भारतीय तटरक्षक

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भारतीय तटरक्षक
भारतीय तटरक्षक
विवरण तटरक्षक बल एक नौसेना के समान सैन्य या अर्द्ध-सैन्य संगठन होता है, परन्तु इसका मुख्य कर्तव्य आतंकवाद और अपराध से एक देश के समुद्री क्षेत्रों की रक्षा करना है।
सक्रिय 1978–वर्तमान
देश भारत
प्रकार तटरक्षक
विभाग रक्षा मंत्रालय (भारत सरकार), भारतीय सेना
मुख्यालय नई दिल्ली
आदर्श वाक्य वयम् रक्षाम: (हम रक्षा करते हैं)
तटरक्षक दिवस 1 फ़रवरी
महानिदेशक अनुराग गोपालन थपलियाल
अपर निदेशक राजेंद्र सिंह
संबंधित लेख तटरक्षक दिवस, भारतीय नौसेना
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
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भारतीय तटरक्षक (अंग्रेज़ी: Indian Coast Guard) या तटरक्षक बल एक नौसेना के समान सैन्य या अर्द्ध-सैन्य संगठन होता है, परन्तु इसका मुख्य कर्तव्य आतंकवाद और अपराध से एक देश के समुद्री क्षेत्रों की रक्षा करना है, इसके अतिरिक्त यह खतरे में पड़े पोतों और नौकाओं को बचाने का कार्य भी करते हैं। भारत का बल भारतीय तटरक्षक कहलाता है। कई देशों मे तटरक्षक बल एक कानून प्रवर्तन संगठन की भूमिका भी निभाते हैं। भारतीय तटरक्षक का आदर्श वाक्‍य है "वयम् रक्षाम:" अर्थात् हम रक्षा करते हैं।

स्थापना

7 जनवरी 1977 को मंत्रीमंडल के निर्णय का अनुसमर्थन करते हुए 1 फ़रवरी 1977 को नौसेना मुख्‍यालय के अंतर्गत अंतरिम तटरक्षक संगठन की स्‍थापना हुई। आरम्‍भ में नौसेना से निकाले गये दो फ्रिगेट (भारतीय नौसेना पोत कृपाण तथा कुठार) तथा गृह मंत्रालय से स्‍थानांतरित पाँच गश्‍ती नौकाओं (पम्‍बन, पुरी, पुलीकैट, पणजी तथा पनवेल) को शामिल किया गया। इनको तटवर्ती क्षेत्र तथा द्वीप क्षेत्रों में तटरक्षक ड्यूटियों का निर्वाह करने के लिए तैनात किया गया। इसका उद्देश्‍य हमारे समुद्री क्षेत्र में निगरानी बनाये रखना तथा सीमित बल के साथ हमारे समुद्री क्षेत्रों में समुद्री गतिविधियों को मूल्‍यांकित करना था। 1 फ़रवरी 1977 को गठित अंतरिम तटरक्षक प्रकोष्‍ठ में, ले. कमांडर दत्‍त, कमोडोर सारथी वाइस एडमिरल वी. ए. कॉमथ, कमांडर भनोट, श्री वरदान, श्री संधू, श्री जैन, श्री पिल्‍लै, श्री मल्‍होत्रा, श्री शास्‍त्री आदि शामिल थे। 18 अगस्‍त 1978 को संसद में अधिनियम पारित होने के द्वारा तटरक्षक सेवा के निर्माण का रूप ले सकी तथा वह 19 अगस्‍त 1978 को लागू हुआ। ‘एक ऐसा अधिनियम, जोकि सामुद्रिक तथा समुद्री क्षेत्रों में अन्‍य राष्‍ट्रीय हितों तथा संबद्ध मामलों के संरक्षण को ध्‍यान में रखते हुए भारत के समुद्री क्षेत्र की सुरक्षा को सुनश्चित करने के लिए, संघ के एक सशस्‍त्र बल का गठन एवं विनियमन करें।’

इतिहास

1960 की समाप्ति के दौरान समुद्र पार से समुद्र में तस्‍करी नियंत्रित नहीं हो रही थी जिससे राष्‍ट्र की अर्थ व्‍यवस्‍था पर खतरा पैदा हो गया था। केन्‍द्रीय आबकारी तथा सीमाशुल्‍क बोर्ड के लिए नौसेना द्वारा संचालित 05 सीमाशुल्‍क गश्‍ती क्राफ्ट तस्‍करों को रोकने में पूर्णत: पर्याप्‍त नहीं थे। तत्‍काल उपायों के तौर पर तस्‍करी-रोधी प्रयासों को बढ़ाने के लिए 13 जब्‍त की गई ढ़ों को उनकी अंतर्निहित बाधाओं के बावजूद भी सेवा में लगाया गया ताकि विद्यमान बेड़े को मदद मिल सके। तथापि, यह पूरा बलस्‍तर भारी मात्रा में तस्‍करी की गतिविधियों को रोकने में केवल मामूली तौर पर ही प्रभावी था। समुद्र में तस्‍करी के आवागमन की समस्‍या की जांच में निम्‍नलिखित शामिल था:-

  • बिना किसी प्रभावी क्षेत्रव्‍याप्ति के लम्‍बी तट रेखा।
  • तट के पास बड़ी मात्रा में मछली पकड़ने की गतिविधियों में अवैध आवाजाही की पहचान न कर पाना, विशेषकर जब मछुवाही क्राफ्टों/नौकाओं के पंजीकरण के लिए किसी प्रभावी पद्धति का लागू न होना।
  • अपने क्षेत्राधिकार के भीतर अवैध पोतों को पकड़ने की आवश्‍यकता।
  • तस्‍करों तथा प्रयोग में लाए जा रहे तीव्र गति के पोत समुद्र में भारी मात्रा में हो रही तस्‍करी के कारण तत्त्कालीन प्रधानमंत्री के 23 जनवरी 1970 के निर्देशों के अनुपालन में मंत्रिमंडल सचिवालय ने डा. बी. डी. नाग चौधरी की अध्‍यक्षता तथा वायुसेना अध्‍यक्ष ओ. पी. मेहता तथा एडमिरल आर. डी. कटारी, आई एन (सेवानिवृत्‍त) तथा दूसरे सदस्‍यों के साथ मामले को जांचने तथा रिपोर्ट देने के लिए एक अध्‍ययन दल का गठन किया ।
  • अधिग्रहण के लिए क्राफ्टों की संख्‍या तथा किस्‍म ताकि तस्‍करी-रोधी कार्यों की तुरन्‍त रोकथाम की आवश्‍यकता को पूरा किया जा सके।
  • आपूर्ति के स्रोत तथा विश्‍व बाज़ार में उनकी उपलब्‍धता, ताकि संक्रियात्‍मक आवश्‍यकता से निपटा जा सके।
  • तस्‍करी-रोधी आपरेशनों के लिए होवरक्राफ्ट, हेलिकॉप्टर तथा दूसरे वायुयानों की उपयोगिता।
  • डॉ. बी. डी. नाग चौधरी ने अपनी रिपोर्ट, जोकि अगस्त 1971 में सौंपी गई, में सिफारिश की गई थी कि तस्‍करी-रोधी क्षमताओं को त्रिस्‍तरीय बनाने तथा तस्‍करी-रोधी उपायों के लिए स्‍वदेशी निर्माण तथा तलीय क्राफ्टों के शीघ्र अधिग्रहण की तुरन्‍त आवश्‍यकता है। तथापि, जब तक कि नये तीव्रगामी तलीय क्राफ्टों का अधिग्रहण नहीं होता। तीव्रगामी अंतर्रोधी नौकाएं ही हमारी सीमित तस्‍करी-रोधी क्षमता को तुरन्‍त बढ़ाने के लिए पहली पसंद थी। निगरानी क्राफ्टों का चरणबद्ध अधिग्रहण कार्यक्रम उसी प्रकार सुविधानुसार तेज किया जा सकेगा।

रक्षा मंत्रालय स्‍तर पर मुख्‍य बातें

रक्षा मंत्रालय ने राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति के विचारार्थ एक मामला तैयार किया जिसमें निम्‍नलिखित के लिए अनुमोदन मांगा गया:-

  • तटरक्षक संगठन की स्‍थापना के लिए आवश्‍यक कदम उठाना।
  • रक्षा मंत्रालय में केन्‍द्रीय मुख्‍यालय के साथ वाइस एडमिरल रैंक का विशेष ड्यूटी अफसर नियुक्‍त करना तथा तटरक्षक संगठन के लिए विस्‍तृत परियोजना तैयार करने के लिए उचित स्‍टाफ उपलब्‍ध कराना।
  • नौसेना के दो पुराने फ्रिगेटों के साथ अंतरिम तटरक्षक बल का सृजन तथा गृह मंत्रालय से पाँच गश्‍ती पोतों का हस्‍तांतरण।
  • 7 जनवरी 1977 को मंत्रिमंडल ने नौसेना के भीतर एक अंतरिम तटरक्षक संगठन के प्रस्‍ताव को मंजूर किया ताकि विनिर्दिष्‍ट तटरक्षक कार्यों को किया जा सके। राजनीतिक मामलों पर मंत्रिमंडलीय समिति ने यह निर्देश दिया कि तटरक्षक को बजटीय प्रावधानों के लिए राजस्‍व तथा बैंकिंग विभाग के प्राक्‍कलन में अलग शीर्ष के तहत रखा जाना चाहिए। आगे, यह भी निर्देशित किया गया कि तटरक्षक के लिए विस्‍तृत योजना तैयार की जानी चाहिए।

समुद्री क्षेत्र अधिनियम 1976

समुद्र तथा समुद्र तल से आर्थिक लाभ उठाने के प्रति जागरूकता बढ़ने से बहुत से तटीय प्रान्‍तों ने अपने प्रान्‍त से लगे बड़े समुद्री क्षेत्र पर अपना क्षेत्राधिकार का दावा किया है। यू. एन. सी. एल. ओ. एस. की तीसरी बैठक में कमियों को सुलझाया गया तथा अंतर्राष्‍ट्रीय समुद्री तल क्षेत्र के लिए विधान विकसित किया गया। दुनिया के विद्यमान हालातों की बराबरी के लिए भारत सरकार ने 25 अगस्त 1976 को समुद्री क्षेत्र अधिनियम बनाया। यह अधिनियम 15 जनवरी 1977 को लागू हुआ, जिसमें 2.01 लाख वर्ग किलोमीटर के संपूर्ण अन्‍नय आर्थिक क्षेत्र के क्षेत्र को राष्‍ट्रीय क्षेत्राधिकार में लाया गया। इतने बड़े समुद्री क्षेत्र की सुरक्षा तथा राष्‍ट्रीय विधियों का प्रवर्तन और राष्‍ट्रीय हितों की रक्षा करना एक भारी काम था, जिसके लिए एक समर्पित संगठन की आवश्‍यकता होगी।

उद्देश्य

  • हमारे समुद्र तथा तेल, मत्सय एवं खनिज सहित अपतटीय संपत्ति की सुरक्षा।
  • संकटग्रस्त नाविकों की सहायता तथा समुद्र में जान माल की सुरक्षा।
  • समुद्र, पोत-परिवहन, अनाधिकृत मछ्ली शिकार, तस्करी और स्वापक से संबंधित समुद्री विधियों का प्रवर्तन।
  • समुद्री पर्यावरण और पारिस्थितिकी का परिरक्षण तथा दुर्लभ प्रजातियों की सुरक्षा।
  • वैज्ञानिक आंकडे एकत्र करना तथा युद्ध के दौरान नौसेना की सहायता करने सहित हमारे समुद्र तथा अपतटीय परिसम्पत्तियों का संरक्षण करना।

कार्य

तटरक्षक, भारत के समुद्री क्षेत्रों में लागू सभी राष्ट्रीय अधिनियमों के उपबंधों का प्रवर्तन करने के लिए प्रमुख संस्था है, जो राष्ट्र एवं समुद्री समुदाय के प्रति निम्नलिखित सेवाएं प्रदान करता है।

  • हमारे समुद्री क्षेत्रों में कृत्रिम द्वीपों, अपतटीय संस्थापनाओं तथा अन्य संरचना की सुरक्षा और संरक्षण सुनिश्चित करना।
  • मछुवारों की सुरक्षा करना तथा समुद्र में संकट के समय उनकी सहायता करना।
  • समुद्री प्रदूषण के निवारण और नियंत्रक सहित हमारे समुद्री पर्यावरण का संरक्षण और परिरक्षण करना।
  • तस्करी-रोधी अभियानों में सीमा-शुल्क विभाग तथा अन्य प्राधिकारियों की सहायता करना।
  • भारतीय समुद्री अधिनियमों का प्रवर्तन करना।
  • समुद्र में जान-माल की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक उपाय करना।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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