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{{सूचना बक्सा फ़िल्म
 
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आज से {{#expr:{{CURRENTYEAR}}-1975}} साल पहले सन 1975 में [[भारत]] के [[स्वतंत्रता दिवस]] पर फ़िल्म 'शोले' रिलीज़ हुई थी। इस फ़िल्म की शुरुआत तो बहुत मामूली थी लेकिन कुछ ही दिनों में यह फ़िल्म पूरे देश में चर्चा का विषय बन गयी। देखते ही देखते शोले सुपर हिट और फिर ऐतिहासिक फ़िल्म हो गई। इसकी लोकप्रियता का अनुमान सिर्फ इसी से लगाया जा सकता है कि यह फ़िल्म [[मुंबई]] के 'मिनर्वा टाकीज़' में 286 [[सप्ताह]] तक चलती रही। 'शोले' ने [[भारत]] के सभी बड़े शहरों मे 'रजत जयंती' मनायी। शोले ने अपने समय में 2,36,45,000,00 रुपये कमाए जो मुद्रास्फीति को समायोजित करने के बाद 60 मिलियन अमरीकी डॉलर के बराबर हैं।
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आज से {{#expr:{{CURRENTYEAR}}-1975}} साल पहले सन् 1975 में [[भारत]] के [[स्वतंत्रता दिवस]] पर फ़िल्म 'शोले' रिलीज़ हुई थी। इस फ़िल्म की शुरुआत तो बहुत मामूली थी लेकिन कुछ ही दिनों में यह फ़िल्म पूरे देश में चर्चा का विषय बन गयी। देखते ही देखते शोले सुपरहिट और फिर ऐतिहासिक फ़िल्म हो गई। इसकी लोकप्रियता का अनुमान सिर्फ इसी से लगाया जा सकता है कि यह फ़िल्म [[मुंबई]] के 'मिनर्वा टाकीज़' में 286 [[सप्ताह]] तक चलती रही। 'शोले' ने [[भारत]] के सभी बड़े शहरों में '[[रजत जयंती]]' मनायी। शोले ने अपने समय में 2,36,45,000,00 रुपये कमाए जो मुद्रास्फीति को समायोजित करने के बाद 60 मिलियन अमरीकी डॉलर के बराबर हैं।
 
==कहानी==  
 
==कहानी==  
फ़िल्म की कहानी बहुत ही साधारण है, पर रमेश सिप्पी के निर्देशन ने इसमें अलग ही जान डाल दी थी। ठाकुर बलदेव सिंह ([[संजीव कुमार]]), सेवानिवृत पुलिस अफ़सर, डाकू गब्बर सिंह (अमजद ख़ान) को गिरफ्तार करते है, पर वो जेल से भागने मे क़ामयाब हो जाता है। बदला लेने के लिए वह ठाकुर के परिवार का खून कर देता है। ठाकुर गब्बर को जिंदा पकड़ने के लिए दो बहादुर लोफर जय ([[अमिताभ बच्चन]]) और वीरू ([[धर्मेन्द्र]]) की मदद लेता है। रामगढ़ में इनकी मुलाक़ात राधा ([[जया बच्चन]]) और बसंती ([[हेमा मालिनी]]) से होती है। और फिर शुरू होती है गब्बर को जिंदा पकड़ने की कवायद।
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फ़िल्म की कहानी बहुत ही साधारण है, पर रमेश सिप्पी के निर्देशन ने इसमें अलग ही जान डाल दी थी। सेवानिवृत्त पुलिस अफ़सर ठाकुर बलदेव सिंह ([[संजीव कुमार]]), डाकू गब्बर सिंह ([[अमजद ख़ान]]) को गिरफ्तार करते हैं, पर वो जेल से भागने मे कामयाब हो जाता है। बदला लेने के लिए वह ठाकुर के परिवार का ख़ून कर देता है। ठाकुर गब्बर को जिंदा पकड़ने के लिए दो बहादुर लोफर जय ([[अमिताभ बच्चन]]) और वीरू ([[धर्मेन्द्र]]) की मदद लेता है। रामगढ़ में इनकी मुलाक़ात राधा ([[जया बच्चन]]) और बसंती ([[हेमा मालिनी]]) से होती है। और फिर शुरू होती है गब्बर को जिंदा पकड़ने की कवायद।
 
====प्रशंसनीय फ़िल्म====
 
====प्रशंसनीय फ़िल्म====
'तेरा क्या होगा कालिया' संवाद आज भी सबके दिलों दिमाग पर छाया है। शोले [[हिन्दी]] सिनेमा की सबसे प्रशंसनीय फ़िल्मों में से एक फ़िल्म है। एक गाँव रामगढ़ में निर्देशित, यह एक परंपरागत हिन्दी फ़िल्म है जो आज तक हिन्दी फ़िल्म प्रशंसको के दिल मे घर किये बैठी है। हज़ारों बार देखने बाद भी लोग इसे देखकर नही थकते। जय और वीरू की दोस्ती, गब्बर सिंह का डर, सूरमा भोपाली और जेलर का हास्य, और ताँगेवाली बसंती और उसकी धन्नो- हर पात्र ने दिलोदिमाग़ पर अपनी छाप छोड़ी। इस फ़िल्म के कई ऐसे दृश्य है जो आज भी फ़िल्मों मे आज़माए जाते है। जैसे-
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'तेरा क्या होगा कालिया' संवाद आज भी सबके दिलों दिमाग़ पर छाया है। शोले [[हिन्दी सिनेमा]] की सबसे प्रशंसनीय फ़िल्मों में से एक फ़िल्म है। एक गाँव रामगढ़ में निर्देशित, यह एक परंपरागत हिन्दी फ़िल्म है जो आज तक हिन्दी फ़िल्म प्रशंसकों के दिल मे घर किये बैठी है। हज़ारों बार देखने बाद भी लोग इसे देखकर नहीं थकते। जय और वीरू की दोस्ती, गब्बर सिंह का डर, सूरमा भोपाली और जेलर का हास्य, और ताँगे वाली बसंती और उसकी धन्नो- हर पात्र ने दिलोदिमाग़ पर अपनी गहरी छाप छोड़ी। इस फ़िल्म के कई ऐसे दृश्य है जो आज भी फ़िल्मों मे आज़माए जाते हैं। जैसे-
 
