|
|
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) |
पंक्ति 7: |
पंक्ति 7: |
| | | | | |
| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
|
| |
| {'[[अशोक वाटिका]]' का दूसरा नाम क्या था?
| |
| |type="()"}
| |
| +प्रमदावन
| |
| -कदलीवन
| |
| -मधुवन
| |
| -[[वृन्दावन]]
| |
| ||'अशोक वाटिका' प्राचीन राजाओं के भवन के समीप की विशेष वाटिका कहलाती थी। [[वाल्मीकि रामायण]] के अनुसार [[अशोक वाटिका]] [[लंका]] में स्थित एक सुंदर उद्यान था, जिसमें [[रावण]] ने [[सीता]] को बंदी बनाकर रखा था। इसका एक दूसरा नाम 'प्रमदावन' भी था। '[[अरण्य काण्ड वा. रा.|अरण्य काण्ड]]' से ज्ञात होता है कि रावण पहले सीता को अपने राज प्रासाद में लाया था और वहीं रखना चाहता था, किंतु सीता की अडिगता तथा अपने प्रति उसका तिरस्कार भाव देखकर उसने सीता को धीरे-धीरे मना लेने के लिए प्रासाद से कुछ दूर अशोक वाटिका में कैद कर दिया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अशोक वाटिका]]
| |
|
| |
| {[[महर्षि वाल्मीकि]] पहले किस नाम से जाने जाते थे?
| |
| |type="()"}
| |
| -रत्नेश
| |
| -रत्नसेन
| |
| +[[रत्नाकर (डाकू)|रत्नाकर]]
| |
| -रत्नाभ
| |
| ||[[चित्र:Valmiki-Ramayan.jpg|right|80px|वाल्मीकि]]'रत्नाकर' [[महर्षि वाल्मीकि]] का पहला नाम था, जब वह एक डाकू ([[दस्यु]]) का जीवन व्यतीत करते थे। इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प इंसान को रंक से राजा बना सकते हैं और एक अज्ञानी को महान ज्ञानी। [[भारतीय इतिहास]] में आदिकवि महर्षि वाल्मीकि की जीवन कथा भी दृढ़ संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति अर्जित करने की ओर अग्रसर करती है। कभी '[[रत्नाकर (डाकू)|रत्नाकर]]' के नाम से चोरी और लूटपाट करने वाले वाल्मीकि ने अपने संकल्प से खुद को आदिकवि के स्थान तक पहुँचाया और [[हिन्दू धर्म]] के श्रेष्ठ धार्मिक ग्रंथों में से एक “[[वाल्मीकि रामायण]]” की रचना की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रत्नाकर (डाकू)|रत्नाकर]], [[वाल्मीकि]]
| |
|
| |
| {[[लंका]] के दहन के पश्चात किस [[पर्वत]] पर चढ़कर [[हनुमान]] ने [[समुद्र]] को लाँघा और वापस लौटकर आये?
| |
| |type="()"}
| |
| +[[अरिष्ट]]
| |
| -[[मैनाक]]
| |
| -[[गिरनार पर्वत|गिरनार]]
| |
| -[[विन्ध्याचल पर्वत|विन्ध्याचल]]
| |
| ||[[चित्र:Ram-Hanuman.jpg|right|80px|राम-हनुमान मिलन]]'[[वाल्मीकि रामायण]]' के अनुसार [[हनुमान]] एक वानर वीर थे। [[राम|भगवान राम]] को हनुमान [[ऋष्यमूक पर्वत]] के पास मिले थे। हनुमान राम के अनन्य मित्र, सहायक और [[भक्त]] थे। [[सीता|माता सीता]] का अन्वेषण करने के लिए ये [[लंका]] गए। राम के दौत्य (सन्देश देना, दूत का कार्य) का इन्होंने अद्भुत प्रकार निर्वाह किया था। श्रीराम और लंका के राजा [[रावण]] के युद्ध में भी इनका पराक्रम प्रसिद्ध है। 'वाल्मीकि रामायण' के [[सुन्दर काण्ड वा. रा.|सुन्दर काण्ड]] के अनुसार लंका में समुद्रतट पर स्थित एक '[[अरिष्ट]]' नामक [[पर्वत]] है, जिस पर चढ़कर [[हनुमान]] ने लंका से लौटते समय [[समुद्र]] को कूद कर पार किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हनुमान]], [[अरिष्ट]]
| |
|
| |
| {[[महर्षि वसिष्ठ]] की [[गाय]] का नाम क्या था?
