एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "१"।

हिवरे बाज़ार

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

हिवरे बाज़ार (अंग्रेज़ी:Hiware Bazar) महाराष्ट्र राज्य के अहमदनगर ज़िले का एक गाँव है। कभी भयंकर सूखा प्रभावित इलाके में गिना जाने वाला हिवरे बाज़ार आज समृद्धि की उजली मिसाल बन चुका है। इस गांव में 1995 तक लोगों की प्रतिव्यक्ति आय थी-800 रुपए महीना। वर्तमान में यह 30,000 रुपए महीना हो चुकी है। गांव में क़रीब 250 परिवार हैं। आबादी 1,550 के क़रीब। इनमें से 63 लोग करोड़पति हैं। पहले 1995 तक यहां 90 कुएं होते थे। इनमें पानी भी 80 से 125 फीट तक होता था। आज यहां 295 कुएं हैं। और पानी 15 से 45 फीट तक मिल जाता है, जबकि अहमदनगर ज़िले के दूसरे इलाकों में 200 फीट तक पानी मिल पाता है। गांव वालों ने मिट्टी के 52 बांध बनाए। बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए दो बड़े टैंक और 32 पथरीले बांध और नौ चैकडैम भी बनाए। सरकार से जो पैसा मिला उसे भी गांव में सही तरीके से इस्तेमाल किया गया। गांव में बारिश हो तो अब भी कम ही रही थी, लेकिन पानी रुक ज्यादा रहा था। इससे सिंचाई का क्षेत्र बढ़ गया। इतने बांध और चैकडैम बनने के बाद पहले मानसून में ही सिंचाई का क्षेत्र 20 हेक्टेयर से बढ़कर 70 हेक्टेयर हो गया। साल 2010 में गांव में सिर्फ 190 मिलीमीटर बारिश हुई, लेकिन खेतों में पैदावार, आसपास के कई गांवों की तुलना में बेहद ज्यादा। देश का यह इकलौता गांव है, जहां वाटर ऑडिट होती है। चिलचिलाती गर्मी में भी हिवड़े बाज़ार के पेड़ फलों से लदे होते हैं। पथरीले मैदान पर बसे इस गांव का हर बच्चा स्कूल जाता है और स्कूल में पानी के संरक्षण का कोर्स अनिवार्य है। पानी के संरक्षण के लिए जो भी काम होते हैं, उनमें गांव के सभी लोग स्वेच्छा से हिस्सा लेते हैं। पानी का उपयोग ठीक ढंग से हो रहा है या नहीं, इस पर हर माह ग्रामसभा की बैठक में विचार होता है। निगरानी रखी जाती है। सूखे के मौसम में मूंग और बाजरा जैसी फसलें खेतों से ली जाती हैं। ये ऐसी फसलें हैं, जिनके लिए कम पानी की ज़रूरत होती है। जब पानी खूब होता है तो गेहूं जैसी पैदावार ली जाती है। ड्रिप सिंचाई तकनीक का भी इस्तेमाल किया जाता है। ख़ासकर सब्जियां उगाने के लिए। बदलाव की यह बयार लाने में पवार और उनके साथियों को 21 साल लगे।[1]

गांधीजी के सपने को साकार करता 'हिवरे बाज़ार'

एक गांव जहां पर लोग अपने उपनाम के रूप में लगाते हैं अपने गांव का नाम। एक गांव जहां पर व्यापक मंदी के इस दौर में मंदी का कोई असर नहीं हैं। एक गांव जहां से अब कोई पलायन पर नहीं जाता है। एक गांव जहां पर कोई भी व्यक्ति शराब नहीं पीता है। एक गांव जहां पर शिक्षक स्कूल से गायब नहीं होते हैं। एक गांव जहां पर आंगनवाड़ी रोज खुलती है। एक गांव जहां पर बच्चे कुपोषित नहीं है। एक गांव जहां पर राशन व्यवस्था ग्राम सभा के अनुसार संचालित होती है। एक गांव जहां पर गांव की सड़कों पर गंदगी नहीं होती है। एक गांव जिसे जल संरक्षण का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है। एक गांव जहां हर घर गुलाबी रंग से पुता है। एक गांव जहां गांव के एकमात्र मुस्लिम परिवार के लिये भी मस्जिद है। यह उस गांव के हाल हैं जहां सत्ता दिल्ली/मुम्बई में बैठी किसी सरकार द्वारा नहीं बल्कि उसी गांव के लोगों द्वारा संचालित होती है। यह कोई सपना सा ही लगता है, लेकिन यह सपना साकार हो गया है हिवरे बाज़ार में। हिवरे बाज़ार प्रतिनिधि है महात्मा गांधी के सपनों के भारत का। महात्मा गांधी ने कहा था कि सच्ची लोकशाही केन्द्र में बैठे हुये 20 आदमी नहीं चला सकते हैं, वह तो नीचे से हर एक गांव में लोगों द्वारा चलाई जानी चाहिये। सत्ता के केन्द्र इस समय दिल्ली, कलकत्ता व मुंबई जैसे नगरों में है। मैं उसे भारत के 7 लाख गांवों में बांटना चाहूंगा। गांधी का यह हमेशा एक आदर्श वाक्य की तरह लगता रहा है लेकिन इस आदर्श वाक्य को हिवरे बाज़ार ने साकार कर दिया है। यह बिल्कुल फिल्मी पटकथा की तरह लगता है लेकिन है बिल्कुल सत्य। 1989 में हिवरे बाज़ार ने कुछ पढ़े-लिखे नौजवानों ने यह बीड़ा उठाया कि क्यों न अपने गांव को संवारा जाये ...! गांव वालों से बातचीत की गई तो गांव वालों ने कल के छोकरे कह कर एक सिरे से नकार दिया। युवकों ने हिम्मत न हारी और अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। गांव वालों ने भी युवकों की चुनौती को गंभीरता से लिया और 9 अगस्त को सौंपी गई नवयुवकों को एक वर्ष के लिये सत्ता।

पोपटराव पवार

गाँव की सत्ता मिली तो नवयुवकों ने सत्ता सौंपी पोपटराव पवार को। पोपटराव पवार उस समय महाराष्ट्र की ओर से प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलते थे। हिवरे बाज़ार में अब 9 अगस्त को भारतीय क्रांति दिवस मनाया जाता है। युवकों ने इस एक वर्ष को अवसर के रूप में देखा। गांव में पहली ग्राम सभा की गई और चुनी गई प्राथमिकतायें। बिजली, पानी के बीच बात शिक्षा की भी आई। सामूहिक सहमति बनी शिक्षा के सवाल पर। इस समय स्कूल में शिक्षक बच्चों से शराब मंगाकर स्कूल में पीते थे। स्कूल में न तो खेल का मैदान और न थी बैठने की व्यवस्था। ग्रामसभा में सबसे पहले युवकों ने गांव वालों से अपील की कि अपनी बंजर पड़ी जमीन को स्कूल के लिये दान दें। शुरू में दो परिवार तैयार हुये और बाद में कई। एक अतिरिक्त कक्ष के निर्माण के लिये स्वीकृत 60,000 रुपये की राशि आई। उचित नियोजन व गांववालों के श्रमदान की बदौलत दो कमरों का निर्माण किया। यह युवकों का गांव वालों को विश्वास देने वाला एक कृत्य था। एक वर्ष खत्म हुआ, समीक्षा हुई। गांव वालों ने अब इन नवयुवकों को पांच वर्षों के लिये सत्ता सौंपने का निश्वय किया।

भू-सुधार एवं जल संरक्षण

पोपटराव के कुशल नेतृत्व में युवकों ने गांव का बेसलाईन तैयार करना शुरू किया। गांव में औसतन प्रति व्यक्ति सालाना आय 800 रुपये थी। गांव के हर परिवार से लोग पलायन पर जाते थे, गांव में रह जाते थे केवल तो बूढ़े, महिलायें और बच्चे। जिन लोगों के पास जमीन थी वो केवल एक फसल ले पाते थे। सिंचाई के लिये पानी तो था ही नहीं। कुल मिलाकर 400 मि.मी. वर्षा होती थी। पोपट राव कहते हैं कि हमने सामूहिक रूप से इस विषय पर सोचना शुरू किया। पहले गांव वाले वनविभाग द्वारा लगाये पौधों को ही काट कर ले जाते थे। जब हमने तय किया गया कि भू-सुधार व जल संरक्षण के काम किये जायेंगे तो हमने 10 लाख पेड़ लगाये और 99 फीसदी सफल हुये। अब इस जंगल में वनविभाग को जाने के लिये भी ग्रामसभा की अनुमति लेनी होती है। पोपटराव कहते हैं कि शुरू में कई निर्णयों पर बहुत विरोध हुआ, हमने कहा कि गांव के हित में यह निर्णय ठीक होगा, इसके दूरगामी परिणाम सामने आयेंगे। जैसे कि टयूबवेल कृषि में उपयोग नहीं करे जायेंगे, और ज्यादा पानी वाली फसलें नहीं लगाई जायेंगी। गन्ना केवल आधे एकड़ में ही लगाया जायेगा, जो कि हरे चारे के रुप में उपयोग में लाया जा सकता है। हम सबने मिलकर जलग्रहण क्षेत्र का काम करना शुरू किया। कुछ सरकारी राशि और कुछ श्रमदान। तीन चार वर्षों बाद वॉटरशेड ने असर दिखाना शुरू किया। भूजल स्तर बढ़ा और मिट्टी में नमी बढ़ने लगी। लोगों ने दूसरी और तीसरी फसल की ओर रुख किया। अब यहां सब्जी भी उगाई जाती है। भूमिहीनों को गांव में ही काम मिलने लगा। लोगों का पलायन पर जाना बंद हुआ। ग्राम की ही ताराबाई मारुति कहती हैं कि पहले मज़दूरी करने हम लोग दूसरे गांव जाते थे। आज हमारे पास 16-17 गायें हैं और हम 250-300 लिटर दूध प्रतिदिन बेचते हैं। पूरे गांव से लगभग 5000 लिटर दूध प्रतिदिन बेचा जाता है। आज गांव की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय सालाना 800 रुपये से बढ़कर 28,000 हो गई है यानी पांच व्यक्तियों के परिवार की औसत आय 1.25 लाख रुपये सालाना है।

आंगनवाड़ी व्यवस्था में सुधार

पूरे देश में आंगनवाडियाेंं के जो हाल हैं वे किसी से छिपे नहीं है। लेकिन लगभग आधे एकड़ में फैली है यहां की आंगनवाड़ी। यहां की दीवारें बोलती हैं। इस आंगनवाड़ी के आंगन में फिसल पट्टी है, पर्याप्त खेल-खिलौने हैं, प्रत्येक बच्चे के लिये पोषणाहार हेतु अलग-अलग बर्तन, स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था है। बच्चों का नियमित परीक्षण होता है। यहां बच्चे कुपोषित नहीं है। यह आंगनवाड़ी समय सीमा से भी नहीं बंधी है। गांव वाले जानते हैं कि बच्चे का मानसिक व शारीरिक विकास 6 वर्ष की उम्र में ही होता है तो फिर आंगनवाड़ी तो बेहतर होना ही चाहिये। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ईराबाई मारुति कहती हैं कि जब इन बच्चों की जिम्मेवारी मेरी है तो फिर मैं क्यों कतराऊं ! मैं कुछ गड़बड़ भी करती हूं तो फिर मुझे ग्रामसभा में जवाब देना होता है। वे बड़े गर्व से कहती हैं कि मेरी आंगनवाड़ी को केन्द्र सरकार से सर्वश्रेष्ठ आंगनवाड़ी का पुरस्कार मिला है। पोपटराव बताते हैं कि हमारे गांव में पहले से ही दो आंगनवाड़ी थीं और तीसरी आंगनवाड़ी बनाने का आर्डर आया। हम पूरे लोगों ने विचार किया कि हमारे यहां बच्चों कीे संख्या उतनी तो है नहीं कि तीसरी आंगनवाड़ी आनी चाहिये, फिर उसके लिये संसाधन वगैरह भी चाहिये। हम उतनी निगरानी भी नहीं रख पायेंगे। हमने शासन को पत्र लिख कर तीसरी आंगनवाड़ी को वापिस लौटाया।

शिक्षा में सुधार

पहले बच्चों को पांचवीं के बाद से ही बाहर जाना पड़ता था, जिससे अधिकांश बालिकायें ड्राप आऊट हो जाती थीं। अब स्कूल हायर सेकेण्ड्री तक हो गया है। स्कूल का समय शासन के अनुसार नहीं चलता है, बल्कि ग्रामसभा तय करती है। स्कूल में मध्यान्ह भोजन भिक्षा के रूप में नहीं बल्कि बच्चों के अधिकार के रुप में। शिक्षिका शोभा थांगे कहती हैं कि हम लोग ग्रीष्मकालीन अवकाश में भी आते हैं। यहां पढ़ाई किसी बड़े कॉन्वेन्ट स्कूल से बेहतर होती है। यही कारण है कि आज, हिवरे बाज़ार के इस गांव में आसपास के गांव और शहरों से 40 प्रतिशत छात्र-छात्रायें आते हैं। पोपटराव कहते हैं कि हमारे यहां शिक्षकों को ग्रामसभा में तो आना ज़रूरी है लेकिन चुनाव डयूटी में जाने की आवश्यकता नहीं है। गांव में ए.एन.एम. आती नहीं है बल्कि यहीं रहती हैं। गांव के हर बच्चे का टीकाकरण हुआ है। हर गर्भवती महिला को आयरन फोलिक एसिड की गोलियां मिलती हैं। स्थानीय स्तर पर मिलने वाली समस्त स्वास्थ्य सुविधायें गांव में गारंटी के साथ मिल जायेंगी। ए.एन.एम. कार्ले लता एकनाथ कहती हैं कि गांव में उचित स्वास्थ्य सुविधायें उपलब्ध कराना मेरी जिम्मेदारी है। यदि मुझसे कुछ गड़बड़ी होती है तो मुझे ग्रामसभा में जवाब देना होता है।[2]



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन (हिंदी) Gyan ke Fundey (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 8 सितम्बर, 2014।
  2. पोपटराव पवार : आदर्श गांव के निर्माता (हिंदी) मॉडर्न इंडियन हीरो (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 8 सितम्बर, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख