जनता पार्टी

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जनता पार्टी
चुनाव चिह्न हल ले जाता हुआ किसान
चुनाव चिह्न हल ले जाता हुआ किसान
पूरा नाम जनता पार्टी
गठन 23 जनवरी, 1977
संस्थापक जयप्रकाश नारायण
चुनाव चिह्न हल ले जाता हुआ किसान
विशेष जनता पार्टी ने 1977 से 1980 तक भारत सरकार का नेतृत्व किया। इस दौरान मोरारजी देसाई और चौधरी चरण सिंह भारत के प्रधानमंत्री बने।
अन्य जानकारी आंतरिक मतभेदों के कारण जनता पार्टी 1980 में टूट गयी।
संसद में सीटों की संख्या
लोकसभा -
राज्यसभा -

जनता पार्टी का गठन भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लागू आपातकाल (1975-1976) के बाद जनसंघ सहित भारत के प्रमुख राजनैतिक दलों का विलय करके हुआ था। जनता पार्टी ने 1977 से 1980 तक भारत सरकार का नेतृत्व किया। आंतरिक मतभेदों के कारण जनता पार्टी 1980 में टूट गयी।

जनता पार्टी का उदय

देश में आपातकाल के बाद 1977 में जो चुनाव हुआ था, वो अपने-आप में अलग क़िस्म का था। लोगों के सामने ये सवाल कम था कि कौन अच्छा है और कौन बुरा, बल्कि ये सवाल ज़्यादा था कि लोगों की आपातकाल के बारे में क्या राय है। उसके प्रति लोगों ने जिस तरह से वोट दिया था, उससे साफ़ ज़ाहिर था कि लोगों ने आपातकाल को ख़ारिज कर दिया था। यहां तक कि इंदिरा गांधी खुद भी चुनाव हार गई थीं, संजय गांधी हार गए थे और सारे हिन्दुस्तान में जिसका भी ताल्लुक आपातकाल से था, वो चुनाव जीत नहीं पाए थे। आमतौर पर वही लोग चुने गए थे, जिन्होंने आपातकाल का विरोध किया था और जिनके साथ ज़्यादती की गई थी। नेतागण भी वे ही थे जो लम्बी जेलें काट चुके थे। कई समाचार-पत्रों के मुताबिक़ चुनाव इसलिए जल्दी कराए गए थे ताकि विपक्षी दलों को इकट्ठा होने का मौका न मिल सके. इसके बावजूद लोग बहुत तेज़ीके साथ इकट्ठा हुए और जनता पार्टी बन गई।[1]

गठबंधन

कई विचारधाराओं और छोटे-बड़े दलों को जोड़कर बनी यह पहली पार्टी थी जिसका आधार था, आपातकाल का विरोध करना और विचारधारा की सीमाओं से ऊपर उठकर एक साथ इकट्ठा होना। कुछ दिनों तक पार्टी के नेता और भावी प्रधानमंत्री को लेकर विवाद चलता रहा। हालांकि जयप्रकाश नारायण का कद बहुत ऊँचा था लेकिन उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था। इंदिरा गाँधी को 1977 के चुनाव में बुरी तरह पराजय मिली। जगजीवन राम, चौधरी चरण सिंह और मोरारजी देसाई का नाम सामने आया। जयप्रकाश नारायण ने भी मोरारजी के नाम पर अपनी सहमति जताई। आख़िरकार मोरारजी देसाई जनता पार्टी के नेता चुन लिए गए। मोरारजी देसाई को नेता बनाने का फैसला काफ़ी दबाव के बीच हुआ था। साझा कार्यक्रम बनाने में भी काफ़ी देर लगी क्योंकि पार्टी में कई किस्म के लोग थे जिनकी बुनियादी विचारधारा अलग-अलग थी। इतनी अड़चनों के बावजूद साझा कार्यक्रम बन गया जो ख़ुद में एक उपलब्धि था। यह एक व्यापक साझा कार्यक्रम था। इसमें स्वतंत्रता आंदोलन का अक्स था क्योंकि पार्टी में ऐसे कई नेता थे जो स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े हुए थे।[1]

मज़बूती और कमज़ोरी

आपातकाल के दौरान कई लोग जेल काट चुके थे। इससे एक नई ‘कॉमरेडशिप’ विकसित हुई। हालांकि जो लोग उस वक्त के जनसंघ से, कांग्रेस से या समाजवादी पार्टी से आए थे, उनकी सोच में काफ़ी फ़र्क था। इसके बावजूद आपातकाल के दौरान की गई ज्यादती ने लोगों को इकट्ठा कर दिया। यही इस गठबंधन की मजबूती थी। कमज़ोरी यह थी कि इसमें नेता बहुत थे और कुछ समय बाद उनके राजनीतिक कद आड़े आने लगे। ये लोग व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को नीचे रखकर हमेशा के लिए एक पार्टी नहीं बना सके।[1]

जनता पार्टी का अस्त

चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। 1979 के दौरान कांग्रेस ने अंदर से चौधरी चरण सिंह और हेमवती नंदन बहुगुणा को बढ़ावा दिया। इसके बाद जनता पार्टी में विवाद शुरू हो गया। सदस्य छोड़कर जाने लगे। व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं बड़े उद्देश्यों के आड़े आने लगे, पार्टी में दरार पड़ गई, पार्टी टूट गई और कांग्रेस ने इसका फ़ायदा उठाया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 जनता पार्टी के उदय और अस्त की यादें (हिंदी) बीबीसी हिंदी। अभिगमन तिथि: 8 जून, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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