"आर्यों का विज्ञान -दयानंद सरस्वती": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
('{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय |चित्र=Dayanand-Saraswati.jpg |चित्र ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
छो (Text replacement - " महान " to " महान् ")
 
(एक दूसरे सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 31: पंक्ति 31:
अपने एक प्रवचन में [[दयानंद सरस्वती|स्वामी दयानंद सरस्वती]] ने कहा था कि  
अपने एक प्रवचन में [[दयानंद सरस्वती|स्वामी दयानंद सरस्वती]] ने कहा था कि  


“प्राचीन काल में दरिद्रों के घर में भी विमान थे । उपरिचर नामक राजा सदा हवा में ही फिरा करता था , पहले के लोगों को विमान रचने की कला , विद्या भली प्रकार से विदित थी । पहले के लोग विमान आदि के द्वारा लड़ाई लड़ते थे । मैंने भी एक विमान-रचना का पुस्तक देखा है । भला आप सोचे कि उस व्यवस्था और विज्ञान के सन्मुख आज इस रेलगाड़ी की प्रतिष्ठा ही क्या हो सकती है । ”
“प्राचीन काल में दरिद्रों के घर में भी विमान थे। उपरिचर नामक राजा सदा हवा में ही फिरा करता था, पहले के लोगों को विमान रचने की कला, विद्या भली प्रकार से विदित थी। पहले के लोग विमान आदि के द्वारा लड़ाई लड़ते थे। मैंने भी एक विमान-रचना का पुस्तक देखा है। भला आप सोचे कि उस व्यवस्था और विज्ञान के सन्मुख आज इस रेलगाड़ी की प्रतिष्ठा ही क्या हो सकती है।”


[[ह्यूम, ए. ओ.| ए. ओ. ह्यूम]] जिन्होंने बाद में भारतीय कांग्रेस की स्थापना की , उन्होने स्वामी जी का उपहास करते हुए कहा , ‘व्यक्ति का उड़ना गुब्बारों तक ही सीमित रह सकता हैं , यान बनाकर तो केवल सपनों में ही उड़ा जा सकता है । लेकिन जब विमान का आविष्कार हुआ तो [[ह्यूम, ए. ओ.| ए. ओ. ह्यूम]] ने बाद में [[उदयपुर]] में स्वामी श्रद्धानंद जी ( स्वामी दयानन्द जब देह त्याग चुके थे और स्वामी श्रद्धानंद उनके उत्तराधिकारी समझे जाते थे , इसलिए क्षमा उनसे मांगी गयी ) से अपने उपहास के लिए क्षमा मांगी थी ।
[[ह्यूम, ए. ओ.| ए. ओ. ह्यूम]] जिन्होंने बाद में भारतीय कांग्रेस की स्थापना की, उन्होंने स्वामी जी का उपहास करते हुए कहा, ‘व्यक्ति का उड़ना गुब्बारों तक ही सीमित रह सकता है, यान बनाकर तो केवल सपनों में ही उड़ा जा सकता है। लेकिन जब विमान का आविष्कार हुआ तो [[ह्यूम, ए. ओ.| ए. ओ. ह्यूम]] ने बाद में [[उदयपुर]] में [[स्वामी श्रद्धानंद|स्वामी श्रद्धानंद जी]] (स्वामी दयानन्द जब देह त्याग चुके थे और स्वामी श्रद्धानंद उनके उत्तराधिकारी समझे जाते थे, इसलिए क्षमा उनसे मांगी गयी) से अपने उपहास के लिए क्षमा मांगी थी।


उसी ए० ओ० ह्यूम ने महर्षि जी के बारे में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा था कि :-
उसी ए॰ओ॰ ह्यूम ने महर्षि जी के बारे में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा था कि :-


“स्वामी दयानन्द के सिद्धांतों के विषय में कोई मनुष्य कैसी ही सम्मति स्थिर कर ले, परंतु यह सबको मान लेना पड़ेगा कि स्वामी दयानन्द अपने देश के लिए गौरवरूप थे। दयानन्द को खोकर भारत को महान हानि उठानी पड़ी है। वे महान और श्रेष्ठ पुरुष थे।”
“स्वामी दयानन्द के सिद्धांतों के विषय में कोई मनुष्य कैसी ही सम्मति स्थिर कर ले, परंतु यह सबको मान लेना पड़ेगा कि स्वामी दयानन्द अपने देश के लिए गौरवरूप थे। दयानन्द को खोकर भारत को महान् हानि उठानी पड़ी है। वे महान् और श्रेष्ठ पुरुष थे।”


;[[दयानंद सरस्वती]] से जुड़े अन्य प्रसंग पढ़ने के लिए [[दयानंद सरस्वती के प्रेरक प्रसंग]] पर जाएँ।   
;[[दयानंद सरस्वती]] से जुड़े अन्य प्रसंग पढ़ने के लिए [[दयानंद सरस्वती के प्रेरक प्रसंग]] पर जाएँ।   

14:16, 30 जून 2017 के समय का अवतरण

आर्यों का विज्ञान -दयानंद सरस्वती
दयानंद सरस्वती
दयानंद सरस्वती
विवरण इस लेख में दयानंद सरस्वती से संबंधित प्रेरक प्रसंगों के लिंक दिये गये हैं।
भाषा हिंदी
देश भारत
मूल शीर्षक प्रेरक प्रसंग
उप शीर्षक दयानंद सरस्वती के प्रेरक प्रसंग
संकलनकर्ता अशोक कुमार शुक्ला

अपने एक प्रवचन में स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा था कि

“प्राचीन काल में दरिद्रों के घर में भी विमान थे। उपरिचर नामक राजा सदा हवा में ही फिरा करता था, पहले के लोगों को विमान रचने की कला, विद्या भली प्रकार से विदित थी। पहले के लोग विमान आदि के द्वारा लड़ाई लड़ते थे। मैंने भी एक विमान-रचना का पुस्तक देखा है। भला आप सोचे कि उस व्यवस्था और विज्ञान के सन्मुख आज इस रेलगाड़ी की प्रतिष्ठा ही क्या हो सकती है।”

ए. ओ. ह्यूम जिन्होंने बाद में भारतीय कांग्रेस की स्थापना की, उन्होंने स्वामी जी का उपहास करते हुए कहा, ‘व्यक्ति का उड़ना गुब्बारों तक ही सीमित रह सकता है, यान बनाकर तो केवल सपनों में ही उड़ा जा सकता है। लेकिन जब विमान का आविष्कार हुआ तो ए. ओ. ह्यूम ने बाद में उदयपुर में स्वामी श्रद्धानंद जी (स्वामी दयानन्द जब देह त्याग चुके थे और स्वामी श्रद्धानंद उनके उत्तराधिकारी समझे जाते थे, इसलिए क्षमा उनसे मांगी गयी) से अपने उपहास के लिए क्षमा मांगी थी।

उसी ए॰ओ॰ ह्यूम ने महर्षि जी के बारे में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा था कि :-

“स्वामी दयानन्द के सिद्धांतों के विषय में कोई मनुष्य कैसी ही सम्मति स्थिर कर ले, परंतु यह सबको मान लेना पड़ेगा कि स्वामी दयानन्द अपने देश के लिए गौरवरूप थे। दयानन्द को खोकर भारत को महान् हानि उठानी पड़ी है। वे महान् और श्रेष्ठ पुरुष थे।”

दयानंद सरस्वती से जुड़े अन्य प्रसंग पढ़ने के लिए दयानंद सरस्वती के प्रेरक प्रसंग पर जाएँ।
पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख