प्रकाश आम्टे

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प्रकाश आम्टे
प्रकाश आम्टे
पूरा नाम प्रकाश आम्टे
जन्म 26 दिसम्बर, 1948
जन्म भूमि आनंदवन, महाराष्ट्र
अभिभावक बाबा आम्टे
पति/पत्नी मंदाकिनी आम्टे
संतान डॉ. दिगांत आम्टे, अनिकेट आम्टे, आरती आम्टे
नागरिकता नागरिकता
प्रसिद्धि चिकित्सक तथा सामाजिक कार्यकर्ता
विद्यालय जी.एम.सी. कॉलेज, नागपुर
शिक्षा मेडिकल में पोस्ट ग्रेजुएट
पुरस्कार-उपाधि 'पद्मश्री' (2002), 'रेमन मैग्सेसे पुरस्कार' (2008)
अन्य जानकारी प्रकाश आम्टे के पिता बाबा आम्टे गाँधीवादी सिद्धान्तों के पक्षधर थे तथा महाराष्ट्र के कुष्ठरोगियों के प्रति पूरी तरह समर्पित हो चुके थे। प्रकाश आम्टे भी पिता के समान ही सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहे।

प्रकाश आम्टे (अंग्रेज़ी: Prakash Amte, अंग्रेज़ी: 26 दिसम्बर, 1948, आनंदवन, महाराष्ट्र) प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता तथा चिकित्सक हैं। वे ख्यातिप्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता तथा 'रेमन मैग्सेसे पुरस्कार' प्राप्त बाबा आम्टे के पुत्र हैं। प्रकाश आम्टे तथा उनकी पत्नी मंदाकिनी आम्टे जो स्वयं भी एक चिकित्सक हैं, आप दोनों को वर्ष 2008 में उनकी सामाजिक सेवाओं के लिए 'मैग्सेसे पुरस्कार' से सम्मानित किया गया है। इससे पूर्व प्रकाश जी को 2002 में 'पद्मश्री' से भी सम्मानित किया जा चुका है।

अंग्रेज़ों की गुलामी से आजाद होकर हिन्दुस्तान विकास के रास्ते पर चल पड़ा और उसने बहुत कुछ हासिल भी कर लिया, लेकिन सदियों से जंगलों और दूरस्थ निर्जन इलाकों में रहने वाले आदिवासियों के हिस्से आजादी के साठ वर्षों बाद भी, न विकास आया, न बदलाव। उन्हें तो देशवासी के रूप में, भारत में रहते हुए भी भारतवासी की पहचान तक नहीं मिली, सुविधा की व्यवस्था तो दूर की बात है। माडिया गौंड़ जाति के आदिवासी भी इसी त्रासदी के शिकार हैं। यह पूर्वी महराष्ट्र में आन्ध्र प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ राज्यों की सीमा पर डेढ़ सौ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में घने जंगल के बीच बसे हैं। अपने पिता बाबा आम्टे की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए प्रकाश आम्टे ने अपनी नवविवाहिता पत्नी मंदाकिनी आम्टे के साथ जो कि उन्हीं की तरह एक मेडिकल डिग्रीधारी डॉक्टर थीं, इस आदिवासी क्षेत्र में अपना ध्यान लगाया। वह उस क्षेत्र में अपना आनन्दवन आश्रम बनाकर रहने लगे और उस क्षेत्र के आदिवासियों को चिकित्सा के साथ अन्य समझ तथा जानकारी देने लगे। वहाँ 1973 में बाबा आम्टे के साथ एल्बर्ट श्वित्ज ने आदिवासियों की स्वास्थ्य तथा शिक्षा की आवश्यकताओं के लिए लोक बिरादरी प्रकल्प पहले से खोला हुआ था। प्रकाश दम्पति भी उससे जुड़ गए। आम्टे दम्पति के उस सेवा कार्य के लिए उन्हें वर्ष 2008 का 'रेमन मैग्सेसे पुरस्कार' संयुक्त रूप से दिया गया।[1]

