चरित्रहीन (उपन्यास)

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चरित्रहीन (अंग्रेज़ी: Choritrohin) बांग्ला भाषा के महान उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित एक जनप्रिय बांग्ला उपन्यास है। यह उपन्यास 1917 मेंं प्रकाशित हुआ था। इसमेंं मेस जीवन के वर्णन के साथ मेस की नौकरानी (सावित्री) से प्रेम की कहानी है। नारी का शोषण, समर्पण और भाव-जगत तथा पुरुष समाज मेंं उसका चारित्रिक मूल्यांकन, इससे उभरने वाला अन्तर्विरोध ही इस उपन्यास का केन्द्र बिन्दु है।

  • शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने ‘चरित्रहीन’ को जब लिखा, तब उन्हें काफी विरोध का सामना करना पड़ा था; क्योंकि उसमेंं उस समय की मान्यताओं और परम्पराओं को चुनौती दी गयी थी। 'भारतवर्ष' के संपादक कविवर द्विजेन्द्रलाल राय ने इसे यह कहकर छापने से मना कर दिया था कि यह सदाचार के विरुद्ध है।
  • नारी मन के साथ-साथ इस उपन्यास मेंं शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने मानव मन की सूक्ष्म प्रवृत्तियों का भी मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है, साथ ही यह उपन्यास नारी की परम्परावादी छवि को तोड़ने का भी सफल प्रयास करता है।
  • उपन्यास प्रश्न उठाता है कि देवी की तरह पूजनीय और दासी की तरह पितृसत्ता के अधीन घुट-घुटकर जीने वाली स्त्री के साथ यह अन्तर्विरोध और विडम्बना क्यों है?
  • शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के घर मेंं लगी आग मेंं उनकी कई पुस्तकों की पाण्डुलिपियाँ जलकर राख हो गयी थीं। उनमें 'चरित्रहीन' भी थी जिसके 500 पृष्ठों के जलने का उन्हें बहुत दु:ख रहा, लेकिन वे निराश नहीं हुए। दिन-रात असाधारण परिश्रम कर उसे पुनः लिखने में समर्थ हुए। लिखने के बाद शरत् बाबू ने इसके सम्बन्ध मेंं अपने काव्य-मर्मज्ञ मित्र प्रमथ बाबू को लिखा- केवल नाम और प्रारम्भ को देखकर ही चरित्रहीन मत समझ बैठना। मैं नीतिशास्त्र का सच्चा विद्यार्थी हूँ। नीतिशास्त्र समझता हूँ। कुछ भी हो, राय देना, लेकिन राय देते समय मेंरे गम्भीर उद्देश्य को याद रखना। मैं जो उलटा-सीधा कलम की नोंक पर आया, नहीं लिखता। आरम्भ मेंं ही जो उद्देश्य लेकर चलता हूँ, वह घटना चक्र मेंं बदला नहीं जाता। प्रमथ बाबू की हिम्मत उस पुस्तक के प्रकाशन की जिम्मेंदारी लेने की नहीं हुई।
  • यह उपन्यास ‘चरित्र’ की अवधारणा को भी पुनःपरिभाषित करता है। उपन्यास मेंं तत्कालीन हिन्दू समाज का अच्छा चित्रण है और पश्चिमी सोच के प्रभाव और रूढीवादी बंगाली समाज के द्वन्द पर भी अच्छा प्रकाश डाला है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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