विधान सभा भारत के राज्यों में लोकतन्त्र की निचली प्रतिनिधि सभा है। यह विधान मण्डल का अंग है। इसके सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष तौर पर मतदान के द्वारा होता है जिसमें 18 वर्ष से ऊपर के सभी भारतीय नागरिक मतदान करते हैं। मुख्यमंत्री विधान सभा का नेता होता है जिसे बहुमत दल के सभी सदस्य या कई दल संयुक्त रुप से चुनते हैं। राज्य का विधान सभा में 500 से अनधिक और कम से कम 60 सदस्य राज्य में क्षेत्रीय चुनाव क्षेत्रों से प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने जाते हैं।[1] क्षेत्रीय चुनाव का सीमांकन ऐसा किया जाना है कि प्रत्येक चुनाव क्षेत्र की जनसंख्या और इसको आबंटित सीटों की संख्या के बीच अनुपात जहां तक व्यावहारिक हो पूरे राज्य में एक समान हो। संविधान सभा का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है जब तक कि इसे पहले भंग न किया जाए।
अधिकार और कार्य
राज्य विधान मंडल को संविधान की सातवीं अनुसूची 2 में बताए गए विषयों पर और उसके साथ अनुसूवी 3 में बताए गए विषय में सूचीबद्ध अधिकारों पर विशिष्ट अधिकार हैं जिनमें राज्य सरकार द्वारा किए जाने वाले सभी व्ययों, कर निर्धारण और उधार लेने के प्राधिकार शामिल हैं। राज्य विधान सभा को अकेले ही यह अधिकार है कि मौद्रिक विधेयक का उदभव करे। विधान सभा से मौद्रिक विधेयक प्राप्त होने के 14 दिनों के अंदर अनिवार्य पाए जाने पर विधान परिषद केवल इसमें किए जाने वाले परिवर्तनों की सिफारिश कर सकती है। विधान सभा इन सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है।
विधेयकों का आरक्षण
एक राज्य के राज्यपाल को अधिकार है कि वह राष्ट्रपति के पास विचाराधीन किसी विधेयक को आरक्षित करे। सम्पत्ति के अनिवार्य अधिग्रहण, उच्च न्यायालय की स्थिति और अधिकारों को प्रभावित करने वाले उपाय और अंतर राज्यीय नदी या नदी घाटी विकास परियोजना में बिजली वितरण या पानी के भंडारण, वितरण और बिक्री पर कर आरोपण जैसे विषयों पर विधेयकों को अनिवार्यत: इस प्रकार आरक्षित किया जाए। राष्ट्रपति के पूर्व अनुमोदन के बिना, अंतर-राजीय व्यापार पर प्रतिबंध लगाने वाले किसी विधयेक को राज्य विधान मंडल में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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