हल्दी

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हल्दी
हल्दी का पौधा
हल्दी का पौधा
हल्दी का कच्चा, सुखा गांठ और पाउडर
हल्दी का कच्चा, सुखा गांठ और पाउडर
लम्बा और गोल प्रकार का सुखा हल्दी
लम्बा और गोल प्रकार का सुखा हल्दी
लम्बा प्रकार का कच्चा हल्दी
लम्बा प्रकार का कच्चा हल्दी
गोल प्रकार का कच्चा हल्दी
गोल प्रकार का कच्चा हल्दी
  • हल्दी (टरमरि‍क) भारतीय वनस्पति है। यह अदरक की प्रजाति का 5 - 6 फुट तक बढ़ने वाला पौधा है जिसमें जड़ की गाठों में हल्दी मिलती है। कच्ची हल्दी, दिखती भी अदरक जैसी है। हल्दी की गांठ छोटी और लालिमा लिए हुए पीली रंग की होती है। यह खेतों में बोई जाती है, लेकिन कई स्‍थानों में यह स्वयमेव उतपन्‍न हो जाती है। जमीन के नीचे कन्‍द के रूप में इसकी जड़ें होती है। ये कन्‍द रूपी जड़ें हरी अथवा ताजी अथवा कच्‍ची हल्‍दी होती है। कच्‍ची हल्‍दी की सब्‍जी बनाकर खाते हैं। कच्‍ची हल्‍दी को सुखा लेते हैं या उबालकर सुखा लेते हैं, ऐसी हल्‍दी सूखने के बाद रंग परिवर्तन होकर पीला रंग ग्रहण कर लेती है। हल्‍दी स्‍वाद में चरपरी, कड़वी प्रभाव में रूखी और गर्म होती है। भोजन में इस्तेमाल के लिए हल्दी को पीसा जाता है। हल्‍दी के प्रकार -- हल्‍दी दो प्रकार की होती है, एक लम्‍बी तथा दूसरी गोल।
  • भारत विश्व में हल्दी का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, हल्दी की खेती श्रीलंका, बंगला देश, पाकिस्तान, थाईलैंड, चीन, पेरू तथा ताइवान में भी बड़े पैमाने पर होती है। भोजन को स्वाद, सुगंध और रंगत देने के लिए हल्दी का बहुतायत में इस्तेमाल होता है।

हल्दी का भोजन में उपयोग

  • प्राचीन समय से ही हल्दी का प्रयोग घरों में होता आ रहा है। हल्दी की छोटी सी गांठ में बड़े गुण होते हैं। शायद ही कोई ऐसा घर हो जहां हल्दी का उपयोग न होता हो। हल्दी का भारतीय रसोई में महत्वपूर्ण स्थान है और सामान्यत: मसाले के रुप में दैनिक भोजन में प्रयोग की जाती है। भोजन में उपयोग भोजन के स्वाद को बढ़ा देता है।

हल्दी के पोषक तत्व

हल्दी पोषक तत्वों से भरपूर --
  • हल्‍दी में कई प्रकार के रासाय‍निक तत्‍व पाये जाते हैं -- एक प्रकार का सुगंधित उडंनशील तैल 5.8 % , गोंद जैसा पदार्थ, कुर्कुमिन नामक पीले रंग का रंजक द्रव्य, गाढा तेल पाये गये हैं। इसके मुख्य कार्यशील घटक टर्मरिक ऑयल तथा टर्पीनाइड पदार्थ होते हैं।
  • हल्‍दी में पाये गये आवश्‍यक तत्‍व निम्‍न प्रकार हैं -- जल 13.1 % ग्राम, प्रोटीन 6.3 % ग्राम, वसा 5.1 % ग्राम, खनिज पदार्थ 3.5 % ग्राम, रेशा 2.6 % ग्राम, कारबोहा‍‍इड्रेट 69.4 % ग्राम, कैल्शियम 150 मिलीग्राम प्रतिशत, फासफोरस 282 मिलीग्राम प्रतिशत, लोहा 15 मिलीग्राम प्रतिशत, फाइबर, मैग्नीशियम, पौटेशियम, विटामिन ए 50 मिलीग्राम प्रतिशत, विटामिन बी 3 मिलीग्राम प्रतिशत, विटामिन बी 6 व सी, नियासिन, ओमेगा 3 और ओमेगा 6 फैटी एसिड हैं।
  • कैलोरियां प्रति 100 ग्राम में :-- 349 कैलोरी होता है।

हल्‍दी के विभिन्‍न भाषाओं में नाम

  1. संस्‍कृत - हरिद्रा , कांचनीं , वरवर्णिनीं , पीता, गौरी, क्रिमिघ्ना योशितप्रीया, हट्टविलासनी, हरदल, कुमकुम
  2. बंगला - हलुद , हरिद्रा
  3. मराठी - हलद
  4. गुजराती - हलदर
  5. कन्‍नड़ - अरसीन
  6. तेलुगू - पासुपु
  7. फारसी - जरदपोप
  8. अरबी - डरूफुस्‍सुकुर
  9. English - Turmeric / टरमरि‍क
  10. Latin - Curcuma Longa / करकुमा लौंगा, Curcuma Domestica
  11. पारि‍वारि‍क नाम - जि‍न्‍जि‍बरऐसे

हल्दी का भरतीय संस्कृति उपयोग

  • भारतीय संस्कृति मे हल्दी का बहुत महत्व है शायद ही कोई ऐसा घर हो जहां हल्दी का उपयोग न होता हो। हिन्दू धर्म में हल्दी को पवित्र और शुभता का प्रतीक माना जाता है। पूजा-अर्चना से लेकर पारिवारिक संबंधों की पवित्रता तक में हल्दी का उपयोग होता है। पूजा-अर्चना में हल्दी को तिलक व चावल से साथ इस्तेमाल किया जाता है।
  • हल्दी को शुभता का संदेश देने वाला भी माना गया है। आज भी जब कागज पर विवाह का निमंत्रण छपवाकर भेजा जाता है, तब निमंत्रण पत्र के किनारों को हल्दी के रंग से स्पर्श करा दिया जाता है। कहते हैं कि इससे रिश्तों में प्रगाढ़ता आती है।
  • वैवाहिक कार्यक्रमों में हल्दी का उपयोग का अपना एक विशेष महत्व है। विवाह के निमंत्रण पत्र को हल्दी के रंग से स्पर्श कराया जाता है तथा दूल्हे व दुल्हन को हल्दी का उबटन लगाकर वैवाहिक कार्यक्रम पूरे करवाए जाते हैं। ऐसे ही अनेक अवसरों पर हल्दी को उपयोग में लाया जाता है।
  • हिन्दू धर्म दर्शन में भी हल्दी को पवित्र माना जाता है। ब्राह्मणों में पहना जाने वाला जनेऊ तो बिना हल्दी के रंगे पहना ही नहीं जाता है। जब भी जनेऊ बदला जाता है तो हल्दी से रंगे जनेऊ को ही पहनने की प्रथा है। इसमें सब प्रकार के कल्याण की भावना निहित होती है।
  • तंत्र-ज्योतिष में भी हल्दी का महत्वपूर्ण स्थान होता है। तंत्रशास्त्र के अनुसार, बगुलामुखी पीतिमा की देवी हैं। उनके मंत्र का जप पीले वस्त्रों में तथा हल्दी की माला से होता है।

