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हुलेगु ख़ान की सेना ने [[बगदाद]] का विनाश [[नवम्बर]], 1257 में किया, जब ईराक में हुलेगु ख़ान की 10 लाख [[मंगोल]] फौज ने बगदाद की तरफ़ कूच किया। यहाँ से ख़लीफ़ा अपना इस्लामी राज चलाते थे। यहाँ पहुंचकर हुलेगु ख़ान ने अपनी सेना को पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों में बांटा, जो शहर से गुजरने वाली 'दजला नदी'<ref>टाइग्रिस नदी</ref> के दोनों किनारों पर आक्रमण कर सके। [[29 जनवरी]], 1258 में मंगोलों ने बगदाद पर घेरा डाला और [[5 फ़रवरी]] तक उसकी सेना शहर की रक्षक दीवार के एक हिस्से पर अधिकार जमा चुकी थी। ख़लीफ़ा ने हथियार डालने की बात पर विचार किया, लेकिन मंगोलों ने बात करने से इनकार कर दिया और [[13 फ़रवरी]] को बगदाद शहर में घुस आए। उसके बाद एक हफ़्ते तक उन्होंने वहाँ लूटमार करते रहे। बगदाद के नागरिकों और व्यापारियों को लूटा गया। जिन नागरिकों ने भागने की कोशिश की, उन्हें भी रोककर मारा गया।<ref name="aa"/>
 
हुलेगु ख़ान की सेना ने [[बगदाद]] का विनाश [[नवम्बर]], 1257 में किया, जब ईराक में हुलेगु ख़ान की 10 लाख [[मंगोल]] फौज ने बगदाद की तरफ़ कूच किया। यहाँ से ख़लीफ़ा अपना इस्लामी राज चलाते थे। यहाँ पहुंचकर हुलेगु ख़ान ने अपनी सेना को पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों में बांटा, जो शहर से गुजरने वाली 'दजला नदी'<ref>टाइग्रिस नदी</ref> के दोनों किनारों पर आक्रमण कर सके। [[29 जनवरी]], 1258 में मंगोलों ने बगदाद पर घेरा डाला और [[5 फ़रवरी]] तक उसकी सेना शहर की रक्षक दीवार के एक हिस्से पर अधिकार जमा चुकी थी। ख़लीफ़ा ने हथियार डालने की बात पर विचार किया, लेकिन मंगोलों ने बात करने से इनकार कर दिया और [[13 फ़रवरी]] को बगदाद शहर में घुस आए। उसके बाद एक हफ़्ते तक उन्होंने वहाँ लूटमार करते रहे। बगदाद के नागरिकों और व्यापारियों को लूटा गया। जिन नागरिकों ने भागने की कोशिश की, उन्हें भी रोककर मारा गया।<ref name="aa"/>
 
====पुस्तकालय का विनाश====
 
====पुस्तकालय का विनाश====
उस समय बगदाद में एक महान पुस्तकालय हुआ करता था, जिसमें खगोलशास्त्र से लेकर चिकित्साशास्त्र तक हर विषय पर अनगिनत दस्तावेज और किताबें थीं। मंगोलों ने सभी उठाकर नदी में फेंक दिए। जो शरणार्थी बचकर वहाँ से निकले उन्होंने बाद में बताया कि फेंकी गईं हज़ारों-लाखों किताबों की स्याही से दजला का पानी काला हो गया था। महल, मस्जिदें, हस्पताल और अन्य महान इमारतें जला दी गईं। यहाँ मरने वालों की संख्या कम-से-कम एक लाख बताई जाती है।
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उस समय बगदाद में एक महान् पुस्तकालय हुआ करता था, जिसमें खगोलशास्त्र से लेकर चिकित्साशास्त्र तक हर विषय पर अनगिनत दस्तावेज और किताबें थीं। मंगोलों ने सभी उठाकर नदी में फेंक दिए। जो शरणार्थी बचकर वहाँ से निकले उन्होंने बाद में बताया कि फेंकी गईं हज़ारों-लाखों किताबों की स्याही से दजला का पानी काला हो गया था। महल, मस्जिदें, हस्पताल और अन्य महान् इमारतें जला दी गईं। यहाँ मरने वालों की संख्या कम-से-कम एक लाख बताई जाती है।
 
