रूठे झुंठे यार -शिवदीन राम जोशी

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रूठे झूंठे यार तनिक परवा नां कीजे,
रूठ जय यजमान सूम पर चित्त न दीजे।
कुटिल बन्धु रूठी जाय भलाई अपनी समझो,
व्यर्थ दुनि रूठ जाय दूर अघ सपनी समझो।
मूरख सुत रूठ्या भला कुलटा रूठे नार,
शिवदीन वे राम रिझाइए सब सारन का सार।
                    राम गुण गायरे ॥
   


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