एम. सी. छागला

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एम. सी. छागला
एम. सी. छागला
पूरा नाम महोम्मेदली करीम छागला
जन्म 30 सितम्बर, 1900
जन्म भूमि बम्बई (वर्तमान मुम्बई), महाराष्ट्र
मृत्यु 9 फ़रवरी, 1981
कर्म भूमि भारत
विद्यालय लिंकन कॉलेज लंदन
प्रसिद्धि न्यायाधीश व शिक्षामंत्री
नागरिकता भारतीय
पद बाहरी मामलों के मंत्री (5वें)- 14 नवम्बर, 1966 से 5 सितम्बर, 1967

शिक्षामंत्री, भारत (चौथे)- 21 नवम्बर, 1963 से 13 नवम्बर, 1966
मुख्य न्यायाधीश, बम्बई उच्च न्यायालय- 1947 से 1958

अन्य जानकारी शिक्षा मंत्री के रूप में एम. सी. छागला ने एक नया विश्वविद्यालय बनाने के लिए बिल पेश किया था। ये विश्वविद्यालय था- जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय यानी आज का 'जेएनयू'।

महोम्मेदली करीम छागला (अंग्रेज़ी: Mahomedali Currim Chagla, जन्म- 30 सितम्बर, 1900; मृत्यु- 9 फ़रवरी, 1981) प्रसिद्ध भारतीय न्यायधीश, राजनयिक तथा कैबिनेट मंत्री थे, जिन्होंने सन 1948 से 1958 तक बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवा की। जवाहरलाल नेहरू के अधीन शिक्षा मंत्री के रूप में कार्य करते समय एम. सी. छागला सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर बहुत परेशान रहे थे। उनका कहना था- "हमारे संविधान निर्माताओं का इरादा यह नहीं था कि हम सिर्फ झोंपड़ी खड़ी करें, वहां बच्चों को भरें, उन्हें अप्रशिक्षित शिक्षक दें, उन्हें फटी हुई किताबें दें, खेल का कोई मैदान न हो और फिर यह कहें कि हमने अनुच्छेद 45 का पालन किया है और प्राथमिक शिक्षा का विस्तार हो रहा है।" एम. सी. छागला की इच्छा थी कि 6 से 14 वर्ष की उम्र के बीच बच्चों को वास्तविक शिक्षा दी जानी चाहिए। दुर्भाग्य से उनकी टिप्पणी आज भी भारतीय शिक्षा के लिए उतनी ही सत्य है।

परिचय

30 सितंबर, 1900 को बम्बई (वर्तमान मुम्बई) में जन्मे एम. सी. छागला गुजराती शिया मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी। उन्होंने लिंकन कॉलेज लंदन से पढ़ाई करने के बाद बम्बई हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की। इस दौरान उन्होंने सर जमशेद जी कांगा और मोहम्मद अली जिन्ना जैसे नामी वकीलों के साथ काम किया। शुरुआत में उन्होंने जिन्ना के साथ मुस्लिम लीग के लिए भी काम किया लेकिन बाद में जब जिन्ना ने अलग देश की मांग कर डाली तो उन्होंने राहें बदल लीं। एम. सी. छागला, जिन्ना के इस कदम से इतने नाराज हुए कि उन्होंने 'बॉम्बे मुस्लिम नेशनलिस्ट पार्टी' की स्थापना की।[1]

न्यायाधीश व शिक्षामंत्री

एम. सी. छागला गवर्नमेंट लॉ कॉलेज बॉम्बे में प्रोफेसर बने और यहां पर भीमराव अंबेडकर के साथ काम किया। सन 1941 में वह बॉम्बे हाईकोर्ट में जज बनाए गए और बाद में 1948 से 1958 तक यहां मुख्य न्यायाधीश भी रहे। जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें देश के शिक्षा मंत्री पद की बागडोर सौंपी थी। तब नेहरू जी की काफी आलोचना भी की गई थी लेकिन एम. सी. छागला ने साबित किया कि वो इस पद के सबसे योग्य उम्मीवदवार थे।

शास्त्री और छागला

जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में ही मंत्री रहे लाल बहादुर शास्त्री जब देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने शिक्षा मंत्रालय पूर्व न्यायविद एम. सी. छागला के हाथों में सौंपा। एम. सी. छागला गुजराती शिया मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखने वाले भारतीय नेता थे। राजनीति में आने से पहले वह बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस भी थे। शास्त्रीजी से पहले उन्हें जवाहरलाल नेहरू भी देश के शिक्षा मंत्रालय का जिम्मा सौंप चुके थे।

जेएनयू की कल्पना

ये वह दौर था, जब पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध बेहद खराब हालात में थे। विपक्षी भी कांग्रेस पर हमलावर थे। वाराणसी के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के नाम को लेकर समाजवादी नेता अपना विरोध दर्ज करा रहे थे। उनका कहना था कि बीएचयू के नाम से हिन्दू शब्द निकाला जाए और इसका पुराना नाम काशी विश्वविद्यालय ही फिर कर दिया जाए। ऐसी स्थितियों के बीच ही नए शिक्षा मंत्री एम. सी. छागला ने एक नया विश्वविद्यालय बनाने के लिए बिल पेश किया। ये यूनिवर्सिटी थी- जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय यानी आज का 'जेएनयू'।[1]

शिक्षा के प्रति गम्भीर

उस वक्त भारत का शिक्षा मंत्रालय उतना मजबूत नहीं था जितना की बाद के दिनों में हुआ, क्योंकि ज्यादातर विश्वविद्यालय राज्यों के अधीन होते थे। मंत्रालय के पास सिर्फ मशविरा देने का अधिकार था। कई राज्यों में अध्यापकों की तनख्वाह बेहद कम थी। शिक्षा मंत्री ने व्यापक स्तर पर ध्यान देकर देश के शिक्षकों की स्थिति जानी। कहा जाता है कि उस समय शिक्षकों की तनख्वाह के बारे में सुनकर एम. सी. छागला ने तंज किया था कि "अगर हम शिक्षकों को इतनी कम तनख्वाह देते हैं तो फिर चपरासियों को कितनी सैलरी देते हैं।" छागला ने इसे लेकर देश के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री से भी बातचीत की। उन्होंने पीएम को सलाह दी कि अगर हम सिविल सेवकों के लिए 'पे कमीशन' लगा सकते हैं तो शिक्षकों के लिए क्यों नहीं? छागला ने पीएम से कहा था कि शिक्षकों का काम किसी भी रूप में सिविल सेवकों से कम नहीं है।

एम. सी. छागला ने देशभर में शिक्षा को लेकर प्रैक्टिकल सुधार करने की कोशिश की। इसी क्रम में उनका मानना था कि देश की राजधानी दिल्ली में भी एक दूसरा विश्वविद्यालय (दिल्ली विश्वविद्यालय के अलावा) होना चाहिए। उनका विचार था कि एक वैश्विक सोच और एक्सेलेंस वाले विश्वविद्यालय की स्थापना की जाए। इस विश्वविद्यालय के जरिए पुराने विश्वविद्यालयों पर से विद्यार्थियों के बोझ को भी कम किया जा सकता था। लंबी उधेड़बुन के बाद आखिरकार एजुकेशन कमीशन में विचार मंथन के बाद एक नया विश्वविद्यालय शुरू करने की बात पक्की हुई। हालांकि भारत जैसे गरीब देश में उस वक्त एक नया विश्वविद्यालय खोलने का विचार आसान नहीं था।

विरोधियों को मनाया

एम. सी. छागला ने इस चुनौती को स्वीकार किया। जेएनयू के विचार को लेकर पनपी हर समस्या का उन्होंने समाधान किया और पूरी कोशिश की ये विश्वविद्यालय अपने स्वरूप में देश की सेवा कर सके। एम. सी. छागला ने अगस्त 1965 में राज्यसभा में इस यूनिवर्सिटी को लेकर बिल पेश किया था। इसके ठीक अगले महीने लोकसभा में भी इस बिल को शिक्षा राज्य मंत्री भक्त दर्शन ने पेश किया था। तब समाजवादी नेताओं ने इस यूनिवर्सिटी को लेकर कई सवाल खड़े किए थे। हालांकि यूनिवर्सिटी बनाने की शुरुआत उनके समय में नहीं हो पाई लेकिन एम. सी. छागला उन लोगों में थे, जिन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को एक विश्वविद्यालय बनाने की परिकल्पना की थी।[1]

मृत्यु

9 फ़रवरी, 1981 को एम. सी. छागला की दिल के दौरे से मृत्यु हो गई। वह कई वर्षों से अस्वस्थ थे और उन्हें चार बाद दिल का दौरा पड़ चुका था। अपनी सक्रिय और ऊर्जावान प्रकृति के कारण उन्होनें स्वास्थ्य के वजह से अपने आप को धीमा नहीं पड़ने दिया। अपनी मृत्यु के दिन वह रोज की ही तरह बंबई में अपने क्लब में गए और अपने दोस्तों के साथ एक अच्छा समय बिताया। इसके बाद वह चुपचाप ड्रेसिंग रूम में चले गए और वहां शांति से मर गए। उनकी इच्छा के अनुसार, एक पारंपरिक मुस्लिम के रूप में दफन करने के बजाय उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनके सम्मान में बंबई उच्च न्यायालय को बंद कर दिया गया और उनकी स्मृति में कई शोक संदेश दिए गए, जिसमे भावी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का संदेश भी शामिल था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 नहीं होता ये मुस्लिम नेता तो शायद न बन पाता JNU... (हिंदी) hindi.news18.com। अभिगमन तिथि: 20 सितंबर, 2021।

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