बेगम ऐज़ाज़ रसूल

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बेगम ऐज़ाज़ रसूल
बेगम ऐज़ाज़ रसूल
पूरा नाम बेगम क़दसिया ऐज़ाज़ रसूल
जन्म 4 अप्रॅल, 1908
जन्म भूमि लाहौर (तत्कालीन पंजाब)
मृत्यु 1 अगस्त, 2001
मृत्यु स्थान लखनऊ, उत्तर प्रदेश
अभिभावक पिता- सर ज़ुल्फ़िकार अली ख़ान

माता- महमुदा सुल्ताना

कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र राजनीति, लेखन तथा सामाजिक कार्यकर्ता
पुरस्कार-उपाधि पद्म भूषण (2000)
नागरिकता भारतीय
विशेष भारतीय संविधान सभा की एकमात्र मुस्लिम महिला सदस्य।

बेगम क़दसिया ऐज़ाज़ रसूल (अंग्रेज़ी: Begum Qudsia Aizaz Rasul, जन्म- 4 अप्रॅल, 1908; मृत्यु- 1 अगस्त, 2001) भारतीय संविधान सभा की एकमात्र मुस्लिम महिला सदस्य थीं। साल 1950 में भारत में मुस्लिम लीग भंग होने के बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गयी थीं। वह 1952 में राज्यसभा के लिए चुनी गयीं और फिर 1969 से साल 1990 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्य रहीं। इसके साथ ही बेगम ऐज़ाज़ रसूल 1969 से 1971 के बीच सामाजिक कल्याण और अल्पसंख्यक मंत्री भी रहीं। सन 2000 में उन्हें सामाजिक कार्य में उनके योगदान के लिए 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया था।

परिचय

बेगम ऐज़ाज़ रसूल मलेरकोटा के शाही परिवार के सर ज़ुल्फ़िकार अली ख़ान की बेटी थीं और नवाब सैयद ऐज़ाज़ रसूल, जो कि अवध के तालुकदार थे, से उनकी शादी हुई थी। संविधान सभा में शामिल होने से पहले वह उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्य थीं। वह संयुक्त प्रांत से 14 जुलाई, 1947 को संविधान सभा में शामिल हुईं। बाद में उन्होंने 1952 से 1956 तक राज्यसभा के सदस्य के रूप में काम किया। बेगम ऐज़ाज़ रसूल मौलिक अधिकारों पर सलाहकार समिति की तीन महिला सदस्यों में से एक थीं।[1]

बहुसंख्यक समुदाय की भूमिका की परिकल्पना

भारतीय संविधान सभा ने अपनी प्रारंभिक बैठकों में विधानसभा की अल्पसंख्यक अधिकारों पर उप-समिति की ओर से अनुशंसित कुछ समुदायों के लिए सीटों के आरक्षण के सिद्धांत को स्वीकार किया था। लेकिन विभाजन की घोषणा ने बहस की प्रकृति को बदल दिया। विभाजन के बाद, विधानसभा ने अल्पसंख्यकों के लिए अलग निर्वाचक मंडल और सीटों के आरक्षण के सिद्धांत को खारिज कर दिया। वास्तव में, राजनीतिक संस्कृति अपने आप में किसी भी प्रकार के आरक्षण या विशेष उपचार की किसी भी मांग पर संदेह करती जा रही थी। बेगम ऐज़ाज़ रसूल ने यह भी आशंका जताई कि अल्पसंख्यक समुदाय के लिए सीटों का आरक्षण 'अलगाववाद और सांप्रदायिकता की भावना को जीवित रख सकता है' और इस तरह के आरक्षण के प्रस्ताव को उन्होंने खारिज कर दिया। लेकिन ऐसा करते समय उन्होंने अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए बहुसंख्यक समुदाय की भूमिका की परिकल्पना की और यह आज भी प्रासंगिक है।

