श्रीराम लागू

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श्रीराम लागू
श्रीराम लागू
श्रीराम लागू
पूरा नाम श्रीराम लागू
जन्म 16 नवंबर, 1927
जन्म भूमि सतारा ज़िला, महाराष्ट्र
मृत्यु 17 दिसंबर, 2019
मृत्यु स्थान पुणे, महाराष्ट्र
पति/पत्नी दीपा लागू
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र फ़िल्म अभिनेता तथा रंगमंच कलाकार
मुख्य फ़िल्में 'पिंजरा', 'मेरे साथ चल', 'सामना', 'दौलत', 'घरौंदा', 'विधाता', 'खुद्दार', 'लावारिस', 'काला बाज़ार' आदि।
शिक्षा एमबीबीएस और एमएस
पुरस्कार-उपाधि फिल्मफेयर पुरस्कार (1978), संगीत नाटक एकेडमी फेलोशिप (2010), कालीदास सम्मान
सक्रिय काल 1927-2019
अन्य जानकारी श्रीराम लागू ने अपने कॅरियर की शुरुआत 'वो आहट: एक अजीब कहानी' से की। ये फिल्म साल 1971 में आई थी।

श्रीराम लागू (अंग्रेज़ी: Shriram Lagoo, जन्म- 16 नवंबर, 1927; मृत्यु- 17 दिसंबर, 2019) भारतीय सिनेमा और रंगमंच के दिग्गज कलाकार थे। उन्होंने हिंदी फिल्मों के अलावा मराठी सिनेमा में भी काम किया। श्रीराम लागू ने अपने फिल्मी करियर में 100 से ज्यादा हिंदी और 40 से ज्यादा मराठी फिल्मों में काम किया। सिनेमा के अलावा मराठी, हिंदी और गुजराती रंगमंच से जुड़े रहे श्रीराम लागू ने 20 से अधिक मराठी नाटकों का निर्देशन भी किया।


मराठी थिएटर में तो उन्हें 20वीं सदी के सबसे बेहतरीन कलाकारों में गिना जाता था। 'नटसम्राट' नाटक में उन्होंने गणपत बेलवलकर की भूमिका निभाई थी, जिसे मराठी थिएटर के लिए मील का पत्थर माना जाता है। गणपत बेलवलकर का रोल इतना कठिन माना जाता है कि इस रोल को निभाने वाले बहुत-से थियेटर कलाकार गंभीर रूप से बीमार हुए। नटसम्राट के रोल के बाद श्रीराम लागू को भी दिल का दौरा पड़ा था।

परिचय

श्रीराम लागू का जन्म 16 नवंबर, 1927 को सतारा ज़िला, महाराष्ट्र में हुआ था। वे मराठी थियेटर के दिग्गज कलाकार थे। खास बात ये थी कि फिल्मों में आने से पहले श्रीराम लागू पेशे से डॉक्टर थे। वह नाक-कान और गले के सर्जन थे। उन्होंने एमबीबीएस और एमएस दोनों मेडिकल डिग्री प्राप्त की थीं। डॉ. लागू को एक्टिंग का शौक़ मेडिकल की पढ़ाई के दौरान ही लग गया था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत थिएटर से की थी। उन्होंने 1971 में आयी आहट- एक अजीब कहानी से हिंदी सिनेमा में बतौर एक्टर पारी शुरू की थी। अपने करियर में उन्होंने कई तरह के किरदार निभाये।

बहुत कम लोग जानते हैं कि डॉ. श्रीराम लागू एक बेहतरीन एक्टर होने के साथ ENT सर्जन भी थे। उन्होंने अपने करियर में फ़िल्मों के अलावा 20 मराठी नाटकों का निर्देशन भी किया। अस्सी और नब्बे के दशक में डॉ. लागू फ़िल्मों में एक जाना-पहचाना चेहरा बन चुके थे। इस दौरान उन्होंने हिंदी और मराठी सिनेमा की क़रीब साठ फ़िल्मों में अलग-अलग भूमिकाएं अदा कीं। 1990 के बाद पर्दे पर उनकी मौजूदगी कम हो गयी थी, मगर थिएटर में वो सक्रिय रहे।[1]

फ़िल्मी शुरुआत

पुणे और मुंबई में पढ़ाई करने वाले श्रीराम लागू को एक्टिंग का शौक बचपन से ही था। पढ़ाई के लिए उन्होंने मेडिकल को चुना पर नाटकों का सिलसिला वहाँ भी चलता रहा। मेडकिल का पेशा उन्हें अफ़्रीका समेत कई देशों में लेकर गया। वह सर्जन का काम करते रहे लेकिन मन एक्टिंग में ही अटका था। तब 42 साल की उम्र में उन्होंने थियेटर और फ़िल्मों की दुनिया में कदम रखा। 1969 में वह पूरी तरह मराठी थियेटर से जुड़ गए।

कॅरियर

श्रीराम लागू ने अपने कॅरियर की शुरुआत 'वो आहट: एक अजीब कहानी' से की। ये फिल्म साल 1971 में आई थी। इसके बाद उन्होंने बॉलीवुड में 'पिंजरा', 'मेरे साथ चल', 'सामना', 'दौलत' जैसी कई शानदार फिल्मों में काम किया। इसके अलावा श्रीराम लागू ने मराठी फिल्मों और नाटक में भी काम किया।

  1. विधाता (1982)
  2. खुद्दार (1994)
  3. लावारिस (1981)
  4. काला बाज़ार (1989)

इन फिल्मों में श्रीराम लागू के शानदार अभिनय के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है। श्रीराम लागू ने अपने फिल्मी कॅरियर में 100 से ज्यादा हिंदी और 40 से ज्यादा मराठी फिल्मों में काम किया। सन 1978 में फिल्म घरौंदा के लिए डॉ. श्रीराम लागू को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया।

नाटक 'नट सम्राट'

श्रीराम लागू प्रसिद्ध नाटक 'नट सम्राट' के पहले हीरो थे। इस नाटक को प्रसिद्ध लेखक कुसुमाग्र ने लिखा था। इस नाटक में उनके अभिनय को आज भी याद किया जाता है। नट सम्राट नाटक में उन्होंने अप्पासाहेब बेलवलकर की भूमिका निभाई थी, जिसे मराठी थिएटर के लिए मील का पत्थर माना जाता है। इस नाटक में अपने शानदार अभिनय के बाद उन्हें नट सम्राट कहा जाने लगा। अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने एक बार कहा था कि- "श्रीराम लागू की आत्मकथा 'लमाण' किसी भी एक्टर के लिए बाइबिल की तरह है"।

पुरस्कार व सम्मान

सन 1978 में घरौंदा फ़िल्म के लिए श्रीराम लागू को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के लिए फ़िल्मफेयर अवॉर्ड प्रदान किया गया था। 1997 में उन्हें 'कालीदास सम्मान' से नवाज़ा गया था। 2006 में डॉ. लागू को सिनेमा में योगदान के लिए 'मास्टर दीनानाथ मंगेशकर स्मृति प्रतिष्ठान' ने सम्मानित किया था। वहीं, 2010 में उन्हें 'संगीत नाटक एकेडमी फेलोशिप' से सम्मानित किया गया। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. श्रीराम लागू ने 'लमान' शीर्षक से आत्मकथा भी लिखी।

मृत्यु

श्रीराम लागू का निधन 17 दिसंबर, 2019 (मंगलवार) को 92 साल की उम्र में पुणे के निजी अस्पताल में हुआ।

उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करके श्रद्धांजलि अर्पित की। पीएम ने लिखा- "डॉ. श्रीराम लागू के व्यक्तित्व में विविधता और मेधा झलकती थी। अपनी सालों लम्बी यात्रा में उन्होंने बेहद शानदार परफॉर्मेंस से चमत्कृत किया। उनके काम को आने वाले कई सालों तक याद रखा जाएगा। उनके निधन की ख़बर से क्षुब्ध हू। उनके प्रशंसकों को संवेदनाएं। ओम शांति"।[1]

ऋषि कपूर ने डॉ. श्रीराम लागू के निधन पर लिखा था- "श्रद्धांजलि, सबसे सहज कलाकारों में शामिल डॉ. श्रीराम लागू हमें छोड़कर चले गये। उन्होंने कई फ़िल्में कीं। दुर्भाग्यवश पिछले 25-30 सालों में उनके साथ काम करने का मौका कभी नहीं मिला। वो पुणे में रिटायर्ड जीवन बिता रहे थे। डॉ. साहब आपको बहुत प्यार"।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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