भारत सरकार टकसाल, मुम्बई
भारत सरकार टकसाल, मुम्बई
| |
विवरण | भारत सरकार टकसाल, मुम्बई एक आई.एस.ओ 9001:2008 तथा आई.एस.ओ 14001:2004 प्रमाणित इकाई है जो भारतीय मुद्रा के सिक्के बनाने का कार्य करती है। |
स्थापना | सन् 1829 |
स्वामित्व | भारत सरकार |
संबंधित लेख | टकसाल, कोलकाता टकसाल, हैदराबाद टकसाल, नोएडा टकसाल |
अन्य जानकारी | भारतीय सिक्कों के अतिरिक्त सत्यापन मुहरें, पहचान मोहरें, चतुर्थांश मोहरें, विरूपण मोहरें भी यहाँ बनाई जाती हैं। |
भारत सरकार टकसाल, मुम्बई (अंग्रेज़ी: India Government Mint, Mumbai) भारत प्रतिभूति मुद्रण तथा मुद्रा निर्माण निगम लिमिटेड (एस.पी.एम.सी.आई.एल.) की एक इकाई है तथा भारत सरकार के पूर्ण स्वामित्वाधीन है। 1829 से उत्तम उत्पादों से सफलतापूर्वक राष्ट्र की सेवा कर रहे हैं तथा ग्राहक संतुष्टि का उच्चतम स्तर प्राप्त करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। भारत सरकार टकसाल, मुम्बई एक आईएसओ 9001:2008 तथा आईएसओ 14001:2004 प्रमाणित इकाई है।
इतिहास
मुंबई टकसाल भारत की सबसे पुरानी टकसालों में से एक है। इसके इतिहास की जड़ें सत्रहवीं शताब्दी के अंतिम 25- 30 वर्षों से जुड़ीं हैं। सिक्कों की तरह टकसाल का इतिहास भी शताब्दी दर शताब्दी चलता रहा। एक छोटी सी जगह में छेनी हथौड़ी से ठोंक-पीट कर सिक्के बनाए जाने से लेकर, क्वाइल मशीन में डालने पर छपे-छपाए तैयार सिक्के निकलने तक की विकास गाथा मे कई रोचक कहानियाँ शामिल हैं- जैसे प्राचीन काल में सिक्कों का वजन ग्राम से नहीं बल्कि अनाज के दानों से निर्धारित किया जाता था।
- मुंबई में पहली टकसाल गवर्नर अंगियर ने रुपये,पाइयाँ और बज्रुक ढालने के लिए स्थापित की थी। मुंबई टकसाल का पहला रुपया 1672 में ढाला गया था। ये सिक्के मुंबई किले में ढाले गए थे। यह किला उस जगह स्थित था जहाँ आज टाउन हाल के पास आई.एन.एस.आंग्रे स्थित है। आज जहाँ भारतीय रिज़र्व बैंक की बहु मंजिली इमारत खड़ी हैं उस जगह पर एक तालाब था।
- वर्तमान टकसाल 1824 से 1830 के बीच बॉबे इंजीनियर्स के कैप्टन हॉकिंस ने बनवाई थी। जनवरी 1830 में मि. जेम्स फेरिश मास्टर आफ द मिंट नियुक्त किए गए। कई वर्षों तक भाप के तीन इंजनों द्वारा 1,50,000 सिक्के प्रतिदिन का उत्पादन होता रहा।
- 1863 में कर्नल बैलार्ड मुंबई मिंट के मिंट मास्टर बने। मि. बैलार्ड लोकप्रय ब्रिटिश मिंट मास्टर थे। उन्होंने मुंबई में समुद्र को पाट कर जमीन निकाली थी जो आजकल बैलार्ड पियर के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र को यह नाम उन्हीं की स्मृति में दिया गया है।
- मुंबई टकसाल प्रारम्भ में महामहिम गवर्नर ऑफ बॉम्बे प्रेसीडेंसी के नियंत्रण में थी। इसके बाद वित्त विभाग ने संकल्प क्रमांक 247 दिनांक 18 मई, 1876 द्वारा इसे भारत सरकार को हस्तांतरित कर दिया।
- 1893 तक भारतीय टकसालें भारतीय सिक्का ढलाई अधिनियम XVII-1835, XIII-1862 Ta XXIII -1870 द्वारा नियंत्रित थीं। नये सिक्का ढलाई अधिनियम 1906, समय-समय पर यथा संशोधित, के अनुसार भारतीय टकसालों में एक हजार मूल्यवर्ग तक के सिक्के ढाले जा सकते हैं।
