किशनगंगा नदी

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किशनगंगा नदी कश्मीर क्षेत्र में बहने वाली नदी है। भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान में इस नदी का नाम बदलकर 'नीलम नदी' कर दिया गया है।

मार्ग

यह नदी जम्मू-कश्मीर राज्य के सोनमर्ग शहर के पास स्थित किशनसर झील से शुरू होती है और उत्तर को चलती है, जहाँ बदोआब गाँव के पास द्रास से आने वाली एक उपनदी इसमें मिल जाती है। यह कुछ दूर तक नियंत्रण रेखा के साथ-साथ चलकर यह नदी गुरेज़ के पास पाक-अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र में प्रवेश कर जाती है। किशनगंगा नदी के कुल 245 कि.मी. के मार्ग में से 50 कि.मी. ही भारतीय नियंत्रण वाले इलाक़े में आता है और शेष 195 कि.मी. पाक-अधिकृत कश्मीर में पड़ता है।

किशनगंगा वादी

किशनगंगा वादी, जिसे पाकिस्तान नीलम वादी कहता है, 250 कि.मी. लम्बी हरी-भरी हिमालय की गोद में स्थित तंग घाटी है। यह मुज़्ज़फ़राबाद​ से होकर अठमुक़ाम तक जाती है। यहाँ हिन्दूबौद्ध धर्मों का ऐतिहासिक शिक्षा संस्थान 'शारदा पीठ' स्थित है। यह पूर्व क्षेत्र सरस्वती देवी से सम्बंधित माना जाता था और इसे पुराने ज़माने में 'शारदादेश' भी कहा जाता था।

सिंध-तास समझौता

पाकिस्तान बनने के समय ज़मीन तो बंट गई, लेकिन पानी नहीं। भारत और पाकिस्तान के बीच पानी के इस्तेमाल को लेकर तनाव 1960 तक जारी रहा। आख़िरकार विश्व बैंक की मध्यस्थता में दोनों देशों के बीच 'सिंध-तास समझौते' पर हस्ताक्षर किए गए और लगा कि कम से कम पानी के मसले पर बात बिगड़ेगी नहीं। इसके बाद दोनों देशों के बीच दो बड़े युद्ध हुए और कई बार युद्ध के हालात बने, लेकिन इस समझौते पर आंच नहीं आई। मतभेद दूर करने के लिए अभी भी दोनों देश विश्व बैंक का रुख़ करते हैं।

सिंध-तास समझौते के तहत इस बात पर सहमति हुई कि 'सिंधु बेसिन' की छह नदियों और उनकी सहायक नदियों का पानी कौन और कैसे इस्तेमाल करेगा। छह में से तीन नदियां भारत के हिस्से में आईं और तीन पाकिस्तान के। इन्हें पूर्वी और पश्चिमी नदियां कहा जाता है। सिंधु, झेलम और चिनाब पूर्वी नदियां हैं, जिनके पानी पर पाकिस्तान का हक़ है जबकि रावी, व्यास और सतलज पश्चिमी नदियां हैं, जिनके पानी पर भारत का हक़ है। सिंध-तास समझौते के तहत भारत पूर्वी नदियों का पानी भी इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन सख़्त शर्तों के तहत। भारत को इन नदियों पर बिजली घर बनाने की भी इजाज़त है, बशर्ते कि पानी का बहाव स्वीकृत सीमा से कम न हो और नदियों के रास्ते में बदलाव न किया जाए। ये 'रन ऑफ़ द रीवर' प्रोजेक्ट्स कहलाते हैं यानी ऐसे प्रोजेक्ट जिनके लिए बांध न बनाना पड़े। किशनगंगा झेलम की सहायक नदी है, जिसे पाकिस्तान में 'नीलम नदी' कहा जाता है।[1]