हल्दी का औषधियें गुण

  • हल्दी को आयुर्वेद में प्राचीन काल से ही एक चमत्कारिक द्रव्य के रूप में मान्यता प्राप्त है। आयुर्वेद में हल्‍दी के गुणों का वर्णन कई ग्रंथों में मिलता है। औषधि ग्रंथों में इसे हल्दी के अतिरिक्त हरिद्रा, कुरकुमा लौंगा, वरवर्णिनी, गौरी, क्रिमिघ्ना योशितप्रीया, हट्टविलासनी, हरदल, कुमकुम, टर्मरिक नाम दिए गए हैं। आयुर्वेद में हल्‍दी को एक महत्‍वपूर्ण औषधि कहा गया है। यह कफ तथा पित्‍त दोषों को दूर करती है।
  • आचार्य चरक ने हल्दी को लेखनीय कुष्ठध्न (कुष्ठ मिटाने वाले), कण्डूध्न (खुजली दूर करने वाली), विषध्न (विष नष्ट करने वाली) गुणों से युक्त माना है। आचार्य सुश्रुत ने हल्दी को श्वास रोग, कास (खांसी), अरोचक, रक्तपित्त, अपस्मार, नेत्रारोग, कुष्ठ और प्रमेह आदि रोगों पर लाभकारी माना है।
  • हल्दी को एंटीसेप्टिक (संक्रमणरोधी) माना जाता है। आज के वैज्ञानिक युग में वैज्ञानिक अपनी प्रयोगशालाओं में इस पर शोध कर रहे हैं और उनके अनुसार हल्दी शरीर में घातक कोशिकाओं की वृध्दि को रोकने में सहायक होती है।
  • हल्दी में अनेक औषधीय गुण पाये जाते है। स्वास्थ्य के लिए हल्दी रामबाण ही है। हल्दी का उपयोग शरीर में खून को साफ करता है। हल्दी के उपयोग से कई असाध्य बीमारियों में फायदा होता है। हल्दी को संक्रमण-रोधी माना जाता है। इसका प्रयोग कफ विकार, यकृत विकार, अतिसार आदि रोगों को दूर करने में होता है। हल्दी इम्यून सिस्टम को स्ट्रॉन्ग बनाती है जो स्वास्थ्य के लिए फ़ायदेमंद है।
  • हल्‍दी के बारे में आयुर्वेद विचार -- हल्‍दी तिक्‍त , कटु , उष्‍णवीर्य , रूक्ष , वर्ण्‍य , लेखन , कुष्‍टघ्‍न , विषघ्‍न , शोधन गुण युक्‍त है। इसके प्रयोग से कफ , पित्‍त , पीनस , अरूचि , कुष्‍ठ , कन्‍डू , विष , प्रमेह , व्रण , कृमि , पान्‍डु रोग , अपची आदि रोंग दूर होते हैं।
  • हल्‍दी की औषधीय मात्रा -- यह वयस्‍क व्‍यक्ति के लिये निश्चित की गयी मात्रा है - कच्‍ची हल्‍दी का रस = 1 से 3 चाय चम्‍मच तक, सूखी हल्‍दी का चूर्ण = 1 ग्राम से 4 ग्राम तक। किशोंरों के लिये 500 मिलीग्राम से 1 ग्राम तक। बच्‍चों के लिये 50 मिलीग्राम से 100 मिली ग्राम तक।
  • इसके कोई साइड इफेक्‍ट नहीं हैं और हल्‍दी पूर्ण रूप से सुरक्षित औषधि है। इसे आवश्‍यकतानुसार गुनगुनें पानीं, गरम चाय अथवा दूध के साथ दिन मे, तकलीफ के हिसाब से, एक बार से लेकर चार या पांच बार तक ले सकते हैं।

हल्दी का रोगों में उपयोग

  • त्‍वचा के रोगों में -- हल्‍दी का चूर्ण 1 ग्राम और आवश्‍कतानुसार दूध मिलाकर बनाया हुआ पेस्‍ट मुहासों, युवान पीडिका, सफेद दागों या काले दागों, रूखी त्‍वचा, काले रंग के त्‍वचा के धब्‍बे, खुजली, खारिश आदि तकलीफों में लगानें से आरोग्‍य प्राप्‍त होता है।
  • घाव, कटे एवं पके हुये, पीब से भरे घावों में हल्‍दी का चूर्ण छिड़कनें से घाव शीघ्र भरते हैं। चाकू या धारदार अस्‍त्र से शरीर का कोई अंग कट जानें पर हल्‍दी का चूर्ण छिड़कनें से लाभ प्राप्‍त होता है।
  • घाव होने पर नीम के पत्तों को उबाल कर ठंडा कर के घाव को अच्छी तरह पानी से धोकर उस पर हल्दी की गांठ को घिस कर लेप करने से घाव का संक्रमण कम हो जाता है। पिसी हुई हल्दी को सरसों के तेल में मिलाकर अच्छी तरह गर्म करें। कुछ ठंडा होने पर रूई के फाहे से जख्म पर लगाने से जख्म शीघ्र भरता है। उस पर पट्टी अवश्य बांध दें।
  • बवासीर के मस्‍सों का दर्द अथवा जलन ठीक करनें के लिये हल्‍दी का चूर्ण मस्‍सों पर छिड़कना चाहिये।
  • हल्दी शरीर में रक्त शोधक का काम करती है, यह खून को साफ चर्म रोगों को दूर करती है। हल्दी के नियमित उपयोग से त्वचा में निखार आता है। नहाने से पहले शरीर पर हल्दी का उबटन लगाने से शरीर की कांति बढ़ती है और मांसपेशियों में कसाव आता है। हल्दी चेहरे के दाग-धब्बे और झाइयों को दूर करती है। बेसन में पिसी हुई थोड़ी सी हल्दी, दूध या मलाई मिला कर चेहरे पर लगाने से दाग और झाइयां दूर होती हैं चहरे पर निखार आता है।
  • एलर्जी, शीतपित्‍ती, जलन का अनुभव, ददोरे आदि पड़ जानें की तकलीफ में हल्‍दी को पानी के साथ पेस्‍ट जैसा बनाकर लगानें से आराम मिलता है।
  • फोड़ा फुन्‍सी पकानें के लिये हल्‍दी की पुल्टिस रखनें से फोड़ा फुंसी शीघ्र पक जाते हैं।
  • शरीर के किसी भी स्‍थान की सूजन के साथ दर्द और जलन हो तो हल्‍दी के पेस्‍ट का बाहरी प्रयोग करनें से इन तकलीफों में आम मिल जाती है।
  • दूध में चुटकी भर हल्दी मिलाकर पीने से हड्डियां मजबूत होती हैं और ऑस्टियोपोरोसिस से भी बचाव होता है।
  • जीभ में छाले होने पर पिसी हुई हल्दी एक छोटा चाय का चम्मच आधा लिटर पानी में उबाल कर ठंडा होने पर सुबह शाम कुल्ला करने से जीभ के छालों में राहत मिलती है।
  • दांत दर्द होने पर हल्दी को भून कर पीस लें। जिस दांत में दर्द हो उस पर अच्छी तरह मल लें। इस प्रकार यह दांत दर्द दूर भगाने में सहायक है।
  • जुखाम, खांसी, बुखार -- सभी प्रकार के बुखार, जुखामों और खांसियों में हल्‍दी का चूर्ण 1 से 3 ग्राम तक गरम पानीं / दूध से दिन में दो बार, सुबह शाम, खानें से आरोग्‍य प्राप्‍त होता है। जुकाम, बुखार अथवा खांसी कैसी भी हो, नया हो अथवा पुराना, उक्‍त प्रकार से हल्‍दी का सेवन करनें से सभी अवश्‍य ठीक हो जाते हैं। यह ध्यान रखें कि इसके बाद 30, 40 मिनट तक पानी न पिएं।
  • हल्‍दी के बारे में आधुनिक वैज्ञानिकों नें परीक्षण करके सिद्ध किया है कि यह कैंसर को बढ़नें से रोकती है। यह गठिया जैसे रोंगों की पीड़ा को दूर करती है।
  • साइनुसाइटिस -- नाक से संबंधित सभी तरह की तकलीफों, पुराना जुकाम, पीनस, नाक का गोश्‍त बढ़ जानें, साइनुसाइटिस में हल्‍दी का चूर्ण 1 से 2 ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार खाने से आरोग्‍य प्राप्‍त होता है। उक्‍त तकलीफों से होनें वाले सिर दर्द, बुखार, बदन दर्द आदि लक्षण ठीक हो जाते हैं।

आंतरिक प्रयोग -

  • एलर्जी -- एलर्जी, शीतपित्‍ती या इसी तरह के लक्षणों और तकलीफों से परेशान रोगी हल्‍दी का चूर्ण, 1 से 2 ग्राम, सुबह और शाम, दिन में दो बार, आधा कप दूध और आधा कप पानी मिलाकर, इस प्रकार से पकाये। दूध के साथ खानें से आरोग्‍य प्राप्‍त होता है। दूध में यदि चाहें तो थोड़ी शक्‍कर स्‍वाद के लिये मिला सकते हैं।
  • इस्‍नोफीलिया -- इस्‍नोफीलिया में हल्‍दी का प्रयोग बहुत सटीक है। 2 से 3 ग्राम हल्‍दी चूर्ण गुनगुनें पानीं से, दिन में तीन बार, खानें से, इस रोग में आराम मिलती है। कुछ दिनों तक लगातार खानें से रोग समूल नष्‍ट हो जाते हैं। जैसे जैसे इसनोफीलिया का काउन्‍ट कम होता जाये, वैसे हल्‍दी की मात्रा अनुपात में घटाते जाना चाहिये।
  • दमा और अस्‍थमा में -- इस रोग में हल्‍दी का चूर्ण 2 से 3 ग्राम तक अदरख के एक या दो चम्‍मच रस और शहद मिलाकर दिन में चार बार खानें से आरोग्‍य प्राप्‍त होता है। कुछ दिनों तक यह प्रयोग लगातार करना चाहिये। अगर रोगी एलापैथी की दवायें खा रहा है, तो भी यह प्रयोग कर सकते हैं। जैसे जैसे आराम मिलता जाय, एलापैथी दवाओं की मात्रा कम करते जांय।
  • यकृत प्‍लीहा की बीमारियों में -- यकृत की बीमारियों में हल्‍दी का उपयोग आदि काल से किया जा रहा है। यकृत के सभी विकारों में, पीलिया, पान्‍डु रोग इत्‍यादि में हल्‍दी का चूर्ण 1 ग्राम, कुटकी का चूर्ण 500 मिलीग्राम मिलाकर दिन में तीन बार सादे पानीं के साथ खाना चाहिये। प्‍लीहा की सभी बीमारियों में उक्‍त चूर्ण मिश्रण खाना चाहिये।
  • प्रमेह -- प्रमेह रोग से संबंधित सभी विकारों में हल्‍दी का उपयोग बहुत सटीक है।

बहुमूत्र, गंदा पेशाब, पेशाब में जलन, पेशाब की कड़क, पेशाब में एल्‍बूमेंन जाना, पेशाब में रक्‍त, पीब के कण आदि आदि रोगों में हल्‍दी चूर्ण 1 ग्राम दिन में चार बार सादे पानीं से सेवन करें। अगर इन बीमारियों में कोई एलोपैथी की दवा खा रहे हों, तो उनके साथ हल्‍दी का उपयोग करें, शीघ्र लाभ होगा।

  • मधुमेह -- हल्‍दी 2 ग्राम, जामुन की गुठली का चूर्ण 2 ग्राम, कुटकी 500 मिलीग्राम मिलाकर दिन में चार बार सादे पानीं से खायें। पथ्‍य, परहेज करें, कई हफ्तों तक औषधि प्रयोग करें। मधुमेह के साथ जिनको पैंक्रियाटाइटिस, यकृत प्‍लीहा विकार, गुर्दे के विकार, आंतों से संबंधित विकार हों, ये सभी तकलीफें दूर होंगी।
  • शास्‍त्रोक्‍त प्रयोग -- हल्‍दी के शास्‍त्रोक्‍त प्रयोग बड़ी संख्‍या में आयुर्वेद के चिकित्‍सा ग्रंथों में मिलते हैं। इनमें से बहुत से प्रयोग तमाम प्रकार की बीमारियों के उपचार में इस्‍तेमाल किये जाते हैं।
  • सलाह -- अगर आप कोंई एलोपैथी की दवा खा रहे हैं या होम्‍योपैथिक या कोई अन्‍य उपचार कर रहे हैं, तो भी, आप हल्‍दी का प्रयोग कर सकते हैं। हल्‍दी के प्रयोग करनें से, उपचार पर, कोई असर नहीं पड़ता है। हल्‍दी के प्रयोग से, किये जा रहे उपचार, अधिक प्रभावकारी हो जाते हैं।



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