उमर अल मकसूस
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
उमर अल् मकसूस द्वितीय ख़लीफ़ा मुआविया के गुरु। मुआविया ने अपने पिता की मृत्यु के बाद इनसे परामर्श लिया, मैं खिलाफत लूँ या नहीं। इन्होंने कहा, न्यायपूर्वक शासन कर सकें तो लें, अन्यथा न लें। छह सप्ताह तक राज्य चलाने के उपरांत मुआविया ने अपने को शासन करने में सर्वथा अयोग्य पाया और राज्यभार छोड़ दिया। इससे उमय्या वंश के लोग उमर अल मकसूस से बेहद नाराज हो गए और अवसर मिलते ही 643 ई. में उन्होंने इन्हें जिंदा ही जमीन में गाड़ दिया।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 129 |