- 1918-19 में टकसाल में एक स्वर्ण परिष्करणशाला स्थापित की गई। इसमें क्लोरीन पद्धति से स्वर्ण परिष्करण प्रारंभ किया गया। इसमें दक्षिण अफ्रीका तथा भारतीय खदानों से आने वाला सोना परिष्कृत किया जाता था। 1918-19 में इस टकसाल में ब्रिटिश सोवरेन ढालने के लिए रायल मिंट आफ लंदन की एक शाखा खोली गई जो कि 12.95 लाख सोवरेन ढालने के बाद अप्रैल 1919 में बंद कर दी गई। बाद में इसी स्थान को मिंट मास्टर का आवास बना दिया और अब यह मिंट हाउस कहलाता है|
- 1929 में चाँदी की परिष्करणशाला स्थापित की गई। इसकी क्षमता 80 मिलियन ओंस प्रति वर्ष थी। 1947 में शुद्ध निकल के सिक्के ढाले गए। अगस्त 1950 में सिक्कों से ब्रिटिश राजाओं की मूर्तियाँ हटा कर अशोक स्तंभ अंकित किया गया।
- 1957 से भारत में दशमलव प्रणाली लागू हुई। इसी वर्ष श्री बी.एस.डी.अय्यर पहले भारतीय मिंट मास्टर बने। 1964 में स्मारक सिक्कों का उत्पादन प्रारंभ हुआ। पहला स्मारक सिक्का तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की स्मृति में बनाया गया। उसके बाद अब तक विविध विषयों पर स्मारक सिक्के ढाले जाते रहे हैं।
- मुंबई टकसाल की एक अन्य प्रमुख गतिविधि वजन के प्रामाणिक , माध्यमिक प्रचलित मानक तथा तरल मापक के माध्यमिक एवं प्रचलित मानक बनाना है। ये मानक मापक राज्य सरकारों के कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बाज़ार की दैनिक व्यापारिक गतिविधियों में माप-तौल की शुद्धता सत्यापित करने के लिए भारत की सभी राज्य सरकारों द्वारा उपयोग किए जाते हैं।
- टकसाल में एक पदक विभाग है। यहाँ रक्षा मंत्रालयों, विश्वविद्यालयों, स्कूलों- कॉलेजो, विभिन्न मंदिरों के ट्रस्ट तथा अन्य सरकारी - गैर सरकारी संस्थानों के पदक बनाने का कार्य किया जाता है। टकसाल में एक धातु परीक्षण विभाग भी है जोकि उतना ही पुराना है जितनी टकसाल। धातु परीक्षण विभाग का प्राथमिक कार्य टकसाल में बनाए जाने वाले सिक्कों की गुणवत्ता की जांच करना तथा देश की सिक्का ढलाई के वैधानिक मानक सुनिश्चित करना तथा उन्हें बनाए रखना है।
- वर्ष 2006 में भारत सरकार ने सभी टकसालों और मुद्रणालयों और कागज कारखानों के निगमीकरण का निर्णय लिया। तदनुसार वित्त मंत्रालय आर्थिक कार्य विभाग के अधीन सभी नौ इकाइयों (टकसालों, मुद्रणालयों और कागज कारखानों) का प्रतिभूति मुद्रण एवं मुद्रा निर्माण निगम लिमिटेड निगम बन गया।
- पदक विभाग रक्षा विभाग तथा अन्य विभिन्न सरकारी विभागों ,खजानों, विश्वविद्यालयों तथा अन्य शैक्षणिक संगठनों, सामाजिक संस्थानों देवस्थानम आदि के लिए पदक तैयार करने का काम करता है। इस विभाग द्वारा किए जाने वाले कार्य इस प्रकार हैं :
- प्रूफ एवं अपरिचालित सिक्कों के सेट/ वी.वी.आई.पी-वीआईपी सेट
- पदकों का निर्माण
- इलेक्ट्रो- प्लेटिंग
- बफिंग एवं पॉलिशिंग[1]
सिक्का ढलाई गतिविधि
प्रचलित सिक्के
प्रचलित सिक्के ढालना मुम्बई टकसाल की प्रमुख गतिविधि है। 1893 तक भारतीय टकसालों का प्रचलन सिक्का ढलाई अधिनियम XV।।। - 1835, X।।।, - 1862 तथा 1870 - XX।।।, द्वारा नियंत्रित था। नए सिक्का ढलाई अधिनियम 1906 समय–समय पर संशोधित, के अनुसार एक हजार मूल्य वर्ग तक के सिक्के ढाले जा सकते हैं। अब पुराने सभी सिक्का ढलाई अधिनियम बदल दिए गए हैं तथा जुलाई 2011 से एक नया सिक्का ढलाई अधिनियम लागू हो गया।
स्मारक सिक्के
स्मारक सिक्के, किसी घटना, अवसर, स्थान, व्यक्ति, संगठन या किसी महापुरुष की स्मृति को स्मरणीय बनाने के लिए ढाले जाते हैं तथा इनका विमोचन भी गणमान्य व्यक्तियों द्वारा किया जाता है। स्मारक सिक्कों की ढलाई 1964 से प्रारंभ हुई तथा पहला स्मारक सिक्का तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू पर ढाला गया। तब से मुंबई टकसाल ने बहुत सारे स्मारक सिक्के जारी किये हैं। स्मारक सिक्के दो प्रकार कर होते हैं - प्रूफ एवं अप्रचलित।
- प्रूफ सिक्के
प्रूफ सिक्के उच्च गुणवत्ता वाले स्मारक सिक्के् होते हैं जिन पर शीशे जैसी चमक होती है लेकिन डिजाइन पर तुषार बिंदु का प्रभाव होता है। इन सिक्कों पर M चिह्न अंकित रहता है जिससे ज्ञात होता है कि ये मुम्बई टकसाल में ढाले गए हैं। इन सिक्कों की कीमत अपेक्षाकृत अधिक होती है क्योंकि ये उच्चा गुणवत्ता वाले मानकों पर बनाये जाते हैं।
- अप्रचलित सिक्के
अप्रचलित सिक्के भी उच्च गुणवत्ता वाले स्माणक सिक्के् हैं, इनकी सतह पर शीशे जैसी चमक होती है लेकिन डिजाइन पर तुषार बिंदु का प्रभाव नहीं होता। प्रूफ सिक्कों की तुलना में इनकी कीमत कम होती है।
गैर सिक्का ढलाई गतिविधियाँ
पदक विभाग
पदक विभाग रक्षा विभाग तथा अन्य विभिन्न सरकारी विभागों ,खजानों, विश्वविद्यालयों तथा अन्य शैक्षणिक संगठनों, सामाजिक संस्थानों देवस्थानम आदि के लिए पदक तैयार करने का काम करता है। भारत के लगभग सभी बड़े संस्थानों के लिए पदक बनाए हैं।
धातु परीक्षण विभाग
धातु परीक्षण विभाग उतना ही पुराना है, जितनी टकसाल। धातु परीक्षण विभाग का प्राथमिक कार्य विभिन्न मूल्यवर्ग के सिक्कों की ढलाई की गुणवत्ता जांचना करना तथा देश की सिक्का ढलाई के उचित वैधानिक मानक सुनिश्चित करता है तथा कायम रखना है। इसके अतिरिक्त बाहरी पार्टियों से प्राप्त सोने तथा अन्य बहुमूल्य धातुओं की शुद्धता का परीक्षण करता है।
स्वर्ण/रजत परिष्क रण
मुम्बई टकसाल में शुरु से ही एक सुसज्जित धातु परीक्षण विभाग के साथ-साथ स्वर्ण गलन एवं संसाधन गतिविधियाँ भी चल रही हैं। स्वर्ण नियंत्रण अधिनियम के दौरान मुम्बई टकसाल स्वर्ण संसाधन के लिए एक मात्र अधिकृत इकाई थी जो सोने को गहने के अतिरिक्ति किसी भी रुप में शुद्ध करके देती थी। एक्वा् रेजिया स्वर्ण/रजत परिष्केरण संयत्र लग जाने के बाद अब हमारे पास 999.9 तक सोना शुद्ध करने की सुविधा उपलब्ध है।
माप एवं तौल मानक तथा अंकन उपकरणों का निर्माण
मुंबई टकसाल की एक महत्वपूर्ण गतिविधि संदर्भ, मानक और सक्रिय माप एवं तौल तथा गौण एवं सक्रिय क्षमता मापक है। ये मापक राज्य सरकारों के कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राज्य सरकारों के विधिक माप तौल निरीक्षक मुंबई टकसाल के मानक उपकरणों द्वारा बाज़ार में दुकानदारों के मापकों का निरीक्षण करते हैं। इसके अतिरिक्त सत्यापन मुहरें, पहचान मोहरें, चतुर्थांश मोहरें , विरूपण मोहरें भी यहाँ बनाई जाती हैं।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 हमारे बारे में (हिंदी) आधिकारिक वेबसाइट। अभिगमन तिथि: 7 सितम्बर, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख