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'''मखमल''' ([[अंग्रेजी]]: ''Velvet'') हल्की बुनाई के रोयेंदार रेशमी कपड़े को कहते हैं। यह साधारण रेशम<ref>silk</ref> या प्लश <ref>plush</ref> की रोएँदार सतह पर बनाया जाता है। यह सतह बुनाई करते समय ऐंठे हुए रेशमी धागों को पृथक-पृथक् करने से विकसित होती है। अलग-अलग होने पर यह धागे गुच्छे के रूप में रेशमी, सूती या किसी भी बुने कपड़े के दृढ़ आधार पर सीधे खड़े रहते है। प्राचीन काल से ही मखमल पोशाकों के लिये काफ़ी लोकप्रिय रहा है। राजकीय, सामाजिक तथा धार्मिक अवसरों पर मखमल के परिधानों का विशेष रूप से उपयोग होता था। इसके कई उपयोग भी हैं, जैसे पर्दें के रूप में एवं शोभा के लिये सोफे के गद्दे तथा लिहाफों के खोल के रूप में। | '''मखमल''' ([[अंग्रेजी]]: ''Velvet'') हल्की बुनाई के रोयेंदार रेशमी कपड़े को कहते हैं। यह साधारण रेशम<ref>silk</ref> या प्लश <ref>plush</ref> की रोएँदार सतह पर बनाया जाता है। यह सतह बुनाई करते समय ऐंठे हुए रेशमी धागों को पृथक-पृथक् करने से विकसित होती है। अलग-अलग होने पर यह धागे गुच्छे के रूप में रेशमी, सूती या किसी भी बुने कपड़े के दृढ़ आधार पर सीधे खड़े रहते है। प्राचीन काल से ही मखमल पोशाकों के लिये काफ़ी लोकप्रिय रहा है। राजकीय, सामाजिक तथा धार्मिक अवसरों पर मखमल के परिधानों का विशेष रूप से उपयोग होता था। इसके कई उपयोग भी हैं, जैसे पर्दें के रूप में एवं शोभा के लिये सोफे के गद्दे तथा लिहाफों के खोल के रूप में। | ||
==बुनाई== | ==बुनाई== | ||
हल्की बुनाई का मखमल करघे पर बुना जाता है। यह मखमल ताने के धागों की दो कतारों तथा बाने के धागे की एक कतार से तैयार होता है, | हल्की बुनाई का मखमल करघे पर बुना जाता है। यह मखमल ताने के धागों की दो कतारों तथा बाने के धागे की एक कतार से तैयार होता है, अर्थात् ताना 'आधार'<ref>ground</ref> धागों के रूप में आधार बुनाई<ref>foundation texture</ref> करता है तथा रोएँदार धागा बाने के रूप में रोयाँ तैयार करता है। बुनाई के दौरान ऐंठे हुए रोयेंदार धागे को रोयाँ बनाने के लिये ऊपर उठा देते हैं, जबकि आधार के धागे नीचे रहते हैं। इस तरह से बने हुए ऐंठे छादक<ref>warp shed</ref> में एक लंबा, पतला इमारत का तार, जिसके संपूर्ण ऊपरी किनारे में सँकरा खाँचा बना रहता है, डाला जाता है। इस तार को रोयें वाला तार<ref>pile wire</ref> कहते हैं। यह तार जब पूर्ण चौड़ाई भर के रोयाँ बनने वाले डोरों के बीच में फँसा दिया जाता है, तब कंघा<ref>reed</ref> मारते हैं।<ref name="aa">{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%AE%E0%A4%96%E0%A4%AE%E0%A4%B2 |title=मखमल |accessmonthday= 25 सितम्बर |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज |language=हिंदी }}</ref> | ||
इसके बाद फिर उसी प्रकार से रोयें वाला डोरा, जो बाना होता है, निश्चित तानों के बाद उकसाकर, ऐंठकर फंदा जैसा बना लिया जाता है और उन फंदों में उपुर्यक्त रोयें वाले तार की तरह का दूसरा [[इस्पात]] का तार घुसेड़ा जाता है। तब फिर कंघा चलाकर कपड़ा बुना जाता है। इस प्रकार तीन तार लगाने पर चौथी बार पहला वाला तार निकालकर लगाते हैं। रोयाँ बनाने के लिये तार निकालने से पहले विशेष प्रकार से बने हुए हैंडिलदार चाकू को इस्पात के तार के ऊपरी खाँचे में एक सिरे से दूसरे सिरे तक चला देते हैं, जिससे धागा कट जाता है। इससे छोटे-छोटे रोयें तैयार हो जाते हैं। बिजली से चलने वाले करघों द्वारा भी मखमल बुना जाता है। इसमें उमेठे हुए डोरों के फंदों में रोयें वाला तार निकालने और लगाने का कार्य स्वनियंत्रित होता है। विभिन्न प्रकार के मखमल रोयेंदार डोरे के [[रंग]], प्रकार जैसे- ऊन, सूत बकरी इत्यादि के लंबे बाल आकार<ref>जैसे-कटे बिनकटे</ref> इत्यादि बदलने से बनाए जा सकते हैं। | इसके बाद फिर उसी प्रकार से रोयें वाला डोरा, जो बाना होता है, निश्चित तानों के बाद उकसाकर, ऐंठकर फंदा जैसा बना लिया जाता है और उन फंदों में उपुर्यक्त रोयें वाले तार की तरह का दूसरा [[इस्पात]] का तार घुसेड़ा जाता है। तब फिर कंघा चलाकर कपड़ा बुना जाता है। इस प्रकार तीन तार लगाने पर चौथी बार पहला वाला तार निकालकर लगाते हैं। रोयाँ बनाने के लिये तार निकालने से पहले विशेष प्रकार से बने हुए हैंडिलदार चाकू को इस्पात के तार के ऊपरी खाँचे में एक सिरे से दूसरे सिरे तक चला देते हैं, जिससे धागा कट जाता है। इससे छोटे-छोटे रोयें तैयार हो जाते हैं। बिजली से चलने वाले करघों द्वारा भी मखमल बुना जाता है। इसमें उमेठे हुए डोरों के फंदों में रोयें वाला तार निकालने और लगाने का कार्य स्वनियंत्रित होता है। विभिन्न प्रकार के मखमल रोयेंदार डोरे के [[रंग]], प्रकार जैसे- ऊन, सूत बकरी इत्यादि के लंबे बाल आकार<ref>जैसे-कटे बिनकटे</ref> इत्यादि बदलने से बनाए जा सकते हैं। |
07:43, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

मखमल (अंग्रेजी: Velvet) हल्की बुनाई के रोयेंदार रेशमी कपड़े को कहते हैं। यह साधारण रेशम[1] या प्लश [2] की रोएँदार सतह पर बनाया जाता है। यह सतह बुनाई करते समय ऐंठे हुए रेशमी धागों को पृथक-पृथक् करने से विकसित होती है। अलग-अलग होने पर यह धागे गुच्छे के रूप में रेशमी, सूती या किसी भी बुने कपड़े के दृढ़ आधार पर सीधे खड़े रहते है। प्राचीन काल से ही मखमल पोशाकों के लिये काफ़ी लोकप्रिय रहा है। राजकीय, सामाजिक तथा धार्मिक अवसरों पर मखमल के परिधानों का विशेष रूप से उपयोग होता था। इसके कई उपयोग भी हैं, जैसे पर्दें के रूप में एवं शोभा के लिये सोफे के गद्दे तथा लिहाफों के खोल के रूप में।
बुनाई
हल्की बुनाई का मखमल करघे पर बुना जाता है। यह मखमल ताने के धागों की दो कतारों तथा बाने के धागे की एक कतार से तैयार होता है, अर्थात् ताना 'आधार'[3] धागों के रूप में आधार बुनाई[4] करता है तथा रोएँदार धागा बाने के रूप में रोयाँ तैयार करता है। बुनाई के दौरान ऐंठे हुए रोयेंदार धागे को रोयाँ बनाने के लिये ऊपर उठा देते हैं, जबकि आधार के धागे नीचे रहते हैं। इस तरह से बने हुए ऐंठे छादक[5] में एक लंबा, पतला इमारत का तार, जिसके संपूर्ण ऊपरी किनारे में सँकरा खाँचा बना रहता है, डाला जाता है। इस तार को रोयें वाला तार[6] कहते हैं। यह तार जब पूर्ण चौड़ाई भर के रोयाँ बनने वाले डोरों के बीच में फँसा दिया जाता है, तब कंघा[7] मारते हैं।[8]
इसके बाद फिर उसी प्रकार से रोयें वाला डोरा, जो बाना होता है, निश्चित तानों के बाद उकसाकर, ऐंठकर फंदा जैसा बना लिया जाता है और उन फंदों में उपुर्यक्त रोयें वाले तार की तरह का दूसरा इस्पात का तार घुसेड़ा जाता है। तब फिर कंघा चलाकर कपड़ा बुना जाता है। इस प्रकार तीन तार लगाने पर चौथी बार पहला वाला तार निकालकर लगाते हैं। रोयाँ बनाने के लिये तार निकालने से पहले विशेष प्रकार से बने हुए हैंडिलदार चाकू को इस्पात के तार के ऊपरी खाँचे में एक सिरे से दूसरे सिरे तक चला देते हैं, जिससे धागा कट जाता है। इससे छोटे-छोटे रोयें तैयार हो जाते हैं। बिजली से चलने वाले करघों द्वारा भी मखमल बुना जाता है। इसमें उमेठे हुए डोरों के फंदों में रोयें वाला तार निकालने और लगाने का कार्य स्वनियंत्रित होता है। विभिन्न प्रकार के मखमल रोयेंदार डोरे के रंग, प्रकार जैसे- ऊन, सूत बकरी इत्यादि के लंबे बाल आकार[9] इत्यादि बदलने से बनाए जा सकते हैं।
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