==मृत्यु==
 
==मृत्यु==
 
बाद में [[यूरोप]] से आने वाले यात्री [[मार्को पोलो]] के अनुसार अरब के ख़लीफ़ा को भूखा-प्यासा मारा गया। लेकिन उससे अधिक विश्वसनीय बात यह है कि [[मंगोल]] और [[मुस्लिम]] स्रोतों के अनुसार उसे एक कालीन में लपेट दिया गया और उसके ऊपर से तब तक घोड़े दौड़ाए गए, जब तक उसने दम नहीं तोड़ दिया। अरब देशों पर अधिकार करने के बाद सन 1260 में हुलेगु ख़ान ने [[भारत]] पर आक्रमण की भी योजना बनाई थी, लेकिन भारी-भरकम फौज को लम्बे रास्ते तय करने की कठिनाई के कारण और [[उत्तर भारत]] के मौसम की मार के चलते हुलेगु ख़ान रास्ते में ही बीमारी का शिकार हो गया और स्वास्थ्य लाभ के लिए वापस मंगोलिया लौट गया। वापस लौटकर रहस्यमय ढंग से 1265 में उसकी मौत हो गई
 
बाद में [[यूरोप]] से आने वाले यात्री [[मार्को पोलो]] के अनुसार अरब के ख़लीफ़ा को भूखा-प्यासा मारा गया। लेकिन उससे अधिक विश्वसनीय बात यह है कि [[मंगोल]] और [[मुस्लिम]] स्रोतों के अनुसार उसे एक कालीन में लपेट दिया गया और उसके ऊपर से तब तक घोड़े दौड़ाए गए, जब तक उसने दम नहीं तोड़ दिया। अरब देशों पर अधिकार करने के बाद सन 1260 में हुलेगु ख़ान ने [[भारत]] पर आक्रमण की भी योजना बनाई थी, लेकिन भारी-भरकम फौज को लम्बे रास्ते तय करने की कठिनाई के कारण और [[उत्तर भारत]] के मौसम की मार के चलते हुलेगु ख़ान रास्ते में ही बीमारी का शिकार हो गया और स्वास्थ्य लाभ के लिए वापस मंगोलिया लौट गया। वापस लौटकर रहस्यमय ढंग से 1265 में उसकी मौत हो गई

07:31, 6 अगस्त 2017 का अवतरण

हुलेगु ख़ान अथवा हलाकू ख़ान (जन्म- मार्च, 1217; मृत्यु- 8 फ़रवरी, 1265) 'इलख़ानी साम्राज्य' का संस्थापक और चंगेज़ ख़ाँ का पोता था। चंगेज़ ख़ाँ की तरह हुलेगु भी एक मंगोल शासक था, जिसने ईरान समेत दक्षिण-पश्चिम एशिया के अन्य बड़े हिस्सों पर क्रूर आक्रमण करके मध्य एशिया में थोड़े समय में ही विजय प्राप्त की और 'इलख़ानी साम्राज्य' स्थापित किया। यह साम्राज्य मंगोल साम्राज्य का एक भाग था। हुलेगु ख़ान के नेतृत्व में मंगोलों ने इस्लाम के सबसे शक्तिशाली केंद्र बगदाद को तबाह कर दिया था। ईरान सहित अरब मुल्कों पर अधिकार इस्लाम के उभरने के लगभग तुरंत बाद हो चुका था और तब से वहाँ के सभी विद्वान अरबी भाषा में ही लिखा करते थे।

जन्म तथा पारिवारिक परिचय

हुलेगु ख़ान की अनुमानित जन्म तिथि मार्च, 1217 ईस्वी थी। पारिवारिक इतिहास के अनुसार हुलेगु ख़ान मंगोल साम्राज्य के संस्थापक चंगेज़ ख़ाँ का पोता और उसके चौथे पुत्र तोलुइ ख़ान का पुत्र था। हुलेगु की माता सोरगोगतानी बेकी (तोलुइ ख़ान की पत्नी) ने उसे और उसके भाइयों को बहुत निपुणता से पाला था और उनकी परवरिश की थी। उसने परिस्थितियों पर ऐसा नियंत्रण रखा कि हुलेगु बचपन में ही एक बड़ा लड़ाकू और ख़तरनाक योद्धा बन गया। आगे चलकर उसने अपने बलबूते पर मंगोलों का चीन और रूस सहित किर्गीस्तान, उज़्बेकिस्तान, ईरान, और अफ़ग़ानिस्तान तक एक बड़ा साम्राज्य स्थापित किया। हुलेगु ख़ान की पत्नी दोकुज ख़ातून एक नेस्टोरियाई ईसाई थी। हुलेगु के 'इलख़ानी साम्राज्य' में बौद्ध और ईसाई धर्म को बढ़ावा दिया जाता था। उसकी पत्नी दोकुज ख़ातून ने बहुत कोशिश की कि हुलेगु भी ईसाई बन जाए, लेकिन वह अन्त तक बौद्ध धर्म का अनुयायी ही रहा।[1]

बगदाद पर आक्रमण

हुलेगु ख़ान की सेना ने बगदाद का विनाश नवम्बर, 1257 में किया, जब ईराक में हुलेगु ख़ान की 10 लाख मंगोल फौज ने बगदाद की तरफ़ कूच किया। यहाँ से ख़लीफ़ा अपना इस्लामी राज चलाते थे। यहाँ पहुंचकर हुलेगु ख़ान ने अपनी सेना को पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों में बांटा, जो शहर से गुजरने वाली 'दजला नदी'[2] के दोनों किनारों पर आक्रमण कर सके। 29 जनवरी, 1258 में मंगोलों ने बगदाद पर घेरा डाला और 5 फ़रवरी तक उसकी सेना शहर की रक्षक दीवार के एक हिस्से पर अधिकार जमा चुकी थी। ख़लीफ़ा ने हथियार डालने की बात पर विचार किया, लेकिन मंगोलों ने बात करने से इनकार कर दिया और 13 फ़रवरी को बगदाद शहर में घुस आए। उसके बाद एक हफ़्ते तक उन्होंने वहाँ लूटमार करते रहे। बगदाद के नागरिकों और व्यापारियों को लूटा गया। जिन नागरिकों ने भागने की कोशिश की, उन्हें भी रोककर मारा गया।[1]

पुस्तकालय का विनाश

उस समय बगदाद में एक महान् पुस्तकालय हुआ करता था, जिसमें खगोलशास्त्र से लेकर चिकित्साशास्त्र तक हर विषय पर अनगिनत दस्तावेज और किताबें थीं। मंगोलों ने सभी उठाकर नदी में फेंक दिए। जो शरणार्थी बचकर वहाँ से निकले उन्होंने बाद में बताया कि फेंकी गईं हज़ारों-लाखों किताबों की स्याही से दजला का पानी काला हो गया था। महल, मस्जिदें, हस्पताल और अन्य महान् इमारतें जला दी गईं। यहाँ मरने वालों की संख्या कम-से-कम एक लाख बताई जाती है।

मृत्यु

बाद में यूरोप से आने वाले यात्री मार्को पोलो के अनुसार अरब के ख़लीफ़ा को भूखा-प्यासा मारा गया। लेकिन उससे अधिक विश्वसनीय बात यह है कि मंगोल और मुस्लिम स्रोतों के अनुसार उसे एक कालीन में लपेट दिया गया और उसके ऊपर से तब तक घोड़े दौड़ाए गए, जब तक उसने दम नहीं तोड़ दिया। अरब देशों पर अधिकार करने के बाद सन 1260 में हुलेगु ख़ान ने भारत पर आक्रमण की भी योजना बनाई थी, लेकिन भारी-भरकम फौज को लम्बे रास्ते तय करने की कठिनाई के कारण और उत्तर भारत के मौसम की मार के चलते हुलेगु ख़ान रास्ते में ही बीमारी का शिकार हो गया और स्वास्थ्य लाभ के लिए वापस मंगोलिया लौट गया। वापस लौटकर रहस्यमय ढंग से 1265 में उसकी मौत हो गई


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 दरिंदे जिनसे इतिहास काँपता था (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 06 जनवरी, 2014।
  2. टाइग्रिस नदी

बाहरी कड़ियाँ

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