सत्यव्रत

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Disamb2.jpg सत्यव्रत एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- सत्यव्रत (बहुविकल्पी)

सत्यव्रत कौशल देश के ब्राह्मण देवदत्त का पुत्र था। उसका प्रारम्भिक नाम 'उतथ्य' था। देवदत्त ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से एक यज्ञ किया। यज्ञ के उपरांत गोभिल नामक मुनि का स्वर भंग हो गया, जिस कारण देवदत्त ने उसे काफ़ी भला-बुरा कहा। गोभिल मुनि ने क्रृद्ध होकर उससे कहा कि उसके यहाँ जो पुत्र उत्पन्न होगा, वह अत्यंत मूर्ख होगा।

  • मुनि ने जो वचन कहे, उन्हें सुनकर देवदत्त अपने कहे पर पश्चाताप करने लगा।
  • देवदत्त के अनुनय-विनय करने पर गोभिल मुनि ने कहा कि मूर्ख होने पर भी तुम्हारा पुत्र कालान्तर में विद्वान हो जायेगा।
  • कुछ समय बाद देवदत्त के यहाँ एक पुत्र उत्पन्न हुआ, और उसका नाम 'उतथ्य' रखा गया।
  • उतथ्य मुनि द्वारा कहे गये वचनों के अनुसार वज्रमूर्ख निकला।
  • अपनी मूर्खता के कारण सब लोगों से तिरस्कृत होने पर वह वन में रहने लगा।
  • उसकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वह सत्य पर अटल रहता था।
  • एक बार एक शिकारी ने सूअर को घायल कर दिया, जो उतथ्य के आश्रम से होता हुआ जंगल में जा छिपा।
  • घायल सूअर को देखकर उतथ्य के मुँह से 'ऐं-ऐं' निकला, ('ऐं-ऐं' देवी का बीजमंत्र है)।
  • फलस्वरूप उतथ्य को अनायास ही बुद्धि और विद्या की प्राप्ति होने लगी।
  • शिकारी सूअर के विषय में जानकारी करता हुआ उतथ्य के आश्रम में पहुँचा।
  • सूअर को बचाने तथा झूठ न बोलने की इच्छा से उसने एक श्लोक बोला "जो जिह्वा बोलती है, वह देखती नहीं, जो आँख देखती है, वह बोलती नहीं।"
  • उतथ्य के इन वचनों को सुनकर शिकारी वहाँ से वापस चला गया।
  • मुनि उतथ्य धीरे-धीरे प्रसिद्ध व विद्वान हो गया और् सत्यवादी होने के कारण वह 'सत्यव्रत' नाम से विख्यात हुआ।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय मिथक कोश |लेखक: डॉ. उषा पुरी विद्यावाचस्पति |प्रकाशक: नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 332 |

  1. देवा भागवत, 3|10-11

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