पाकिस्तानी दलील

भारत ने साल 2005 में किशनगंगा नदी पर नियंत्रण रेखा के बहुत क़रीब एक बिजलीघर बनाने का एलान किया था। इसे 'किशनगंगा हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट' कहते हैं। किशनगंगा चूंकि झेलम की सहायक नदी है, इसलिए उसके पानी पर पाकिस्तान का हक़ है। इस प्रोजेक्ट पर भारत ने क़रीब छह हज़ार करोड़ रुपए ख़र्च किए हैं। ये प्रोजेक्ट भारत प्रशासित कश्मीर की गुरेज़ वादी से कश्मीर में बांदीपोरा तक फैला हुआ है। इसके लिए किशनगंगा का पानी इस्तेमाल किया जाता है और फिर इस पानी को एक अलग रास्ता इस्तेमाल करते हुए[2] वुलर झील में छोड़ दिया जाता है, जहां से ये वापस झेलम के पानी के साथ पाकिस्तान चला जाता है। पाकिस्तान का तर्क है कि इस प्रोजेक्ट से दोनों ही शर्तों का उल्लंघन होता है, नीलम[3] में पानी भी कम होगा और किशनगंगा का रास्ता भी बदला जाएगा। वह ख़ुद इस नदी पर एक बिजली घर बना रहा है जिसे 'नीलम-झेलम हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट' कहते हैं। इस प्रोजेक्ट से एक हज़ार मेगावाट बिजली पैदा होगी, लेकिन सवाल ये है कि इससे क्या इतना पानी मिल पाएगा जितने की ज़रूरत है? इसके अलावा पाकिस्तान में खेती के लिए भी ये पानी बेहद अहम है।

पाकिस्तान का तर्क है कि उसे जितना पानी मिलना चाहिए, उससे काफ़ी कम मिलेगा जिसकी वजह से उस इलाक़े में पानी की क़िल्लत होगी। 330 मेगावाट के किशनगंगा प्रोजेक्ट के एलान के फ़ौरन बाद ही पाकिस्तान ने विश्व बैंक का दरवाज़ा खटखटाया था। भारत का तर्क है कि किशनगंगा प्रोजेक्ट सिंध-तास समझौते की शर्तों का पालन करते हुए ही बनाया गया है। पाकिस्तान के विरोध के बाद भारत ने बिजली घर के लिए 97 मीटर ऊंचा बांध बनाने का इरादा छोड़ दिया, अब उसकी ऊंचाई 37 मीटर है।

किशनगंगा में बिजली

साल 2010 में भारत-पाकिस्तान का यह विवाद हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में पहुंचा, जिसने प्रोजेक्ट पर काम रोकने का आदेश दिया। तीन साल बाद अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा कि भारत ये बिजली घर बना तो सकता है, क्योंकि ये 'रन आफ़ द रीवर प्रोजेक्ट' है, लेकिन उसे किशनगंगा में तयशुदा मात्रा में पानी के बहाव को सुनिश्चित करना होगा। पाकिस्तान ने 2016 में फिर विश्व बैंक से संपर्क किया, इस बार किशनगंगा प्रोजेक्ट के डिज़ाइन पर अपना विरोध दर्ज करवाया। विश्व बैंक ने इस मसले के हल के लिए दो सतह पर कार्रवाई शुरू की थी, लेकिन दोनों पक्षों की इस दलील पर कि दोनों बेंच अलग-अलग फ़ैसले सुना सकते हैं, इस कार्रवाई को रोक दिया गया। जब किशनगंगा में बिजली बननी शुरू हुई तो पाकिस्तान ने फिर विश्व बैंक से कहा कि वह सिंध-तास समझौते के पालन को सुनिश्चित करे।

भारत के लिए अहम प्रोजेक्ट

जहां तक बिजली बनाने का सवाल है, विशेषज्ञों के मुताबिक ये बहुत छोटा प्रोजेक्ट है, जहां सिर्फ़ 330 मेगावॉट बिजली बनेगी। पानी मामलों के विशेषज्ञ हिमांशु ठक्कर के अनुसार इसकी रणनीतिक अहमियत ज़्यादा है, क्योंकि ये गुरेज़ सेक्टर में नियंत्रण रेखा के बहुत क़रीब है। क्योंकि ये बेहद दुश्वार इलाक़ा है, इसलिए किशनगंगा पर लागत औसत से बहुत ज़्यादा आई है, जिसके नतीजे में यहां बनने वाली बिजली भी बहुत महंगी होगी। भारत में अक़्सर ये मांग भी की गई है कि वह सिंध-तास समझौते को ख़त्म कर दे। हालांकि कुछ लोगों का ये भी कहना है कि सिंध-तास समझौते को बरक़रार तो रखा जाए, लेकिन इसके तहत भारत जितना ज़्यादा से ज़्यादा पानी इस्तेमाल कर सकता है, उसे करना चाहिए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वह किशनगंगा जिसके पानी के लिए भारत-पाकिस्तान आमने-सामने हैं (हिंदी) bbc। अभिगमन तिथि: 22 जुलाई, 2018।
  2. जिसके लिए बांदीपोरा तक तक़रीबन 24 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाई गई है।
  3. किशनगंगा को पाकिस्तान में नीलम नदी कहा जाता है।

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