श्रेणी:पद्य साहित्य
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"पद्य साहित्य" श्रेणी में पृष्ठ
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- अँगरी पहिरि कूँड़ि सिर धरहीं
- अँधेरे का दीपक -हरिवंश राय बच्चन
- अँधेरे में (कविता) -गजानन माधव मुक्तिबोध
- अँधेरे में रौशन होती चीज़े -सुभाष रस्तोगी
- अंखियां तो झाईं परी -कबीर
- अंखियां हरि-दरसन की भूखी -सूरदास
- अंखियां हरि–दरसन की प्यासी -सूरदास
- अंग अंग चंदन वन -कन्हैयालाल नंदन
- अंगद अरु हनुमंत प्रबेसा
- अंगद कहइ जाउँ मैं पारा
- अंगद तहीं बालि कर बालक
- अंगद नाम बालि कर बेटा
- अंगद बचन बिनीत सुनि
- अंगद बचन सुन कपि बीरा
- अंगद सहित करहु तुम्ह राजू
- अंगद सुना पवनसुत
- अंगद स्वामिभक्त तव जाती
- अंगदादि कपि मुरुछित
- अंगारे को तुम ने छुआ -कन्हैयालाल नंदन
- अंजलि के फूल गिरे जाते हैं -माखन लाल चतुर्वेदी
- अंडकोस प्रति प्रति निज रूपा
- अंतर प्रेम तासु पहिचाना
- अंतरजामी रामु सकुच
- अंतरजामी रामु सिय
- अंतरधान भए अस भाषी
- अंतरधान भयउ छन एका
- अंतरहित सुर आसिष देहीं
- अंतरात्मा की सुनो -रश्मि प्रभा
- अंतरिक्ष -अनूप सेठी
- अंतावरीं गहि उड़त गीध
- अंतिम बूँद -गोपालदास नीरज
- अंधियार ढल कर ही रहेगा -गोपालदास नीरज
- अंब एक दुखु मोहि बिसेषी
- अकथ अलौकिक तीरथराऊ
- अक़ायद वहम है मज़हब -साहिर लुधियानवी
- अखरावट -जायसी
- अखि लखि लै नहीं -रैदास
- अखिल बिस्व यह मोर उपाया
- अग जग जीव नाग नर देवा
- अग जगमय जग मम उपराजा
- अग जगमय सब रहित बिरागी
- अगनित रबि ससि सिव चतुरानन
- अगम पंथ बनभूमि पहारा
- अगम सनेह भरत रघुबर को
- अगम सबहि बरनत बरबरनी
- अगर धूप बहु जनु अँधिआरी
- अगवानन्ह जब दीखि बराता
- अगुन अदभ्र गिरा गोतीता
- अगुन अमान जानि तेहि
- अगुन सगुन गुन मंदिर सुंदर
- अगुन सगुन दुइ ब्रह्म सरूपा
- अग्निधर्म -कन्हैयालाल नंदन
- अग्निरेखा -महादेवी वर्मा
- अग्य अकोबिद अंध अभागी
- अच्छत अंकुर लोचन लाजा
- अच्छा जो खफा हम से हो तुम ऐ सनम अच्छा -इंशा अल्ला ख़ाँ
- अच्छे मीठे फल चाख चाख -मीरां
- अच्युत (पद्मरचना)
- अज ब्यापकमेकमनादि सदा
- अजनबी की आवाज़ -आरसी प्रसाद सिंह
- अजब सलुनी प्यारी मृगया नैनों -मीरां
- अजर अमर गुननिधि सुत होहू
- अजर अमर सो जीति न जाई
- अजसु होउ जग सुजसु नसाऊ
- अजहुँ जासु उर सपनेहुँ काऊ
- अजहुँ न छाया मिटति तुम्हारी
- अजहुँ बच्छ बलि धीरज धरहू
- अजहूँ कछु संसउ मन मोरें
- अजहूँ चेति अचेत -सूरदास
- अजहूँ मानहु कहा हमारा
- अजहूँ हृदय जरत तेहि आँचा
- अजा अनादि सक्ति अबिनासिनि
- अजिन बसन फल असन
- अजेय -अजेय
- अज्ञात देश से आना -भगवतीचरण वर्मा
- अट नहीं रही है -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
- अटनु राम गिरि बन तापस थल
- अति अनियारे मानौ सान दै सुधारे -रहीम
- अति अनुराग अंब उर लाए
- अति अनूप जहँ जनक निवासू
- अति अपार जे सरित
- अति आदर खगपति कर कीन्हा
- अति आदर दोउ तनय बोलाए
- अति आनंद उमगि अनुरागा
- अति आरति कहि कथा सुनाई
- अति आरति पूछउँ सुरराया
- अति आरति सब पूँछहिं रानी
- अति उतंग गिरि पादप
- अति उतंग जलनिधि चहुँ पासा
- अति कृपाल रघुनायक
- अति कोमल रघुबीर सुभाऊ
- अति खल जे बिषई बग कागा
- अति गर्ब गनइ न सगुन
- अति गहगहे बाजने बाजे
- अति जीवन -अजेय
- अति डरु उतरु देत नृपु नाहीं
- अति दीन मलीन दुखी नितहीं
- अति दुर्लभ कैवल्य परम पद
- अति प्रसन्न रघुनाथहि जानी
- अति प्रिय मोहि इहाँ के बासी
