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'''श्रावण''' अथवा '''सावन''' [[हिन्दू]] [[पंचांग]] के अनुसार [[वर्ष]] का पाँचवा महीना, जो ईस्वी कलेंडर के [[जुलाई]] या [[अगस्त]] माह में पड़ता है। इसे [[वर्षा ऋतु]] का महीना या 'पावस ऋतु' भी कहा जाता है, क्योंकि इस समय बहुत वर्षा होती है। इस माह में अनेक महत्त्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं, जिसमें '[[हरियाली तीज]]', '[[रक्षाबन्धन]]', '[[नागपंचमी]]' आदि प्रमुख हैं। '[[श्रावण पूर्णिमा]]' को [[दक्षिण भारत]] में 'नारियली पूर्णिमा' व 'अवनी अवित्तम', [[मध्य भारत]] में 'कजरी पूनम', [[उत्तर भारत]] में 'रक्षाबंधन' और [[गुजरात]] में 'पवित्रोपना' के रूप में मनाया जाता है। त्योहारों की विविधता ही तो [[भारत]] की विशिष्टता की पहचान है। 'श्रावण' यानी सावन माह में [[शिव|भगवान शिव]] की अराधना का विशेष महत्त्व है। इस माह में पड़ने वाले [[सोमवार]] "सावन के सोमवार" कहे जाते हैं, जिनमें स्त्रियाँ तथा विशेषतौर से कुंवारी युवतियाँ भगवान शिव के निमित्त व्रत आदि रखती हैं।
 
'''श्रावण''' अथवा '''सावन''' [[हिन्दू]] [[पंचांग]] के अनुसार [[वर्ष]] का पाँचवा महीना, जो ईस्वी कलेंडर के [[जुलाई]] या [[अगस्त]] माह में पड़ता है। इसे [[वर्षा ऋतु]] का महीना या 'पावस ऋतु' भी कहा जाता है, क्योंकि इस समय बहुत वर्षा होती है। इस माह में अनेक महत्त्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं, जिसमें '[[हरियाली तीज]]', '[[रक्षाबन्धन]]', '[[नागपंचमी]]' आदि प्रमुख हैं। '[[श्रावण पूर्णिमा]]' को [[दक्षिण भारत]] में 'नारियली पूर्णिमा' व 'अवनी अवित्तम', [[मध्य भारत]] में 'कजरी पूनम', [[उत्तर भारत]] में 'रक्षाबंधन' और [[गुजरात]] में 'पवित्रोपना' के रूप में मनाया जाता है। त्योहारों की विविधता ही तो [[भारत]] की विशिष्टता की पहचान है। 'श्रावण' यानी सावन माह में [[शिव|भगवान शिव]] की अराधना का विशेष महत्त्व है। इस माह में पड़ने वाले [[सोमवार]] "सावन के सोमवार" कहे जाते हैं, जिनमें स्त्रियाँ तथा विशेषतौर से कुंवारी युवतियाँ भगवान शिव के निमित्त व्रत आदि रखती हैं।
==कथा==
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==शिव का प्रिय महीना==
 
सावन माह के बारे में एक पौराणिक कथा है कि- "जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो भगवान भोलेनाथ ने बताया कि जब देवी सती ने अपने [[पिता]] [[दक्ष]] के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने [[पार्वती]] के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और शिव को प्रसन्न कर उनसे [[विवाह]] किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।"<ref>{{cite web |url= http://hindi.pardaphash.com/news/--762699/762699.html#.U8eEbkB9sdV|title= तो इसीलिए भोलेनाथ के लिए विशेष हो गया सावन का महिना|accessmonthday= 17 जुलाई|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= पर्दाफाश टुडे.कॉम|language= हिन्दी}}</ref>
 
सावन माह के बारे में एक पौराणिक कथा है कि- "जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो भगवान भोलेनाथ ने बताया कि जब देवी सती ने अपने [[पिता]] [[दक्ष]] के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने [[पार्वती]] के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और शिव को प्रसन्न कर उनसे [[विवाह]] किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।"<ref>{{cite web |url= http://hindi.pardaphash.com/news/--762699/762699.html#.U8eEbkB9sdV|title= तो इसीलिए भोलेनाथ के लिए विशेष हो गया सावन का महिना|accessmonthday= 17 जुलाई|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= पर्दाफाश टुडे.कॉम|language= हिन्दी}}</ref>
  
 
*इसके अतिरिक्त एक अन्य कथा के अनुसार, मरकंडू ऋषि के पुत्र [[मारकण्डेय]] ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर [[शिव]] की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली [[मंत्र]] शक्तियों के सामने मृत्यु के [[यमराज|देवता यमराज]] भी नतमस्तक हो गए थे।
 
*इसके अतिरिक्त एक अन्य कथा के अनुसार, मरकंडू ऋषि के पुत्र [[मारकण्डेय]] ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर [[शिव]] की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली [[मंत्र]] शक्तियों के सामने मृत्यु के [[यमराज|देवता यमराज]] भी नतमस्तक हो गए थे।
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*भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में [[पृथ्वी]] पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत आर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक [[वर्ष]] सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।
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*[[समुद्र मंथन]] के समय जब [[हलाहल विष]] निकला तो उसकी उग्र लपटों से सभी प्राणियों के प्राण संकट में पड़ गए। तब भगवान शिव ने उसे अपने कंठ में धारण किया, लेकिन उसे अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया, जिससे उनका कण्ठ नीला हो गया और वे 'नीलकण्ठ' कहलाए। [[ब्रह्मा|ब्रह्मा जी]] की आज्ञा पाकर देवताओं ने भगवान शिव का जलाभिषेक किया और उन्हें जड़ी बूटियों का भोग लगाया। इस प्रथा के उपरांत से ही भगवान शिव का जलाभिषेक होने लगा। इस अद्भुत घटना के कारण शिव को सावन अति प्रिय है।
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*शास्त्रों में वर्णित है कि सावन महीने में [[भगवान विष्णु]] योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिए ये समय भक्तों, [[साधु]]-संतों सभी के लिए अमूल्य होता है। यह चार महीनों में होने वाला एक वैदिक यज्ञ है, जो एक प्रकार का पौराणिक व्रत है, जिसे 'चौमासा' भी कहा जाता है; तत्पश्चात सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं। इसलिए सावन के प्रधान [[देवता]] भगवान शिव बन जाते हैं।<ref>{{cite web |url= http://teznews.com/lord-shiva-occasion-shravan/|title= सावन का महिना शिव को प्रिय क्यों|accessmonthday=17 जुलाई|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=तेज न्यूज.कॉम|language= हिन्दी}}</ref>
 
==सावन के सोमवार==
 
==सावन के सोमवार==
 
श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को [[शिव]] जी के व्रत किए जाते हैं। श्रावण मास में शिव जी की पूजा का विशेष विधान हैं। कुछ भक्त जन तो पूरे मास ही भगवान शिव की पूजा-आराधना और व्रत करते हैं। अधिकांश व्यक्ति केवल श्रावण मास में पड़ने वाले सोमवार का ही व्रत करते हैं। श्रावण मास के सोमवारों में शिव जी के व्रतों, पूजा और [[शिव जी की आरती]] का विशेष महत्त्व है। शिव जी के ये व्रत शुभदायी और फलदायी होते हैं। इन व्रतों को करने वाले सभी भक्तों से भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं। यह व्रत भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए किया जाता है। इस व्रत में भगवान शिव का पूजन करके एक समय ही भोजन किया जाता है। इस व्रत में भगवान शिव और माता [[पार्वती देवी|पार्वती]] का ध्यान कर शिव पंचाक्षर मन्त्र का जप करते हुए पूजन करना चाहिए।
 
श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को [[शिव]] जी के व्रत किए जाते हैं। श्रावण मास में शिव जी की पूजा का विशेष विधान हैं। कुछ भक्त जन तो पूरे मास ही भगवान शिव की पूजा-आराधना और व्रत करते हैं। अधिकांश व्यक्ति केवल श्रावण मास में पड़ने वाले सोमवार का ही व्रत करते हैं। श्रावण मास के सोमवारों में शिव जी के व्रतों, पूजा और [[शिव जी की आरती]] का विशेष महत्त्व है। शिव जी के ये व्रत शुभदायी और फलदायी होते हैं। इन व्रतों को करने वाले सभी भक्तों से भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं। यह व्रत भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए किया जाता है। इस व्रत में भगवान शिव का पूजन करके एक समय ही भोजन किया जाता है। इस व्रत में भगवान शिव और माता [[पार्वती देवी|पार्वती]] का ध्यान कर शिव पंचाक्षर मन्त्र का जप करते हुए पूजन करना चाहिए।
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==संबंधित लेख==
 
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08:37, 17 जुलाई 2014 का अवतरण

श्रावण
रक्षाबंधन के अवसर पर भाई को राखी बांधती बहन
विवरण श्रावण अथवा सावन हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का पांचवा महीना है। इसे वर्षा ऋतु का महीना या पावस ॠतु भी कहा जाता है क्योंकि इस समय बहुत वर्षा होती है।
अंग्रेज़ी जुलाई-अगस्त
हिजरी माह रमज़ान - शव्वाल
व्रत एवं त्योहार 'हरियाली तीज', 'रक्षाबन्धन', 'नागपंचमी', 'कामिदा एकादशी', 'पुत्रदा एकादशी'
पिछला आषाढ़
अगला भाद्रपद
विशेष श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को शिव जी के व्रत किए जाते हैं। कुछ भक्तजन तो पूरे मास ही भगवान शिव की पूजा-आराधना और व्रत करते हैं। श्रावण मास के सोमवारों में शिव जी के व्रतों, पूजा और शिव जी की आरती का विशेष महत्त्व है।
अन्य जानकारी श्रावण पूर्णिमा को दक्षिण भारत में नारियली पूर्णिमा व अवनी अवित्तम, मध्य भारत में कजरी पूनम, उत्तर भारत में रक्षाबन्धन और गुजरात में पवित्रोपना के रूप में मनाया जाता है।