विचार

बेगम ऐज़ाज़ रसूल का मानना ​​था कि अल्पसंख्यक समुदायों को 'बहुसंख्यक समुदाय की भलाई पर निर्भर' होना चाहिए, लेकिन यह भी कि बहुसंख्यकों को अपने कर्तव्य का एहसास रहे कि किसी भी अल्पसंख्यक के साथ भेदभाव न करें और बहुसंख्यक को, अल्पसंख्यक समुदायों के मन में आत्मविश्वास, सदइच्छा और सुरक्षा की भावना पैदा करनी है।

अल्पसंख्यकों पर सलाहकार समिति की रिपोर्ट पर विचार करते हुए, उन्होंने कहा की- "हम मुसलमान के रूप में अपने लिए कोई विशेषाधिकार नहीं चाहते हैं लेकिन हम यह भी नहीं चाहते हैं कि हमारे साथ कोई भेदभाव किया जाए। यही कारण है कि मैं कहती हूं कि इस महान देश के नागरिक के रूप में हम आकांक्षाओं और यहां रहने वाले लोगों की आशाओं को साझा करते हैं और उसी समय उम्मीद करते हैं कि हमारे साथ सम्मान और न्याय के साथ व्यवहार किया जाए"।

इसी प्रकार, इस आशंका पर कि आरक्षण के बिना मुसलमान विधायिका में नहीं आ पाएंगे और राजनीतिक रूप से उनकी अनदेखी की जा सकती है, उन्होंने टिप्पणी की- "मैं भविष्य में किसी भी राजनीतिक दल की कल्पना नहीं करती, जो मुसलमानों की अनदेखी करके चुनावों में अपने उम्मीदवार खड़ा करे। मुसलमान इस देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा हैं। मुझे नहीं लगता कि कोई भी राजनीतिक दल कभी भी उनकी उपेक्षा कर सकता है"। उन्होंने धर्म के आधार पर देश के प्रति एक व्यक्ति की वफादारी को चुनौती देने की प्रवृत्ति पर भी सवाल उठाया और कहा- "मुझे समझ में नहीं आता है कि वफादारी और धर्म एक साथ क्यों चलते हैं। मुझे लगता है कि जो व्यक्ति राज्य के हितों के खिलाफ काम करते हैं और विध्वंसक गतिविधियों में भाग लेते हैं, वे हिंदू या मुसलमान या किसी भी अन्य समुदाय के सदस्य हों, वफादार नहीं हैं। जहां तक मामला है, मुझे लगता है कि मैं कई हिंदुओं की तुलना में अधिक निष्ठावान हूं क्योंकि उनमें से कई विध्वंसक गतिविधियों में लिप्त हैं, जबकि मेरे दिल में मेरे देश का खयाल है"।[1]

महिला और भारतीय संविधान

बेगम ऐज़ाज़ रसूल का मानना ​​था कि भारतीय संविधान न केवल महिलाओं के साथ भेदभाव खत्‍म करेगा, बल्कि वास्तव में यह नए गणराज्य में महिलाओं के लिए 'अवसर की समानता' भी सुनिश्चित करेगा। अन्य महिला सदस्यों की तरह, उन्होंने भी यह तर्क दिया कि भारतीय विरासत ऐतिहासिक रूप से महिलाओं की समानता को मान्यता देती है। संविधान स्वीकार करने पर उन्होंने कहा- "भारत की महिलाएं जीवन और गतिविधि के सभी क्षेत्रों में पुरुषों के साथ पूर्ण समानता की अपनी उचित विरासत को आगे बढ़ाकर खुश हैं। मैं ऐसा इसलिए कहती हूं क्योंकि मुझे विश्वास है कि यह कोई नई अवधारणा नहीं है, जिसे इस संविधान के उद्देश्यों के लिए अपनाया गया है। यह एक ऐसा आदर्श है, जिसे लंबे समय से भारत ने पोषित किया है, हालांकि कुछ समय के लिए सामाजिक परिस्थितियों ने इसे व्यावहार से बाहर कर दिया था। यह संविधान इस आदर्श की पुष्टि करता है और इस बात का आश्वासन देता है कि भारतीय गणराज्य में कानून में महिलाओं के अधिकारों का पूर्ण सम्मान किया जाएगा"।[1]

मृत्यु

बेगम ऐज़ाज़ रसूल का निधन 1 अगस्त, 2001 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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