परिचय

प्रकाश आम्टे का जन्म 26 दिसम्बर, 1948 को हुआ था, लेकिन उनका लालन-पालन उनके पिता बाबा आम्टे द्वारा स्थापित आश्रम 'आनन्दवन' में हुआ। प्रकाश आम्टे के पिता बाबा आम्टे गाँधीवादी सिद्धान्तों के पक्षधर थे तथा महाराष्ट्र के कुष्ठरोगियों के प्रति पूरी तरह समर्पित हो चुके थे। प्रकाश ने नागपुर में जी.एम.सी. से मेडिकल में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री ली और शहर में प्रेक्टिस शुरू कर दी। तभी 1974 में उन्हें उनके पिता का सन्देश मिला कि वह माडिया गौंड जाति के आदिवासियों के हित में उन्हीं आदिवासियों के क्षेत्र में पहुँचकर काम शुरू करें। पिता के इस आह्वान पर प्रकाश ने अपनी नवविवाहिता पत्नी मंदाकिनी आम्टे को साथ लिया और हेमाल्सका की ओर, अपनी शहरी प्रेक्टिस को भूलकर, चल पड़े। उनकी पत्नी मंदाकिनी भी पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टर थीं और उस समय एक सरकारी अस्पताल में काम कर रही थीं। वह भी पति के साथ अपनी नौकरी छोड़कर हेमाल्सका के लिए चल पड़ीं।

आदिवासियों की सेवा

प्रकाश आम्टे पत्नी मंदाकिनी आम्टे के साथ

हेमाल्सका में प्रकाश दम्पति ने एक बिना दरवाजे की कुटिया बनाई और वहाँ बस गए, जहाँ न बिजली थी, न निजता की गोपनीयता। वहाँ इन दोनों ने माडिया गौंड आदिवासियों के लिए चिकित्सा तथा शिक्षा देने का काम सम्भाला। ये लोग एक पेड़ के नीचे अपना दवाखाना लगाते और बस आग जलाकर गर्माहट पाने की व्यवस्था करते। वहाँ के आदिवासी बेहद शर्मीले तथा संकोची स्वभाव वाले थे और उनके मन में इन लोगों के प्रति विश्वास लगभग नहीं था। लेकिन प्रकाश तथा मंदाकिनी ने हार नहीं मानी। उन दोनों ने उन आदिवासियों की भाषा सीखी और धीरे-धीरे उनसे संवाद बनाकर उनका विश्वास जीतना शुरू किया। इस क्रम में उनके कुछ अनुभव बहुत सार्थक रहे। इन लोगों की कुशल चिकित्सा से मिर्गी के रोग से ग्रस्त एक लड़का जो बुरी तरह आग में जल गया था, चमत्कारिक रूप से ठीक हो गया, इसी तरह से एक मरणासन्न आदमी जो दिमागी मलेरिया से पीढ़ित था, एकदम ठीक होकर जी उठा। इस तरह जब भी इनकी चिकित्सा से कोई आदिवासी स्वस्थ हो जाता तो प्रकाश बताते हैं कि वह चार और मरीज लेकर लौटता। इस क्रम से आदिवासियों के बीच प्रकाश तथा मंदाकिनी अपनी जगह बनाते चले गए।[1]

1975 में स्विट्जरलैण्ड की वित्तीय सहायता से हेमाल्सका में एक छोटा-सा अस्पताल बनाया जा सका, जिसमें बेहतर चिकित्सा संसाधन उपलब्ध थे। इस अस्पताल में प्रकाश और मंदाकिनी के लिए कुछ आपरेशन भी कर पाना सम्भव हो सका। इन लोगों ने मलेरिया, तपेदिक, पेचिश-दस्त के साथ आग से जले हुए लोगों का तथा साँप-बिच्छू आदि के काटे का इलाज भी बेहतर ढंग से शुरू हुआ। आदिवासियों के जीवन के अनुकूल इन्होंने यथासम्भव अस्पताल का काम-काज, अस्पताल के बाहर, पेड़ के नीचे किया और उसके लिए उनसे कुछ भी पैसा नहीं लिया गया।

स्कूल की स्थापना

प्रकाश तथा मंदाकिनी ने इस बात को समझा कि निरक्षरता के कारण ये आदिवासी वन विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों तथा दूसरे लालची लोगों के हाथों अक्सर ठगे जाते हैं। आम्टे दम्पति ने आदिवासियों को उनके अधिकारों की जानकारी देनी शुरू की, तथा वन अधिकारियों से, इनकी तरफ से बातचीत करनी शुरू की, प्रकाश ने प्रयासपूर्वक भ्रष्ट वन अधिकारियों को वहाँ से हटवाया भी और साथ ही 1976 में हेमाल्सका में एक स्कूल की स्थापना की। माडिया गौंड जाति के लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजने में हिचकते थे, लेकिन समय के साथ स्कूल ने विकास किया तथा आदिवासियों को पढ़ाई-लिखाई के साथ काम-धन्धे से सम्बन्धित शिक्षा भी देनी शुरू कर दी। प्रकाश मंदाकिनी के अपने बच्चे भी इसी स्कूल में पढ़ने लगे।