*वीरू का पानी की टंकी से आत्महत्या का ड्रामा।
 
*वीरू का पानी की टंकी से आत्महत्या का ड्रामा।
 
*जय का वीरू के लिए मौसी जी से बसंती का हाथ माँगना।
 
*जय का वीरू के लिए मौसी जी से बसंती का हाथ माँगना।
 
*हेलेन का महबूबा महबूबा गाना।
 
*हेलेन का महबूबा महबूबा गाना।
;सलीम और जावेद की जोड़ी  
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;सलीम-जावेद की जोड़ी  
व्यापारिक दृष्टिकोण से फ़िल्म बहुत ही सफल रही। सफलता का मुख्य कारण है उसकी कहानी और उसकी भाषा। आज के सबसे बेहतरीन फ़िल्म लेखक जावेद अख्तर के इम्तिहान की फ़िल्म थी यह। 'यक़ीन' जैसी फ्लॉप फ़िल्मों से शुरू करके उन्होंने सलीम ख़ान के साथ जोड़ी बनायी थी। दोनों जी पी सिप्पी के बैनर के लेखक थे। अंदाज़, सीता और गीता जैसी फ़िल्मों के लिए यह जोड़ी कहानी लिख चुकी थी। और जब शोले बनी तो कम दाम देकर इन्हीं लेखकों से कहानी और संवाद लिखवा लिए गए और उसके बाद तो जिधर जाओ वहीं इस फ़िल्म के डायलॉग सुनने को मिल जाते थे।  
+
व्यापारिक दृष्टिकोण से फ़िल्म बहुत ही सफल रही। सफलता का मुख्य कारण है उसकी कहानी और उसकी भाषा। आज के सबसे बेहतरीन फ़िल्म लेखक जावेद अख्तर के इम्तिहान की फ़िल्म थी यह। 'यक़ीन' जैसी फ्लॉप फ़िल्मों से शुरू करके उन्होंने सलीम ख़ान के साथ जोड़ी बनायी थी। दोनों जी.पी. सिप्पी के बैनर के लेखक थे। 'अंदाज़', 'सीता और गीता' जैसी फ़िल्मों के लिए यह जोड़ी कहानी लिख चुकी थी और जब शोले बनी तो कम दाम देकर इन्हीं लेखकों से कहानी और संवाद लिखवा लिए गए और उसके बाद तो जिधर जाओ वहीं इस फ़िल्म के डायलॉग सुनने को मिल जाते थे।  
 
====यादगार संवाद====
 
====यादगार संवाद====
 
सलीम-जावेद की जोड़ी ने संवादों में रचनात्मक काम किया है। उनमें से कुछ प्रसिद्ध है-
 
सलीम-जावेद की जोड़ी ने संवादों में रचनात्मक काम किया है। उनमें से कुछ प्रसिद्ध है-
 
*'अरे ओ सांभा, कितने आदमी थे?'  
 
*'अरे ओ सांभा, कितने आदमी थे?'  
*वो दो थे, और तुम तीन। फिर भी खाली हाथ लौट आये।
+
*वो दो थे, और तुम तीन। फिर भी ख़ाली हाथ लौट आये।
 
*कितना इनाम रखे है, सरकार हम पर।
 
*कितना इनाम रखे है, सरकार हम पर।
*यहाँ से पचास पचास गाँवो में, जब बच्चा नहीं सोता हैं, तो माँ कहती हैं - सो जा बेटा, नहीं तो गब्बर आ जायेगा।
+
*यहाँ से पचास कोस दूर गाँवों में, जब बच्चा नहीं सोता है, तो माँ कहती है- सो जा बेटा, नहीं तो गब्बर आ जायेगा।
*बहुत नाइंसाफी हैं।
+
*बहुत नाइंसाफी है।
 
*'बहुत याराना लगता है?'  
 
*'बहुत याराना लगता है?'  
 
*'इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई?'
 
*'इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई?'
*'वो ही कर रहा हूँ भैया जो मजनूँ ने लैला के लिए किया था, राँझा ने हीर के लिए था, रोमियो ने जूलिएट के लिए था… सुसाईड'  
+
*'वो ही कर रहा हूँ भैया जो मजनूं ने लैला के लिए किया था, राँझा ने हीर के लिए था, रोमियो ने जूलिएट के लिए था… सुसाईड'  
 
*'तुम्हारा नाम क्या है बसंती?'  
 
*'तुम्हारा नाम क्या है बसंती?'  
 
*'साला नौटंकी, घड़ी घड़ी ड्रामा करता है।'
 
*'साला नौटंकी, घड़ी घड़ी ड्रामा करता है।'
 
*'अब तेरा क्या होगा कालिया?'
 
*'अब तेरा क्या होगा कालिया?'
*'ये हाथ नहीं फाँसी का फंदा हैं।'
+
*'ये हाथ नहीं फाँसी का फंदा है।'
 
*'ये हाथ हमको दे दे ठाकुर।'
 
*'ये हाथ हमको दे दे ठाकुर।'
*'तेरे लिए तो मेरे पैर ही काफी हैं।'
+
*'तेरे लिए तो मेरे पैर ही काफ़ी हैं।'
 
*'बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना।'
 
*'बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना।'
 
*'आधे दाएँ जाओ, आधे बाएँ, बाकी मेरे पीछे आओ।'
 
*'आधे दाएँ जाओ, आधे बाएँ, बाकी मेरे पीछे आओ।'
 
*'हम अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर हैं।'
 
*'हम अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर हैं।'
 
==प्रचार और प्रसार==  
 
==प्रचार और प्रसार==  
शोले के डायलॉग बोलते हुए लोग कहीं भी मिल जाते थे। किसी बेवक़ूफ़ अफ़सर को अंग्रेजों के ज़माने का जेलर कह दिया जाता था, क्योंकि अपने इस डायलॉग की वजह से असरानी सरकारी नाकारापन के सिम्बल बन गए थे। अमजद खान के डायलॉग पूरी तरह से हिट हुए। खूंखार डाकू का रोल किया था अमजद खान ने लेकिन वह सबका प्यारा हो गया। मीडिया का इतना विस्तार नहीं था, कुछ फ़िल्मी पत्रिकाएं थीं, लेकिन धर्मयुग और साप्ताहिक हिन्दुस्तान के ज़रिये आबादी की मुख्यधारा में फ़िल्मों का ज़िक्र पंहुचता था।<ref>{{cite web |url=http://forums.abhisays.com/showthread.php?t=2121 |title=शोले - फ़िल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
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शोले के डायलॉग बोलते हुए लोग कहीं भी मिल जाते थे। किसी बेवक़ूफ़ अफ़सर को अंग्रेजों के ज़माने का जेलर कह दिया जाता था, क्योंकि अपने इस डायलॉग की वजह से असरानी सरकारी नाकारापन के सिम्बल बन गए थे। [[अमजद ख़ान]] के डायलॉग पूरी तरह से हिट हुए। खूंखार डाकू का रोल किया था अमजद ख़ान ने लेकिन वह सबका प्यारा हो गया। मीडिया का इतना विस्तार नहीं था, कुछ फ़िल्मी पत्रिकाएं थीं, लेकिन [[धर्मयुग]] और साप्ताहिक हिन्दुस्तान के ज़रिये आबादी की मुख्यधारा में फ़िल्मों का ज़िक्र पंहुचता था।<ref>{{cite web |url=http://forums.abhisays.com/showthread.php?t=2121 |title=शोले - फ़िल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
 
 
 
==कलाकार परिचय==
 
==कलाकार परिचय==
शोले फ़िल्म में आनंद और ज़ंजीर जैसी फ़िल्मों से थोड़ा नाम कमा चुके अमिताभ बच्चन थे तो उस वक़्त के ही-मैन धर्मेन्द्र भी थे। किंतु फ़िल्म सबसे ज्यादा चर्चा में अमजद खान के कारण आई। फ़िल्म की सफलता के पीछे मुख्य कारण हैं उसके पात्र। हर पात्र एक दूसरे से भिन्न है और सब कलाकार उसमें फिट बैठते है। जय का निहित व्यंग्य, वीरू का बचकाना हास्य, बसंती की बकबक, ठाकुर का दृढ़ संकल्प, राधा की गम्भीरता, गब्बर की दहाड़- हर पात्र की अपनी ही खूबी है और इन सबके साथ सलीम ख़ान की पटकथा और आर. डी. बर्मन का संगीत दोनों ही बहुत सुंदर हैं।
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शोले फ़िल्म में आनंद और ज़ंजीर जैसी फ़िल्मों से थोड़ा नाम कमा चुके अमिताभ बच्चन थे तो उस वक़्त के ही-मैन धर्मेन्द्र भी थे। किंतु फ़िल्म सबसे ज़्यादा चर्चा में अमजद ख़ान के कारण आई। फ़िल्म की सफलता के पीछे मुख्य कारण हैं उसके पात्र। हर पात्र एक दूसरे से भिन्न है और सब कलाकार उसमें फिट बैठते हैं। जय का निहित व्यंग्य, वीरू का बचकाना हास्य, बसंती की बकबक, ठाकुर का दृढ़ संकल्प, राधा की गम्भीरता, गब्बर की दहाड़- हर पात्र की अपनी ही ख़ूबी है और इन सबके साथ सलीम ख़ान की पटकथा और [[आर. डी. बर्मन]] का संगीत दोनों ही बहुत सुंदर हैं।
 
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|+ शोले का पात्र परिचय<ref>{{cite web |url=|title=|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
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|+ शोले फ़िल्म के पात्रों का परिचय  
 
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! क्रमांक  
 
! क्रमांक  
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| 1.  
 
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| धर्मेन्द्र  
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| [[धर्मेन्द्र]]
 
| वीरू
 
| वीरू
 
| [[चित्र:Dharmendra--Sholay.jpg|link=धर्मेन्द्र|60px]]
 
| [[चित्र:Dharmendra--Sholay.jpg|link=धर्मेन्द्र|60px]]
 
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| 2.  
 
| 2.  
| संजीव कुमार  
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| [[संजीव कुमार]]
 
| ठाकुर बलदेव सिंह (ठाकुर साहब)
 
| ठाकुर बलदेव सिंह (ठाकुर साहब)
 
| [[चित्र:Savjeev-kumar-in-Sholay.jpg|link=संजीव कुमार|60px]]
 
| [[चित्र:Savjeev-kumar-in-Sholay.jpg|link=संजीव कुमार|60px]]
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| 6.  
 
| 6.  
| अमज़द ख़ान  
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| [[अमजद ख़ान]]
 
| गब्बर सिंह
 
| गब्बर सिंह
| [[चित्र:Amjad Khan-Gabbar Singh.jpeg|अमज़द ख़ान|60px]]
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| [[चित्र:Amjad Khan-Gabbar Singh.jpeg|link=अमजद ख़ान|60px]]
 
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| 7.  
 
| 7.  
| ए. के. हंगल   
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| [[ए. के. हंगल]]  
 
| इमाम साहब / रहीम चाचा
 
| इमाम साहब / रहीम चाचा
| [[चित्र:AK Hangal-in-sholay.jpg|ए. के. हंगल|60px]]
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| [[चित्र:AK Hangal-in-sholay.jpg|link=ए. के. हंगल|60px]]
 
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| सत्येन्द्र कप्पू  
 
| सत्येन्द्र कप्पू  
 
| रामलाल
 
| रामलाल
| [[चित्र:Satendra-kappu-in-Sholay.jpg|अमज़द ख़ान|60px]]
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| [[चित्र:Satendra-kappu-in-Sholay.jpg|सत्येन्द्र कप्पू |60px]]
 
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| 12.  
 
| 12.  
| विकास आनंद
 
| जय और वीरू को लाने नियुक्त जेलर
 
|
 
|-
 
| 13.
 
| पी. जयराज 
 
| पुलिस कमिश्नर
 
|
 
|-
 
| 14.
 
 
| असरानी   
 
| असरानी   
 
| जेलर
 
| जेलर
 
| [[चित्र:Asrani-sholay.jpg|असरानी|60px]]
 
| [[चित्र:Asrani-sholay.jpg|असरानी|60px]]
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| 15
 
| राज किशोर 
 
| कैदी
 
|
 
 
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| 16
+
| 13.
 
| मैक मोहन  
 
| मैक मोहन  
 
| साँभा
 
| साँभा
 
| [[चित्र:Mac-Mohan-sholay.jpg|मैक मोहन|60px]]
 
| [[चित्र:Mac-Mohan-sholay.jpg|मैक मोहन|60px]]
 
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| 17
+
| 14.
 
| विजू खोटे  
 
| विजू खोटे  
 
| कालिया
 
| कालिया
 
| [[चित्र:Kaalia-sholay.jpg|विजू खोटे|60px]]
 
| [[चित्र:Kaalia-sholay.jpg|विजू खोटे|60px]]
 
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| 18
+
| 15.
 
| केस्टो मुखर्जी  
 
| केस्टो मुखर्जी  
 
| हरिराम
 
| हरिराम
 
| [[चित्र:Keshto mukherjee sholay.jpg|60px|केस्टो मुखर्जी]]
 
| [[चित्र:Keshto mukherjee sholay.jpg|60px|केस्टो मुखर्जी]]
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| 19
 
| हबीब
 
| हीरा
 
|
 
 
|-  
 
|-  
| 20
+
| 16.
| शरद कुमार
 
| निन्नी
 
|
 
|-
 
| 21
 
| मास्टर अलंकार
 
| दीपक
 
|
 
|-
 
| 22
 
| गीता सिद्धार्थ
 
| दीपक की माँ (अतिथि पात्र)
 
|
 
|-
 
| 23
 
 
| ओम शिवपुरी  
 
| ओम शिवपुरी  
 
| इंस्पेक्टर साहब (अतिथि पात्र)
 
| इंस्पेक्टर साहब (अतिथि पात्र)
|
+
| [[चित्र:Om-shivpuri.jpg|ओम शिवपुरी|60px]]
 
|-
 
|-
| 24.  
+
| 17.  
 
| जगदीप  
 
| जगदीप  
 
| सूरमा भोपाली (अतिथि पात्र)
 
| सूरमा भोपाली (अतिथि पात्र)
 
| [[चित्र:Soorma-bhopali-sholay.jpg|जगदीप|60px]]
 
| [[चित्र:Soorma-bhopali-sholay.jpg|जगदीप|60px]]
 
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|-  
| 25 
+
| 18.
| हेलन  
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| [[हेलन]]
 
| बंजारा नर्तकी (अतिथि पात्र, 'महबूबा महबूबा' गाने में)
 
| बंजारा नर्तकी (अतिथि पात्र, 'महबूबा महबूबा' गाने में)
| [[चित्र:Helan-in-Sholay.jpg|हेलन|60px]]
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| [[चित्र:Helan-in-Sholay.jpg|link=हेलन|60px]]
 
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| 26 
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| 19.
 
| जलाल आग़ा  
 
| जलाल आग़ा  
 
| बंजारा गायक (अतिथि पात्र, 'महबूबा महबूबा' गाने में)  
 
| बंजारा गायक (अतिथि पात्र, 'महबूबा महबूबा' गाने में)  
 
| [[चित्र:Jalal-agha.jpg|जलाल आग़ा|60px]]
 
| [[चित्र:Jalal-agha.jpg|जलाल आग़ा|60px]]
 
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इन कलाकारों के अलावा शोले में राज किशोर (कैदी), हबीब (हीरा), शरद कुमार (निन्नी), मास्टर अलंकार (दीपक), गीता सिद्धार्थ (दीपक की माँ), विकास आनंद (जय और वीरू को लाने नियुक्त जेलर), प्रसिद्ध अभिनेता व निर्देशक [[पी. जयराज]] (पुलिस कमिश्नर) ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाई।
  
 
==गीत संगीत==
 
==गीत संगीत==
फ़िल्म का संगीत राहुल देव बर्मन ने दिया था। इसमें एक गीत 'महबूबा ओ महबूबा' उन्होने ख़ुद गाया भी था। फ़िल्म के सभी गीत हिट हुए थे।  
+
फ़िल्म का संगीत राहुल देव बर्मन ने दिया था। इसमें एक गीत 'महबूबा ओ महबूबा' उन्होंने ख़ुद गाया भी था। फ़िल्म के सभी गीत हिट हुए थे।  
 
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|+ शोले फ़िल्म के गाने<ref>{{cite web |url=http://filmkahani.com/70-decade/sholay-movie-review.html|title=शोले (Sholay Movie)|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
 
|+ शोले फ़िल्म के गाने<ref>{{cite web |url=http://filmkahani.com/70-decade/sholay-movie-review.html|title=शोले (Sholay Movie)|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
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| 2.  
 
| 2.  
 
| महबूबा ओ महबूबा   
 
| महबूबा ओ महबूबा   
| राहुल देव बर्मन
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| [[राहुल देव बर्मन]]
 
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| 3.  
 
| 3.  
 
| ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे     
 
| ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे     
| किशोर कुमार, मन्ना डे
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| किशोर कुमार, [[मन्ना डे]]
 
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==विशेषताएँ==
 
==विशेषताएँ==
*जी. पी. सिप्पी और रमेश सिप्पी निर्मित 'शोले' कई मायनों में ख़ास रही। जापान के विश्वविख्यात निर्देशक अकिरा कुरोसावा की फ़िल्म 'सेवन सामुराई' और जॉन स्टजेंस के 'द मॅग्निफिशियंट सेवन' फ़िल्मों पर आधारित "शोले" की कथा, पटकथा और संवाद सलीम जावेद ने लिखे। फ़िल्म के अनेक दृश्य वंस अपॉन ए टाइम इन द वेस्ट (Once Upon A Time In The West), द गुड द बैड एंड द अगली (The Good, the Bad and the Ugly), ए फ़िस्टफुल ऑफ़ डॉलर्स (A Fistful of Dollars), फ़ॉर ए फ़्यू डॉलर्स मोर (For a Few Dollars More) आदि वेस्टर्न फ़िल्मों से प्रेरित हैं।   
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[[चित्र:Sholay.jpg|thumb|300px|शोले की शूटिंग के दौरान कैमरे के पीछे चट्टान पर पहली बार जेलर की वर्दी पहने हुए असरानी के अभ्यास पर हँसते हुए [[अमिताभ बच्चन]], [[धर्मेन्द्र]], [[संजीव कुमार]] व [[अमजद ख़ान]]]]
*मजबूत कथा, डायलॉग, जीते-जागते साहसी दृश्य, चंबल के डाकुओं का चित्रण, गब्बर बने अमजद द्वारा संवादों की दमदार अदायगी, ठाकुर बने [[संजीव कुमार]] का जबर्दस्त अभिनय और उसे मिला [[अमिताभ बच्चन|अमिताभ]] और [[धर्मेन्द्र]] का अचूक साथ। [[जया बच्चन]] और [[हेमा मालिनी]] के परस्पर विरोधी किरदारों का लाजवाब अभिनय कहानी के माफिक उम्दा संगीत और [[राहुल देव बर्मन|आर डी बर्मन]] के गीतों में और कहीं नजाकत भरे दृश्यों में माउथऑर्गन का लाजवाब इस्तेमाल और [[हेलन]] पर फ़िल्माया गया "महबूबा महबूबा" गाना ऐसी तमाम खासियतें रहीं।  
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*जी. पी. सिप्पी और रमेश सिप्पी निर्मित 'शोले' कई मायनों में ख़ास रही। जापान के विश्वविख्यात निर्देशक अकिरा कुरोसावा की फ़िल्म 'सेवन सामुराई' और जॉन स्टजेंस के 'द मॅग्निफिशियंट सेवन' फ़िल्मों पर आधारित "शोले" की कथा, पटकथा और संवाद सलीम-जावेद ने लिखे। फ़िल्म के अनेक दृश्य 'वंस अपॉन ए टाइम इन द वेस्ट' (Once Upon A Time In The West), 'द गुड द बैड एंड द अगली' (The Good, the Bad and the Ugly), 'ए फ़िस्टफुल ऑफ़ डॉलर्स' (A Fistful of Dollars), 'फ़ॉर ए फ़्यू डॉलर्स मोर' (For a Few Dollars More) आदि वेस्टर्न फ़िल्मों से प्रेरित हैं।   
*मुख्य किरदारों के साथ "साँभा", "कालिया" इन डाकुओं के किरदारों में मॅकमोहन और विजू खोटे की भी अलग पहचान कायम हुई। वहीं छोटे अहमद (सचिन) की डाकुओं द्वारा हत्या के करुण दृश्य में इमाम (ए. के. हंगल) का भावपूर्ण अभिनय और पार्श्व में [[नमाज़]] की अजान के सुर गमगीन माहौल की पेशकश का चरम बिंदु रहे।  
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*मज़बूत कथा, डायलॉग, जीते-जागते साहसी दृश्य, चंबल के डाकुओं का चित्रण, गब्बर बने अमजद द्वारा संवादों की दमदार अदायगी, ठाकुर बने [[संजीव कुमार]] का जबर्दस्त अभिनय और उसे मिला [[अमिताभ बच्चन|अमिताभ]] और [[धर्मेन्द्र]] का अचूक साथ। [[जया बच्चन]] और [[हेमा मालिनी]] के परस्पर विरोधी किरदारों का लाजवाब अभिनय कहानी के माफिक उम्दा संगीत और [[राहुल देव बर्मन|आर डी बर्मन]] के गीतों में और कहीं नजाकत भरे दृश्यों में माउथऑर्गन का लाजवाब इस्तेमाल और [[हेलन]] पर फ़िल्माया गया "महबूबा महबूबा" गाना ऐसी तमाम ख़ासियतें रहीं।  
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*मुख्य किरदारों के साथ "साँभा", "कालिया" इन डाकुओं के किरदारों में मॅकमोहन और विजू खोटे की भी अलग पहचान क़ायम हुई। वहीं छोटे अहमद (सचिन) की डाकुओं द्वारा हत्या के करुण दृश्य में इमाम (ए. के. हंगल) का भावपूर्ण अभिनय और पार्श्व में [[नमाज़]] की अजान के सुर गमगीन माहौल की पेशकश का चरम बिंदु रहे।  
 
*बसंती को शादी के लिए राजी करते वीरू का "सुसाइड नोट", जय के जेब में दो अलहदा सिक्के, राधा की नजाकत भरी खामोशी, वहीं ठाकुर के हाथ काटने का दर्दनाक दृश्य, जेलर असरानी, केश्टो मुखर्जी और जगदीप के व्यंग्य ऐसे तमाम अलहदा रंगों से सजे "शोले" ने दर्शकों के दिल पर असर किया।
 
*बसंती को शादी के लिए राजी करते वीरू का "सुसाइड नोट", जय के जेब में दो अलहदा सिक्के, राधा की नजाकत भरी खामोशी, वहीं ठाकुर के हाथ काटने का दर्दनाक दृश्य, जेलर असरानी, केश्टो मुखर्जी और जगदीप के व्यंग्य ऐसे तमाम अलहदा रंगों से सजे "शोले" ने दर्शकों के दिल पर असर किया।
*फ़िल्म में गब्बर के मशहूर किरदार के लिए पहले 'डैनी डेग्जोंप्पा' को अहमियत दी गई थी। वहीं वीरू का किरदार [[संजीव कुमार]] तो जेलर को [[धर्मेन्द्र|धर्मेंद्र]] निभाने वाले थे। लेकिन कहानी में वीरू के बसंती से प्रेम प्रसंगों पर नजर पड़ते ही धर्मेंद्र ने वीरू के किरदार को हरी झंडी दिखाई।  
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*फ़िल्म में गब्बर के मशहूर किरदार के लिए पहले 'डैनी डेग्जोंप्पा' को अहमियत दी गई थी। वहीं वीरू का किरदार [[संजीव कुमार]] तो जेलर को [[धर्मेन्द्र|धर्मेंद्र]] निभाने वाले थे। लेकिन कहानी में वीरू के बसंती से प्रेम प्रसंगों पर नज़र पड़ते ही धर्मेंद्र ने वीरू के किरदार को हरी झंडी दिखाई।  
 
*"कितना इनाम रक्खे हैं सरकार हम पर?" गब्बर के इस सवाल का जवाब देने साँभा का किरदार ऐन वक्त पर शामिल किया गया। रेल नकबजनी दृश्यों की शूटिंग पूरे सात हफ्ते चली। और "कितने आदमी थे?" डायलॉग 40 रिटेक के बाद शूट हुआ।  
 
*"कितना इनाम रक्खे हैं सरकार हम पर?" गब्बर के इस सवाल का जवाब देने साँभा का किरदार ऐन वक्त पर शामिल किया गया। रेल नकबजनी दृश्यों की शूटिंग पूरे सात हफ्ते चली। और "कितने आदमी थे?" डायलॉग 40 रिटेक के बाद शूट हुआ।  
*कई तरह से खासियतों का रिकॉर्ड कायम करने वाले "शोले" ने टिकट खिड़की पर भी कामयाबी का इतिहास रचा। यह सुनकर तो आज भी कइयों को विश्वास नहीं होगा कि "शोले" प्रदर्शन के पहले कुछ दिनों तक नहीं चली थी।<ref>{{cite web |url=http://forums.abhisays.com/showthread.php?t=2121|title=शोले - फ़िल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
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*कई तरह से ख़ासियतों का रिकॉर्ड क़ायम करने वाले "शोले" ने टिकट खिड़की पर भी कामयाबी का इतिहास रचा। यह सुनकर तो आज भी कइयों को विश्वास नहीं होगा कि "शोले" प्रदर्शन के पहले कुछ दिनों तक नहीं चली थी।<ref>{{cite web |url=http://forums.abhisays.com/showthread.php?t=2121|title=शोले - फ़िल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
 
*इस फ़िल्म की सबसे महत्त्वपूर्ण बात पूरी फ़िल्म में मैक मोहन द्वारा एक ही डायलॉग (संवाद) बोला गया था और वो भी सुपर हिट हुआ !
 
*इस फ़िल्म की सबसे महत्त्वपूर्ण बात पूरी फ़िल्म में मैक मोहन द्वारा एक ही डायलॉग (संवाद) बोला गया था और वो भी सुपर हिट हुआ !
*फ़िल्म शोले के साथ सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि फ़िल्म इतनी जबरदस्त हिट रही है कि 2005 मे इसे "Best Film of 50 year" का पुरस्कार दिया गया, परंतु इस पुरस्कार को छोड़ कर कोई अन्य पुरस्कार इस फ़िल्म को कभी नहीं मिला। शायद यह फ़िल्म पुरस्कार की सीमा में आती ही नहीं है।<ref>{{cite web |url=http://forums.abhisays.com/showthread.php?t=2121|title=शोले - फ़िल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
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*फ़िल्म शोले के साथ सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि फ़िल्म इतनी जबरदस्त हिट रही है कि 2005 में इसे "Best Film of 50 year" का पुरस्कार दिया गया, परंतु इस पुरस्कार को छोड़ कर कोई अन्य पुरस्कार इस फ़िल्म को कभी नहीं मिला। शायद यह फ़िल्म पुरस्कार की सीमा में आती ही नहीं है।<ref>{{cite web |url=http://forums.abhisays.com/showthread.php?t=2121|title=शोले - फ़िल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
*शोले जब रिलीज हुई, तब इसे बहुत ही ठंडा रेस्पोंस मिला था। इस पर फ़िल्म के निर्देशक ने सलीम-जावेद से कहा कि इसका क्लाइमैक्स चेंज कर देते है और जय (अमिताभ बच्चन) को जिंदा रखते है, पर लेखक जोड़ी ने साफ मना कर दिया। फिर तो बिना किसी परिवर्तन के फ़िल्म ने जो इतिहास रचा, इसे पूरी दुनिया ने देखा।<ref>{{cite web |url=http://forums.abhisays.com/showthread.php?t=2121|title=शोले - फ़िल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
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*शोले जब रिलीज हुई, तब इसे बहुत ही ठंडा रेस्पोंस मिला था। इस पर फ़िल्म के निर्देशक ने सलीम-जावेद से कहा कि इसका क्लाइमैक्स चेंज कर देते हैं और जय (अमिताभ बच्चन) को जिंदा रखते हैं, पर लेखक जोड़ी ने साफ़ मना कर दिया। फिर तो बिना किसी परिवर्तन के फ़िल्म ने जो इतिहास रचा, इसे पूरी दुनिया ने देखा।<ref>{{cite web |url=http://forums.abhisays.com/showthread.php?t=2121|title=शोले - फ़िल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
*1999 में बी. बी. सी. इंडिया ने इस फ़िल्म को '''शताब्दी की फ़िल्म''' का नाम दिया और दीवार की तरह इसे '''इंडिया टाइम्ज़ मूवियों में बॉलीवुड की शीर्ष 25 फ़िल्मों''' में शामिल किया। उसी साल 50 वें वार्षिक फ़िल्म फेयर पुरस्कार के निर्णायकों ने एक विशेष पुरस्कार दिया जिसका नाम 50 सालों की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म फ़िल्मफेयर पुरस्कार था।  
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*1999 में बी.बी.सी. इंडिया ने इस फ़िल्म को '''शताब्दी की फ़िल्म''' का नाम दिया और दीवार की तरह इसे '''इंडिया टाइम्ज़ मूवियों में बॉलीवुड की शीर्ष 25 फ़िल्मों''' में शामिल किया। उसी साल 50 वें वार्षिक फ़िल्म फेयर पुरस्कार के निर्णायकों ने एक विशेष पुरस्कार दिया जिसका नाम 50 सालों की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म फ़िल्मफेयर पुरस्कार था।  
*इस फ़िल्म के कथानक को रमेश सिप्पी ने मूलभूत परिवर्तन करते हुए कुछ इस अंदाज में परदे पर उतारा कि यह अपने आप में विश्व का आठवां अजूबा बन गई। शोले भारतीय फ़िल्म इतिहास की पहली ऐसी फ़िल्म थी, जिसके संवादों को कैसेट के जरिए रिलीज करके म्यूजिक कम्पनी एचएमवी ने लाखों रुपये की कमाई की थी। बॉक्स ऑफिस पर शोले जैसी फ़िल्मों की जबरदस्त सफलता के बाद बॉलीवुड में अमिताभ बच्चन ने अपनी स्थिति को मजबूत कर लिया था।<ref>{{cite web |url=http://khaskhabar.wordpress.com/2011/10/12/%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%87-%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8-%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A5%80/|title=शोले : इतिहास बनी|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>  
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*इस फ़िल्म के कथानक को रमेश सिप्पी ने मूलभूत परिवर्तन करते हुए कुछ इस अंदाज़ में परदे पर उतारा कि यह अपने आप में विश्व का आठवां अजूबा बन गई। शोले भारतीय फ़िल्म इतिहास की पहली ऐसी फ़िल्म थी, जिसके संवादों को कैसेट के जरिए रिलीज करके म्यूजिक कम्पनी एचएमवी ने लाखों रुपये की कमाई की थी। बॉक्स ऑफिस पर शोले जैसी फ़िल्मों की जबरदस्त सफलता के बाद बॉलीवुड में अमिताभ बच्चन ने अपनी स्थिति को मज़बूत कर लिया था।<ref>{{cite web |url=http://khaskhabar.wordpress.com/2011/10/12/%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%87-%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8-%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A5%80/|title=शोले : इतिहास बनी|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>  
 
*इस फ़िल्म का निर्माण तीन करोड़ रुपये के बजट में हुआ था। वर्ष 1999 में बीबीसी इंडिया ने इसे 'सहस्राब्दी की फ़िल्म' घोषित किया था।
 
*इस फ़िल्म का निर्माण तीन करोड़ रुपये के बजट में हुआ था। वर्ष 1999 में बीबीसी इंडिया ने इसे 'सहस्राब्दी की फ़िल्म' घोषित किया था।
 
*इस फ़िल्म के बॉक्स ऑफिस पर लगातार पांच साल तक प्रदर्शन के लिए इसे 'गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉडर्स' में दर्ज किया गया था।<ref>{{cite web |url=http://www.aajkikhabar.com/hindi/news/75147/75147.html|title=लोगों पर अब भी छाया है शोले का जादू : जावेद अख्तर|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>  
 
*इस फ़िल्म के बॉक्स ऑफिस पर लगातार पांच साल तक प्रदर्शन के लिए इसे 'गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉडर्स' में दर्ज किया गया था।<ref>{{cite web |url=http://www.aajkikhabar.com/hindi/news/75147/75147.html|title=लोगों पर अब भी छाया है शोले का जादू : जावेद अख्तर|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
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*[http://www.hindivivek.org/october/r16.html  35 साल से धधकता हुआ शोले]  
 
*[http://www.hindivivek.org/october/r16.html  35 साल से धधकता हुआ शोले]  
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शोले (फ़िल्म)
Sholay-Movie.jpg
निर्देशक रमेश सिप्पी
निर्माता जी. पी. सिप्पी
लेखक सलीम-जावेद
कहानी सलीम-जावेद
पटकथा सलीम-जावेद
संवाद सलीम-जावेद
कलाकार धर्मेन्द्र, हेमा मालिनी, अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, संजीव कुमार, अमजद ख़ान, असरानी
प्रसिद्ध चरित्र गब्बर सिंह
संगीत राहुल देव बर्मन
गीतकार आनंद बख्शी
गायक लता मंगेशकर, राहुल देव बर्मन, मन्ना डे, किशोर कुमार, भूपेंद्र सिंह
प्रसिद्ध गीत ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे, महबूबा ओ महबूबा
छायांकन द्वारका दिवेचा
संपादन एम. एस. शिंदे
वितरक सिप्पी फ़िल्म्स
प्रदर्शन तिथि 15 अगस्त, 1975
भाषा हिन्दी
पुरस्कार 2005 में "Best Film of 50 year"
बजट तीन करोड़ रुपये
देश भारत
कला निर्देशक राम येडेकर
स्टंट मोहम्मद अली, जेरी क्रांपटन
नृत्य निर्देशक पी. एल. राज

आज से 49 साल पहले सन् 1975 में भारत के स्वतंत्रता दिवस पर फ़िल्म 'शोले' रिलीज़ हुई थी। इस फ़िल्म की शुरुआत तो बहुत मामूली थी लेकिन कुछ ही दिनों में यह फ़िल्म पूरे देश में चर्चा का विषय बन गयी। देखते ही देखते शोले सुपरहिट और फिर ऐतिहासिक फ़िल्म हो गई। इसकी लोकप्रियता का अनुमान सिर्फ इसी से लगाया जा सकता है कि यह फ़िल्म मुंबई के 'मिनर्वा टाकीज़' में 286 सप्ताह तक चलती रही। 'शोले' ने भारत के सभी बड़े शहरों में 'रजत जयंती' मनायी। शोले ने अपने समय में 2,36,45,000,00 रुपये कमाए जो मुद्रास्फीति को समायोजित करने के बाद 60 मिलियन अमरीकी डॉलर के बराबर हैं।

कहानी

फ़िल्म की कहानी बहुत ही साधारण है, पर रमेश सिप्पी के निर्देशन ने इसमें अलग ही जान डाल दी थी। सेवानिवृत्त पुलिस अफ़सर ठाकुर बलदेव सिंह (संजीव कुमार), डाकू गब्बर सिंह (अमजद ख़ान) को गिरफ्तार करते हैं, पर वो जेल से भागने मे कामयाब हो जाता है। बदला लेने के लिए वह ठाकुर के परिवार का ख़ून कर देता है। ठाकुर गब्बर को जिंदा पकड़ने के लिए दो बहादुर लोफर जय (अमिताभ बच्चन) और वीरू (धर्मेन्द्र) की मदद लेता है। रामगढ़ में इनकी मुलाक़ात राधा (जया बच्चन) और बसंती (हेमा मालिनी) से होती है। और फिर शुरू होती है गब्बर को जिंदा पकड़ने की कवायद।

प्रशंसनीय फ़िल्म

'तेरा क्या होगा कालिया' संवाद आज भी सबके दिलों दिमाग़ पर छाया है। शोले हिन्दी सिनेमा की सबसे प्रशंसनीय फ़िल्मों में से एक फ़िल्म है। एक गाँव रामगढ़ में निर्देशित, यह एक परंपरागत हिन्दी फ़िल्म है जो आज तक हिन्दी फ़िल्म प्रशंसकों के दिल मे घर किये बैठी है। हज़ारों बार देखने बाद भी लोग इसे देखकर नहीं थकते। जय और वीरू की दोस्ती, गब्बर सिंह का डर, सूरमा भोपाली और जेलर का हास्य, और ताँगे वाली बसंती और उसकी धन्नो- हर पात्र ने दिलोदिमाग़ पर अपनी गहरी छाप छोड़ी। इस फ़िल्म के कई ऐसे दृश्य है जो आज भी फ़िल्मों मे आज़माए जाते हैं। जैसे-

  • वीरू का पानी की टंकी से आत्महत्या का ड्रामा।
  • जय का वीरू के लिए मौसी जी से बसंती का हाथ माँगना।
  • हेलेन का महबूबा महबूबा गाना।
सलीम-जावेद की जोड़ी

व्यापारिक दृष्टिकोण से फ़िल्म बहुत ही सफल रही। सफलता का मुख्य कारण है उसकी कहानी और उसकी भाषा। आज के सबसे बेहतरीन फ़िल्म लेखक जावेद अख्तर के इम्तिहान की फ़िल्म थी यह। 'यक़ीन' जैसी फ्लॉप फ़िल्मों से शुरू करके उन्होंने सलीम ख़ान के साथ जोड़ी बनायी थी। दोनों जी.पी. सिप्पी के बैनर के लेखक थे। 'अंदाज़', 'सीता और गीता' जैसी फ़िल्मों के लिए यह जोड़ी कहानी लिख चुकी थी और जब शोले बनी तो कम दाम देकर इन्हीं लेखकों से कहानी और संवाद लिखवा लिए गए और उसके बाद तो जिधर जाओ वहीं इस फ़िल्म के डायलॉग सुनने को मिल जाते थे।

यादगार संवाद

सलीम-जावेद की जोड़ी ने संवादों में रचनात्मक काम किया है। उनमें से कुछ प्रसिद्ध है-

  • 'अरे ओ सांभा, कितने आदमी थे?'
  • वो दो थे, और तुम तीन। फिर भी ख़ाली हाथ लौट आये।
  • कितना इनाम रखे है, सरकार हम पर।
  • यहाँ से पचास कोस दूर गाँवों में, जब बच्चा नहीं सोता है, तो माँ कहती है- सो जा बेटा, नहीं तो गब्बर आ जायेगा।
  • बहुत नाइंसाफी है।
  • 'बहुत याराना लगता है?'
  • 'इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई?'
  • 'वो ही कर रहा हूँ भैया जो मजनूं ने लैला के लिए किया था, राँझा ने हीर के लिए था, रोमियो ने जूलिएट के लिए था… सुसाईड'
  • 'तुम्हारा नाम क्या है बसंती?'
  • 'साला नौटंकी, घड़ी घड़ी ड्रामा करता है।'
  • 'अब तेरा क्या होगा कालिया?'
  • 'ये हाथ नहीं फाँसी का फंदा है।'
  • 'ये हाथ हमको दे दे ठाकुर।'
  • 'तेरे लिए तो मेरे पैर ही काफ़ी हैं।'
  • 'बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना।'
  • 'आधे दाएँ जाओ, आधे बाएँ, बाकी मेरे पीछे आओ।'
  • 'हम अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर हैं।'

प्रचार और प्रसार

शोले के डायलॉग बोलते हुए लोग कहीं भी मिल जाते थे। किसी बेवक़ूफ़ अफ़सर को अंग्रेजों के ज़माने का जेलर कह दिया जाता था, क्योंकि अपने इस डायलॉग की वजह से असरानी सरकारी नाकारापन के सिम्बल बन गए थे। अमजद ख़ान के डायलॉग पूरी तरह से हिट हुए। खूंखार डाकू का रोल किया था अमजद ख़ान ने लेकिन वह सबका प्यारा हो गया। मीडिया का इतना विस्तार नहीं था, कुछ फ़िल्मी पत्रिकाएं थीं, लेकिन धर्मयुग और साप्ताहिक हिन्दुस्तान के ज़रिये आबादी की मुख्यधारा में फ़िल्मों का ज़िक्र पंहुचता था।[1]

कलाकार परिचय

शोले फ़िल्म में आनंद और ज़ंजीर जैसी फ़िल्मों से थोड़ा नाम कमा चुके अमिताभ बच्चन थे तो उस वक़्त के ही-मैन धर्मेन्द्र भी थे। किंतु फ़िल्म सबसे ज़्यादा चर्चा में अमजद ख़ान के कारण आई। फ़िल्म की सफलता के पीछे मुख्य कारण हैं उसके पात्र। हर पात्र एक दूसरे से भिन्न है और सब कलाकार उसमें फिट बैठते हैं। जय का निहित व्यंग्य, वीरू का बचकाना हास्य, बसंती की बकबक, ठाकुर का दृढ़ संकल्प, राधा की गम्भीरता, गब्बर की दहाड़- हर पात्र की अपनी ही ख़ूबी है और इन सबके साथ सलीम ख़ान की पटकथा और आर. डी. बर्मन का संगीत दोनों ही बहुत सुंदर हैं।

शोले फ़िल्म के पात्रों का परिचय
क्रमांक कलाकार पात्र का नाम चित्र
1. धर्मेन्द्र वीरू Dharmendra--Sholay.jpg
2. संजीव कुमार ठाकुर बलदेव सिंह (ठाकुर साहब) Savjeev-kumar-in-Sholay.jpg
3. हेमा मालिनी बसंती Hema-malini-Sholay.jpg
4. अमिताभ बच्चन जय (जयदेव) Amitabh-in-sholay.jpg
5. जया भादुड़ी राधा Jaya bachchan sholay.jpg
6. अमजद ख़ान गब्बर सिंह Amjad Khan-Gabbar Singh.jpeg
7. ए. के. हंगल इमाम साहब / रहीम चाचा AK Hangal-in-sholay.jpg
8. सचिन अहमद सचिन
9. सत्येन्द्र कप्पू रामलाल सत्येन्द्र कप्पू
10. इफ़्तिख़ार नर्मदा जी, राधा के पिता इफ़्तिख़ार
11. लीला मिश्रा मौसी लीला मिश्रा
12. असरानी जेलर असरानी
13. मैक मोहन साँभा मैक मोहन
14. विजू खोटे कालिया विजू खोटे
15. केस्टो मुखर्जी हरिराम केस्टो मुखर्जी
16. ओम शिवपुरी इंस्पेक्टर साहब (अतिथि पात्र) ओम शिवपुरी
17. जगदीप सूरमा भोपाली (अतिथि पात्र) जगदीप
18. हेलन बंजारा नर्तकी (अतिथि पात्र, 'महबूबा महबूबा' गाने में) Helan-in-Sholay.jpg
19. जलाल आग़ा बंजारा गायक (अतिथि पात्र, 'महबूबा महबूबा' गाने में) जलाल आग़ा

इन कलाकारों के अलावा शोले में राज किशोर (कैदी), हबीब (हीरा), शरद कुमार (निन्नी), मास्टर अलंकार (दीपक), गीता सिद्धार्थ (दीपक की माँ), विकास आनंद (जय और वीरू को लाने नियुक्त जेलर), प्रसिद्ध अभिनेता व निर्देशक पी. जयराज (पुलिस कमिश्नर) ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाई।

गीत संगीत

फ़िल्म का संगीत राहुल देव बर्मन ने दिया था। इसमें एक गीत 'महबूबा ओ महबूबा' उन्होंने ख़ुद गाया भी था। फ़िल्म के सभी गीत हिट हुए थे।

शोले फ़िल्म के गाने[2]
क्रमांक गाना गायक/गायिका का नाम
1. होली के दिन जब दिल मिल जाते हैं किशोर कुमार, लता मंगेशकर
2. महबूबा ओ महबूबा राहुल देव बर्मन
3. ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे किशोर कुमार, मन्ना डे
4. ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे (दु:खद) किशोर कुमार
5. कोई हसीना जब रूठ जाती है किशोर कुमार, हेमा मालिनी
6. जब तक है जाँ जाने जहाँ लता मंगेशकर

