अचक्षु दर्शनावरणीय

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जैन शास्त्रकारों ने जीवन के 8 मूल कर्म माने हैं उनमें दर्शनावरणीय कर्म के 9 भेदों में यह एक है। जैन धर्म में प्रचलित इस शब्द का प्रयोग हिन्दी साहित्य में किया गया है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • पुस्तक- पौराणिक कोश |लेखक- राणा प्रसाद शर्मा | पृष्ठ संख्या- 561

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