क्यों न उसकी हो दिलरुबा पहुँची । जिसके पहुँचे पै हो किफ़ा पहुँची । ग़र पहुँच हो तो हम मलें आँखें । ऐसी इसकी है ख़ुशनुमा पहुँची । दिल को पहुँचे है रंज क्या-क्या वह । अपनी लेता है जब छिपा पहुँची । एक छड़ी गुल की भेजकर इसको । फ़िक्र थी वह न पहुँची या पहुँची । सुबह पूंछी रसीद जब तो ’नज़ीर’ । दी हमें शोख ने दिखा पहुँची ।।