हेमाल्सका स्कूल ने इन आदिवासियों को खेती-बाड़ी, फल-सब्जी उगाना तथा सिंचाई आदि की जानकारी दी तथा इन्हें वन संरक्षण के बारे में भी समझाना शुरू किया। वन संरक्षण में आदिवासियों को वन्य पशुओं के संरक्षण का भी समझाना शुरू किया। वन संरक्षण में आदिवासियों को वन्य पशुओं के संरक्षण का भी महत्त्व समझाया गया। आम्टे दम्पति ने हेमाल्सका में लावारिस पशुओं की देख-भाल के लिए एक स्थान भी बनाया, जिससे पशुओं का जीवन सुरक्षित रहने लगा। इस समय से आदिवासियों का पशुओं को भोज्य पदार्थ की तरह प्रयोग करना कम होने लगा। वह अनाज तथा खेती की उपज पर निर्भर होना सीखने लगे। प्रकाश आम्टे के इस काम में रमे होने का अंदाज़इसी बात से लगाया जा सकता है कि दौड़-धूप तथा आने-जाने के दौर में इन्हें अपने पिता बनने का पता भी बाद में लगा और वह आनन्द से विभोर हो उठे। इस बीच मानो वह इस ओर से लगभग बेखबर थे। यह उनके जीवन में एक न भुलाई जा सकने वाली घटना की तरह दर्ज हुआ और यह भी, कि खुद को भी भूल कर किसी काम में खो जाना क्या होता है।[1]

सरल व्यवहार

माडिया गौंड आदिवासियों के बीच आम्टे दम्पति का सरल जीवन-शिल्प तथा व्यवहार उन्हें, आदिवासियों के बीच उन्हीं जैसा बनाता चला गया। ये दोनों उन आदिवासियों को सम्मान देते थे और उनसे सम्मान पाते भी थे। उनकी वेशभूषा भी उन्हीं जैसी थी। जहाँ तक सम्भव होता था, प्रकाश दम्पति आदिवासी पद्धति का ही इलाज अपनाते थे। इससे उनको जानकारी तथा दक्षता में एक नए ज्ञान की बढ़ोतरी हुई थी। प्रकाश द्वारा स्थापित स्कूल में बच्चे आदिवासी नृत्य-संगीत का अभ्यास करते थे और उसी संस्कृति से जुड़ाव बनाए रखते थे।

आम्टे दम्पत्ति का अस्पताल आदिवासियों के बीच हेमाल्सका में चल रहा है। इसमें हजारों आदिवासी मरीजों को मुफ़्त चिकित्सा दी जाती है। वहाँ एक मातृत्व सदन की स्थापना की जा चुकी है, जिसमें स्वास्थ्य शिक्षा भी दी जाती है। स्थानीय लोग प्रशिक्षण पाकर ‘पैदल डॉक्टरों’ की भूमिका निभाते हुए प्राथमिक चिकित्सा आस-पास के इलाकों पर पहुँचाते हैं। अपनी संस्कृति को बचाते हुए उनमें नई चेतना का संचार हुआ है। इसी तरह आम्टे का स्कूल भी चल निकला है। यहाँ के पढ़े बच्चे वहीं डाँक्टर, वकील, अधिकारी तथा अध्यापक बनकर जीवन निर्वाह कर रहे हैं। इनमें से कुछ पुलिस में भी गए हैं। प्रकाश आनन्दित होकर बताते हैं कि वहाँ के पढ़े नब्बे प्रतिशत पढ़-लिख कर वहीं सामुदायिक सेवा के लिए लौटते हैं और उनमें प्रकाश का अपना बेटा भी है। यह प्रकाश तथा मंदाकिनी द्वारा दिए गए संस्कारों का प्रभाव है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 मैग्सेसे पुरस्कार विजेता भारतीय |लेखक: अशोक गुप्ता |प्रकाशक: नया साहित्य, कश्मीरी गेट, दिल्ली-110006 |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 121 |

बाहरी कड़ियाँ

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