श्रावण अथवा सावन हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का पाँचवा महीना, जो ईस्वी कलेंडर के जुलाई या अगस्त माह में पड़ता है। इसे वर्षा ऋतु का महीना या 'पावस ऋतु' भी कहा जाता है, क्योंकि इस समय बहुत वर्षा होती है। इस माह में अनेक महत्त्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं, जिसमें 'हरियाली तीज', 'रक्षाबन्धन', 'नागपंचमी' आदि प्रमुख हैं। 'श्रावण पूर्णिमा' को दक्षिण भारत में 'नारियली पूर्णिमा' व 'अवनी अवित्तम', मध्य भारत में 'कजरी पूनम', उत्तर भारत में 'रक्षाबंधन' और गुजरात में 'पवित्रोपना' के रूप में मनाया जाता है। त्योहारों की विविधता ही तो भारत की विशिष्टता की पहचान है। 'श्रावण' यानी सावन माह में भगवान शिव की अराधना का विशेष महत्त्व है। इस माह में पड़ने वाले सोमवार "सावन के सोमवार" कहे जाते हैं, जिनमें स्त्रियाँ तथा विशेषतौर से कुंवारी युवतियाँ भगवान शिव के निमित्त व्रत आदि रखती हैं।

शिव का प्रिय महीना

सावन माह के बारे में एक पौराणिक कथा है कि- "जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो भगवान भोलेनाथ ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।"[1]

  • इसके अतिरिक्त एक अन्य कथा के अनुसार, मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।
  • भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत आर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।
  • समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला तो उसकी उग्र लपटों से सभी प्राणियों के प्राण संकट में पड़ गए। तब भगवान शिव ने उसे अपने कंठ में धारण किया, लेकिन उसे अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया, जिससे उनका कण्ठ नीला हो गया और वे 'नीलकण्ठ' कहलाए। ब्रह्मा जी की आज्ञा पाकर देवताओं ने भगवान शिव का जलाभिषेक किया और उन्हें जड़ी बूटियों का भोग लगाया। इस प्रथा के उपरांत से ही भगवान शिव का जलाभिषेक होने लगा। इस अद्भुत घटना के कारण शिव को सावन अति प्रिय है।
  • शास्त्रों में वर्णित है कि सावन महीने में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिए ये समय भक्तों, साधु-संतों सभी के लिए अमूल्य होता है। यह चार महीनों में होने वाला एक वैदिक यज्ञ है, जो एक प्रकार का पौराणिक व्रत है, जिसे 'चौमासा' भी कहा जाता है; तत्पश्चात सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं। इसलिए सावन के प्रधान देवता भगवान शिव बन जाते हैं।[2]

सावन के सोमवार

श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को शिव जी के व्रत किए जाते हैं। श्रावण मास में शिव जी की पूजा का विशेष विधान हैं। कुछ भक्त जन तो पूरे मास ही भगवान शिव की पूजा-आराधना और व्रत करते हैं। अधिकांश व्यक्ति केवल श्रावण मास में पड़ने वाले सोमवार का ही व्रत करते हैं। श्रावण मास के सोमवारों में शिव जी के व्रतों, पूजा और शिव जी की आरती का विशेष महत्त्व है। शिव जी के ये व्रत शुभदायी और फलदायी होते हैं। इन व्रतों को करने वाले सभी भक्तों से भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं। यह व्रत भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए किया जाता है। इस व्रत में भगवान शिव का पूजन करके एक समय ही भोजन किया जाता है। इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान कर शिव पंचाक्षर मन्त्र का जप करते हुए पूजन करना चाहिए।

शिव पूजा का विधान

इससे भगवान शिव प्रसन्न होकर मनवांछित फल देते हैं। सावन के प्रत्येक सोमवार को श्री गणेश जी, शिव जी, पार्वती जी तथा नन्दी की पूजा करने का विधान है। शिव जी की पूजा में जल, दूध, दही, चीनी, घी, शहद, पंचामृत, कलावा, वस्त्र, यज्ञोपवीत, चंदन, रोली, चावल, फूल, बिल्वपत्र, दूर्वा, विजया, आक, धतूरा, कमलगट्टा, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, पंचमेवा, धूप, दीप, दक्षिण सहित पूजा करने का विधान है। साथ ही कपूर से आरती करके भजन-कीर्तन और रात्रि जागरण भी करना चाहिए। पूजन के पश्चात कथा भी सुननी चाहिए और किसी ब्राह्मण से रुद्रभिषेक कराना चाहिए। ऐसा करने से भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न होकर सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं। सोमवार का व्रत करने से पुत्र, धन, विद्या आदि मन वांछित फल की प्राप्ति होती है। इस दिन सोलह सोमवार व्रत कथा का महात्म्य सुनाना चाहिए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. तो इसीलिए भोलेनाथ के लिए विशेष हो गया सावन का महिना (हिन्दी) पर्दाफाश टुडे.कॉम। अभिगमन तिथि: 17 जुलाई, 2014।
  2. सावन का महिना शिव को प्रिय क्यों (हिन्दी) तेज न्यूज.कॉम। अभिगमन तिथि: 17 जुलाई, 2014।

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