अक्साई चिन

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अक्साई चिन
अक्साई चिन
विवरण 'अक्साई चिन' हिंदुकुश तथा कराकोरम पर्वतश्रेणियों में स्थित विच्छिन्न, बंजर और अधिकांशत: अनिवास्य मैदान है। यह क्षेत्र जम्मू और कश्मीर के कुल क्षेत्रफल के पांचवें भाग के बराबर है।
स्थिति भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी छोर पर।
ऊँचाई 17 हज़ार फीट
विशेष 1960 में भारत और चीन के बीच सीमा वार्ता में अक्साई चिन पर चर्चा हुई थी। 1962 में भारत-चीन संघर्ष के दौरान यहाँ लद्दाख में भारी लड़ाई लड़ी गई।
अन्य जानकारी अक्साई चिन के भौगोलिक हालात ऐसे हैं कि यहाँ इंसान रह नहीं सकता। यह क्षेत्र भारत के जम्मू-कश्मीर से तथा चीन के जिनजियांग प्रांत से सटा हुआ है।

अक्साई चिन अथवा 'अक्सेचिन' (अंग्रेज़ी: Aksai Chin) भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी छोर पर हिंदुकुश तथा कराकोरम पर्वतश्रेणियों में स्थित विच्छिन्न, बंजर और अधिकांशत: अनिवास्य मैदान है। लद्दाख के एक हिस्से के रूप में स्वीकृत यह स्थान भौगोलिक रूप से तिब्बत के पठार का विस्तार है। चीनी लोग इसे "सफ़ेद पत्थरों का रेगिस्तान" कहते हैं।

ऐतिहासिकता

ऐतिहासिक रूप से अक्साई चिन भारत को रेशम मार्ग से जोड़ने का ज़रिया था और भारत हज़ारों साल से मध्य एशिया के पूर्वी इलाकों, जिन्हें तुर्किस्तान भी कहा जाता है, और भारत के बीच संस्कृति, भाषा और व्यापार का रास्ता रहा है। भारत से तुर्किस्तान का व्यापार मार्ग लद्दाख़ और अक्साई चिन के रस्ते से होते हुए काश्गर शहर जाया करता था। वर्ष 1950 के दशक से यह क्षेत्र चीन के क़ब्ज़े में है। भारत बराबर इस पर अपने दावे की पुष्टि करता रहा है और इसे जम्मू और कश्मीर का उत्तर-पूर्वी हिस्सा मानता है। अक्साई चिन जम्मू और कश्मीर के कुल क्षेत्रफल के पांचवें भाग के बराबर है। चीन ने इसे प्रशासनिक रूप से शिनजियांग प्रांत के काश्गर विभाग के कार्गिलिक ज़िले का हिस्सा बनाया है। 1960 में भारत और चीन के बीच सीमा वार्ता में अक्साई चिन पर चर्चा हुई थी और 1962 में भारत-चीन संघर्ष के दौरान यहाँ लद्दाख में भारी लड़ाई हुई थी।

नामकरण

अक्साई चिन का नाम उईग़ुर भाषा से आया है, जो एक तुर्की भाषा है। उईग़ुर में 'अक़' का अर्थ 'सफ़ेद' होता है और 'साई' का अर्थ 'घाटी' या 'नदी की वादी'। उईग़ुर का एक और शब्द 'चोअल' है, जिसका अर्थ है 'वीराना' या 'रेगिस्तान', जिसका पुरानी ख़ितानी भाषा में रूप 'चिन' था। 'अक्साई चिन' के नाम का अर्थ 'सफ़ेद पथरीली घाटी का रेगिस्तान' निकलता है। चीन की सरकार इस क्षेत्र पर अधिकार जतलाने के लिए 'चिन' का अर्थ 'चीन का सफ़ेद रेगिस्तान' निकालती है, लेकिन अन्य लोग इस पर विवाद रखते हैं।

भौगोलिक दशाएँ

17 हज़ार फीट की ऊंचाई पर अक्साई चिन के भौगोलिक हालात ऐसे हैं कि यहाँ इंसान रह नहीं सकता। यह क्षेत्र भारत के जम्मू-कश्मीर से तथा चीन के जिनजियांग प्रांत से सटा हुआ है। इसी अक्साई चिन से होकर गुजरता है जिनजियांग-तिब्बत हाइवे। यह सड़क चीन की है, जो इस इलाके में चीन के आधिपत्य की कहानी लिखती है। अक्साई चिन का ये इलाका दरअसल सदियों पुराना व्यापारिक रास्ता भी है। मौजूदा दौर में यहाँ चीन का कब्ज़ा है।[1]

सरहदी विवाद

भारत और चीन सरहद के मुद्दे पर एक-दूसरे पर भरोसा नहीं कर पाते। दोनों मुल्क बार-बार बातचीत के बावजूद किसी एक रेखा को अपनी सरहद मानने को तैयार नहीं होते। दोनों देशों के बीच कई-कई बार नक्शे पर सरहद की लकीरें खींची गई हैं, लेकिन कभी अक्साई चिन तो कभी अरुणाचल प्रदेश या सिक्किम का मुद्दा इन लकीरों को नए विवाद में ला देता है। इस विवाद की जड़ काफ़ी पहले 1834 ई. में ही पड़ गई थी। भारत का कहना है कि चीन ने जम्मू-कश्मीर की 41180 वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर ग़ैर क़ानूनी कब्ज़ा कर रखा है। इसमें 5180 वर्ग किलोमीटर अक्साई चिन का लद्दाखी क्षेत्र है। चीन, सीमा का निर्धारण करने वाली 'मैकमोहन रेखा' को नहीं मानता। वह अरुणाचल प्रदेश की 90 हज़ार वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर भी अपना दावा करता रहा है।

भारत-चीन सीमा विवाद की जड़ सालों पहले पड़ी थीं। ये सन 1834 ई. का समय था। पंजाब में सिक्खों का राज था। 1834 में वे लद्दाख तक जा पहुंचे थे और लद्दाख को जम्मू में मिलाने का ऐलान कर दिया। सिक्खों की फौज ने बाकायदा तिब्बत पर हमला कर दिया, लेकिन चीन की सेनाओं ने उन्हें हरा दिया और खदेड़ते हुए लद्दाख और लेह पर कब्ज़ा कर लिया। सिक्ख और चीनियों के बीच 1842 ई. में एक समझौता हुआ, जिसमें तय हुआ कि एक-दूसरे की सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया जाएगा। वर्ष 1846 ई. में सिक्खों को अंग्रेज़ों द्वारा भी पराजय झेलनी पड़ी और लद्दाख पर ब्रिटिश राज कायम हो गया। उन्होंने चीन के अधिकारियों से मिलकर सरहद का मुद्दा सुलझाने की कोशिश की। तय हुआ कि प्राकृतिक चिन्हों के जरिए ही सरहद तय की जाएगी और सीमा पर बाड़ की ज़रूरत नहीं है। यहीं से असली सरहद गायब हो गई और कई लकीरों में दोनों देश उलझ कर रह गए।[1]

सीमा रेखाएँ

  • नक्शे पर बनी सरहद की पहली लकीर 'जॉनसन रेखा' है। 1865 में सर्वे ऑफ़ इंडिया के अफसर डब्लू एच जॉनसन ने एक दिमागी रेखा खींची, जिसके अनुसार अक्साई चिन का इलाका जम्मू-कश्मीर में आता है। जॉनसन ने नक्शे पर उकेरी ये रेखा जम्मू-कश्मीर के महाराजा को दिखाई। लेकिन जॉनसन के काम की आलोचना हुई। उसे ब्रिटिश राज ने नौकरी से निकाल दिया, चीन ने कभी इसे नहीं माना और भारत ने हमेशा अपनाया।
  • नक्शे पर बनी सरहद की दूसरी लकीर 'जॉ़नसन-आरदाग रेखा' है। 1897 में ब्रिटिश फौज के अफसर सर जॉन आरदाग ने कुनलुन पहाड़ों से गुजरती हुई एक और सरहद खींची। ये वो दौर था, जब ब्रिटिश राज को रूस के बढ़ते प्रभुत्व से खतरा लगने लगा था। चीन कमज़ोर था। आरदाग ने ब्रिटिश राज को समझाया कि ये सरहद फायदेमंद होगी, लेकिन ये लकीर सिर्फ किताबों तक रह गई।
  • नक्शे पर बनी सरहद की तीसरी लकीर 'मैक्कार्टनी-मैक्डॉनल्ड रेखा' है। 1890 में ब्रिटेन और चीन दोस्त बन गए। ब्रिटेन को चिंता सता रही थी कि कहीं अक्साई चिन का इलाका रूस न कब्ज़ा ले। 1899 में चीन ने अक्साई चिन के इलाके में दिलचस्पी दिखाई, इसीलिए ब्रिटेन ने सरहद में बदलाव का इरादा बनाया। ये बदलाव सुझाया जॉर्ज मैककार्टनी ने और अक्साई चिन का ज्यादातर इलाका चीन में डाल दिया। चीन ने इस पर खामोशी लगा ली, ब्रिटिश राज ने इसे चीन की सहमति समझ लिया। ये रेखा ही मौजूदा वास्तविक नियंत्रण रेखा है।
  • नक्शे पर बनी सरहरद की चौथी लकीर 'मैकमोहन रेखा' है। 1913-1914 में ब्रिटेन, चीन और तिब्बत के प्रतिनिधि शिमला में मिले और सरहद पर बातें हुईं। ब्रिटिश अफसर हेनरी मैकमोहन ने समझौते के साथ एक नक्शा पेश किया, जो तिब्बत और भारत की पूर्वी सरहद तय कर रहा था। चीन को ये मंजूर नहीं हुआ, वह समझौते के लिए तैयार न हुआ। मैकमोहन रेखा का आधार हिमालय था, हिमालय के दक्षिणी हिस्से भारत से जोड़े गए।[1]

1947 के बाद की स्थिति

1947 में भारत की आज़ादी के बाद से ही सरकार ने जॉनसन रेखा को ही आधिकारिक सरहद माना, जिसमें अक्साई चिन भारत का हिस्सा था। उधर, चीन ने जिनजियांग और पश्चिमी तिब्बत को जोड़ने वाला 1200 किलोमीटर लंबा हाइवे बना डाला। इसका 179 किलोमीटर का हिस्सा जॉनसन रेखा के दक्षिणी हिस्से को काटते हुए अक्साई चिन से होकर गुजरता था। 1957 तक तो भारत को ये तक पता नहीं चल सका कि चीन ने अक्साई चिन के इसी विवादित हिस्से में सड़क तक बना ली है। 1958 में चीन के नक्शे में पहली बार ये सड़क प्रकट हुई। भारत और चीन के बीच सरहद के झगड़े का दूसरा मोर्चा है भारत के पूर्वोत्तर में। ये वो इलाका है, जहाँ से काल्पनिक मैकमोहन रेखा गुजरती है और दोनों मुल्कों को अलग करती है। नक्शे पर उकेरी गई यही लकीर दरअसल 1996 में एलएसी यानि वास्तविक नियंत्रण रेखा के तौर पर देखी गई, जिसे भारत चीन के साथ अपनी सरहद मानता है। पहले इस इलाके को नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी कहा जाता था, यानि आज का अरुणाचल प्रदेश। लेकिन चीन अरुणाचल प्रदेश को भी अपना इलाका करार देता है और सिक्किम में भी दख़लंदाजी करता रहता है। 1962 में इसी इलाके में भारत-चीन की जंग भी हुई थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 चीन ने सिखों को हराकर हथियाए लद्दाख-लेह (हिन्दी) आईबीएन खबर। अभिगमन तिथि: 05 जून, 2015।

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