वैभार
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वैभार राजगृह[1], बिहार के निकट स्थित एक पर्वत है, जिसका नामोल्लेख महाभारत सभापर्व[2] में है-
'वैभारो विपलो शैलो वराहो वृषभस्तथा।'
- इसका पाठांतर 'वैहार' है। पाली ग्रंथों में इसे 'वेभार' कहा गया है।[3]
- 'सप्तपर्णि' (सोनभंडार) नामक गुहा इसी पहाड़ी में स्थित थी। यहाँ गौतम बुद्ध की मृत्यु के पश्चात् प्रथम 'बौद्ध धर्म संगति' का अधिवेशन हुआ था, जिसमें 500 भिक्षुओं ने भाग लिया था।
- जैन ग्रंथ ‘विविधतीर्थकल्प’ में राजगृह की इस पहाड़ी के 'त्रिकुट' एवं 'खंडिक' नाम के दो शिखरो का उल्लेख है। पहाड़ी पर होने वाली अनेक औषधियों का भी वर्णन है। इस ग्रंथ के अनुसार सरस्वती नदी यहाँ प्रवाहित होती थी और 'मगध', 'लोचन' आदि नाम के जैन देवालय स्थित थे, जिनमें जैन अर्हतों की मूर्तियां थीं। कहा जाता है कि यहाँ देवालयों के निकट सिंह आदि हिंसक पशु भी सौम्यतापूर्वक रहते थे।[4]
- प्राचीन समय में वैभार में 'रौहिणेय' नामक महात्मा का निवास था।
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