श्वेत हूण

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श्वेत हूण हूणों की एक शाखा थी, जो 5वीं शताब्दी के मध्य में वंक्षु (आक्सस) नदी की घाटी में निवास करती थी। इन लोगों ने 455 ई. में भारत के गुप्त साम्राज्य पर आक्रमण किया था, लेकिन उस समय के तत्कालीन सम्राट स्कन्दगुप्त (455-67 ई.) ने उन्हें बुरी तरह से परास्त किया और खदेड़ दिया।

राज्य विस्तार

484 ई. में श्वेत हूण फ़ारस को रौंदने में सफल हो गए और अगले वर्षों में उन्होंने क़ाबुल और कंधार पर भी विजय प्राप्त करके उस पर अधिकार कर लिया। इतना ही नहीं, वे अपने एक श्रेष्ठ नायक तोरमाण के नेतृत्व में आर्यावर्त तक घुस आये और साम्राज्य विस्तार करने लगे। तोरमाण के पुत्र मिहिरगुल ने छठी शताब्दी ई. के आरम्भ में गुप्त साम्राज्य को उखाड़ फेंका और पंजाब स्थित साकल (सियालकोट) को राजधानी बनाकर उत्तरी भारत के एक भाग पर शासन करने लगा। हूणों का शासन अत्यन्त नृशंस और बर्बर था।

पराजय

528 ई. में मालवा के राजा यशोवर्मा तथा गुप्त वंश के सम्राट बालादित्य के नेतृत्व में कई राजाओं ने मिलकर मिहिरगुल को पराजित कर भारत में हूण शासन का अंत कर दिया। भारतीय राज्य हाथ से निकल जाने पर हूणों की शक्ति बहुत क्षीण हो गई थी। अन्त में फ़ारस के शाह ख़ुसरो नौशेर ख़ाँ ने 563 ई. और 567 ई. के बीच हूणों की रही-सही शक्ति को भी नष्ट कर दिया।

भारत में निवास

भारत में हूणों की शक्ति समाप्त हो जाने के बाद वे हिन्दुओं में घुलमिल गये और यहाँ स्थाई तौर पर निवास करने लगे। विश्वास किया जाता है कि आठवीं शताब्दी में तथा उसके बाद जिन राजपूत वंशों का उत्कर्ष हुआ, उनके रक्त में हूणों का रक्त मिश्रित था।

इन्हें भी देखें: हूण


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 457 |


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