रमाण पर इसमें संक्षेप में प्रकाश डाला गया है।  
*यह वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट, काशी से प्रकाशित हो चुकी है।  
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*यह वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट, [[काशी]] से प्रकाशित हो चुकी है।  
 
*यह अध्येतव्य है।
 
*यह अध्येतव्य है।
 
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06:08, 21 मई 2010 का अवतरण

आचार्य शान्तिवर्णी

  • परीक्षामुख के प्रथम सूत्र पर इन्होंने 'प्रमेयकण्ठिका' नाम की वृत्ति लिखी है।
  • यह एक न्याय-विद्या की लघु रचना है और प्रमाण पर इसमें संक्षेप में प्रकाश डाला गया है।
  • यह वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट, काशी से प्रकाशित हो चुकी है।
  • यह अध्येतव्य है।