विशेषताएँ

शोले की शूटिंग के दौरान कैमरे के पीछे चट्टान पर पहली बार जेलर की वर्दी पहने हुए असरानी के अभ्यास पर हँसते हुए अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, संजीव कुमारअमजद ख़ान
  • जी. पी. सिप्पी और रमेश सिप्पी निर्मित 'शोले' कई मायनों में ख़ास रही। जापान के विश्वविख्यात निर्देशक अकिरा कुरोसावा की फ़िल्म 'सेवन सामुराई' और जॉन स्टजेंस के 'द मॅग्निफिशियंट सेवन' फ़िल्मों पर आधारित "शोले" की कथा, पटकथा और संवाद सलीम-जावेद ने लिखे। फ़िल्म के अनेक दृश्य 'वंस अपॉन ए टाइम इन द वेस्ट' (Once Upon A Time In The West), 'द गुड द बैड एंड द अगली' (The Good, the Bad and the Ugly), 'ए फ़िस्टफुल ऑफ़ डॉलर्स' (A Fistful of Dollars), 'फ़ॉर ए फ़्यू डॉलर्स मोर' (For a Few Dollars More) आदि वेस्टर्न फ़िल्मों से प्रेरित हैं।
  • मज़बूत कथा, डायलॉग, जीते-जागते साहसी दृश्य, चंबल के डाकुओं का चित्रण, गब्बर बने अमजद द्वारा संवादों की दमदार अदायगी, ठाकुर बने संजीव कुमार का जबर्दस्त अभिनय और उसे मिला अमिताभ और धर्मेन्द्र का अचूक साथ। जया बच्चन और हेमा मालिनी के परस्पर विरोधी किरदारों का लाजवाब अभिनय कहानी के माफिक उम्दा संगीत और आर डी बर्मन के गीतों में और कहीं नजाकत भरे दृश्यों में माउथऑर्गन का लाजवाब इस्तेमाल और हेलन पर फ़िल्माया गया "महबूबा महबूबा" गाना ऐसी तमाम ख़ासियतें रहीं।
  • मुख्य किरदारों के साथ "साँभा", "कालिया" इन डाकुओं के किरदारों में मॅकमोहन और विजू खोटे की भी अलग पहचान क़ायम हुई। वहीं छोटे अहमद (सचिन) की डाकुओं द्वारा हत्या के करुण दृश्य में इमाम (ए. के. हंगल) का भावपूर्ण अभिनय और पार्श्व में नमाज़ की अजान के सुर गमगीन माहौल की पेशकश का चरम बिंदु रहे।
  • बसंती को शादी के लिए राजी करते वीरू का "सुसाइड नोट", जय के जेब में दो अलहदा सिक्के, राधा की नजाकत भरी खामोशी, वहीं ठाकुर के हाथ काटने का दर्दनाक दृश्य, जेलर असरानी, केश्टो मुखर्जी और जगदीप के व्यंग्य ऐसे तमाम अलहदा रंगों से सजे "शोले" ने दर्शकों के दिल पर असर किया।
  • फ़िल्म में गब्बर के मशहूर किरदार के लिए पहले 'डैनी डेग्जोंप्पा' को अहमियत दी गई थी। वहीं वीरू का किरदार संजीव कुमार तो जेलर को धर्मेंद्र निभाने वाले थे। लेकिन कहानी में वीरू के बसंती से प्रेम प्रसंगों पर नज़र पड़ते ही धर्मेंद्र ने वीरू के किरदार को हरी झंडी दिखाई।
  • "कितना इनाम रक्खे हैं सरकार हम पर?" गब्बर के इस सवाल का जवाब देने साँभा का किरदार ऐन वक्त पर शामिल किया गया। रेल नकबजनी दृश्यों की शूटिंग पूरे सात हफ्ते चली। और "कितने आदमी थे?" डायलॉग 40 रिटेक के बाद शूट हुआ।
  • कई तरह से ख़ासियतों का रिकॉर्ड क़ायम करने वाले "शोले" ने टिकट खिड़की पर भी कामयाबी का इतिहास रचा। यह सुनकर तो आज भी कइयों को विश्वास नहीं होगा कि "शोले" प्रदर्शन के पहले कुछ दिनों तक नहीं चली थी।[3]
  • इस फ़िल्म की सबसे महत्त्वपूर्ण बात पूरी फ़िल्म में मैक मोहन द्वारा एक ही डायलॉग (संवाद) बोला गया था और वो भी सुपर हिट हुआ !
  • फ़िल्म शोले के साथ सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि फ़िल्म इतनी जबरदस्त हिट रही है कि 2005 में इसे "Best Film of 50 year" का पुरस्कार दिया गया, परंतु इस पुरस्कार को छोड़ कर कोई अन्य पुरस्कार इस फ़िल्म को कभी नहीं मिला। शायद यह फ़िल्म पुरस्कार की सीमा में आती ही नहीं है।[4]
  • शोले जब रिलीज हुई, तब इसे बहुत ही ठंडा रेस्पोंस मिला था। इस पर फ़िल्म के निर्देशक ने सलीम-जावेद से कहा कि इसका क्लाइमैक्स चेंज कर देते हैं और जय (अमिताभ बच्चन) को जिंदा रखते हैं, पर लेखक जोड़ी ने साफ़ मना कर दिया। फिर तो बिना किसी परिवर्तन के फ़िल्म ने जो इतिहास रचा, इसे पूरी दुनिया ने देखा।[5]
  • 1999 में बी.बी.सी. इंडिया ने इस फ़िल्म को शताब्दी की फ़िल्म का नाम दिया और दीवार की तरह इसे इंडिया टाइम्ज़ मूवियों में बॉलीवुड की शीर्ष 25 फ़िल्मों में शामिल किया। उसी साल 50 वें वार्षिक फ़िल्म फेयर पुरस्कार के निर्णायकों ने एक विशेष पुरस्कार दिया जिसका नाम 50 सालों की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म फ़िल्मफेयर पुरस्कार था।
  • इस फ़िल्म के कथानक को रमेश सिप्पी ने मूलभूत परिवर्तन करते हुए कुछ इस अंदाज़ में परदे पर उतारा कि यह अपने आप में विश्व का आठवां अजूबा बन गई। शोले भारतीय फ़िल्म इतिहास की पहली ऐसी फ़िल्म थी, जिसके संवादों को कैसेट के जरिए रिलीज करके म्यूजिक कम्पनी एचएमवी ने लाखों रुपये की कमाई की थी। बॉक्स ऑफिस पर शोले जैसी फ़िल्मों की जबरदस्त सफलता के बाद बॉलीवुड में अमिताभ बच्चन ने अपनी स्थिति को मज़बूत कर लिया था।[6]
  • इस फ़िल्म का निर्माण तीन करोड़ रुपये के बजट में हुआ था। वर्ष 1999 में बीबीसी इंडिया ने इसे 'सहस्राब्दी की फ़िल्म' घोषित किया था।
  • इस फ़िल्म के बॉक्स ऑफिस पर लगातार पांच साल तक प्रदर्शन के लिए इसे 'गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉडर्स' में दर्ज किया गया था।[7]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शोले - फ़िल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 16 दिसम्बर, 2011।
  2. शोले (Sholay Movie) (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 16 दिसम्बर, 2011।
  3. शोले - फ़िल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 16 दिसम्बर, 2011।
  4. शोले - फ़िल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 16 दिसम्बर, 2011।
  5. शोले - फ़िल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 16 दिसम्बर, 2011।
  6. शोले : इतिहास बनी (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 16 दिसम्बर, 2011।
  7. लोगों पर अब भी छाया है शोले का जादू : जावेद अख्तर (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 16 दिसम्बर, 2011।

बाहरी कड़ियाँ

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