- अति बड़ि मोरि ढिठाई खोरी
- अति बल मधु कैटभ जेहिं मारे
- अति बिचित्र बाहिनी बिराजी
- अति बिचित्र रघुपति
- अति बिनीत मृदु सीतल बानी
- अति बिषाद बस लोग लोगाईं
- अति बिसमय पुनि पुनि पछिताई
- अति बिसाल तरु एक उपारा
- अति रिस बोले बचन कठोरा
- अति लघु बात लागि दुखु पावा
- अति लालसा बसहिं मन माहीं
- अति सप्रेम सिय पाँय परि
- अति सभीत कह सुनु हनुमाना
- अति सरोष माखे लखनु
- अति हरष मन तन पुलक लोचन
- अति हरषु राजसमाज दुहु
- अतिबल कुंभकरन अस भ्राता
- अतिसय प्रीति देखि रघुराई
- अतुलित बल प्रताप द्वौ भ्राता
- अतुलित भुज प्रताप बल धामः
- अत्रि आदि मुनिबर बहु बसहीं
- अत्रि कहेउ तब भरत
- अदालत -अवतार एनगिल
- अदावत दिल में -वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’
- अद्भुत रामायण
- अधम ते अधम अधम अति नारी
- अधर लोभ जम दसन कराला
- अधिक सनेहँ गोद बैठारी
- अधिकार -महादेवी वर्मा
- अध्यात्मरामायण
- अनरथु अवध अरंभेउ जब तें
- अनर्घराघवम्
- अनल आकासाँ घर किया -कबीर
- अनवद्य अखंड न गोचर गो
- अनहित तोर प्रिया केइँ कीन्हा
- अनामिका (कविता संग्रह)
- अनी सुहेली सेल की -कबीर
- अनुचित आजु कहब अस मोरा
- अनुचित उचित काजु किछु होऊ
- अनुचित उचित बिचारु
- अनुचित नाथ न मानब मोरा
- अनुचित बचत न मानिए -रहीम
- अनुज क्रिया करि सागर तीरा
- अनुज जानकी सहित
- अनुज जानकी सहित प्रभु
- अनुज बधू भगिनी सुत नारी
- अनुज समेत गए प्रभु तहवाँ
- अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना
- अनुज सहित मिलि ढिग बैठारी
- अनुजन्ह संजुत भोजन करहीं
- अनुभव -शिवदीन राम जोशी
- अनुभूति -सुमित्रानंदन पंत
- अनुराग बाँसुरी -नूर मुहम्मद
- अनुरूप बर दुलहिनि परस्पर
- अनुसुइया के पद गहि सीता
- अनूठी बातें -अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'
- अनूप रूप भूपतिं
- अनोखा दान -सुभद्रा कुमारी चौहान
- अन्तर दावा लगि रहै -रहीम
- अन्हवाए प्रभु तीनिउ भाई
- अपडर डरेउँ न सोच समूलें
- अपतु अजामिलु गजु गनिकाऊ
- अपनी गरज हो मिटी -मीरां
- अपनी महफ़िल -कन्हैयालाल नंदन
- अपने माज़ी के तसव्वुर -साहिर लुधियानवी
- अपनें चलत न आजु लगि
- अपर हेतु सुनु सैलकुमारी
- अपीलें बहुत अम्न की आ रही हैं -शिवकुमार बिलगरामी
- अब अति कीन्हेहु भरत भल
- अब अपलोकु सोकु सुत तोरा
- अब अभिलाषु एकु मन मोरें
- अब आए या न आए -साहिर लुधियानवी
- अब कछु नाथ न चाहिअ मोरें
- अब करि कृपा बिलोकि
- अब कहाँ रस्म घर लुटाने की -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
- अब कहु कुसल जाउँ बलिहारी
- अब कहु कुसल बालि कहँ अहई
- अब कुछ मरम बिचारा -रैदास
- अब कृपाल जस आयसु होई
- अब कृपाल निज भगति पावनी
- अब कृपाल मोहि सो मत भावा
- अब कै माधव, मोहिं उधारि -सूरदास
- अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी -रैदास
- अब कैसे बीते ये उम्र सारी -वंदना गुप्ता
- अब गृह जाहु सखा
- अब जन गृह पुनीत प्रभु कीजे
- अब जनि कोउ माखै भट मानी
- अब जनि देइ दोसु मोहि लोगू
- अब जनि बतबढ़ाव खल करही
- अब जाना मैं अवध प्रभावा
- अब जानी मैं श्री चतुराई
- अब जौं तुम्हहि सुता पर नेहू
- अब तुम रूठो -गोपालदास नीरज
- अब तुम्ह बिनय मोरि सुनि लेहू
- अब तुम्हारा प्यार भी -गोपालदास नीरज
- अब तें रति तव नाथ
- अब तेरी सरन आयो राम -मलूकदास
- अब तो निभायाँ सरेगी, बांह गहेकी लाज -मीरां
- अब तो मज़हब -गोपालदास नीरज
- अब तो मेरा राम -मीरां