| |
| |type="()"}
| |
| -कपिला
| |
| +[[कामधेनु]]
| |
| -शैलोदा
| |
| -उपरोक्त में से कोई नहीं
| |
| ||[[चित्र:Cows-mathura2.jpg|right|100px|कामधेनु]]'कामधेनु' का वर्णन पौराणिक गाथाओं में एक ऐसी चमत्कारी [[गाय]] के रूप में मिलता है, जिसमें दैवीय शक्तियाँ थीं और जिसके दर्शन मात्र से ही लोगो के दुःख व पीड़ा दूर हो जाती थी। यह [[कामधेनु]] जिसके पास होती थी, उसे हर तरह से चमत्कारिक लाभ होता था। इस गाय का [[दूध]] अमृत के समान माना जाता था। [[महर्षि वसिष्ठ]] क्षमा की प्रतिमूर्ति थे। एक बार [[विश्वामित्र]] उनके अतिथि हुए। वसिष्ठ ने कामधेनु के सहयोग से उनका राजोचित सत्कार किया। कामधेनु की अलौकिक क्षमता को देखकर विश्वामित्र के मन में लोभ उत्पन्न हो गया। उन्होंने इस गाय को वसिष्ठ से लेने की इच्छा प्रकट की। कामधेनु वसिष्ठ जी के लिये आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु महत्त्वपूर्ण साधन थी, अत: इन्होंने उसे देने में असमर्थता व्यक्त की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कामधेनु]], [[वसिष्ठ]], [[विश्वामित्र]]
| |
|
| |
| {[[लंका]] में [[राक्षस|राक्षसों]] के कुल देवता का स्थान निम्न में से कौन-सा था?
| |
| |type="()"}
| |
| -अशोक वन
| |
| -निकुंभिला
| |
| +चैत्य प्रासाद
| |
| -कदंब वर्त
| |
|
| |
|
| {निम्नलिखित में से कौन [[कुबेर]] के सेनापति थे? | | {निम्नलिखित में से कौन [[कुबेर]] के सेनापति थे? |
पंक्ति 61: |
पंक्ति 22: |
| -अघ्र | | -अघ्र |
| -अभि | | -अभि |
| ||'विभीषण' [[विश्रवा]] के सबसे छोटे पुत्र और [[लंका]] के राजा [[रावण]] के भाई थे। बचपन से ही [[विभीषण]] की धर्माचरण में रूचि थी। ये भगवान के परम [[भक्त]] थे। भगवान [[श्रीराम]] ने जब लंका पर चढ़ाई की, तब विभीषण ने [[सीता]] को राम को वापस करके युद्ध की विभीषिका को रोकने की रावण से प्रार्थना की थी। इस पर रावण ने इन्हें लात मारकर लंका से निकाल दिया। विभीषण राम के शरणागत हुए। इनका एक गुप्तचर था, जिसका नाम 'अनल' था। उसने पक्षी का रूप धारण कर लंका जाकर रावण की रक्षा व्यवस्था तथा सैन्य शक्ति का पता लगाया और इसकी सूचना भगवान श्रीराम को दी थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[विभीषण]] | | ||'विभीषण' [[विश्रवा]] के सबसे छोटे पुत्र और [[लंका]] के राजा [[रावण]] के भाई थे। बचपन से ही [[विभीषण]] की धर्माचरण में रुचि थी। ये भगवान के परम [[भक्त]] थे। भगवान [[श्रीराम]] ने जब लंका पर चढ़ाई की, तब विभीषण ने [[सीता]] को राम को वापस करके युद्ध की विभीषिका को रोकने की रावण से प्रार्थना की थी। इस पर रावण ने इन्हें लात मारकर लंका से निकाल दिया। विभीषण राम के शरणागत हुए। इनका एक गुप्तचर था, जिसका नाम 'अनल' था। उसने पक्षी का रूप धारण कर लंका जाकर रावण की रक्षा व्यवस्था तथा सैन्य शक्ति का पता लगाया और इसकी सूचना भगवान श्रीराम को दी थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[विभीषण]] |
|
| |
|
| {उस सरोवर का क्या नाम था, जो एक योजन लम्बा तथा इतना ही चौड़ा था? | | {उस सरोवर का क्या नाम था, जो एक योजन लम्बा तथा इतना ही चौड़ा था? |