हैनरी कॉटन
हैनरी कॉटन
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पूरा नाम | हैनरी कॉटन |
जन्म | 13 सितम्बर, 1845 |
जन्म भूमि | मद्रास |
मृत्यु | 22 अक्टूबर, 1915 |
अभिभावक | पिता- जोसेफ जॉन कॉटन |
नागरिकता | भारतीय |
पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
संबंधित लेख | आर. सी. दत्त, सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी, दरभंगा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
अन्य जानकारी | हेनरी कॉटन के कई भारतीय दोस्त थे जिनसे वह स्वतंत्र रूप से मिलते थे, इनमें टैगोर परिवार, डब्लयू. सी. बनर्जी, आर. सी. दत्त, सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी और दरभंगा के महाराजा का नाम प्रमुख हैं। |
अद्यतन | 06:20, 3 जून 2017 (IST) |
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हैनरी कॉटन (अंग्रेज़ी- Henry Cotton जन्म- 13 सितम्बर, 1845, मद्रास; मृत्यु- 22 अक्टूबर, 1915) भारतीय राजनीतिज्ञ थे, इन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया है।
संक्षिप्त परिचय
हेनरी कॉटन का जन्म 13 सितम्बर, 1845, को मद्रास के तंजौर ज़िले में कॉमबाकोन्म में हुआ था। इनके पिता जोसेफ जॉन कॉटन 1831 से लेकर 1863 तक मद्रास के निवासी थे। अक्टूबर, 1867 में वह बंगाल नागरिक सेवा में शामिल होने के लिए भारत आए। वह 1897 में असम के मुख्य आयुक्त बन गए थे जहाँ से 1902 में सेवानिवृत्त हो गए। हेनरी कॉटन भारत के एक प्रतिष्ठित परिवार से थे जो पिछली पांच पीढ़ियों से भारत की सेवा करते आ रहे थे। उनके परदादा जोसेफ कॉटन 18 वीं शताब्दी के बीच में ईस्ट इंडिया कंपनी की व्यापारिक सेवा में थे और 28 वर्षों तक कंपनी के निदेशक रहे।
राजनैतिक जीवन
हेनरी कॉटन ने बंगाल और असम की सीमाओं के पुनर्निर्माण के लिए भारत सरकार के साथ पूरी तरह से प्रशासनिक विवाद के कारण इन्हें शोहरत मिली और वह विभाजन के लिए हुए आंदोलन के नेता बन गए। 1904 में वह बम्बई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 20वें अधिवेशन की अध्यक्षता करने के लिए भारत लौटे।
10 जनवरी, 1905 में विभाजन के सवाल पर सर हेनरी कॉटन की अध्यक्षता में टाउन हॉल, कलकत्ता में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया। हेनरी ने 1891 से 1897 तक जब वह असम के मुख्य आयुक्त थे, बंगाल के विभाजन के इतिहास को खंगाला। लुशाई हिल्स तो असम को दे दी गई और बात वहीं खत्म हो गई। उनकी राय में वर्तमान विभाजन का प्रस्ताव या तो बंगाल सरकार द्वारा या असम के प्रशासन द्वारा नहीं किया गया बल्कि वो अनायास स्वयं भारत सरकार की तरफ से आया था। लंदन से वापसी पर वह हाउस ऑफ कॉमन्स के भारतीय समूह में शामिल हो गए।
हेनरी कॉटन के कई भारतीय दोस्त थे जिनसे वह स्वतंत्र रूप से मिलते थे, इनमें टैगोर परिवार, डब्लयू. सी. बनर्जी, आर. सी. दत्त, सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी और दरभंगा के महाराजा का नाम प्रमुख हैं।
1885 में उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय के लिए नियुक्त किया गया था और वह कोलकाता नगर निगम के लिए निर्विरोध चुने गए। उसी समय उन्होंने ‘‘न्यू इंडिया या इंडिया इन ट्रांज़िशन’’ का प्रकाशन किया। उनका दूसरा कार्य ‘‘इंडियन एंड होम मेमोरीज’’ 1911 में प्रकाशित हुआ, ये दोनों पुस्तकें भारत के कल्याण के लिये उनकी वास्तविक और मानवीय रुचि प्रकट करती हैं।
निधन
हेनरी कॉटन का निधन 22 अक्टूबर, 1915 में हुआ था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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