हरिशंकर शर्मा

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
हरिशंकर शर्मा
हरिशंकर शर्मा
पूरा नाम हरिशंकर शर्मा
जन्म 19 अगस्त, 1891, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
जन्म भूमि हरदुआगंज, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 9 मार्च, 1968
अभिभावक नाथूराम शंकर शर्मा
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र साहित्य, पत्रकारिता, लेखन
मुख्य रचनाएँ 'रत्नाकर', 'हिन्दुस्तानी कोश', 'अभिनव हिन्दी कोश', 'हिन्दी साहित्य परिचय', 'अंग्रेज़ी साहित्य परिचय', 'रामराज्य' आदि।
भाषा उर्दू, फ़ारसी, गुजराती तथा मराठी आदि।
पुरस्कार-उपाधि 'पद्मश्री'
प्रसिद्धि साहित्यकार, पत्रकार, व्यंग्यकार, लेखक
नागरिकता भारतीय
विशेष मैथिलीशरण गुप्त ने इनके लिए लिखा था कि- "हरिशंकर शर्मा के समान साधुमना और संत साहित्यकार कम होंगे। उनकी रचनाएँ देखकर उनकी सौम्य मूर्ति सम्मुख पाता हूँ।"
अन्य जानकारी आपने 'आर्यमित्र', 'भाग्योदय', 'आर्य संदेश', 'निराला', 'साधना', 'प्रभाकर', 'ज्ञानगंगा' तथा 'दैनिक दिग्विजय' आदि कई पत्र-पत्रिकाओं का कुशलता एवं स्वाभिमान के साथ सम्पादन किया था।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

हरिशंकर शर्मा (अंग्रेज़ी: Harishankar Sharma, जन्म- 19 अगस्त, 1891, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 9 मार्च, 1968) भारत के प्रसिद्ध साहित्यकार, कवि, लेखक, व्यंग्यकार और पत्रकार थे। उन्हें उर्दू, फ़ारसी, गुजराती तथा मराठी आदि भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। पंडित हरिशंकर शर्मा हिन्दी के कुछ गिने चुने हास्य लेखकों में से एक थे। इनकी गिनती अपने समय के उच्च कोटि के पत्रकारों में होती थी। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं का सफल सम्पादन किया था। अपनी रचनाओं के माध्यम से हरिशंकर शर्मा समाज में फैली रूढ़ियों, कुरीतियों तथा अन्य बुराइयों पर करारी चोट करते थे।

जन्म

पंडित हरिशंकर शर्मा का जन्म 19 अगस्त, सन 1891 ई. को उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ जनपद के हरदुआगंज कस्बे में हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित नाथूराम शंकर शर्मा था। बचपन से ही उन्हें घर में साहित्यिक वातारण मिला था, जिसका पंडित जी पर विशेष रूप से प्रभाव पड़ा। एक दिन वह भी आया कि वे राष्ट्र के मूर्धन्य साहित्यकारों में गिने जाने लगे थे। हरिशंकर शर्मा के पूज्य पिता पंडित नाथूराम शंकर शर्मा हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे।

शिक्षा

हरिशंकर शर्मा की शिक्षा विधिवत् किसी स्कूल अथवा काँलेज में नहीं हुई थी। घर पर रह कर ही उन्होंने उर्दू, फ़ारसी, गुजराती तथा मराठी आदि भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। पंडित जी के पिता के यहाँ अनेक साहित्यकार उनसें भेंट करने आया करते थे, जिनमें आचार्य पंडित पदमसिंह शर्मा प्रमुख थे। शर्मा जी अपने पिता के साथ इन साहित्यकारों की बातचीत को बड़े ध्यान से सुना करते थे। आगे चलकर इसका लाभ शर्मा जी को मिला और उनके संपर्क तथा प्रभाव से अपने पिता की भांति एक दिन वे स्वंय एक कवि, लेखक, पत्रकार एवं व्यंग्यकार के रूप में विख्यात हो गए।

व्यक्तित्व

  • व्यक्तित्व से हरिशंकर शर्मा स्वाभिमानी थे। प्रसिद्ध निबन्धकार बाबू गुलाबराय ने उनके बारे मे लिखा था- "समाज का कोई प्राणी अहम् से मुक्त नहीं है। शिक्षित समाज के भी निन्यानवे प्रतिशत जनों का अहम् दम्भ की सीमाओं में जकड़ा है। पंडित जी का सरल, सौम्य, स्वाभिमानी व्यक्तित्व उन सीमाओं से मुक्त है। उनका अहम् अपने लिए न होकर अपने साहित्य स्रष्टा वर्ग के लिए है। विनत के सामने वे स्वंय विनम्र हैं। हाथ जोड़कर अभिवादन करने वाले उन्हें पांव छूकर प्रणाम करने वालों से कम प्रिय नहीं हैं"।
  • प्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु प्रभाकर तो उनको सरलता की प्रतिमूर्ति मानते थे। उनके अनुसार- पंडित हरिशंकर शर्मा उस खेमे के व्यक्ति थे, जो परस्पर के संबध को सबसे अधिक महत्व देते थे। उनके भरे हुए चेहरे पर सौम्यता बिखरी रहती थी और उनके नयन एक उल्लास से चमकते रहते थे। वे हँसना खूब जानते थे। वे हिन्दी के गिने चुने हास्य लेखकों में से एक थे। नहीं जानता कि रचनाओं को पढ़कर वे कितने हंसते है, पर यह अवश्य जानता हूँ कि कुछ समय उनके पास बैठने पर विषाद दुःख, चिन्ता पास नहीं फटकती थी।
  • हरिशंकर शर्मा उत्तर प्रदेश के प्रमुख क्रान्तिकारियों में से एक क्रान्तिकारी थे। उनका झुकाव राजनीति की ओर था और भारत के क्रांतिकारियों के प्रति उनकी गहरी दिलचस्पी थी। उन दिनों सन् 1930 में कांग्रेस का आंदोलन पूरे जोर पर था और उसी प्रकार उसका दमन भी किया जा रहा था। हरिशंकर शर्मा की आँखों में आगरा जिले का हिंदुस्तानी डिप्टी कलेक्टर बहुत खटक रहा था, जो आंदोलनकारियों का दमन करने के लिए कुख्यात था। उन्हेे मालूम पड़ गया कि वह डिप्टी कलेक्टर आगरा से फिरोजाबाद पहुँच रहे है। हरिशंकर शर्मा ने बम बनाना सीख लिया था। उन्होंने बोतल के अंदर एक बोम तैयार किया और उसे अपने कपड़ो में छिपाकर एक ऐसे स्थान पर छिप गए, जिधर से वह डिप्टी कल्केटर निकलने वाला था। दुर्भाग्य से वह बम पहले ही फट गया और स्वयं हरिशंकर शर्मा लहूलुहान होकर भूमि पर पडे रहे। उनकी पहचान के एक सज्जन श्री राधारमण ने उन्हे अस्पताल पहुँचाया; पर वह बचाए नहीं जा सके। एक सुकुमार क्रांतिकारी अपना मौन बलिदान दे गए।[1]

उच्च कोटि के पत्रकार

हरिशंकर शर्मा उच्च कोटि के पत्रकार थे। 'आर्यमित्र' तथा 'भाग्योदय' के अतिरिक्त आपने, 'आर्य संदेश', 'निराला', 'साधना', 'प्रभाकर', 'सैनिक', 'कर्मयोग', 'ज्ञानगंगा' तथा 'दैनिक दिग्विजय' आदि कई पत्र-पत्रिकाओं का कुशलता एवं स्वाभिमान के साथ सम्पादन किया था। आप उनमें विविध विषयों से संबंधित साम्रगी के साथ-साथ सुरुचिपूर्ण हास्य-व्यंग्य की रचनाएँ भी प्रकाशित करते थे। इन रचनाओं के माध्यम से वे समाज में व्याप्त कुरीतियों, रूढियों तथा विभीषिकाओं पर कारारी चोट करते थे। 'आर्यमित्र' के सम्पादन के दिनों में सर्वश्री बनारसीदास चतुर्वेदी, डाँ.सत्येन्द्र तथा रामचन्द्र श्रीवास्तव जैसे सुयोग्य व्यक्तियों का सहयोंग उन्हें प्राप्त हुआ था। 'आर्यमित्र' का सम्पादन पंडित जी से पूर्व पंडित रूद्रदत्त शर्मा सम्पादकाचार्य तथा लक्ष्मीधर वाजपेयी 'सर्वानन्द' के नाम से कर चुके थे।

महापुरुषों के कथन

  • 'आर्यमित्र' को हिन्दी के उच्च कोटि के अन्य साप्ताहिक पत्रों की पंक्ति में खड़ा करना हरिशंकर शर्मा जैसे सुयोग्य सम्पादक का ही काम था। इस सम्बन्ध में महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा था कि- "पंडित हरिशंकर शर्मा के हाथ में जब 'आर्यमित्र' आया, तो उसके लेखों में विचित्र स्फूर्ति दिखलाई पड़ती थी। सम्पादक सभी लेखों को नहीं लिखता, पर उनके चयन करने और संवारने में भी बड़ी प्रतिभा की आवश्यकता होती है। मैं समझता हूँ, 'आर्यमित्र' उतना जनप्रिय कभी नहीं हुआ, जितना कि पंडित हरिशंकर शर्मा के सम्पादकत्व में हुआ।"
  • राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपने विचार प्रकट करते हुए लिखा था- "हरिशंकर शर्मा के समान साधुमना और संत साहित्यकार कम होंगे। उनकी रचनाएँ देखकर उनकी सौम्य मूर्ति सम्मुख पाता हूँ।"
  • प्रसिद्ध नेता और प्रत्रकार पंडित कृष्णदत्त पालीवाल नें हरिशंकर शर्मा के विषय में अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा था- "प्रकाडं पंडित, सहज सहृदयता और सज्जनता, विचारों की उदारता और स्वतंत्रता के साथ-साथ पंडित जी की निष्काम देशभक्ति भी सर्वथा सराहनीय हैं। वे कभी किसी कांग्रेस कमेटी के पदधिकारी नहीं बनें। लेकिन सभी स्वाधीनता संग्रामों में उन्होंने सक्रिय सहायता की। यहाँ तक कि 1942 की जनक्रान्ति के समय वे जेल जाने से भी नहीं चुके। उनका घर सदैव बलिदानी स्वाधीनता संग्राम के सैनिकों का अड्डा और आश्रय-स्थल रहा। सच्चे और सुपात्र स्वाधीनता संग्राम के सैनिक होते हुए भी उन्होंने न कभी कोई पद चाहा, न ही यश चाहा और न साहय्य या राज्यश्रय चाहा।"

रचनाएँ

हरिशंकर शर्मा ने एक यशस्वी पत्रकार के रूप में तो ख्याति एवं प्रतिष्ठा प्राप्त की ही थी, उत्कृष्ट साहित्य एवं काव्य-द्रष्टाके रूप में जो स्थान बनाया, वह अनुकरणीय है। आपने विविधतापूर्ण साहित्य की रचना कर अपनी एक अलग ही छवि प्रस्तुत की। उन्होंने विभिन्न पुस्तकों की रचना की थी, उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

हरिशंकर शर्मा की प्रमुख रचनाएँ
क्र. सं. रचना क्र. सं. रचना
1. रत्नाकर 2. अभिनव हिन्दी कोश
3. हिन्दुस्तानी कोश 4. घास-पात
5. पिंजरा पोल 6. चिड़ियाघर
7. रामराज्य 8. कृष्ण संदेश
9. महर्षि महिमा 10. वीरांगना वैभव
11. मटकाराम मिश्र 12. पाखंड
13. प्रदर्शनी 14. गड़बड़
15. गोष्ठी 16. हिन्दी साहित्य परिचय
17. अंग्रेज़ी साहित्य परिचय

पुरस्कार व सम्मान

हरिशंकर शर्मा को उनके रचना कार्य पर जहाँ 'देव पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था, वहीं आपकी साहित्य सेवाओं के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने हेतु 'आगरा विश्वविधालय' ने आपको 'डी.लिट.' की मानद उपाधि से विभूषित किया। भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्ण ने भी आपको 'पद्मश्री' से अलंकृत कर अपने को धन्य समझा। पंडित जी के प्रशंसक एवं मित्रों की संख्या सैकड़ों में थी, परन्तु पुरुषोत्तम दास टण्डन, राहुल सांकृतयायन, बनारसीदास चतुर्वेदी, हज़ारी प्रसाद द्विवेदी, किशोरी दास वाजपेयी, केदारनाथ भट्ट, सत्येन्द्र, क्षेमचन्द्र, सुमन, नगेन्द्र, गोपाल प्रसाद व्यास, कृष्णदत्त पालीवाल आदि के नाम प्रमुख रूप से लिए जाते हैं।

भाषा-शैली

पंडित हरिशंकर शर्मा जहाँ गंभीर रचनाएँ लिखने के लिए प्रसिद्ध थे, वहीं उनकी हास्य-व्यंग्य पूर्ण रचनाएँ भी सोद्देश्य होती थीं। वे विशिष्ट भाषा-शैली तथा भाव-भंगिमा लिए होती थीं। जहाँ अधिकतर हास्य-व्यंग्य की रचनाएँ केवल मंनोरंजन के उद्देश्य से फूहड़पन, अश्लीलता तथा निम्न कोटि की होती थीं, वहीं पंडित जी की रचनाओं में स्वस्थ मनोरंजन तो होता ही था, उनमें समाज की कुरीतियों पर भी करारी चोट होती थी। उनमें भाषा तथा विचारों का फूहड़पन नहीं होता था।

निधन

सन 1968 में पंडित हरिशंकर शर्मा अस्वस्थ हो गए। 9 मार्च, 1968 को उनका स्वर्गवास हो गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. उत्तर प्रदेश के क्रांतिकारी (हिन्दी) kranti1857। अभिगमन तिथि: 14 फरवरी, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख