कर संरचना
भारत की कर संरचना प्रणाली काफ़ी विकसित है। भारतीय संविधान के प्रावधानों के अनुरुप करों व ड्यूटीज को लगाने का अधिकार सरकार के तीनों स्तरों को प्रदान किया गया है।
- केंद्र सरकार द्वारा लगाये जाने वाले प्रमुख कर और ड्यूटीज इस प्रकार हैं-
- आयकर (कृषीय आय पर कर के अतिरिक्त जिसे राज्य सरकार ही लगा सकती है)
- कस्टम ड्यूटी
- सेंट्रल एक्साइज
- बिक्रीकर
- सेवाकर।
- राज्य सरकारों द्वारा लगाये जाने वाले प्रमुख कर हैं-
- बिक्रीकर (वस्तुओं के राज्यों के भीतर बिकने पर लगाया जाने वाला कर)
- स्टैम्प ड्यूटी (सम्पत्ति के हस्तांतरण पर लगाया जाने वाला कर)
- स्टेट एक्साइज (शराब के निर्माण पर लगाई जाने वाली ड्यूटी)
- कर राजस्व (कृषीय व गैर-कृषीय उद्देश्यों के लिए प्रयोग की जाने वाली भूमि पर लगाया जाने वाला कर) व मनोरंजन व प्रोफेशनल्स पर लगाया जाने वाला कर।
- स्थानीय निकाय सम्पत्तियों पर कर लगाने का अधिकार रखती है (इमारतों इत्यादि पर), चुंगी (स्थानीय निकाय के अधिकार क्षेत्र पर प्रवेश करने वाली वस्तुओं या उपभोग पर लगाया जाने वाला कर), बाज़ारों पर व जल सप्लाई, सीवर इत्यादि पर लगाया जाने वाला कर।
1991 में देश में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत के बाद से कर संरचना में भारी परिवर्तन आया है। करों की संख्या पहले से काफ़ी ज्यादा बढ़ चुकी है। किये गये परिवर्तनों में शामिल हैं- कर संरचना को तार्किक बनाना, कस्टम ड्यूटी, कार्पोरेट टैक्स, कस्टम ड्यूटी में कमी करना जिससे कि वे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों यानि आसियान के समतुल्य हो जाएं, देश में वैट को लागू करना इत्यादि।
मूल्य वर्धित कर (वैट)
राज्य स्तर पर वैट की शुरुआत करके देश में कर सुधारों की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया गया है। वैट राज्यों की पहली बिक्री कर प्रणाली के स्थान पर लाया गया है। वैट एक ऐसा कर है जो जिसे वस्तुओं व सेवाओं के अंतिम उपभोग पर लगाया जाता है और अंतोगत्वा इसका भार उपभोक्ता पर पड़ता है। वैट मुख्य रूप से राज्य का विषय है जिसे राज्यों की सूची से उठाया गया है। वर्तमान में वैट की दो मुख्य दरें हैं-
- 4 प्रतिशत
- 12.5 प्रतिशत।
इसके अतिरिक्त कुछ चीजों पर छूट भी दी गई है और कुछ चुनी हुई चीजों पर 1 प्रतिशत का ही कर लगाया जाता है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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