अशोक स्तम्भ सारनाथ

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:06, 16 जून 2014 का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
Disamb2.jpg अशोक स्तम्भ एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- अशोक स्तम्भ
अशोक स्तम्भ सारनाथ
अशोक स्तम्भ, सारनाथ
विवरण महान सम्राट अशोक द्वारा 250 ईसा पूर्व में सारनाथ में बनवाया गया। यह स्तम्भ सारनाथ के संग्रहालय में रखा हुआ है।
राज्य उत्तर प्रदेश
ज़िला सारनाथ
निर्माण काल 250 ईसा पूर्व
प्रसिद्धि इस स्तम्भ में चार शेर एक दूसरे से पीठ से पीठ सटा कर बैठे हुए है।
अन्य जानकारी भारत ने इस स्तम्भ को अपने राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया है तथा स्तम्भ के निचले भाग पर स्थित अशोक चक्र को तिरंगे के मध्य में रखा है ।

अशोक स्तम्भ सारनाथ उत्तर प्रदेश राज्य के सारनाथ नगर में स्थित है।

  • महान सम्राट अशोक द्वारा 250 ईसा पूर्व में सारनाथ में बनवाया गया।
  • यह स्तम्भ दुनिया भर में प्रसिद्ध है, इसे अशोक स्तम्भ के नाम से भी जाना जाता है।
  • इस स्तम्भ में चार शेर एक दूसरे से पीठ से पीठ सटा कर बैठे हुए है।
  • यह स्तम्भ सारनाथ के संग्रहालय में रखा हुआ है।
  • भारत ने इस स्तम्भ को अपने राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया है तथा स्तम्भ के निचले भाग पर स्थित अशोक चक्र को तिरंगे के मध्य में रखा है ।

इतिहास से

मुख्य मंदिर से पश्चिम की ओर एक अशोककालीन प्रस्तर-स्तंभ है जिसकी ऊँचाई प्रारंभ में 17.55 मी. (55 फुट) थी। वर्तमान समय में इसकी ऊँचाई केवल 2.03 मीटर (7 फुट 9 इंच) है। स्तंभ का ऊपरी सिरा अब सारनाथ संग्रहालय में है। नींव में खुदाई करते समय यह पता चला कि इसकी स्थापना 8 फुट X16 फुट X18 इंच आकार के बड़े पत्थर के चबूतरे पर हुई थी।[1] इस स्तंभ पर तीन लेख उल्लिखित हैं। पहला लेख अशोक कालीन ब्राह्मी लिपि में है जिसमें सम्राट ने आदेश दिया है कि जो भिछु या भिक्षुणी संघ में फूट डालेंगे और संघ की निंदा करेंगे: उन्हें सफ़ेद कपड़े पहनाकर संघ के बाहर निकाल दिया जाएगा। दूसरा लेख कुषाण-काल का है। तीसरा लेख गुप्त काल का है, जिसमें सम्मितिय शाखा के आचार्यों का उल्लेख किया गया है।[2]



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आर्कियोलाजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (वार्षिक रिपोर्ट), 1904-5, पृ. 69
  2. तत्रैव, पृ. 70

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख