रहिमन मारग प्रेम को -रहीम

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‘रहिमन’ मारग प्रेम को, मत मतिहीन मझाव ।
जो डिगहै तो फिर कहूँ, नहिं धरने को पाँव ॥

अर्थ

हाँ, यह मार्ग प्रेम का मार्ग है। कोई नासमझ इस पर पैर न रखे। यदि डगमगा गये तो, फिर कहीं पैर धरने की जगह नहीं। मतलब यह कि बहुत समझ-बूझकर और धीरज और दृढ़ता के साथ प्रेम के मार्ग पर पैर रखना चाहिए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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