कुलूत

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कुलूत वर्तमान कुल्लू का प्राचीन नाम है, जो कांगड़ा (पंजाब) घाटी का प्रसिद्ध पहाड़ी स्थान है।[1] 'महाभारत' के समय यहाँ का राजा 'वृहन्त' था, जिसे पाण्डव अर्जुन ने अपनी दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में जीता था। संस्कृत कवि राजशेखर ने कन्नौजाधिपति महीपाल (6 वीं शती) के विजित प्रदेशों में 'कुलूत' का भी उल्लेख किया है।

महाभारत का उल्लेख

कुलूत का उल्लेख महाभारत, सभापर्व में निम्न प्रकार हुआ है-

‘तैरवै सहित: सर्वेरनुरज्य च तान् नृपान्, कुलूतवासिनं राजन् बृहन्तमुपजरिग्मवान्’; ‘कुलूतानुत्तरांश्चैव तांश्च राज्ञ: समानयत्’।[2]

उपर्युक्त श्लोक में कुलूत को 'उत्तरकुलूत' के नाम से कहा गया है। प्रसिद्ध पहाड़ी स्थान 'कुल्लू' ही आज का कुलूत है, जो वर्तमान कांगड़ा (पंजाब) घाटी का प्रसिद्ध पहाड़ी स्थान है।[3]

'महाभारत' में कुलूत लोगों का इसका उल्लेख कश्मीर, सिंधु-सौवीर, गंधार, दर्शक, अभिसार, शैवाल और बाहलीक के साथ हुआ है। इसी ग्रंथ में इनका उल्लेख यवन, चीन और कंबोज के साथ हुआ है। वराहमिहिर ने इनका उल्लेख उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पूर्व प्रदेश के निवासी के रूप में किया है। उत्तर-पश्चिम में कीर, कश्मीर, अभिसार, दरश, तंगण, सैरिंध, किरात, चीन आदि के साथ इनका उल्लेख है और उत्तर-पूर्व में तुखार, ताल, हाल, भद्र और लहद आदि के साथ इनकी चर्चा है।[4]

विभिन्न मत

'मुद्राराक्षस' में विशाखदत्त ने इन्हें 'म्लेच्छ' कहा है और इनका उल्लेख कश्मीर सैंधव, चीन, हूण, आदि के साथ किया है। युवानच्वांग नामक चीनी यात्री ने अपने यात्रावृत्त में लिखा है कि- "वह जालंधर से 'कुलूत' गया था। चंबा से सोमेश्वर देव और असत देव (1050 ई.) का जो ताम्रशासन प्राप्त हुआ है, उससे ज्ञात होता है कि कुलूत लोग 'त्रिगर्त' (जालंधर) और कीर के निकटवर्ती निवासी थे। इन सभी उल्लेखों से ऐसा प्रतीत होता है कि कुलूत लोग कांगड़ा ज़िले में कुल्लू घाटी के निवासी थे और संभवत: वे दो भागों में विभक्त थे। साहित्य में इन्हें 'म्लेच्छ' कहा गया है।

सिक्के तथा अभिलेख

संभव है कि कुलूत लोग उत्तर-पश्चिम की आक्रामक जातियों में से एक रहे हों और उत्तरी-पश्चिमी भाग में आकर बस गए हों। उनके मंगोल जाति के होने का भी अनुमान किया जाता है। दूसरी-पहली शती ई. पू. इनका अपना एक गणराज्य था, ऐसा उनके सिक्कों से ज्ञात होता है। उनके सिक्कों पर जो अभिलेख हैं, उनकी भाषा संस्कृत है। उनसे ज्ञात होता है कि इस काल तक उनमें राजाओं की प्रथा प्रचलित हो गई थी। सिक्कों पर राजा के रूप में वीर यश्स, विलत-मित्र, सचमित्र और आर्य के नाम मिलते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 210 |
  2. महाभारत, सभापर्व 27, 5; महाभारत 27, 11.
  3. महाभारत में उपर्युक्त उद्धरणों में कुलूत का पाठान्तर उलूक भी है
  4. कुलूत (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 22 मार्च, 2014।

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