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सिंह छोटे [[बारहसिंगा]] और बबून से लेकर भैंस और दरियाई घोड़े जैसे बड़े जंतुओं तक, कई तरह के जानवरों का शिकार करता है, लेकिन वह मध्यम से बड़े आकार के खुरवाले जानवरों, जैसे विल्डरबीस्ट, ज़ेब्रा, इंपाला और अन्य मृगों का शिकार करना पसंद करता है। सिंह किसी भी प्रकार के प्राप्त मांस को खा लेता है, चाहे वह सड़ा हो या ताज़ा, जिसे वह बल प्रयोग कर या डराकर लकड़बग्घे से हासिल कर लेता है। झुंड के लिए अधिकांश शिकार सिंहनी करती है। शिकार करते समय सिंह हवा की दिशा का ध्यान नहीं रखता, जो इसके शिकार तक इसकी गंध पहुँचा देती है। सिंह थोड़ा सा भागकर थक जाता है, इसीलिए शिकार में इसे अधिकतर असफलता मिलती है। इसीलिए सिंहनी या सिंह, हर उपलब्ध आवरण का इस्तेमाल करते हुए धैर्यपूर्वक शिकार का पीछा करते हैं और फिर अचानक छोटी किंतु तेज़ दौड़ से शिकार पर झपट पड़ते हैं। शिकार पर कूदने के बाद सिंहनी उसकी गर्दन पर झपटकर उसका दम घुटने तक दांत गड़ाए रहती है। इतने में परिवार के अन्य सदस्य शिकार खाने के लिए घेरा बना लेते हैं। शिकार के मांस के लिए होने वाली झड़पों में नर को सर्वाधिक और शावकों को कम या कुछ भी नहीं मिलता। सिंहनियाँ कई बार समूह में शिकार करती हैं। समूह के सदस्य विपरीत दिशाओं से शिकार पशुओं के झुंड को घेरकर भगदड़ में शिकार का प्रयास करते हैं।
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सिंह छोटे [[बारहसिंगा]] और बबून से लेकर भैंस और [[दरियाई घोड़ा|दरियाई घोड़े]] जैसे बड़े जंतुओं तक, कई तरह के जानवरों का शिकार करता है, लेकिन वह मध्यम से बड़े आकार के खुरवाले जानवरों, जैसे विल्डरबीस्ट, ज़ेब्रा, इंपाला और अन्य मृगों का शिकार करना पसंद करता है। सिंह किसी भी प्रकार के प्राप्त मांस को खा लेता है, चाहे वह सड़ा हो या ताज़ा, जिसे वह बल प्रयोग कर या डराकर लकड़बग्घे से हासिल कर लेता है। झुंड के लिए अधिकांश शिकार सिंहनी करती है। शिकार करते समय सिंह हवा की दिशा का ध्यान नहीं रखता, जो इसके शिकार तक इसकी गंध पहुँचा देती है। सिंह थोड़ा सा भागकर थक जाता है, इसीलिए शिकार में इसे अधिकतर असफलता मिलती है। इसीलिए सिंहनी या सिंह, हर उपलब्ध आवरण का इस्तेमाल करते हुए धैर्यपूर्वक शिकार का पीछा करते हैं और फिर अचानक छोटी किंतु तेज़ दौड़ से शिकार पर झपट पड़ते हैं। शिकार पर कूदने के बाद सिंहनी उसकी गर्दन पर झपटकर उसका दम घुटने तक दांत गड़ाए रहती है। इतने में परिवार के अन्य सदस्य शिकार खाने के लिए घेरा बना लेते हैं। शिकार के मांस के लिए होने वाली झड़पों में नर को सर्वाधिक और शावकों को कम या कुछ भी नहीं मिलता। सिंहनियाँ कई बार समूह में शिकार करती हैं। समूह के सदस्य विपरीत दिशाओं से शिकार पशुओं के झुंड को घेरकर भगदड़ में शिकार का प्रयास करते हैं।
  
 
सिंह और सिंहनी पेट भर शिकार का मांस खा लेते हैं और फिर उसके बाद इसके समीप ही कई दिनों तक आराम करते हैं। एक बार में 34 किलोग्राम से अधिक मांस खाने के बाद एक वयस्क नर दुबारा शिकार की खोज में जाने से पहले एक सप्ताह तक विश्राम कर सकता है। यदि क्षेत्र में शिकार बहुतायक में है, तो नर और मादा, दोनों एक दिन में दो या तीन घंटे ही शिकार की खोज में निकलते हैं, जबकि क़रीब 20 घंटे विश्राम करने, सोने और बैठने में गुज़ार देते हैं।
 
सिंह और सिंहनी पेट भर शिकार का मांस खा लेते हैं और फिर उसके बाद इसके समीप ही कई दिनों तक आराम करते हैं। एक बार में 34 किलोग्राम से अधिक मांस खाने के बाद एक वयस्क नर दुबारा शिकार की खोज में जाने से पहले एक सप्ताह तक विश्राम कर सकता है। यदि क्षेत्र में शिकार बहुतायक में है, तो नर और मादा, दोनों एक दिन में दो या तीन घंटे ही शिकार की खोज में निकलते हैं, जबकि क़रीब 20 घंटे विश्राम करने, सोने और बैठने में गुज़ार देते हैं।

07:53, 1 अक्टूबर 2011 का अवतरण

सिंह
Lion.jpg
जगत जंतु (Animalia)
संघ कॉर्डेटा (Chordata)
वर्ग स्तनपायी (Mammalia)
गण Carnivora
कुल Felidae
जाति Panthera leo
प्रजाति Panthera
द्विपद नाम Panthera leo

सिंह (लिओ या पैंथरा लिओ), फैलिडी कुल का बड़ा और शक्तिशाली विड़ाल, बाघ के बाद दूसरा बड़ा विड़ाल है। कहानियों में जंगल का राजा कहलाने वाला यह जानवर प्राचीन काल से ही सबसे अधिक जाना-पहचाना जंगली पशु रहा है, अब यह मुख्यतः अफ़्रीका में सहारा के दक्षिणी क्षेत्र में पाया जाता है। एशियाई नस्ल के कुछ सौ सिंह भारत के गुजरात राज्य के गिर राष्ट्रीय उद्यान में कड़े संरक्षण में रह रहे हैं। सिंह के पसंदीदा पर्यावासों में घास के खुले मैदान हैं। क़ैद में सिंह का अन्य विड़ालों के साथ प्रजनन करवाया जाता है। सिंह और मादा बाघ के वर्णसंकर को लाइगर कहते हैं, जबकि बाघ और मादा सिंह से टाइअगॉन और तेंदुए और मादा सिंह से लिओपोन पैदा होते हैं। अमेरिकी, मैक्सिकी या पहाड़ी सिंह फ़ेलिसी जाति के नई दुनिया के सदस्य हैं।

रूप और आकृति

सिंह लंबे शरीर, छोटे पैर, बड़े सिर व मज़बूत माँसपेशियों वाला विडाल है। इसमें नर व मादा के आकार-प्रकार में भिन्नता पाई जाती है।

नर
  • एक पूर्ण वयस्क नर लगभग 1.8 मीटर से 2.1 मीटर लंबा होता है, जिसमें इसकी 1 मीटर लंबी पूँछ शामिल नहीं है। कंधे तक इसकी ऊँचाई लगभग 1.2 मीटर और वज़न 170 किलोग्राम से 230 किलोग्राम के बीच होता है।
  • सिंह की खाल का रंग हल्का पीला, नारंगी-भूरा या चाँदी जैसे स्लेटी से लेकर गाढ़े भूरे रंग का होता है और इसकी पूँछ के सिर पर खाल की तुलना में गहरे रंग के बालों का गुच्छा होता है।
  • नर की विशेषता उसके अयाल होते हैं, जो अलग-अलग सिंहों में भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। कुछ में अयाल बिल्कुल नहीं होते, कुछ में चेहरे पर झालर की तरह होते हैं और कुछ में ये लंबे और लहराते हुए होते हैं, जो सिर के पीछे से शुरू होते हुए गर्दन, कंधे को ढकते हुए गले और छाती से झालर बनाते हुए पेट से जुड़े होते हैं। कुछ में अयाल और झालर अत्यंत गहरे रंग, लगभग काले रंग के होते हैं। जो सिंह को राजसी अंदाज़ प्रदान करते हैं।
मादा
  • मादा, यानी सिंहनी छोटे क़द की होती है, जिसकी लंबाई 1.5 मीटर कंधे तक ऊँचाई 0.9 मीटर से 1 मीटर तक और वज़न 120 से 180 किलोग्राम होता है।
  • सिंहनी अधिकतर भूरी-पीली या रेतीले रंग की होती है।

निवास

सिंह बड़े विडालों में एकमात्र ऐसा जानवर है, जो समूह या झुंड में रहता है। एक समूह अथवा झुंड में कई पीढ़ियों की एक-दूसरे से संबंधित सिंहनियाँ होती हैं, जिनके साथ शावक और एक या दो वयस्क नर होते हैं, जो अपनी गृहक्षेत्र की सीमा की रक्षा करते हैं और मादा के साथ सहवास करते हैं। नर सिंह परिवार में बाहर से आते हैं, जो परिवार को अन्य बाहरी नरों से बचाने की अपनी क्षमता के अनुसार, उस परिवार में कुछ महीनों से कई साल तक रहते हैं। एक परिवार में कम से कम 4 से लेकर अधिकतम 37 सदस्य तक हो सकते हैं, लेकिन औसतन इसमें 15 सदस्य होते हैं। प्रत्येक परिवार की अपनी निर्धारित क्षेत्र-सीमा होती है; जहाँ शिकार बहुतायत में उपलब्ध हो, वहाँ क्षेत्र-सीमा 20 वर्ग किलोमीटर तक सीमित हो सकती है, लेकिन शिकार की कमी वाले क्षेत्रों में यह 400 वर्ग किलोमीटर तक होती है। नर शावकों को तीन वर्ष का होने पर परिवार से निष्कासित कर दिया जाता है और यह तब तक (पाँच वर्ष की आयु तक) ख़ानाबदोश की तरह घूमता रहता है, जब तक वह नये किसी झुंड पर क़ब्ज़ा करने की क्षमता न हासिल कर ले। लेकिन कई वयस्क नर जीवनपर्यंत ख़ानाबदोश रहते हैं। कुछ मादा शावक यौन परिपक्वता हासिल करने पर परिवार में ही रहती हैं, जबकि शेष को अन्य परिवारों में जाने के लिए बाध्य कर दिया जाता है। एक परिवार के सदस्य दिन में भिन्न-भिन्न समूहों में घूमते हैं, लेकिन शिकार का पीछा करने या शिकार खाने के लिए ये इकट्ठा हो सकते हैं।

उपस्थिति की घोषणा

सिंह अपनी गर्जना और गंध के निशान से अपने क्षेत्र की घोषणा करता है। सिंह की विख्यात गर्जना आमतौर पर रात के शिकार से पहते शाम को तथा फिर प्रभात होने पर उठने से पहले होती है। नर सिंह झाड़ियों, पेड़ों और मौदान पर पेशाब द्वारा तीखी गंध छोड़कर भी अपनी उपस्थिति की घोषणा करता है। झाड़ियों से शरीर रगड़ने और मलत्याग द्वारा भी गंध छोड़ी जाती है।

शिकार

सिंह छोटे बारहसिंगा और बबून से लेकर भैंस और दरियाई घोड़े जैसे बड़े जंतुओं तक, कई तरह के जानवरों का शिकार करता है, लेकिन वह मध्यम से बड़े आकार के खुरवाले जानवरों, जैसे विल्डरबीस्ट, ज़ेब्रा, इंपाला और अन्य मृगों का शिकार करना पसंद करता है। सिंह किसी भी प्रकार के प्राप्त मांस को खा लेता है, चाहे वह सड़ा हो या ताज़ा, जिसे वह बल प्रयोग कर या डराकर लकड़बग्घे से हासिल कर लेता है। झुंड के लिए अधिकांश शिकार सिंहनी करती है। शिकार करते समय सिंह हवा की दिशा का ध्यान नहीं रखता, जो इसके शिकार तक इसकी गंध पहुँचा देती है। सिंह थोड़ा सा भागकर थक जाता है, इसीलिए शिकार में इसे अधिकतर असफलता मिलती है। इसीलिए सिंहनी या सिंह, हर उपलब्ध आवरण का इस्तेमाल करते हुए धैर्यपूर्वक शिकार का पीछा करते हैं और फिर अचानक छोटी किंतु तेज़ दौड़ से शिकार पर झपट पड़ते हैं। शिकार पर कूदने के बाद सिंहनी उसकी गर्दन पर झपटकर उसका दम घुटने तक दांत गड़ाए रहती है। इतने में परिवार के अन्य सदस्य शिकार खाने के लिए घेरा बना लेते हैं। शिकार के मांस के लिए होने वाली झड़पों में नर को सर्वाधिक और शावकों को कम या कुछ भी नहीं मिलता। सिंहनियाँ कई बार समूह में शिकार करती हैं। समूह के सदस्य विपरीत दिशाओं से शिकार पशुओं के झुंड को घेरकर भगदड़ में शिकार का प्रयास करते हैं।

सिंह और सिंहनी पेट भर शिकार का मांस खा लेते हैं और फिर उसके बाद इसके समीप ही कई दिनों तक आराम करते हैं। एक बार में 34 किलोग्राम से अधिक मांस खाने के बाद एक वयस्क नर दुबारा शिकार की खोज में जाने से पहले एक सप्ताह तक विश्राम कर सकता है। यदि क्षेत्र में शिकार बहुतायक में है, तो नर और मादा, दोनों एक दिन में दो या तीन घंटे ही शिकार की खोज में निकलते हैं, जबकि क़रीब 20 घंटे विश्राम करने, सोने और बैठने में गुज़ार देते हैं।

पारिवारिक इकाई

नर और मादा, दोनों बहुगामी होते हैं और वर्ष भर प्रजनन कर सकते हैं, लेकिन मादा आमतौर पर परिवार के एक या दो नरों से ही मैथुन करती है। क़ैद में सिंह अधिकत्र हर वर्ष प्रजनन करते हैं, लेकिन जंगल में ये दो वर्षों में एक से अधिक बार प्रजनन नहीं करते। गर्भावधि लगभग 108 दिनों की होती है और एक बार में एक से छह शावक जन्म ले सकते हैं। हालांकि औसतन दो से चार शावक ही जन्म लेते हैं। नवजात शिशु असहाय और बंद आंखों वाला होता है और इसकी मोटी त्वचा पर गहरे निशान होते हैं, जो उम्र के साथ-साथ मिट जाते हैं। तीन महीने की उम्र से शावक अपनी माँ का अनुसरण करने योग्य हो जाता हैं और छह से सात महीने का होने पर माँ का दूध पीना छोड़ देता है। 11 महीने का होने तक वह शिकार में भाग लेने लगता है। लेकिन संभवतः दो साल का होने तक वह अपने बूते जीवनयापन नहीं कर सकता है। उसमें यौन परिपक्वता तीन से चार वर्ष के बीच आती है। शावकों में मृत्युदर अधिक होती है और वयस्क आठ से दस वर्ष के अधिक नहीं जीते, जिसका मुख्य कारण है इंसानों और अन्य सिंहों द्वारा इन पर हमला तथा इनके शिकार द्वारा प्रतिरक्षा में चुभाए गए सींग और पैरों की मार, लेकिन बंदी अवस्था में सिंह 25 वर्ष या इससे भी अधिक जीवित रह सकता है।

विलुप्त

अभिनूतन युग, (प्लाइस्टोसीन 16 लाख से 10 हज़ार वर्ष पूर्व) के दौरान सिंहों का भौगोलिक विस्तार व्यापक था। संपूर्ण उत्तरी अमेरिका, अफ़्रीका, बाल्कन के अधिकांश भागों, अनातोलिया और मध्य-पूर्व से लेकर भारत तक इनका आवास था। लगभग 10 हज़ार वर्ष पूर्व वे उत्तरी अमेरिका से विलुप्त हो गए, लगभग 2 हज़ार वर्ष पूर्व बाल्कन से और ईसाईयों के धर्मयुद्ध के दौरान वे फ़िलिस्तीन से भी विलुप्त हो गए। 20वीं सदी के अंत मे इनकी संख्या घटकर 10 हज़ार ही रह गई। राष्ट्रीय उद्यानों के बाहर स्थित इनके पर्यावास के क्षेत्र कृषि में काम आने लगे। तंज़ानिया के सेरेंगेती और अन्य राष्ट्रीय उद्यानों में पर्यटको के आकर्षण का केंद्र होने के कारण इनका संरक्षण सुरक्षित प्रतीत होता है।


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